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05 August, 2011

आवारगी...

Lake Geneva, Lausanne
किसी शहर को आप कैसे पहचानते हैं? 
अगर किसी की शहर की आत्मा से मिलना हो तो उसे कैसे ढूँढा जाए...तलाश कहाँ से शुरू की जाए? सड़कों, भीड़-बाजार, रेलवे स्टेशन...इमारतों से...या फिर वहां के लोगों से? किसी नए शहर में आते साथ कभी लगा है की बरसों से बिछड़े किसी दोस्त से मिले हों...या कि बरसों से बिछड़े किसी दुश्मन से. शहर में वो क्या होता है जो पहली सांस में अपना बना लेता है. 

मैं हमेशा शहरों के मिलने को प्यार से कम्पेयर करती हूँ...दिल्ली मेरे लिए पहले प्यार जैसा है...और बंगलोर अरेंज मैरेज के प्यार जैसा. इधर पिछले पंद्रह दिनों में बहुत से और शहर घूमी...कुछ से दोस्ती की...कुछ से इश्क तो कुछ से सदियों पुराना बैर मिटाया...कभी भागते भागते मिली तो कभी ठहर कर उसकी आत्मा को महसूस किया. 

मैंने कभी नहीं सोचा था की इतने कम अंतराल में मैं इतने शहर घूम जाउंगी...पिछले दो हफ़्तों से स्विट्जरलैंड में हूँ. जैसे अचानक से मेरे अन्दर के भटकते यायावर को पंख लग गए हों...एक शहर से दूसरे शहर...से गाँव से बस्ती से पहाड़ से जंगल से नदी से नाव...झील...बर्फ...क्या क्या नहीं घूमी हूँ...यहाँ एक बेहतरीन सी चीज़ होती है...स्विस पास...ये ट्रेन स्टेशन पर मिलने वाला एक जादुई पन्ना होता है...एक बार ये हाथ में आया तो पूरे देश के अन्दर चलने वाली हर चीज़ पर आप मुफ्त सफ़र कर सकते हैं. 

मेरे पास घूमने के लिए बहुत सा समय और मीलों बिछते रास्ते थे...आई-पॉड पर कुछ सबसे पसंदीदा धुनें/गीत/गजलें. लिस्ट में हमेशा पहला गाना होता था 'devil's highway' ये गीत अपूर्व के रस्ते मुझ तक पहुंचा था...तब कहाँ पता था कि कितने हाइवे से गुजरूंगी इस गीत को सुनते हुए और कितने शहरों की हवा में इस गीत के बोल घुल जायेंगे. सुबह कुणाल का ऑफिस शुरू और साथ शुरू मेरी आवारगी...

अनगिन किस्से इकट्ठे हो गए हैं...आज ज्यूरिक में आखिरी दिन है...शाम ढल रही है और चौराहों पर लोग इकठ्ठा हो रहे हैं...मैं जरा अलविदा कह कर आती हूँ. फिर फुर्सत में आपको किस्से सुनाउंगी. 

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