30 September, 2017

पुराने, उदार शहरों के नाम

शहरों के हिस्से
सिर्फ़ लावारिस प्रेम आता है
नियति की नाजायज़ औलाद
जिसका कोई पिता नहीं होता 
याद के अनाथ क़िस्सों को
कोई कवि अपनी कविता में पनाह नहीं देता
कोई लेखक छद्म नाम से नहीं छपवाता
कोई अखबारी रिपोर्टर भी उन्हें दुलराता नहीं 
इसलिए मेरी जान,
आत्महत्या हमेशा अपने पैतृक शहर में करना
वहाँ तुम्हारी लाश को ठिकाना लगाने वाले भी
तुम्हें अपना समझेंगे 
***
बाँझ औरत
दुःख अडॉप्ट करती है
और करती है उन्हें अपने बच्चों से ज़्यादा प्यार 
लिखती है प्रेम भरे पत्र
पुराने, उदार शहरों के नाम
कि कुछ शहर बच्चों से उनके पिता का नाम नहीं पूछते 
***
असफल प्रेमी
मरने के लिए जगह नहीं तलाशते
जगहें उन्हें ख़ुद तलाश लेती हैं
दुनिया की सबसे ऊँची बिल्डिंग के टॉप फ़्लोर पर
उसके दिल में एक यही ख़याल आया 
***
उस शहर को भूल जाने का श्राप
तुम्हारे दिल ने दिया था
इसलिए, सिर्फ़ इसलिए,
मैंने इतना टूट कर चाहा
हफ़्ते भर में हो चुकी है कितनी बारिश
तुम्हें याद है जानां, सड़कों के नाम?
स्टेशनों के नाम? कॉफ़ी शाप, व्हिस्की, सिगरेट की ब्राण्ड?
तो फिर उस लड़की का क्या ही तो याद होगा तुमको
भूल जाना कभी कभी श्राप नहीं, वरदान होता है 
***
बंद मुट्ठी से भी छीजती रही
तुम्हारी हथेली की गरमी
दिल के बंद दरवाज़े से
रिस रिस बह गया कितना प्रेम
कैलेंडेर के निशान को कहाँ याद
बाइस सितम्बर किस शहर में थी मैं
रूह को याद है मगर एक वादा
अब इस महीने को, 'सितम' बर कभी ना कहूँगी

27 September, 2017

New York Diaries - 1


दो दिन पहले न्यूयॉर्क गयी थी। कुछ यूँ कि एक अधूरी नॉवल अटकी पड़ी है और कुछ ऐसे ही क़िस्से कि जिन्हें कोई ठहार नहीं मिलता। गयी थी तो ठीक थी मालूम नहीं था कि क्यूँ गयी हूँ, लेकिन लौटी हूँ तो मालूम है कि क्यूँ गयी थी। 
मुराकामी के लिखना शुरू करने के बारे में एक घटना का ज़िक्र आता है। अंग्रेज़ी के शब्द, 'epiphany' के साथ। मुराकामी एक बार कोई बेस्बॉल मैच देखने गए थे। नोर्मल सा दिन था। उनकी उम्र उनतीस साल थी। ठीक प्लेयर ने एक बॉल को हिट किया, वो क्रैक पूरे म्यूज़ीयम में गूँज गया और ठीक उसी लम्हे मुराकामी के हृदय में इच्छा जागी, 'मैं एक नॉवल लिख सकता हूँ'। वे उस रात घर जाने के पहले काग़ज़ और कलम ख़रीद के ले गए, और इसके बाद उन्होंने कई नॉवल लिखे। 
मैं न्यू यॉर्क से ह्यूस्टन लौटने के लिए ट्रेन में बैठी थी कि अचानक से कई सारे दृश्य मौंटाज़ बनाने लगे। कितना सारा कुछ ख़ुद में जुड़ने और खुलने लगा और मुझे महसूस हुआ। मैं न्यू यॉर्क अपने अटके हुए नॉवल के लिए एक नया शहर तलाशने गयी थी। कि लिखने के लिए बेस मटीरीयल बहुत सारा कल्पना से आता है लेकिन कल्पना के शहरों में सड़कों के नाम असली होते हैं। 
न्यू यॉर्क की सबसे कमाल की याद एक थरथराहट है। जैसे किसी के सीने पर हाथ रख कर उसकी तेज़ धड़कन को सुनना। न्यू यॉर्क का सबवे सिस्टम बहुत बहुत साल पुराना है। मेन शहर के ठीक कुछ फ़ीट नीचे अंडर्ग्राउंड पटरियों का जाल बिछा है जहाँ ट्रेनें आती जाती रहती हैं। मुझे ये मालूम नहीं था और मैं टाइम्ज़ स्क्वेयर पर चल रही थी कि सड़क के नीचे थरथराहट महसूस हुयी। ज़मीन के नीचे चलती ट्रेन की रफ़्तार को सड़क पर महसूस करना एक कमाल का अहसास था। नब्ज़ पकड़ कर ख़ून की रफ़्तार देखने जैसा। एकदम अलहदा। मैंने ऐसा कुछ कभी महसूस नहीं किया था। टाइम्ज़ स्क्वेयर पर ही ट्रेन की थरथराहट को सड़क पर महसूसने से लगा, कि ये न्यू यॉर्क का दिल है और ये कुछ यूँ धड़कता है। रात के बारह बजे वहाँ अकेली गयी थी। हज़ारों नीआन लाइट्स में दुनिया के कैपिटलिस्ट शहर का मोलतोल देखने। अपना हिसाब लगा कर। कि म्यूज़ीयम देखने हैं। पेंटिंग्स के रंग देखने हैं। देखना है कि शहर में क्या कुछ बिकता है और क्या कुछ ख़रीदा जा सकता है...इश्क़ इतना लॉजिकल थोड़े होता है। वो तो बस हो जाता है। 
मुहब्बत का यक़ीन दिल के तेज़ धड़कने से दिलाया जा सकता है ख़ुद को। या कि दिल के रुक जाने से ही। वो जो बहुत सारे " I ❤️ NY " के टीशर्ट या भतेरी चीज़ें बिकती हैं, वो वाक़ई इसलिए कि इस शहर को आप पसंद नहीं कर सकते, इश्क़ कर सकते हैं इससे बस। बेवजह। छोटी छोटी चीज़ों में सुख तलाशते हुए। 
दिल्ली मेरी जान, नाराज़ मत होना। बहुत साल बाद कोई शहर यूँ पसंद आया है। साँस लेने की रफ़्तार में तेज़ भागता। और ठहर जाता। याद में। 
किसी इन्फ़िनिट लूप में। हमेशा। 

