24 June, 2011

अधूरा सा 'बाय' अटका पड़ा है

'चलो रखती हूँ...गुडनाईट'
'गुडनाईट '

'ओके बाय'
'बा...'
बीप बीप...उधर से फोन कट चुका था...

'बाय' बिचारा बीच में अटका हुआ सोच रहा था किधर जाए...उसे ऐसे बीच में अटके हुए रहने की आदत थी नहीं.

लड़का अलग भौंचक्का सा खड़ा रह गया...कि ये क्या हो गया...उसे मेरे लिए आधा सेकण्ड टाइम नहीं है...अक्सर उसके बाय बहुत लम्बे हुआ करते थे...जैसे की कोई फ़्लाइंग किस भेज रही हो...उसका बा....से शरू होकर ...य तक आना किसी गीत के आलाप सा लगता था. खुशमिजाज़ और जीवंत...अल्हड़ और जोशीला. 

किसी भागते दौड़ते शहर में मोबाईल किसी जादू से कम है...जहाँ लोगों के पास किसी को भूलने की फुर्सत नहीं है...हर शाम ठीक आठ बजे उसका कॉल इतना नियमित था जैसे दिल की दो धड़कनों के बीच का अन्तराल... जैसे ठीक सवा ग्यारह बजे के बाद मेट्रो का न आना...जैसे कि हर शाम का बेहूदा यकीन की सारी जेबें खंगाल कर गोल्डफ्लेक के लिए ढाई रुपये ही निकलेंगे.

मेट्रो स्टेशन के बाकी पांच मिनट बेहद लम्बे खिंच गए...हालाँकि घड़ी बता रही थी कि मेट्रो ठीक ग्यारह बज कर बारह मिनट पर आई थी उसे लगा कि मेट्रो आज लेट आई...पूरे आधे सेकण्ड लेट. उसे लेट से आने वाली चीज़ें पसंद थी...पर आज उसे बेहद झुंझलाहट हुयी. दरवाज़े बंद हुए...झटके से मेट्रो चली और वह अपना अधूरा सा बाय लेकर सीट पर बैठा. अचानक से उसे तेज प्यास सी महसूस हुयी...हलक में अटका बाय उसका दम घोंटने लगा. आजकल जब वह फोन करती है तो अक्सर हेल्लो या कुछ और नहीं...उसकी बातें शुरू होती हैं...'हाँ' से. जैसे कि वो एक सदियों से ना पूछा गया सवाल है...और वो बाय के त्रिशंकु की तरह अटका हुआ जवाब. 

उसने अक्सर नोट किया है कि वो अपने ख़त में 'सुनो' बहुत बार कहती है...जैसे कि लिख कर उसका दिल नहीं भरता हो...कि जैसे वो सारे ख़त उसे बोल कर सुनाना चाहती है. रात की आखिरी मेट्रो एकदम खाली होती है और उसमें आवाज़ बहुत गूंजती है...वो शाम की बातों के टुकड़े उछालता रहता है और लौट कर आती आवाजें उसके बालों में उँगलियाँ फिरा जाती हैं...मेट्रो में सिगरेट पीना मना है और चूँकि एक ही सिगरेट है वो पैदल चलने के एकांत के लिए रखना चाहता है. पर हाथ बार बार पॉकेट में चला जाता है...

एक सिगरेट है...मोबाईल...और अटका हुआ 'बाय'.

23 June, 2011

बारिश में घुले कुछ अहसास

कुछ मौसम महज मौसम होते हैं...जैसे गर्मी या ठंढ...और कुछ मौसम आइना होते हैं...मूड के. जैसे गर्मी होती है तो बस होती है...उसके होने में कुछ बहुत ज्यादा महसूस नहीं होता...आम शब्दों में हम इसको उदासीन मौसम कह सकते हैं...ठंढ भी ऐसी ही कुछ होती है...

