एक ख़त लिखा
जिसमें वो सारी बातें लिखी
जो तुमसे कहना चाहती थी
उस मुलाकात के दरम्यान अधूरी रही कुछ बातें
कुछ अपने दिल के गहरे राज़
कुछ अतीत के किस्से
कुछ भविष्य के ख्वाब
पर मुझे तुम्हारे नाम के अलावा कुछ नहीं पता
इंतज़ार कर रही हूँ
वक़्त के डाकिये का
उसके पास तो सभी का पता रहता है
उससे पूछ कर तुम्हारा ख़त डाल दूँगी
तुमने तो मेरा नाम नहीं पूछा था
पर एक मुलाकात के रिश्ते भर को
किसी अजनबी का ख़त पढोगे?
बहोत ही बढ़िया पूजा जी क्या बात कही आपने ,एक अनजान से रिश्ते को कितनी मजबूती दी है आपने इस कविता के जरिये... बहोत खूब लिखा है आपने ... एक गीत लिखा है नज़रें इनायत बक्शे ...
ReplyDeleteअर्श
वाह ! बहुत बढ़िया.... सुंदर भाव और सुंदर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteकुछ वर्तनी(टाइपिंग)की अशुद्धियाँ रह गयीं हैं.उन्हें ठीक कर एक बार फ़िर से पोस्ट कर दें. .
साधारण शब्दों के माध्यम से असाधारण अभिव्यक्ति.........
ReplyDeleteab kya kahe :-) b'ful words
ReplyDeleteअति उत्तम
ReplyDelete----------
ज़रूर पढ़ें:
हिन्द-युग्म: आनन्द बक्षी पर विशेष लेख
बहुत खूब पूजा जी............अनजान रिश्ते में बंधी खूबसूरत कविता
ReplyDeletesach sundar ek ajnabi anjaan rishte ki khuhsbu se man moh liya awesome
ReplyDelete"भुला सका न वो वाक़या जो हुआ ही नहीं !"
ReplyDeleteअच्छी है !
bahut khoob
ReplyDeletetumne to mera naam nahi poocha tha ..............
आपकी रचना पढ़कर एक गाना याद आ गया कि " लिखे खत जो तुझे वो तेरी याद में ....।" और कभी ऐसे खत लिखने के लिए एक कोड भाषा भी बनाई प्यार करने वालो ने। वैसे आपने हमेशा की तरह सुन्दर लिखा है।
ReplyDeleteइंतज़ार कर रही हूँ
वक़्त के डाकिये का
उसके पास तो सभी का पता रहता है
जिससे मिलकर भी ना मिलने की कसक बाकी है
ReplyDeleteउसी अन्जान शनासा की मुलाकात लिखो .......
निदा फाजली
shanaasa=parichit
इंतज़ार कर रही हूँ
ReplyDeleteवक़्त के डाकिये का
बहुत खूबसूरत अल्फ़ाज.
रामराम.
हाँ सच ही कहा है ...वक़्त के पास तो सभी के पते रहते हैं .....वक्त ख़ुद ब ख़ुद आता है सोते से जगाने ....हँसते से रुलाने .....ख्वाब सजाने ......जैसे कि अजनबी की चाहत में सज जाते हैं अनगिनत सपने ....
ReplyDeleteअनिल कान्त
मेरा अपना जहान
bahu khoob pooja ji....
ReplyDeleteek ankahe rishte ki bagdooe ko samhalne me aap kamyab huyi hain
इंतज़ार कर रही हूँ
ReplyDeleteवक़्त के डाकिये का
बहुत सुंदर अभिवयक्ति हे ..........
मेरे ब्लॉग पर आपकी प्रतीक्षा हे .
पूजा जी .....
मोहतरमा आपकी अधूरी मुलाकात और उसकी बातो का बड़ा सुंदर विवरण किया है... अल्फ़ज़ो को बड़ी की तस्सली के साथ इस्तेमाल किया है..
ReplyDeleteसभी को पढ़ना होता है
ReplyDeleteवक्त के डाकियों के हाथ पहुंचाए ख़त
अजनबियों के से लगते वे ख़त
उनके होते हैं
जिन्हें हम जान नही पाये होते
इस आधाधापी में
वो ख़त उनके होते हैं
जिन्हें जानना जरूरी था हमारे लिए
"इंतज़ार कर रही हूँ
ReplyDeleteवक़्त के डाकिये का
उसके पास तो सभी का पता रहता है"
सहज भावपूर्ण अभिव्यक्ति . धन्यवाद
अजब सा हुआ है कि कुछ शब्दों,कुछ रचनाओं से जो आप लिखती हैं ये दालचिनी-लौंग की खुश्बू सी क्यों आने लगी है...
ReplyDeleteउस मेल का असर है क्या?
Bahot khoob Puja...bahot hi achcha likha hai...aap ke blog tak ham pahunche...aur dekhiye to...aap hamari dost niklin...parul, anil kant, shraddha sab aap ki mehfil mai baithe hain...
ReplyDeleteKeep it up...ek aur achche sukhanwar se mulaqat hui...