18 September, 2017

छोटी है ज़िंदगी, मिल लिया करो


वो बहुत ख़ूबसूरत लड़की नहीं थी। ख़ूबसूरत थी। इतनी कि बहुत देर तक उसके साथ बैठो और कोई बात ना भी करें तो सिर्फ़ उसको देखते रहना भी बुरा नहीं लगता। भला सा लगता। जैसे किसी अनजान देश में बैठे हुए वहाँ के स्थानीय संगीत को सुन रहे हों और आँख बंद कर लें कि सिर्फ़ संगीत पर ध्यान दिया जा सके। चुप रहते हुए उसे देखना बिना उसकी बातों से डिस्ट्रैक्ट हुए उसको डिटेल में संजोना था। अगली बार की याद के लिए। बारिश में खिड़की पर खड़े होकर फुहार में भीगना था। ज़रा ज़रा। 

उससे पहली बार मिल के लगता था, ये मुलाक़ात कभी भूली नहीं जा सकेगी। उसे देखते हुए कई सारी चीज़ों पर ध्यान जाता था। उसकी क़रीने से बंधी हुयी सिल्क की साड़ी जिसके रंग को शहर में सोबर/पेस्टल और गाँव में फीका/उदास कहा जाता था। जूड़े में लगा हुआ बड़ा सा लकड़ी का जूड़ा पिन कि जिसे देख कर चायनीज़ चॉप स्टिक की याद आती थी। एक आध बदमाश लट हमेशा उसके माथे पर झूलती ही रहती थी। छोटी सी बिंदी, अक्सर साड़ी के रंग से मैचिंग या फिर काली। कानों में चाँदी के झुमके कि जिन्हें देख कर हमेशा आपको अपनी ज़िंदगी में मौजूद उस लड़की की याद आ जाती थी जिसने कभी 'दिल्ली में मेरे लिए झुमके ख़रीदवा देना' का उलाहना दिया था। झुमके कि जिनमें छोटे छोटे घुँघरू होते थे। जब वो हँसती थी तो झुमके और बदमाश लटें सब झूल झूल जातीं और उन घुँघरुओं से बहुत महीन आवाज़ आती थी। आप उसके होने को अगर थोड़े थोड़े सिप में पी रहे हों तो ये आवाज़ आपको सुनायी भी पड़ती और सहेज भी दी जाती। ऐसे में उस किसी ख़ास लड़की की याद आने लगती कि जिसका जन्मदिन पास हो, आप उसके साथ जा कर किसी और के लिए एक जोड़ी झुमके ख़रीदना चाहते। एकदम वैसे ही, जैसे तुमने पहने हैं। आप कह नहीं सकते, लेकिन आप ठीक उसके जैसा कुछ रखना चाहते थे अपनी ज़िंदगी के क़िस्से में। चूँकि वो आपकी हो नहीं सकती तो आप कुछ ऐसा चुनते कि जो लोकाचार के ख़िलाफ़ नहीं होता। 