पर एक मौसम होता है जो आइना होता है...बारिश...एकदम जैसा आपने मन का हाल होगा वैसी ही दिखेगी बारिश आपको...आसमान एकदम डाइरेक्टली आपके चेहरे को रिफ्लेक्ट करेगा...बारिश के बाद  सब धुला धुला दीखता है या रुला रुला...ये भी एकदम मूड डिपेंडेंट है...तो कैसे न कहें की बारिश मुझे बहुत अच्छी लगती है. मौसम से बेहतर मूड मीटर मैंने आज तक नहीं देखा. 

आज बंगलौर में बहुत तरह की बारिश हुयी...पहले तो एकदम तेज़ से आने वाली धप्पा टाइप बारिश...फिर फुहारें...आज चूँकि काफी दिन बाद बारिश हुयी है तो मिट्टी की खुशबू भी आई...और अभी फुहारें पड़ रही हैं. आज दिन में फिर से कॉपी लेकर बैठी थी...कुछ कुछ लिखा...ऐसे लिखना काफी सुकून देता है...रियल और वर्चुअल में अंतर जैसा...की सच में कहीं कुछ कहा है. 

बचपन की दोस्त...इतने दिनों बाद मिली है आजकल की घंटे घंटे बातें होती हैं और फिर भी ख़त्म नहीं होती...स्मृति को मैं क्लास १ से जानती हूँ...५ में जा कर मेरा स्कुल चेंज हुआ और उसके पापा का ट्रांसफर...सासाराम...फिर हमने एक दुसरे को छह साल चिट्ठियां लिखी...१९९९ में पापा का ट्रांसफर हुआ और हम पटना चले गए...उन दिनों फोन इतना सुलभ नहीं था...एक बार उसका पता खोया फिर कभी मिल नहीं पाया...कितने दिन मैंने उसके बारे में सोचा...उसकी कितनी याद आई बीते बरसों इसे मैं कैलकुलेट करके नहीं बता सकती.बहुत साल बाद फिर दिल्ली आई...ऑरकुट पर मिली भी पर कभी दिखती ही नहीं ऑनलाइन...उस समय उसके हॉस्टल में मोबाईल रखना मन था...कभी फुर्सत से बात नहीं हो पायी.

इधर कुछ दिनों पहले उसका दिल्ली आना हुआ...और फिर बातें...कभी न रुकने वाली बातें...उससे मिले इतने साल हो गए हैं फिर भी लगता ही नहीं की कुछ बीता भी हो...बचपन की दोस्ती एक ऐसी चीज़ होती है की कुछ भी खाली जगह नहीं रहती. उसका ब्लॉग भी जिद करके बनवाया...एक तो आजकल कोई अच्छे मोडरेटर नहीं हैं...उसपर चर्चा का भी कोई अच्छा ब्लॉग नहीं है...नए ब्लोगेर्स के लिए मुश्किल होती है जब कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता. (सब हमारे जैसे थेत्थर नहीं होते)

आज दर्पण से भी पहली बार देर तक बातें की...दिल कर रहा है की उससे फोर्मली superintellectual(SI) के टैग से मुक्त कर दूँ...उससे बात करना मुश्किल नहीं लगा...जरा भी. 

कल ढलती शाम एक दोस्त से घंटों बातें की...कुछ झगड़े भी..कुछ जिंदगी की पेचीदगियां भी सुलझाने की कोशिश की..पर जिंदगी ही क्या जो सुलझाने से सुलझ जाए. 

कल देर रात अनुपम से बात हुयी...बहुत दिन बाद उसे हँसते हुए सुना है....इतना अच्छा लगा कि दिन भर मूड अच्छा रहा...उसे अपनी कहानी सुनाई...कि लिख रही हूँ आजकल. और उसे भी अच्छा लगा...
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फिर बारिश...

दिल किया आसमान की तरफ मुंह उठा कर इस बरसती बारिश में पुकार उठूँ...आई लव यू मम्मी. 

