18 September, 2017

छोटी है ज़िंदगी, मिल लिया करो


वो बहुत ख़ूबसूरत लड़की नहीं थी। ख़ूबसूरत थी। इतनी कि बहुत देर तक उसके साथ बैठो और कोई बात ना भी करें तो सिर्फ़ उसको देखते रहना भी बुरा नहीं लगता। भला सा लगता। जैसे किसी अनजान देश में बैठे हुए वहाँ के स्थानीय संगीत को सुन रहे हों और आँख बंद कर लें कि सिर्फ़ संगीत पर ध्यान दिया जा सके। चुप रहते हुए उसे देखना बिना उसकी बातों से डिस्ट्रैक्ट हुए उसको डिटेल में संजोना था। अगली बार की याद के लिए। बारिश में खिड़की पर खड़े होकर फुहार में भीगना था। ज़रा ज़रा। 

उससे पहली बार मिल के लगता था, ये मुलाक़ात कभी भूली नहीं जा सकेगी। उसे देखते हुए कई सारी चीज़ों पर ध्यान जाता था। उसकी क़रीने से बंधी हुयी सिल्क की साड़ी जिसके रंग को शहर में सोबर/पेस्टल और गाँव में फीका/उदास कहा जाता था। जूड़े में लगा हुआ बड़ा सा लकड़ी का जूड़ा पिन कि जिसे देख कर चायनीज़ चॉप स्टिक की याद आती थी। एक आध बदमाश लट हमेशा उसके माथे पर झूलती ही रहती थी। छोटी सी बिंदी, अक्सर साड़ी के रंग से मैचिंग या फिर काली। कानों में चाँदी के झुमके कि जिन्हें देख कर हमेशा आपको अपनी ज़िंदगी में मौजूद उस लड़की की याद आ जाती थी जिसने कभी 'दिल्ली में मेरे लिए झुमके ख़रीदवा देना' का उलाहना दिया था। झुमके कि जिनमें छोटे छोटे घुँघरू होते थे। जब वो हँसती थी तो झुमके और बदमाश लटें सब झूल झूल जातीं और उन घुँघरुओं से बहुत महीन आवाज़ आती थी। आप उसके होने को अगर थोड़े थोड़े सिप में पी रहे हों तो ये आवाज़ आपको सुनायी भी पड़ती और सहेज भी दी जाती। ऐसे में उस किसी ख़ास लड़की की याद आने लगती कि जिसका जन्मदिन पास हो, आप उसके साथ जा कर किसी और के लिए एक जोड़ी झुमके ख़रीदना चाहते। एकदम वैसे ही, जैसे तुमने पहने हैं। आप कह नहीं सकते, लेकिन आप ठीक उसके जैसा कुछ रखना चाहते थे अपनी ज़िंदगी के क़िस्से में। चूँकि वो आपकी हो नहीं सकती तो आप कुछ ऐसा चुनते कि जो लोकाचार के ख़िलाफ़ नहीं होता। 