मौसम बदलने लगता उसके साथ चलते हुए। आप जिस भी शहर में होते, वो दिल्ली हुआ जाता। उसकी पसंद का शहर। महबूब शहर दिल्ली। वो इसलिए कि दिल्ली में वो खुल कर साँस लेती थी। मौसम इतना ख़ूबसूरत होता कि आप उसे अपने साथ किसी छोटी सी इत्र की डिब्बी में बंद कर के रखना चाहते। मौसम को, लड़की तो क्या ही बंद होगी शीशी में। फ़ैबइंडिया जैसी दुकान में जाने का फ़ायदा ये होता है कि कुछ चीज़ें बिना कहे भी हो जाती हैं। कि वो अचानक से पूछ ले, 'कुर्ता पहनते हो तुम?' और आप उसका दिल रखने के लिए झूठ नहीं बोल पाएँ, सच निकल जाए मुँह से, कि नहीं। कुर्ता नहीं पहनते। वो ऊपर से नीचे देखे एक ऐसी पूरी नज़र आपको कि भरसक लजा जाएँ आप। 'हाइट इतनी अच्छी है, कुर्ता बहुत अच्छा लगेगा तुम पर। मैं एक ले दूँ, प्लीज़, मेरी ख़ुशी के लिए ले लो। कभी पहन लेना। ना भी पहनो तो चलेगा'। ट्रायल रूम में काला कुर्ता पहनते हुए आप सोचते हो। 'तुम ज़हर ख़रीद के दे दो तो खा लें तुम्हारी ख़ुशी के लिए। तुम क्या तो कुर्ते की बात करती हो'। आप बाहर निकलते हो तो आइना नहीं देखते हो, उसका चेहरा देखते हो कि जो वसंत हो रखा है। 'ओह, कितने सुंदर लग रहे हो तुम। प्लीज़, मुझसे मिलने कुर्ता ही पहन कर आना अब से'। आप उसकी नज़र से देखते हैं ख़ुद को। 'मिरर मिरर ऑन द वाल, हू इज दी फ़ेयरेस्ट औफ़ देम ऑल?'। किन लंगूरों के साथ रह रहे थे आप इतने दिन? किसी ने कहा क्यूँ नहीं कभी कुर्ता पहनने को। आप कि जो हर जगह सिर्फ़ वेस्टर्न फ़ॉर्मल पहन कर जाते हो। कोट पैंट सूट वाले आप एकदम से कुर्ता पहन कर उसके साथ चलना चाहते हो। क्या साड़ी पहनने वाली हर औरत ऐसे ही कह सकती है कॉन्फ़िडेन्स के साथ, 'हिंदुस्तानियों पर हिंदुस्तानी कपड़े जितने अच्छे लगते हैं, और कुछ नहीं लगता'। 

बिलिंग के पहले वो लौट कर एक बार फिर झुमकों की जगह आती है। पूछती है आपसे, कोई छोटी बहन नहीं है तुम्हारी? ये छोटे वाले झुमके बहुत ट्रेंडी हैं, टीनएजर्स पर बहुत फबते हैं। मैंने अपनी उम्र में ख़ूब पहने थे ऐसे झुमके। आप कहते हैं उससे कि आपने अपनी छोटी बहन के लिए ही झुमके ख़रीदे हैं तो वो हँस देती है, कि उसने समझा था आपने अपनी गर्लफ़्रेंड या बीवी के लिए ख़रीदे हैं। लेकिन झुमके तो झुमके होते हैं। क्या फ़र्क़ पड़ता है उसे पहनने वाली का आपसे रिश्ता क्या है। या कि झुमके ख़रीदवाने वाली का आपसे कोई रिश्ता नहीं है।

झुमकों के रैक के पास ही रोल ऑन पर्फ़्यूम्ज़ हैं। वो उनमें से एक उठाती है। 'मस्क'। कहती है आपसे, सिगरेट पीने के बाद कलाइयों पर अक्सर यही रोल ऑन लगती है वो। धुएँ और मस्क की मिली जुली गंध उसे बहुत ज़्यादा पसंद है। वो अपनी कलाइयाँ बढ़ा देती है आपकी ओर, सूंघ के देखो ना। आपने अपने लिए एक रोल ऑन ख़रीदा है, जानते हुए कि आपकी कलाइयों से वैसी तिलिस्मी गंध कभी नहीं आ सकती। 

यहाँ से निकल कर आप दोनों यूँ ही टहल रहे हैं। एक रिहायशी इलाक़ा है कि जहाँ कुछ दूर में आपका घर है। ज़रा सी दूर चलना है। एक कॉफ़ी शॉप में कड़वी कॉफ़ी पीनी है। बस। उम्र ख़त्म। 

शाम अपने उतार पर है। वो अचानक आपका घर देखने की इच्छा ज़ाहिर करती है। आप कहते हैं उससे, 'मेरा घर बहुत बोरिंग है। कुछ नहीं है वहाँ देखने को'। पर वो कहती है कि दुनिया में बोरिंग कुछ नहीं होता। नयी चीज़ तो ख़ास तौर से कभी नहीं। हमें जो लोग पसंद आते हैं, उनका सब कुछ ही अच्छा लगता है। उनसे जुड़ी हर चीज़ में हमें इंट्रेस्ट होता है। कुछ भी चीज़ें ऐब्स्ट्रैक्ट इंट्रेस्टिंग नहीं होती हैं। जैसे मुझे पेंटिंग्स पसंद हैं, किसी को वो बहुत बोरिंग लगेंगी। किसी को इमारतें, शहर का इंफ़्रास्ट्रक्चर बहुत इंट्रेस्टिंग लग सकता है। 

उसके हिसाब से चलिए तो आपका घर बहुत कमाल की जगह है। वाइन की बॉटल में लगे हुए मनी प्लांट। अधूरा रखा हुआ सर्किट बोर्ड। बैगनी परदे, कि जो बदसूरत हैं, इसलिए इंट्रेस्टिंग हैं। वो कहती है कि आपके लिए परदे भेज देगी नए। आपका बुकरैक। क़रीने से रखी किताबें। बुक्मार्क्स। दीवाल का रंग। जिन खिड़कियों से आप बाहर देखते हैं वो। छत पर अटक गया आधा टुकड़ा चाँद। किचन में बनी दो कप कॉफ़ी। सब कुछ इंट्रेस्टिंग है उसके लिए। 