22 June, 2011

जिनसे बिछड़ना था उनसे मिलते रहे





खत जिनके जवाब आने थे, मैंने लिखे नहीं...जिनसे बिछड़ना था उनसे मिलते रहे...तुम्हारे शहर में गिरवी रखा था खुद को कि जब्त हो कर भी शायद तुमसे मिलता रहूँ...

इक अजनबी शहर में शाम गुजारते हुए..आज भी समझ नहीं आता कि धोखा किसने दिया...शहर ने...जिंदगी ने...
या तुमने.

15 June, 2011

कुरेदा जाता है जिसे

जैसे किसी terminally ill पेशेंट से प्यार करना...जबकि मालूम नहीं हो...तब जबकि लौटना मुमकिन न हो..पता चले की आगे तो रास्ता ही नहीं है...और जिस क्षितिज को हम जिंदगी के सुनहरे दिन मान कर चल रहे थे वो महज़ एक छलावा था...रंगी हुयी दीवार...जिससे आगे जाने का की रास्ता नहीं है.

मुझे नहीं मालूम की ये कौन सा दर्द छुपा बैठा है जो रह रह के उभर आता है...या फिर ऐसा कहें कि कुरेदा जाता है जिसे ऐसा कौन सा ज़ख्म है...
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रात कैसा तो ख्वाब देखा कि सुबह उठते ही सर दर्द हो रहा था...कल साल का पहला मालदह आम खाया...और मन था कि बस दौड़ते गाँव पहुँच गया...बंगलौर में जोर की आंधियां आई हुयी हैं और मन सीधे गाँव कि देहरी से उठ कर खेत की तरफ भागता है...जहाँ दूर दूर तक एकलौता आम का पेड़ है बस...आंधी आते ही टपका आम लूटने के लिए सब भागते हैं..खेत मुंडेर, दीवाल, अमरुद का पेड़, गोहाल सब फर्लान्गते भागते हैं कि जो सबसे पहले पहुंचेगा उसको ही वो वाला आम मिलेगा जो उड़ाती आंधी में खेत के बीच उस अकेले आम के पेड़ के नीचे खड़ा हो कर खाया जा सके...बाकी आम तो फिर बस धान में घुसियाने पड़ेंगे और जब पकेंगे तब खाने को मिलेंगे. चूस के खाने वाला आम किसी से बांटा भी तो नहीं जाता.
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जानती हूँ कि सर में उठता दर्द साइको-लोजिकल है...मन का दर्द है...रुदन है...इसका मेरे दिमाग ख़राब होने या माइग्रेन से कोई रिलेशन नहीं है...कि हवाएँ जो इतनी तेज़ चल रही हैं मुझे कहीं किसी के पास नहीं ले जायेंगी...फिर भी पंख लग जाते हैं...जीमेल खोला है...हथकढ़ की कुछ पंक्तियाँ कोट करके किसी को एक ख़त लिखने का मन है...पर लिखती नहीं...मन करता है कि फोन कर लूँ...आज तक कभी उनकी आवाज़ नहीं सुनी...पता नहीं क्यूँ बंगलौर के इस खुशनुमा मौसम में भी हवाओं को सुनती हूँ तो रेत में बैठा कोई याद आता है...रेशम के धागों से ताने बाने बुनता हुआ...पर कभी बात नहीं की, कभी नंबर नहीं माँगा...कई बार होता है कि बात करने से जादू टूट जाता है...और मैं चाहती हूँ कि ये जादू बरक़रार रहे. 
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ऐसे जब भी लिखती हूँ जैसे नशे में लिखती हूँ...कभी लिखा हुआ दुबारा नहीं पढ़ती...नेट पर लिखा कागज़ पर लिखे जैसा नहीं होता न कि फाड़ दिया जा सके...वियोगी होगा पहला कवि...इस वियोगी होने में जितना कवि की प्रेमिका की भूमिका है, उतनी ही कवि कि खुद की भी...अकेलापन...दर्द...कई बार हम खुद भी तो बुलाते हैं. जैसे मैं ये फिल्म देखती हूँ...ये जानते हुए भी कि फिर बेहद दर्द महसूस करुँगी...कुछ बिछड़े लोग याद याते हैं...दिल करता है कि फोन उठा कर बोल दूँ...आई रियली मिस यु...और पूछूँ कि तुम्हें कभी मेरी याद आती है? कुछ बेहद अजीज़ लोग...पता नहीं क्यूँ दूर हो गए...शायद मैं बहुत बोलती हूँ, इस वजह से...अपनी फीलिंग्स छुपा कर भी रखनी चाहिए.
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फिल्म का एक हिस्सा है जिसमें दोनों रिहर्सल करते हैं आखिरी बार मिलने की...
पात्र कहती है 'मुझे नहीं लगा था कि तुम्हें मुझसे प्यार हो जाएगा'
और जवाब 'मुझे भी ऐसा नहीं लगा था'