मौसम बदलने लगता उसके साथ चलते हुए। आप जिस भी शहर में होते, वो दिल्ली हुआ जाता। उसकी पसंद का शहर। महबूब शहर दिल्ली। वो इसलिए कि दिल्ली में वो खुल कर साँस लेती थी। मौसम इतना ख़ूबसूरत होता कि आप उसे अपने साथ किसी छोटी सी इत्र की डिब्बी में बंद कर के रखना चाहते। मौसम को, लड़की तो क्या ही बंद होगी शीशी में। फ़ैबइंडिया जैसी दुकान में जाने का फ़ायदा ये होता है कि कुछ चीज़ें बिना कहे भी हो जाती हैं। कि वो अचानक से पूछ ले, 'कुर्ता पहनते हो तुम?' और आप उसका दिल रखने के लिए झूठ नहीं बोल पाएँ, सच निकल जाए मुँह से, कि नहीं। कुर्ता नहीं पहनते। वो ऊपर से नीचे देखे एक ऐसी पूरी नज़र आपको कि भरसक लजा जाएँ आप। 'हाइट इतनी अच्छी है, कुर्ता बहुत अच्छा लगेगा तुम पर। मैं एक ले दूँ, प्लीज़, मेरी ख़ुशी के लिए ले लो। कभी पहन लेना। ना भी पहनो तो चलेगा'। ट्रायल रूम में काला कुर्ता पहनते हुए आप सोचते हो। 'तुम ज़हर ख़रीद के दे दो तो खा लें तुम्हारी ख़ुशी के लिए। तुम क्या तो कुर्ते की बात करती हो'। आप बाहर निकलते हो तो आइना नहीं देखते हो, उसका चेहरा देखते हो कि जो वसंत हो रखा है। 'ओह, कितने सुंदर लग रहे हो तुम। प्लीज़, मुझसे मिलने कुर्ता ही पहन कर आना अब से'। आप उसकी नज़र से देखते हैं ख़ुद को। 'मिरर मिरर ऑन द वाल, हू इज दी फ़ेयरेस्ट औफ़ देम ऑल?'। किन लंगूरों के साथ रह रहे थे आप इतने दिन? किसी ने कहा क्यूँ नहीं कभी कुर्ता पहनने को। आप कि जो हर जगह सिर्फ़ वेस्टर्न फ़ॉर्मल पहन कर जाते हो। कोट पैंट सूट वाले आप एकदम से कुर्ता पहन कर उसके साथ चलना चाहते हो। क्या साड़ी पहनने वाली हर औरत ऐसे ही कह सकती है कॉन्फ़िडेन्स के साथ, 'हिंदुस्तानियों पर हिंदुस्तानी कपड़े जितने अच्छे लगते हैं, और कुछ नहीं लगता'। 

बिलिंग के पहले वो लौट कर एक बार फिर झुमकों की जगह आती है। पूछती है आपसे, कोई छोटी बहन नहीं है तुम्हारी? ये छोटे वाले झुमके बहुत ट्रेंडी हैं, टीनएजर्स पर बहुत फबते हैं। मैंने अपनी उम्र में ख़ूब पहने थे ऐसे झुमके। आप कहते हैं उससे कि आपने अपनी छोटी बहन के लिए ही झुमके ख़रीदे हैं तो वो हँस देती है, कि उसने समझा था आपने अपनी गर्लफ़्रेंड या बीवी के लिए ख़रीदे हैं। लेकिन झुमके तो झुमके होते हैं। क्या फ़र्क़ पड़ता है उसे पहनने वाली का आपसे रिश्ता क्या है। या कि झुमके ख़रीदवाने वाली का आपसे कोई रिश्ता नहीं है।

झुमकों के रैक के पास ही रोल ऑन पर्फ़्यूम्ज़ हैं। वो उनमें से एक उठाती है। 'मस्क'। कहती है आपसे, सिगरेट पीने के बाद कलाइयों पर अक्सर यही रोल ऑन लगती है वो। धुएँ और मस्क की मिली जुली गंध उसे बहुत ज़्यादा पसंद है। वो अपनी कलाइयाँ बढ़ा देती है आपकी ओर, सूंघ के देखो ना। आपने अपने लिए एक रोल ऑन ख़रीदा है, जानते हुए कि आपकी कलाइयों से वैसी तिलिस्मी गंध कभी नहीं आ सकती। 

यहाँ से निकल कर आप दोनों यूँ ही टहल रहे हैं। एक रिहायशी इलाक़ा है कि जहाँ कुछ दूर में आपका घर है। ज़रा सी दूर चलना है। एक कॉफ़ी शॉप में कड़वी कॉफ़ी पीनी है। बस। उम्र ख़त्म। 

शाम अपने उतार पर है। वो अचानक आपका घर देखने की इच्छा ज़ाहिर करती है। आप कहते हैं उससे, 'मेरा घर बहुत बोरिंग है। कुछ नहीं है वहाँ देखने को'। पर वो कहती है कि दुनिया में बोरिंग कुछ नहीं होता। नयी चीज़ तो ख़ास तौर से कभी नहीं। हमें जो लोग पसंद आते हैं, उनका सब कुछ ही अच्छा लगता है। उनसे जुड़ी हर चीज़ में हमें इंट्रेस्ट होता है। कुछ भी चीज़ें ऐब्स्ट्रैक्ट इंट्रेस्टिंग नहीं होती हैं। जैसे मुझे पेंटिंग्स पसंद हैं, किसी को वो बहुत बोरिंग लगेंगी। किसी को इमारतें, शहर का इंफ़्रास्ट्रक्चर बहुत इंट्रेस्टिंग लग सकता है। 

