02 February, 2009

ख़त

एक ख़त लिखा

जिसमें वो सारी बातें लिखी

जो तुमसे कहना चाहती थी

उस मुलाकात के दरम्यान अधूरी रही कुछ बातें

कुछ अपने दिल के गहरे राज़

कुछ अतीत के किस्से

कुछ भविष्य के ख्वाब

पर मुझे तुम्हारे नाम के अलावा कुछ नहीं पता

इंतज़ार कर रही हूँ

वक़्त के डाकिये का

उसके पास तो सभी का पता रहता है

उससे पूछ कर तुम्हारा ख़त डाल दूँगी

तुमने तो मेरा नाम नहीं पूछा था

पर एक मुलाकात के रिश्ते भर को

किसी अजनबी का ख़त पढोगे?

20 comments:

  1. बहोत ही बढ़िया पूजा जी क्या बात कही आपने ,एक अनजान से रिश्ते को कितनी मजबूती दी है आपने इस कविता के जरिये... बहोत खूब लिखा है आपने ... एक गीत लिखा है नज़रें इनायत बक्शे ...


    अर्श

    ReplyDelete
  2. वाह ! बहुत बढ़िया.... सुंदर भाव और सुंदर अभिव्यक्ति..
    कुछ वर्तनी(टाइपिंग)की अशुद्धियाँ रह गयीं हैं.उन्हें ठीक कर एक बार फ़िर से पोस्ट कर दें. .

    ReplyDelete
  3. साधारण शब्दों के माध्यम से असाधारण अभिव्यक्ति.........

    ReplyDelete
  4. बहुत खूब पूजा जी............अनजान रिश्ते में बंधी खूबसूरत कविता

    ReplyDelete
  5. sach sundar ek ajnabi anjaan rishte ki khuhsbu se man moh liya awesome

    ReplyDelete
  6. "भुला सका न वो वाक़या जो हुआ ही नहीं !"
    अच्छी है !

    ReplyDelete
  7. bahut khoob
    tumne to mera naam nahi poocha tha ..............

    ReplyDelete
  8. आपकी रचना पढ़कर एक गाना याद आ गया कि " लिखे खत जो तुझे वो तेरी याद में ....।" और कभी ऐसे खत लिखने के लिए एक कोड भाषा भी बनाई प्यार करने वालो ने। वैसे आपने हमेशा की तरह सुन्दर लिखा है।
    इंतज़ार कर रही हूँ
    वक़्त के डाकिये का
    उसके पास तो सभी का पता रहता है

    ReplyDelete
  9. जिससे मिलकर भी ना मिलने की कसक बाकी है
    उसी अन्जान शनासा की मुलाकात लिखो .......

    निदा फाजली

    shanaasa=parichit

    ReplyDelete
  10. इंतज़ार कर रही हूँ

    वक़्त के डाकिये का


    बहुत खूबसूरत अल्फ़ाज.

    रामराम.

    ReplyDelete
  11. हाँ सच ही कहा है ...वक़्त के पास तो सभी के पते रहते हैं .....वक्त ख़ुद ब ख़ुद आता है सोते से जगाने ....हँसते से रुलाने .....ख्वाब सजाने ......जैसे कि अजनबी की चाहत में सज जाते हैं अनगिनत सपने ....

    अनिल कान्त
    मेरा अपना जहान

    ReplyDelete
  12. bahu khoob pooja ji....
    ek ankahe rishte ki bagdooe ko samhalne me aap kamyab huyi hain

    ReplyDelete
  13. इंतज़ार कर रही हूँ

    वक़्त के डाकिये का

    बहुत सुंदर अभिवयक्ति हे ..........

    मेरे ब्लॉग पर आपकी प्रतीक्षा हे .
    पूजा जी .....

    ReplyDelete
  14. मोहतरमा आपकी अधूरी मुलाकात और उसकी बातो का बड़ा सुंदर विवरण किया है... अल्फ़ज़ो को बड़ी की तस्सली के साथ इस्तेमाल किया है..

    ReplyDelete
  15. सभी को पढ़ना होता है
    वक्त के डाकियों के हाथ पहुंचाए ख़त
    अजनबियों के से लगते वे ख़त
    उनके होते हैं
    जिन्हें हम जान नही पाये होते
    इस आधाधापी में
    वो ख़त उनके होते हैं
    जिन्हें जानना जरूरी था हमारे लिए

    ReplyDelete
  16. "इंतज़ार कर रही हूँ
    वक़्त के डाकिये का
    उसके पास तो सभी का पता रहता है"

    सहज भावपूर्ण अभिव्यक्ति . धन्यवाद

    ReplyDelete
  17. अजब सा हुआ है कि कुछ शब्दों,कुछ रचनाओं से जो आप लिखती हैं ये दालचिनी-लौंग की खुश्बू सी क्यों आने लगी है...
    उस मेल का असर है क्या?

    ReplyDelete
  18. Bahot khoob Puja...bahot hi achcha likha hai...aap ke blog tak ham pahunche...aur dekhiye to...aap hamari dost niklin...parul, anil kant, shraddha sab aap ki mehfil mai baithe hain...

    Keep it up...ek aur achche sukhanwar se mulaqat hui...

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...