चान मुड़ कर वापस चला जाता है...कट अगले सीन...वो उसके कंधे पर सर रख के रो रही है और वो उसे दिलासा दे रहा है कि ये बस एक रिहर्सल है...असल में इतना दर्द नहीं होगा.
(जिन्होंने ऐसा कुछ असल में जिया है व जानते हिं कि दर्द इससे कहीं कहीं ज्यादा होगा...मर जाने की हद तक)
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मुझे मालूम नहीं है ये फिल्म मैं बार बार क्यूँ देखती हूँ...In the mood for love...हर बार लगता है कोई अपना खो गया है...दिल में बड़ी सी जगह खाली हो गयी है...और वायलिन मेरे पूरे वजूद को दो टुकड़ों में काट रहा है. 

हर बार प्यार कर बैठती हूँ इसके चरित्रों से...और जानते हुए भी अंत क्या है...हर बार उतनी ही दुखी होती हूँ. इतना गहरा प्यार जितनी खुशी देता है उतना ही दुःख भी तो देता है ऐसे प्यार को खोना...

किसकी किसकी याद आने लगती है...और कैसे कैसे दर्द उभर जाते हैं...कुछ पुराने, कुछ नए..लोग...कुछ अपने कुछ अजनबी...भीड़ में गुमशुदा एक चेहरा...जिसने नहीं मिली हूँ ऐसा कोई शख्स...आँखों में परावर्तित होता है एक काल-खंड जो बीत कर भी नहीं बीतता...लोग जो उतने ही अपने हैं जितने कि पराये...
फिल्म देखते ही कितने तो लोगों से मिलने का मन करता है...ऐसे लोग जो शायद किसी दूसरे जन्म में मेरे बहुत अपने थे....जाने क्या क्या.

और हर बार जानती हूँ कि मैं फिर से देखूंगी इसे...क्यूंकि दर्द ही तो गवाही है कि हमने जिया है...प्यार किया है...मरे हैं...

दूसरे कमरे में फिल्म खत्म होने के बाद भी चल रही है...और रुदन करता वायलिन मुझे अपनी ओर खींच रहा है.

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फुटनोट: पोस्ट में बहुत सी गलतियाँ होंगी...दुबारा कभी अच्छे मूड में पढूंगी तो ठीक कर दूंगी...अभी बस एक छटपटाहट से उबरने के लिए लिखी गयी है.  

14 June, 2011

इस जन्मदिन का लेखा जोखा

जानां
D-gang

ब्लोगर भी कमबख्त अजीब होता है...एक ही पोस्ट को दो बार छाप दिया...इसके अलावा मेरे जन्मदिन में कोई दिक्कत नहीं आई. पहले तो सबकी शुभकामनाओं के लिए ढेर सारा शुक्रिया...

