'चलो रखती हूँ...गुडनाईट'
'गुडनाईट '
'ओके बाय'
'बा...'
बीप बीप...उधर से फोन कट चुका था...
'बाय' बिचारा बीच में अटका हुआ सोच रहा था किधर जाए...उसे ऐसे बीच में अटके हुए रहने की आदत थी नहीं.
'गुडनाईट '
'ओके बाय'
'बा...'
बीप बीप...उधर से फोन कट चुका था...
'बाय' बिचारा बीच में अटका हुआ सोच रहा था किधर जाए...उसे ऐसे बीच में अटके हुए रहने की आदत थी नहीं.
लड़का अलग भौंचक्का सा खड़ा रह गया...कि ये क्या हो गया...उसे मेरे लिए आधा सेकण्ड टाइम नहीं है...अक्सर उसके बाय बहुत लम्बे हुआ करते थे...जैसे की कोई फ़्लाइंग किस भेज रही हो...उसका बा....से शरू होकर ...य तक आना किसी गीत के आलाप सा लगता था. खुशमिजाज़ और जीवंत...अल्हड़ और जोशीला.
किसी भागते दौड़ते शहर में मोबाईल किसी जादू से कम है...जहाँ लोगों के पास किसी को भूलने की फुर्सत नहीं है...हर शाम ठीक आठ बजे उसका कॉल इतना नियमित था जैसे दिल की दो धड़कनों के बीच का अन्तराल... जैसे ठीक सवा ग्यारह बजे के बाद मेट्रो का न आना...जैसे कि हर शाम का बेहूदा यकीन की सारी जेबें खंगाल कर गोल्डफ्लेक के लिए ढाई रुपये ही निकलेंगे.
मेट्रो स्टेशन के बाकी पांच मिनट बेहद लम्बे खिंच गए...हालाँकि घड़ी बता रही थी कि मेट्रो ठीक ग्यारह बज कर बारह मिनट पर आई थी उसे लगा कि मेट्रो आज लेट आई...पूरे आधे सेकण्ड लेट. उसे लेट से आने वाली चीज़ें पसंद थी...पर आज उसे बेहद झुंझलाहट हुयी. दरवाज़े बंद हुए...झटके से मेट्रो चली और वह अपना अधूरा सा बाय लेकर सीट पर बैठा. अचानक से उसे तेज प्यास सी महसूस हुयी...हलक में अटका बाय उसका दम घोंटने लगा. आजकल जब वह फोन करती है तो अक्सर हेल्लो या कुछ और नहीं...उसकी बातें शुरू होती हैं...'हाँ' से. जैसे कि वो एक सदियों से ना पूछा गया सवाल है...और वो बाय के त्रिशंकु की तरह अटका हुआ जवाब.
उसने अक्सर नोट किया है कि वो अपने ख़त में 'सुनो' बहुत बार कहती है...जैसे कि लिख कर उसका दिल नहीं भरता हो...कि जैसे वो सारे ख़त उसे बोल कर सुनाना चाहती है. रात की आखिरी मेट्रो एकदम खाली होती है और उसमें आवाज़ बहुत गूंजती है...वो शाम की बातों के टुकड़े उछालता रहता है और लौट कर आती आवाजें उसके बालों में उँगलियाँ फिरा जाती हैं...मेट्रो में सिगरेट पीना मना है और चूँकि एक ही सिगरेट है वो पैदल चलने के एकांत के लिए रखना चाहता है. पर हाथ बार बार पॉकेट में चला जाता है...
एक सिगरेट है...मोबाईल...और अटका हुआ 'बाय'.