हर शौक़ की एक एक्सपायरी डेट होती है, मेरे कुछ शौक़ जो बेमौत मर गए किसी न किसी कारण से...या जिंदगी में उलझे रहने के कारण वक्त नहीं दे पायी...या वक्त मुझे नहीं दे पाया...हम वहाँ से आगे बढ़ गए...दूर चले आये. कुछ गुज़र गया.
यूँ तो ग़ालिब ने फरमाया ही है...हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले.
१. अपने पैसों से अपने लिए कार खरीदना, मारुती वैगन आर , काले रंग में...कार चलाना सीखना और उसमें मम्मी को घुमाने ले जाना. खूब सारी शोपिंग करना.
२. स्केटिंग सीखना. अब लगता है ये बच्चों वाला शौक़ है और अब नहीं सीख पाउंगी कभी...ये भी लगता है कि सीखने का कोई फायदा भी नहीं है.
३. ट्रेक्किंग करना, जंगल में टेंट डाल कर किसी नदी किनारे बैठना. अलाव जलाना और उसकी गर्मी और रौशनी में कुछ बेहद प्यारे दोस्तों के साथ बातें करना...एक तरह से एक "girls night out". ये ख्याल दिल्ली में जब नयी आई थी तो कुछ अच्छी दोस्तों से मिल कर लगा था कि ऐसा कुछ करूँ.
४. हीरो होंडा करिज्मा पर अपने बोयफ़्रेंड के साथ बैठना, वो तेज चलाये और मुझे अच्छा लगे. अब सोचतीहूँ तो समझ नहीं आता है कि इस बचकानेपन पर हँसूं या पूरा न होने पर रोऊँ. पर अब भी बाकी लड़कियों को देखती हूँ तो बस...ठंढी आह भर के रह जाती हूँ. :)
५. किसी समंदर तट पर जाना और वो फूल पत्तों वाली ब्राजीलियन टाइप स्कर्ट पहनना.
६. अपने लिए एक बाईक खरीदना और चलाना.
७. ओगिल्वी में काम करना. ओगिल्वी में काम करने की इच्छा कॉलेज लाइफ के थर्ड इयर में हुयी थी. भारत में माल्टि नॅशनल सबसे अच्छी एड एजेंसी के लिए इसका नाम सुना था. अब महसूस किया है कि advertisement बनाने में मेरी वैसी रुचि नहीं है जैसी फिल्मों में है.
८. अपना फ्लैट लेकर अकेले रहना उसे अपने हिसाब से सजाना/गन्दा रखना.
९. जिमी को उसकी नौकरी के पहले दिन उस समय की बेस्ट बाइक खरीद के देना.
१०. अकेले घूमने जाना, बस सामान बाँध के निकल पड़ना.
ये तो खैर थी मेरी लिस्ट...काफी अजीब सी है, और हाँ अधूरी भी...पर ऐसी चीज़ें सोचती हूँ तो लगता है कि कितनी जिंदगी बीत गयी. उम्र देखती हूँ तो अचानक से लगता है कि अब जिद करना झगडे करना और अपनी मनमानी पूरी करवा लेने के दिन गए. अब कितना कुछ देखना पड़ता है, क्या कुछ छोड़ देना पड़ता है.
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है.
किसी दिन एक और लिस्ट टाँगूंगी कि क्या कुछ अभी करने का दिल है...वक्त है...माहौल भी है. फिलहाल इत्ता ही.
ये दास्ताँ तुम्हारे अकेले की नहीं....
ReplyDeleteलेकिन हाँ,यह भी नहीं कह सकते कि कब कहाँ अचानक से कोई ऐसा मौका निकल आये और अधूरी पडी ख्वाहिशें पूरी होने की एकदम तैयार जमीन मिल जाए....
दुआ करती हूँ कि सारी की सारी नहीं भी तो अधिकाँश कामनाएं पूर्णता पायें...शुभकामनाएं...
बस दस......यहां इन्हें रखने का स्टॉक कम पड़ रहा है .....
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ReplyDeleteबहुत खूब, लाजबाब !