साड़ी पहने हुए कोई लड़की आपके साथ एनफ़ील्ड पर कभी बैठी नहीं है। तो आप पूछते भी नहीं हैं उससे। वो भूलती नहीं लेकिन, पार्किंग लौट में आप दिखा देते हैं। नीले रंग की अपनी नीलपरी को। घर से निकल कर आप टैक्सी करते हैं और शहर के फ़ेवरिट पाँच सितारा होटल की कॉफ़ी शॉप में जाते हैं। ये चौबीसों घंटे खुला रहता है और आप दोनों को यहाँ से कहीं जाने की हड़बड़ी नहीं है। ब्लैक कॉफ़ी सिप करते हुए आप दोनों एक ही दिशा में देख रहे हैं। उधर एक पानी का फ़व्वारा चल रहा है। उसकी आवाज़ भली सी लग रही है। यहाँ कोई और आवाज़ें नहीं हैं। वो किसी कविता की किताब से दो लाइनें पढ़ती है और बेतरह उदास हो जाती है। कविता के पीछे की, कवि के जीवन की कोई घटना सुना रही होती है आपको। 

आप बहुत ग़ौर से देखते हैं उसको। उसकी साड़ी, बिंदी, झुमके...उसकी आँखें...काजल और उँगलियों पर लगी हुयी नेलपोलिश भी। फिर अचानक से आप जानते हैं कि वो क्या बात है जो उसको ख़ास बनाती है। उससे मिल कर भले ही आपका ध्यान बहुत देर तक इस चीज़ पर जाए कि वो दिखती कैसी है...लेकिन उसके साथ वक़्त बिताने के बाद आप भूल जाते हैं कि वो दिखती कैसी है...आपको बस ये याद रहता है कि उसके साथ होते हुए आप कैसा महसूस करते हैं। दिखना मैटर नहीं करता, होना मैटर करता है। उसके साथ रहते हुए आप ज़िंदगी से मुहब्बत में होते हैं। उसी जगह। उसी लम्हे। आप कहीं और नहीं होते। किसी और के साथ नहीं होते, ख़यालों में भी। 

दुनिया में ख़ूबसूरत लड़कियाँ बहुत हैं। उन्हें देख कर ख़ुशी होती है। मगर इस लड़की के साथ होने से ख़ुशी होती है। यही होना सुख है। ठीक तभी आपको डर लगता है कि अगले लम्हे लड़की चली जाएगी, तो फिर? आप तभी पहली बार जानते हैं कि किसी के साथ होते हुए उसी लम्हे इस बात का दुःख क्या होता है कि वो लम्हा जल्दी ही बीत जाएगा। कि अगली रोज़ भी शहर होगा। साँस होगी। ज़िंदगी होगी। उसके बग़ैर। 

और इसी डर से, आप उस लड़की से कभी भी नहीं मिलते। कभी नहीं जानते कि ऐसा भी कोई होता है जिसका साथ होना सुख है। कि जो ख़ूबसूरत दिखती नहीं, महसूस होती है। कि अफ़सोस ऐसी किसी हसीन लड़की के नाम लिखे जाने चाहिए। आपको अफ़सोस पसंद हैं। आप ख़ुश हैं अपनी मर्ज़ी का एक अफ़सोस पा कर। 

जब वो चली जाती है ज़िंदगी से बहुत दूर। उसने किसी को कह रखा है, आप तक ख़बर पहुँचा दे कि वो अब दुनिया में नहीं रही।  आप तब पहली बार चाहते हैं कि उससे एक बार मिल लेना चाहिए था। 

10 September, 2017

लौट आने को अफ़सोस के घर में कमरा ख़ाली रखना

बहुत साल पहले की बात है। उन दिनों मेरी उम्र कम ही थी और दुनियादारी की समझ और भी कम। चीज़ें जितनी दिखती थीं, उतनी ही समझ में आती थीं।

एक दोस्त की शादी को ज़्यादा वक़्त नहीं हुआ था। कोई साल भर या उससे भी कम। उस दिन उसके घर में किसी चीज़ की तो पार्टी थी। याद नहीं अब ठीक से। शायद पति के प्रमोशन या ऐसी ही कोई चीज़। वजह याद नहीं है। बहुत कम लोग आए थे, बहुत हुए तो दस। उसका छोटा सा घर था। जैसा कि इन दिनों हर महानगर में होता है। २BHK फ़्लैट। डाइनिंग टेबल पर क़रीने से सारा सामान लगा हुआ था।

वो मेरी बचपन की दोस्त थी। उसने खाना बनाना सीखने के समय जो कच्ची पक्की जली रोटियाँ बनायी थीं, वो मैंने खायी थीं और मैंने जब पहली बार आलू छीलते हुए अपनी ऊँगली काट ली थी तो सबसे पहले वो ही भाग के डिटौल लायी थी। मुझे उसके हाथ की बनी खीर बहुत पसंद थी। उसे मेरे हाथ का बना कुछ भी नहीं। उसके हिसाब से चलें तो मुझे मैगी बनाना भी नहीं आता ढंग से और मेरे जैसा नालायक लड़का जिस लड़की के मत्थे पड़ने वाला है उसकी तो क़िस्मत फूटी ही समझो।