१० की रात हमने पिज्जा खाया...घर पर कुणाल के दोस्त, मेरे दोस्त सब आये थे...रात ३ बजे तक हमारी पार्टी चली...गप्पें, गप्पें और ढेर सारी गप्पें...कौन कहता है की लड़के चुप रहते हैं...बीच बीच में सॉफ्टवेर इन्फर्माशन ओवर लोड हो जाता था तो चिल्लाना पड़ता था...अब बंगलौर में रहने का ये पंगा तो है...जितने लोग आयेंगे उसमें ९०% सॉफ्टवेर वाले...उसमें सब अपना अपना शुरू कर देंगे...तो मोनिटर(न न डेस्कटॉप वाला नहीं...क्लास वाला) करना पड़ता था...उसपर कमबख्त ब्लैकबेरी सारे मेल पहुंचा देता है...बस सब अपना मेल देखना शुरू...धमकी देनी पड़ती थी की बाल्टी में डाल देंगे(तुमको नहीं ब्लैकबेरी को) तब जा के बंद होता था...

इस बार बहुत सारे अच्छे गिफ्ट्स भी मिले...और मेरा जो ये अच्छा सा सुइट देख रहे हैं न..सिल्क का है...कश्मीरी कढ़ाई वाला...कब से खरीद कर रखा था...खास मौके के लिए :) अगले दिन यही १० को सबको रात के खाने पर बुलाया था...पर X-men की The Class रिजीज हो गयी थी और दोपहर ढाई बजे का शो था...मन ललच गया...फिल्म देखने चले गए...आपको फुर्सत मिले आप भी देख डालिए...हमें बेहद पसंद आई. वापस आते लगभग साढ़े छह सात बज गए...अब मुसीबत आई...घर पर लगभग १० लोग आ रहे थे...और इतने लोगों का खाना बनाने का रिकोर्ड कुणाल के हिसाब से काफी ख़राब दिख रहा था...टेंशन के मारे हालत ख़राब. करें तो क्या करें...फिर सोचा की घर में फिर कभी डिनर कर लेंगे...चूँकि बर्थडे है तो बहार खा लेते हैं. यहाँ एक बड़ा अच्छा सा रेस्तौरांत है...लाजवाब...कुछ दो साल हुए होंगे उसे खुले हुए, तब से हम उसके एकदम रेगुलर कस्टमर हैं...हफ्ते दो हफ्ते में एक दिन तो चले ही जाते हैं. असल में बंगलोर में पहली बार कहीं अच्छा नोर्थ इंडियन खाना मिला था. 

A different pose
कुणाल का कलिग है मोहित...कलिग क्या घर का मेंबर ही है...तो मोहित को रेस्तौरांत में सब सेटिंग करने का जिम्मा दिया गया(मुझे बाद में पता चला) ठीक पहुँचने के पहले हम थोडा टेंशन में आ गए की जगह मिलेगी की नहीं...तब मुझे पता चला कि कुणाल ने सब करवा रखा है. टेबल लगी हुयी थी...और फटाफट केक आया...पाईनएप्पल फ्लेवर...मेरा फेवरिट :) और फिर वहां पर हैप्पी बर्थडे वाला गाना बजा...हमको बहुत अच्छा लगा...बचपन में ऐसे मानता था बर्थडे. और खाना इतना अच्छा था कि महसूस हो रहा था कि खास प्यार से बनाया गया है. बारह के लगभग खा पी के हम चले सबको सबके घर पर डिपोजिट करते हुए, घूम घाम पर वापस घर. 
और सबसे awesome था शनिवार...कुणाल ने खुद से मेरे लिए डिनर बनाया :) और इतना अच्छा बनाया कि बस प्लेट को खा जाने कि नौबत आने वाली थी. 
ये वाला वीकेंड अभी तक के कुछ बेस्ट वीकेंड्स में था...बहुत से दोस्त, अच्छा खाना...अच्छा पीना...और अनगिनत गप्पें अनगिन कार ड्राइव्स. लगभग सभी दोस्तों का फोन आया...या फिर मेसेज या फिर फेसबुक...सबका तहे दिल से शुक्रिया. एक दोस्त कश्मीर में पोस्टेड है...आर्मी में...उसका फ़ोन एक दिन बाद आया...पर याद उसे भी था. तो इतने सारे अच्छे अच्छे लोगों कि दुआएं हैं...काफी अच्छा रहा सब कुछ. 