ReplyDeletenice
ReplyDeleteहम्म्म्म...मुझे भी एक पोस्ट का आइडिया दे दिया तुमने...
ReplyDeleteहेडर वाली तस्वीर उस गिटार वाले से बेहतर है।
god bless you girl!
जिमी वाली विश को पढ़कर लगा कि काश मेरी दीदी ने भी ऐसा सोचा होता मुझे लेकर....
ReplyDeletesabki aisi hi kuch khwashien hoti hain...meri bhi ek aisi wish list hai..padhwate hain kabhi :)
ReplyDeleteमुझे अक्सर ऐसा लगता है कि हमारी ख्वाहिशें बस हमारी अपनी नही होतीं, बल्कि हमारे वक्त, परिस्थितियों और कुछ फ़ीलिंग्स की पैदाइश होती है..कि हम तो बस बहाना होते हैं...बंदूक के लिये कंधे की तरह..गरचे हम न हों तो वक्त किसी दूसरे चेहरे पर ’विश-लिस्ट’ का स्टीकर लगा कर फ़रमाइशी चौराहे पर खड़ा कर देगा...अब जैसे किसी बच्चे की सबसे बड़ी ख्वाहिश अपने पैरेंट्स के साथ एक समूचा दिन गुजारने की होती है...तो किसी दूसरे बच्चे की फ़ैंटेसी अपने पैरेंट्स की नजरों की परिधि से एक दिन चुरा कर बिल्कुल अपने हिसाब से जीने की होती है....सो लगता है कि हमारी कल्चरल, सोशल या फ़ैमिली बैक्ग्राउंड्स हमारी फ़ीलिंग्स के मिक्स्चर मे घोल कर यह फ़र्माइशी कॉकटेल तैयार करते हैं..गोया किसी ख़त का पता पढ़ कर मजमून समझ लेने की कोशिश..या वाइस-वर्सा (पता नही क्या बकवास किये जा रहा हूँ)..खैर आपकी विश-लिस्ट की वर्सटिलिटी खूब है..खैर है जो अपन ने अभी अपनी फ़रमाइशों का गुलदस्ता ऊपरवाले को नही थमाया...हाँ एक पिक्चर भी याद आती है..बोले तो बकेट-लिस्ट!!:-)
ReplyDeleteहजारों ख्वाहिशें ऐसी....
ReplyDeleteहमारी ख्वाहिशें हमसे लुकाछिपी क्यों करती रहती हैं | पैदा होती हैं, छिप जातीं हैं, सामने आकर सामर्थ्य को उकसाती हैं, फिर समय के साथ सूर्यास्त की तरह लाल-पीली होकर जीवन से अस्त हो जाती हैं |
कुछ हमारा भी लिस्ट है...
ReplyDeleteभगवन करे तुम्हारी सब ख्वाहिश पूरी हो (जम्हाई लेते हुए) क्योंकि हमको मालुम है जन्नत की हक़ी...........................
यह क्या कम है तुम्हारे पास ख्वाइशों की फेहरिस्त है...
ReplyDeleteसावधान ! मोबाइल आपकी जेब काट सकता है !
ReplyDeleteक्या आप मोबाइल बेचना चाहते है? या आप का मोबाइल चोरी हो गया है? अगर आप का जवाब "हा" है तो, सावधान ! आप का मोबाइल आपकी जेब काट सकता है या आपको परेशानी में डाल सकता है। कैसे? जनने के लिये ये ब्लोग पोस्ट पढे http://gyanplus.blogspot.com
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
ReplyDeleteबहुत निकले मेरे अरमां फिर भी कम निकले
इस विशलिस्ट से हमें भी कुछ अधूरेपन का अहसास होता है। अच्छा लिखा। बधाई।
कब तक जिओगे यूँ ख्वाहिशों की बेखयाली में?
ReplyDeleteयूँ तो हर आम-ओ-खास जिया करते हैं.
कुछ हटके जियो तो जानें !
एक खवाइश होती है अपनी मोहब्बत के साथ जीने की वरना पता तो हमको भी है के मोहब्बत भी सरकारी हो चुकी है🥀
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