मैं उसके और उसके पति के साथ किचन में हाथ बँटा रहा था थोड़ा बहुत। मेहमानों के जाने के बाद हम तीनों खाने बैठे। खाने का स्वाद आज लेकिन ग़ज़ब बेहतरीन था। हर चीज़ एकदम जैसे स्वर्ग के किसी केटरर ने बना के भेजी थी। मैंने उतने अच्छे कटहल के कोफ्ते ज़िंदगी में नहीं खाए थे, ना कभी उसकी खीर में वैसी आत्मा को तृप्त कर देने वाली मिठास थी। खाने की तारीफ़ करते हुए मैंने उसके चेहरे को ग़ौर से देखा। बड़ी सी गोल, लाल बिंदी, आधा इंच लाल सिंदूर, आँख में काजल। शादीशुदा होना कितना फबता था उसपर। अच्छा लगा उसका सुखी होना।

हमेशा की तरह वो मुझे कार में घर छोड़ने आयी थी। हमेशा की तरह हम चलने के पहले पाँच मिनट बात कर रहे थे।
'आज खाना कमाल अच्छा बनाया तूने। क्या मिलाया ऐसा खाने में। पहले तो कभी इस तरह का खाना नहीं बना तूने। बता बता?'
मैंने छेड़ में पूछा था, कि मुझे मालूम था उसके बारे में सब कुछ। बचपन का पुराना डाइयलोग मारती, 'प्यार, खाने में प्यार मिलाया था'। लेकिन कितना कुछ सबसे क़रीबी दोस्तों की नज़र से छूट सकता है। बहुत देर चुप रही। और चुप्पी में घुले घुले कहा उसने, 'उदासी'।

***
मैं बचपन से उसकी आदत से वाक़िफ़ था। जब भी परेशान होती, हाथों को कहीं उलझा देती। कभी पॉटरी सीखने चल देती, कभी बुनाई, कभी तकली उठा लेती तो कभी छत पर पहुँच जाती पतंग उड़ाने। उसके हाथ बहुत ख़तरनाक थे, ऐसा वो कहती थी। उन्हें हमेशा काम चाहिए होता था। ख़ास तौर से उदास दिनों में, वरना वो ख़ुद का गला दबा के मार देती ख़ुद को।

'उदासी'। कहते हुए उसकी आँखें ठहर गयी थीं। कि जैसे एक शाम की नहीं, एक उम्र की उदासी हो। हँसते खेलते लोगों की आँखों में इतनी उदासी कैसे जा के रहने लगती है।

उसके बाद मैं कई दिन मिला उससे। उसके घर में खाना पीना। मेरी शादी के बाद मेरी बीवी के हाथ का खाना उसके घर पहुँचाना जैसी कई हरकतें कीं मैंने कि हमारी दोस्ती पर इससे कोई असर नहीं पड़ा। लेकिन उस दिन मैं उससे पूछ नहीं पाया कि तू उदास क्यूँ है। आते हुए मैंने उसकी आँखों में देखा और बस इतना कहा, 'you know I love you, right?'। बचपन की दोस्ती का इतना अधिकार बनता था। वो मुझे बता सकती। अपनी तन्हाई में मेरे होने को तसल्ली की तरह रख सकती अपने पास। एक शादीशुदा औरत, आपकी कितनी भी अच्छी दोस्त हो, इससे ज़्यादा हक़ नहीं जता सकते उसपर।

***
कितने साल बीत गए। मैं जाने कितने घरों में खाना खाने गया हूँ उस दिन के बाद से भी। लेकिन आज भी, अगर कहीं खाना ख़राब बना है तो मैं ये सोच के ख़ुश हो लेता हूँ कि बनाने वाले ने अपने आँसू तो नहीं मिलाए इसमें। कि अच्छा खाना सिर्फ़ प्यार और ख़ुशी से ही नहीं, उदासी से भी बनता है।

।। ।। ।।

उसे पागलपन के दौरे पड़ने लगे तो सबसे पहली ख़बर मुझे ही आयी। माइल्ड सिजोफ़्रेनिया कहा डॉक्टर ने। उसे जाने कौन से तो लोग दिखते थे। लोग कि जो उसका क़त्ल कर देना चाहते थे। मैंने पहली बार उसकी कलाइयों पर ब्लेड के काटे हुए निशान देखे तो ऐसा लगा था किसी ने मेरी जान लेने को ब्लेड से मेरी कलाई काटी थी। पता नहीं उसे किस चीज़ से डर लगता था। महीने भर बाद जब वो घर लौटी तो जाने कितनी दवाइयाँ खाती थी सुबह शाम।