इंग्लिश में एक शब्द है 'blessed ' यानि कि ऐसा जिसपर इश्वर कि कृपा हो...वैसा ही महसूस किया. 

फुटनोट: just to prove the skeptics wrong कि लड़कियां अपनी उम्र छिपाती हैं...I turned on 28...and really happy to be so :) हाँ दिल की उम्र...तो दिल तो बच्चा है जी :)

09 June, 2011

मेरे बर्थडे पर आप क्या गिफ्ट कर रहे हैं?

कल मेरा जन्मदिन है...देखती हूँ की हर साल इस मौके पर थोड़ी सेंटी हो जाती हूँ. बहुत कुछ सोचती हूँ...जाने क्या क्या सपने, कुछ तो गुज़रे हुए कल के हिस्से...खोयी सी रहती हूँ...इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है. 

भाई का गिफ्ट कल आ गया है :) :) आज कुणाल भी मेरा गिफ्ट खरीद के ला रहा है...शाम में मैं जाउंगी अपनी पसंद का कुछ लेने...पता नहीं क्या...अभी तक कुछ सोचा नहीं है. मुझे सबसे अच्छी लगती है घड़ी...पर मेरे पास ४ ठो घड़ी पहले से है तो कुणाल बोल रहा है कि एक और नहीं मिलेगी...और कुछ लेना है तो बताओ...नहीं तो  वो अपनी पसंद का ला देगा. 

इस बार बहुत दिनों में पहली बार मेरे दो बहुत अच्छे दोस्त शहर में ही हैं...पूजा और इन्द्रनील...तो इस बार बर्थडे पर थोडा ज्यादा अच्छा लगेगा :) :) पूजा अभी मंडे को मिलने भी आई थी...कितना अच्छा लगा कि क्या कहें...और हमने ढेर सारी खुराफातें भी की. 

चूँकि ब्लॉग पर भी इतने अच्छे लोगों से मिली हूँ...और अच्छी दोस्ती हो गयी है...तो सोचा कि इतना सोच के कहाँ जायेंगे...बोल ही देते हैं :) इस बार हमको एक तोहफा चाहिए...आप सब से...जो पता नहीं कैसे अब तक हमको पढ़ते रहे हैं...हालाँकि आजकल हमको अपना लिखा एकदम पसंद नहीं आ रहा अक्सर...फिर भी. 

इस बार मेरे बर्थडे पर आप अपनी पसंद कि कोई एक किताब...जो आपको लगता है मुझे पढ़नी चाहिए... कमेन्ट बॉक्स में लिखिए...और अगर आपका दिल करे तो थोड़ा सा उस किताब के बारे में भी...कुछ ऐसे कि 'पूजा हमको लगता है तुमको हरिशंकर परसाई की किताब सदाचार का तवी पढना चाहिए क्यूंकि हमको लगता है तुम्हारा सेन्स ऑफ़ ह्यूमर लापता हो गया है'. इसके अलावा आप मुझे कोई भी मुफ्त की सलाह दे सकते हैं...लिखने के बारे में...दिमाग ठीक करने के बारे में या कि कुछ जो आपको लगे कि मुझे लिखना चाहिए या कोई ब्लॉग जो मुझे एकदम पढना चाहिए(आपके खुद के ब्लॉग के सिवा ;) ). हाँ इसके अलावा...एक और चीज़ आप मुझे बता सकते हैं...कोई खास फिल्म जो आपको पर्सनली पसंद हो :) 