उसके हिसाब से चलिए तो आपका घर बहुत कमाल की जगह है। वाइन की बॉटल में लगे हुए मनी प्लांट। अधूरा रखा हुआ सर्किट बोर्ड। बैगनी परदे, कि जो बदसूरत हैं, इसलिए इंट्रेस्टिंग हैं। वो कहती है कि आपके लिए परदे भेज देगी नए। आपका बुकरैक। क़रीने से रखी किताबें। बुक्मार्क्स। दीवाल का रंग। जिन खिड़कियों से आप बाहर देखते हैं वो। छत पर अटक गया आधा टुकड़ा चाँद। किचन में बनी दो कप कॉफ़ी। सब कुछ इंट्रेस्टिंग है उसके लिए। 

साड़ी पहने हुए कोई लड़की आपके साथ एनफ़ील्ड पर कभी बैठी नहीं है। तो आप पूछते भी नहीं हैं उससे। वो भूलती नहीं लेकिन, पार्किंग लौट में आप दिखा देते हैं। नीले रंग की अपनी नीलपरी को। घर से निकल कर आप टैक्सी करते हैं और शहर के फ़ेवरिट पाँच सितारा होटल की कॉफ़ी शॉप में जाते हैं। ये चौबीसों घंटे खुला रहता है और आप दोनों को यहाँ से कहीं जाने की हड़बड़ी नहीं है। ब्लैक कॉफ़ी सिप करते हुए आप दोनों एक ही दिशा में देख रहे हैं। उधर एक पानी का फ़व्वारा चल रहा है। उसकी आवाज़ भली सी लग रही है। यहाँ कोई और आवाज़ें नहीं हैं। वो किसी कविता की किताब से दो लाइनें पढ़ती है और बेतरह उदास हो जाती है। कविता के पीछे की, कवि के जीवन की कोई घटना सुना रही होती है आपको। 

आप बहुत ग़ौर से देखते हैं उसको। उसकी साड़ी, बिंदी, झुमके...उसकी आँखें...काजल और उँगलियों पर लगी हुयी नेलपोलिश भी। फिर अचानक से आप जानते हैं कि वो क्या बात है जो उसको ख़ास बनाती है। उससे मिल कर भले ही आपका ध्यान बहुत देर तक इस चीज़ पर जाए कि वो दिखती कैसी है...लेकिन उसके साथ वक़्त बिताने के बाद आप भूल जाते हैं कि वो दिखती कैसी है...आपको बस ये याद रहता है कि उसके साथ होते हुए आप कैसा महसूस करते हैं। दिखना मैटर नहीं करता, होना मैटर करता है। उसके साथ रहते हुए आप ज़िंदगी से मुहब्बत में होते हैं। उसी जगह। उसी लम्हे। आप कहीं और नहीं होते। किसी और के साथ नहीं होते, ख़यालों में भी। 

दुनिया में ख़ूबसूरत लड़कियाँ बहुत हैं। उन्हें देख कर ख़ुशी होती है। मगर इस लड़की के साथ होने से ख़ुशी होती है। यही होना सुख है। ठीक तभी आपको डर लगता है कि अगले लम्हे लड़की चली जाएगी, तो फिर? आप तभी पहली बार जानते हैं कि किसी के साथ होते हुए उसी लम्हे इस बात का दुःख क्या होता है कि वो लम्हा जल्दी ही बीत जाएगा। कि अगली रोज़ भी शहर होगा। साँस होगी। ज़िंदगी होगी। उसके बग़ैर। 

और इसी डर से, आप उस लड़की से कभी भी नहीं मिलते। कभी नहीं जानते कि ऐसा भी कोई होता है जिसका साथ होना सुख है। कि जो ख़ूबसूरत दिखती नहीं, महसूस होती है। कि अफ़सोस ऐसी किसी हसीन लड़की के नाम लिखे जाने चाहिए। आपको अफ़सोस पसंद हैं। आप ख़ुश हैं अपनी मर्ज़ी का एक अफ़सोस पा कर। 

जब वो चली जाती है ज़िंदगी से बहुत दूर। उसने किसी को कह रखा है, आप तक ख़बर पहुँचा दे कि वो अब दुनिया में नहीं रही।  आप तब पहली बार चाहते हैं कि उससे एक बार मिल लेना चाहिए था। 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21 - 09 - 2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2734 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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