उसके घर गया तो खाना बना रही थी। मैं भी साइड में एक कटिंग बोर्ड लेकर सब्ज़ी काटना चालू रखा। चाक़ू में एकदम धार नहीं थी। यही नहीं बाक़ी चाकुओं में भी धार नहीं थी। मैंने कहा उससे तो हँसती हुयी बोली, 'हाँ घर में जो भी आते हैं यही कम्प्लेन करते हैं कि चाक़ू ख़राब है। तू भी छोड़ ये सब नौटंकी। जा बैठ मैं आती हूँ।' उस पागल ने कब निभायी है दोस्ती जो उसे मालूम चलेगा कि मैं कितनी दूर तक का सोचता हूँ।

'अच्छा है जो चाक़ू में धार नहीं है। ख़बरदार जो चाक़ू में धार लगवाया! सबसे पहले मैं ही गला कटूँगा चाक़ू से तेरा'।

इन दिनों में कहीं भी बिना धार के चाक़ू देखता हूँ तो मुझे यक़ीन पक्का होता है कि अभी अभी किसी लड़की ने मरना टाला होगा कि उसके चाक़ू में धार नहीं थी। इन दिनों मुझे बिना धार के चाक़ू बहुत पसंद आते हैं। 

02 September, 2017

बारिश का भोलापन हमें मर जाने से बचा लेता है

बारिश बहुत भोली है। इत्ति भोली कि अपने भोलेपन में बचा ले जाती है हमें कई बार। जैसे आप किसी ऊँची बिल्डिंग से नीचे कूद कर आत्महत्या करने वाले हों और कोई छोटा बच्चा आपसे पूछ दे कि आप क्या करने वाले हो। कैसे समझाएँगे एक पाँच साल के बच्चे को कि आप जान देना क्यूँ चाहते हैं। उसकी दुनिया के सवाल कितने सिम्पल हैं। ‘क्यूँ, आपको कोई प्यार नहीं करता?’। मरने के बाद क्या होगा? क्या मरे हुए लोगों से सब ज़्यादा प्यार करते हैं। कि उसे भी कोई प्यार नहीं करता। आपके जाने के बाद वो भी कूद के देखेगा कि क्या होगा। आप उसे समझाने की कोशिश करते हैं कि यहाँ से लौटना नहीं होगा, लेकिन उसे बहुत सी चीज़ें समझ नहीं आतीं। उसे समझाने के क्रम में आपको लगता है कि ज़िंदगी के सवाल उतने उलझे हुए नहीं हैं जितने आपको लगते थे।

सॉलिटेरी कन्फ़ायन्मेंट सिर्फ़ ईंट की दीवारों से नहीं होता। कभी कभी हम ख़ुद अपने इर्द गिर्द इतने रिश्तों की क़ब्रें बना लेते हैं कि उनकी भूलभुलैय्या से गुज़र कर कोई ज़िंदा आदमी हम तक नहीं पहुँचता कभी। बारिश भी नहीं।

***

पागलपन का कोई स्कूल नहीं होता। इसलिए कि पागलपन सबके लिए अलग अलग होता है। जो मेरे लिए पागलपन की सीमा पर है, वो किसी और के रोज़मर्रा के जीवन का यथार्थ हो सकता है। हमें अपने क़िस्म का पागलपन तलाशना चाहिए। कोई पागलपन ना ऐब्सलूट हो सकता है ना अंतिम। इसकी परिभाषा अस्थायी होती है। क्षणभंगुर। आज का पागलपन कल के लिए काफ़ी नहीं होता हो, ऐसा भी हो सकता है।

***

बारिश हमें बचा लेती है। या ईश्वर ही।
लड़की ने बहुत सी चिट्ठियाँ लिखी हैं अपने जीवन में। कॉलेज में दोस्तों के लिए बहुत प्रेम-पत्र लिखे। इन दिनों किरदारों के आख़िरी ख़त लिखा करती है। किरदारों के हिस्से की मौत जी कर वो अपने आप को बचा लेती है। लेकिन ये ख़ुशफ़हमी कब तक चलेगी? ऐसा तो नहीं कि मलकुल मौत नाराज़ हो रही है उससे? मौत अनुभव करने के लिए मरना पड़ता है, या क़त्ल करना पड़ता है। मौत को काग़ज़ पसंद नहीं।
वो चाहती तो कई सारी चिट्ठियों में अपने पसंद की कोई चिट्ठी चुन सकती थी, बस आख़िर में अपना नाम ही तो लिखना था। सारे ख़त उसने ही तो लिखे थे। मुहब्बत से लबरेज़। ज़िंदगी के प्रति अफ़सोस और उम्मीद से भरे हुए। लेकिन पहली बार लड़की को महसूस हुआ कि ज़िंदगी की तरह ही मौत भी अनूठी होती है। किसी एक की मौत को दूसरे के नाम नहीं लिखा जा सकता, ना ही उसकी आख़िरी चिट्ठी पर अपना नाम लिखा जा सकता है। लड़की के लिखे किरदार उस लड़की से कहीं ज़्यादा ज़िंदा थे।

***
लड़की उस कमरे को क़िस्साघर कहती थी। जानते हो क्यूँ? क्यूँकि घर तो कहीं था ही नहीं, कहानियों के सिवा। सब कुछ तो वो ही रचती जाती थी कहानी में। दोस्त, प्रेमी, दुश्मन, परिवार…माँ। अनाथ बच्चे। बाँझ औरतें। किलकरियाँ। कोहराम। लेकिन घर तो इंसानों से बनता है। प्रेम से बनता है। कल्पना से नहीं।