बस...बर्थडे की फोटो कल पोस्ट करुँगी :) ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता...जब फ्री की सलाह को गिफ्ट माना जाए...तो टनाटन आने दीजिये :)

फुटनोट: only one gift per person/ प्रति व्यक्ति एक ही गिफ्ट...वरना किताबों के बोझ तले टें बोल जायेंगे. और हाँ..चूँकि मेरा बर्थडे है...तो हर टिप्पनी की प्रति-टिप्पनी मिलेगी-रिटर्न गिफ्ट :)

मेरे बर्थडे पर आप क्या गिफ्ट कर रहे हैं?

कल मेरा जन्मदिन है...देखती हूँ की हर साल इस मौके पर थोड़ी सेंटी हो जाती हूँ. बहुत कुछ सोचती हूँ...जाने क्या क्या सपने, कुछ तो गुज़रे हुए कल के हिस्से...खोयी सी रहती हूँ...इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है. 

भाई का गिफ्ट कल आ गया है :) :) आज कुणाल भी मेरा गिफ्ट खरीद के ला रहा है...शाम में मैं जाउंगी अपनी पसंद का कुछ लेने...पता नहीं क्या...अभी तक कुछ सोचा नहीं है. मुझे सबसे अच्छी लगती है घड़ी...पर मेरे पास ४ ठो घड़ी पहले से है तो कुणाल बोल रहा है कि एक और नहीं मिलेगी...और कुछ लेना है तो बताओ...नहीं तो  वो अपनी पसंद का ला देगा. 

इस बार बहुत दिनों में पहली बार मेरे दो बहुत अच्छे दोस्त शहर में ही हैं...पूजा और इन्द्रनील...तो इस बार बर्थडे पर थोडा ज्यादा अच्छा लगेगा :) :) पूजा अभी मंडे को मिलने भी आई थी...कितना अच्छा लगा कि क्या कहें...और हमने ढेर सारी खुराफातें भी की. 

चूँकि ब्लॉग पर भी इतने अच्छे लोगों से मिली हूँ...और अच्छी दोस्ती हो गयी है...तो सोचा कि इतना सोच के कहाँ जायेंगे...बोल ही देते हैं :) इस बार हमको एक तोहफा चाहिए...आप सब से...जो पता नहीं कैसे अब तक हमको पढ़ते रहे हैं...हालाँकि आजकल हमको अपना लिखा एकदम पसंद नहीं आ रहा अक्सर...फिर भी. 

इस बार मेरे बर्थडे पर आप अपनी पसंद कि कोई एक किताब...जो आपको लगता है मुझे पढ़नी चाहिए... कमेन्ट बॉक्स में लिखिए...और अगर आपका दिल करे तो थोड़ा सा उस किताब के बारे में भी...कुछ ऐसे कि 'पूजा हमको लगता है तुमको हरिशंकर परसाई की किताब सदाचार का तवी पढना चाहिए क्यूंकि हमको लगता है तुम्हारा सेन्स ऑफ़ ह्यूमर लापता हो गया है'. इसके अलावा आप मुझे कोई भी मुफ्त की सलाह दे सकते हैं...लिखने के बारे में...दिमाग ठीक करने के बारे में या कि कुछ जो आपको लगे कि मुझे लिखना चाहिए या कोई ब्लॉग जो मुझे एकदम पढना चाहिए(आपके खुद के ब्लॉग के सिवा ;) ). हाँ इसके अलावा...एक और चीज़ आप मुझे बता सकते हैं...कोई खास फिल्म जो आपको पर्सनली पसंद हो :) 

बस...बर्थडे की फोटो कल पोस्ट करुँगी :) ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता...जब फ्री की सलाह को गिफ्ट माना जाए...तो टनाटन आने दीजिये :) 

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