रातें ख़तरनाक होती हैं। लड़की जानती थी। हफ़्ते भर के इंतज़ार को चुपचाप जीती लड़की इतनी चुप हो जाती थी कि उसके किरदारों को डर लगता था कि वो मर जाएगी। लड़की को मालूम था, पहले उसके शब्द ख़त्म होंगे, तब वो ख़ुद। उसके किरदार उससे बहुत प्यार करते थे। वे उसके लिए कई तरह के शब्द खोज लाते। क़िस्से। कहानियाँ। कविताएँ।

कभी कभी सवाल भी। उससे मत पूछना कि रातें किसलिए होती हैं। वो नाउम्मीदी की नदी में डूबते उतराती जी रही है। तुम सुबह के उजास को उसकी स्याह आँखों में नहीं ढूँढ सकते। उसकी थरथराहट में और थकान में नहीं। उसके गीले और ठंढे बदन में नहीं। कहीं नहीं। कहीं नहीं। वो कह देगी तुम्हें। रातें मर जाने के लिए होती हैं।
उसकी ज़िंदगी बहुत सुंदर थी। सुंदर और उदास। तन्हा भी अक्सर। इसलिए उसे हर जगह उदासी दिख जाती थी। अमलतास में भी। कोई एक फूल पत्तों से छुपा लेता था ख़ुद को। हवा के दुलार को महसूस नहीं करना चाहता।

कोई अमलतास का पेड़ रात में पूरा फूल कर चीख़ना चाहता कि वसंत आ गया है। लेकिन लड़की के दिल का दुःख कम नहीं होता।

***

कोई नहीं जानता कि वे उसे इतना प्यार क्यूँ करते थे। सड़क। बारिश। पौधे। फूल। शायद हम हर मिट जाने वाली चीज़ के नाम कुछ ज़्यादा प्यार रखते हैं। कि चीज़ों की उम्र भले कम हो, प्रेम की कमी महसूस ना हो उसे कभी। लड़की ने एक छोटे से पीले रंग के पोस्ट इट पर इतना ही लिखा, ‘कि अगर मैं मर गयी तो ग़लती ईश्वर की है, उसने मुझे इस टूटे फूटे दिल के साथ बनाया’। ईश्वर उसकी शिकायत सुन रहा था। यूँ भी रात के साढ़े चार बजे अधिकतर लोग या तो सो रहे होते हैं या दारू पी कर इतने आउट कि कुछ भी माँगने का होश नहीं रहता।

लड़की हड़बड़ में निकल जाना चाहती थी। बहुत दूर। एनफ़ील्ड चलाना चाहती थी, बहुत तेज़। उदासी और तन्हाई का मेल जानलेवा हो सकता है। नय्यरा नूर गा रही थी। बस वो आवाज़ ही सच लग रही थी, बाक़ी किसी कहानी का हिस्सा। और लड़की को कहानी में मर जाने से डर नहीं लगता था।

सारी चीज़ें लेकिन उलट पलट थीं। उसने जो पैंट पहनी वो हल्की गीली थी। उसे बदल कर जीन्स पहनी। आख़िर में जैकेट पहना तो देखा वो भी थोड़ी थोड़ी गीली थी। कुछ दिन पहले जबकि एक टपकते हुए टेंट में रात भर गीले रहते हुए ठिठुर कर रात बितायी थी उसने, तब से उसे गीले कपड़े बिलकुल पसंद नहीं। वरना तो एक मिनट में वो घर से बाहर थी। दूसरी वाली जैकेटें बहुत तलाशने पर मिली नहीं। इतनी देर में उसका ध्यान बाक़ी चीज़ों पर जा रहा था। वो किसी से बात करना चाहती थी। किसी से भी। इस वक़्त तो कोई जगा नहीं होता है इस देश में। हाँ, दूसरे देश में था कोई। लेकिन उससे कहती क्या। मुझसे थोड़ी देर बात कर लो। रात जानलेवा है और मेरे इरादे ख़तरनाक होते जा रहे हैं। किसी से बात करनी की इच्छा होना कोई गुनाह तो नहीं है। लेकिन मेसेज का कोई रिप्लाई नहीं आया।

कहानी से बाहर जाने को तेज़ रफ़्तार चाहिए कि ज़िंदगी में वापस लौटा जा सके। ऐसी तेज़ रफ़्तार सिर्फ़ एनफ़ील्ड की होती है। ५००सीसी का इंजन। टॉर्क क्या था इसका, सो याद नहीं आ रहा। चुभ रहा था कहीं। हेल्मट में भी दो चोटियाँ चुभ रही थीं। लड़की ने आधी रात को सोचा था, अब कहीं जाना नहीं है, और नींद आ रही थी, तो चोटियाँ गूँथ लीं। हेल्मट ठीक से फ़िट होना ज़रूरी है, वरना कोई फ़ायदा नहीं। लड़की ने एक एक करके अपनी दोनों चोटियाँ खोलीं। वो जानती थी, ईश्वर उसके साथ गेम खेल रहा है। कि ईश्वर को लगता है थोड़ी देर में वो बाहर जाने का प्रोग्राम भूल जाएगी।

लेकिन लड़की घर में नहीं रहना चाहती थी। अकेले नहीं।

उसने बूट्स पहने। घड़ी पहनी, गाड़ी के काग़ज़ात लिए। नीचे पहुँची तो देखती है बिल्डिंग की पानी की टंकी से पूरा पूरा पानी बाहर आ रहा है और बेसमेंट पूरा नदी बन चुका है। लड़की जान रही थी ईश्वर सिर्फ़ देर करना चाह रहा है। उसने दरबान को उठाया और कहा कि टंकी का पानी बंद करे। एनफ़ील्ड ठीक अपर्टमेंट से बाहर निकलने ही वाली थी कि लड़की ने देखा कि बारिश शुरू हो गयी है। रात की बारिश के साथ दिक़्क़त ये है कि आप इसे आते हुए नहीं देख सकते। ऐसे में कहीं दूर जाना नामुमकिन था। लड़की मुस्कुरायी। ये प्रकृति का कहने का तरीक़ा था कि वो लड़की से प्यार करती है। बहुत।
भोली बारिश लड़की के साथ साथ एनफ़ील्ड पर चलती रही। उसकी जान की चिंता में लड़की ने एनफ़ील्ड बिलकुल भी तेज़ नहीं चलायी। हेल्मट के विजर के कारण बहुत कम बारिश लड़की के चेहरे तक पहुँच पा रही थी पर पूरा बदन भीग रहा था। पूरा शहर भी। सड़कें सुनसान थीं। कभी कभी एक आध गाड़ी दिख जाती थी। लड़की को ऐसा लग रहा था वो किसी छोड़े हुए शहर में आ गयी है। किसी एक शहर में उसे अकेला छोड़ दिया गया है। खुली सड़कों पर के लैम्पपोस्ट से पीली रोशनी नाचते हुए गिर रही थी। खुली सड़कों पर। मुहल्ले में। लड़की देर तक एनफ़ील्ड चलती रही। बारिश का शोर और एनफ़ील्ड की डुगडुगडुग। इस लम्हे वो कुछ और नहीं सोच रही थी। वो सिर्फ़ एक राइडर थी। बस।

बारिश का मीठा पानी होठों तक आ गया था। होंठों को भींच कर लड़की ने महसूसा कि पानी का स्वाद दुनिया में कहीं भी एक जैसा नहीं होता। बारिश में भी नहीं। वो काफ़ी देर घूमती रही लेकिन बारिश ज़िद्दी थी। लड़की उससे खुले में लड़ाई नहीं लड़ना चाहती थी। गुलमोहर के पेड़ों के नीचे बारिश और लड़की बराबर से हैं। लौट आने के पहले उसने लैंप - पोस्ट के नीचे एनफ़ील्ड खड़ी की और जैसे कोई बिछड़ते हुए महबूब की तस्वीर लेता है, बारिश में भीगे रूद्र की तस्वीर उतार ली।

कमरे पर लौट कर उसने किरदार बदले। कपड़े भी। एक कप चाय बनायी। दुनिया में कितनी उदासी है, अगर आँखों में पानी भरा हो तो। एक कप चाय कितनी अकेली होती है बारिश वाली रात किसी ख़ूबसूरत लड़की की स्टडी टेबल पर।

उसे पुराने क़िस्से याद आए जो वो लड़का सुनाया करता था जिसे वो दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार करती है। रामकृष्ण परमहंस को गुलाबजामुन बहुत पसंद थे। विवेकानंद ने पूछा एक बार। कि आपने तो दुनिया की हर इच्छा पर विजय पा ली है फिर ये गलबजमुन के प्रति इतना मोह। तो परमहंस ने बताया, माया की इस दुनिया में रहने के लिए किसी ना किसी चीज़ से जुड़ाव होना ज़रूरी है, चाहे वो कोई एक छोटी चीज़ ही क्यूँ ना हो। ये इतना सा मोह उन्हें धरती से बांधे रखता है।

पिछले कई सालों से लड़की को सिर्फ एक ही चीज़ से मोह रहा था। इक वो साँवला सा लड़का जिसके बड़े ख़ूबसूरत डिम्पल पड़ते थे। टौल, डार्क, हैंडसम - उसका हमसफ़र। लड़की को हमेशा लगता है कि सिर्फ़ यही मोह है जो उसे दुनिया से जोड़े रखता है। मगर लड़की ने कभी ना अपना हक़ माँगा ना कोई ज़िद की…समझदार होने के अपने खमियाजे होते हैं। लड़की कहना चाहती बहुत सी चीज़ें लेकिन उसके पास शब्द सिर जंग लगे हुए बचे थे। इन खुरदरे शब्दों से मौत की तारीफ़ कैसे करती। उसके पास कुछ छोटी छोटी शिकायतें थीं। बहुत ही छोटीं। लेकिन ये सवाल पूछने का हक़ किसी को नहीं था।
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तुमसे कोई जवाब नहीं माँगेगा कि तुम मुझे तन्हा छोड़ कर क्यूँ जाते रहे।
और यही बात एक दिन तुम्हें बहुत सालेगी।

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लेकिन वो चाहती है कि दुनिया में कोई उपाय हो तो ये एक रात कोई उसे लौटा दे। कि ये रात जो उसने ये सोचने में बितायी थी कि उसे मर जाना चाहिए।

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