ये उस समय की बात है तब करीबन पाँच साल की उम्र रही होगी, घर से कुछ दूर पर बाँस के पेड़ों का झुरमुट था, शाम या रात गए हवा चलने पर ऐसी भुतहा आवाज उठती थी किया बतायें। उस कच्चे बचपन में हनुमान चालीसा का महत्त्व अपनी माँ से सुना होगा ऐसा मेरा अंदाजा है। क्योंकि बहुत याद करने पर भी मुझे ये याद नहीं आता की कब जाना की हनुमान चालीसा पढने से भूत नहीं आते।
अगर शब्दों की समझ होने के बाद जानती तो शायद समझ के जानती की "भूत पिसाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे" का मतलब ही हुआ की भूत वगैरह पास नहीं आयेंगे। साल बीते ठीक उस बाँस के झुरमुट के नीचे हनुमान जी का मंदिर भी बन गया...पर हमको उस मंदिर की मूर्ति से ज्यादा अपने चालीसा पर विश्वास था...तो रात के समय वहां से गुजरना होता था तो साक्षात् हनुमान जी का कोई आसरा नहीं होने पर हम मूर्ति से काम नहीं चलते थे...अपना हनुमान चालीसा पढ़ते जाते थे। अरे हाँ, ये तो बताना ही भूल गए की हमें चालीसा भी इसी लाइन तक याद थी, तो कभी कभार डर भी लगता था की कहीं हनुमान जी बीच में ही अटक गए तो...इस डर का कारण एक चुटकुला था...वो ये रहा, वैसे तो हमको चुटकुले कभी याद नहीं रहते पर ये है...
एक भक्त था उसको भगवान पर बहुत भरोसा था, एक बार उसको रास्ते में डाकू सब पकड़ लिया, वो डर गया और भगवान से हाथ जोड़ के प्रार्थना करने लगा बचाने के लिए, पहले उसने कहा हे भोले बाबा बचाइए, फिर थोड़ी देर में कहता है हे राम जी मेरी रक्षा कीजिये, फिर थोड़ी देर में कहता है हे हनुमान जी बचाईये...पर उसको कोई भगवान नहीं बचाने आये और उसको डाकू ने मार दिया। वो ऊपर गया तो भगवान से पूछा की हमको बचाने काहे नहीं आये...तो भगवान बोले की पहले तुमने शंकर भगवान का नाम लिया, हम शंकर भगवान बनकर आ ही रहे थे की तुम राम जी को पुकारने लगे, हम जल्दी से जाके राम का वेश धारण किये उसके बाद भी हम तुमको बचा ही लेते की तुम बोले हे हनुमान जी बचाईये...हम लगभग तुमको बचा ही लिए थे, बस पूंछ लगाने में देर हो गयी।
ये सुनके हमारी सिट्टी पिट्टी गुम थी, की भाई बड़ा रिस्क है एक साथ कई भगवान को बुला नहीं सकते हैं...तो बस हमारे देवघर में दो ही भगवान थे....एक तो अपने भोले बाबा और दुसरे हनुमान जी। इन दोनों के सहारे हमारा बचपन आराम से गुजर गया बिना किसी भूत के पकडे हुए। थोड़ा बड़े होने के बाद तो हम ऐसे निडर हुए कि भूत प्रेत हमसे डरते होंगे ऐसा समझने लगे। ऐसी हालत आराम से दिल्ली तक थी। फिर मम्मी का अचानक चले जाना...मैं आखिरी वक़्त तक उसका हाथ लिए जितने मन्त्र मुझे आते थे, गायत्री मन्त्र, महा मृत्युंजय मन्त्र, हनुमान चालीसा...सब पढ़ गयी...मगर वो नहीं रुकी।
उस दिन के बाद से हनुमान चालीसा नहीं पढ़ी मैंने...और अस्चार्यजनक रूप से डरने लगी बहुत चीज़ों से...समझ में ये नहीं आता था कि ज्यादा ख़राब क्या है...ये डर जो दिल की तहों में भीतर तक घुस कर बैठा है या हनुमान चालीसा जिसका पहला दोहा आते ही aiims का वो वार्ड याद आने लगता है। डर दोनों हालातों से लगता था।
और दुर्भाग्य से हमको ऐसा और कुछ पता नहीं था जो भूतों को भगा सके...कुणाल से भी पूछा कि यार और कोई भगवान हैं जिनसे भूत डरें तो उसने भी यही कन्फर्म किया कि भूतों का डिपार्टमेंट एक्स्क्लुसिव्ली हनुमान जी के पास है। अब हम ऐसे थेथर कि डरेंगे भी और भूत वाला पिक्चर भी देखेंगे और घबराएंगे और बिचारे को रात में जगाते रहेंगे कि डर लग रहा है...अच्छे खासे भले आदमी की नींद ख़राब।
सोचा आप लोगों से ही पूछ लें...कोई और तंतर मंतर है तो बताइए...अब ईई मत कहियेगा कि भूत उत होता ही नहीं है, बेकार सोच रही हो...आता है तो बतईये...नहीं तो हम थोड़ा बहुत हनुमान चालीसा से काम चला रहे हैं। आजकल ठीक हो गयी है हालत फिर भी...परसों पैरा नोर्मल एक्टिविटी देखने कि कोशिश की, नहीं देखी ...पर हनुमान चालीसा जरूर पढ़ी...अब धीरे धीरे वार्ड का डर निकल रहा है दिमाग से। उम्मीद है जल्दी ही भूत का डर भी निकलेगा।
तब तक...
बोलो हनुमान जी की जय!
"पैरा नोर्मल एक्टिविटी" मस्त सलीमा है.. देखिये लो, डर के बदले हँसने लगोगी.. :D
ReplyDeleteक्या यार, तुम भी ना. अच्छा खासा खुश होकर पढ़ रहे थे, और तुम सेंटीयाने वाली बात लिख कर फिर से सीरियस कर दी.. वैसे एक सीक्रेट हम भी बताएं, भगवान को मानते तो कभी नहीं थे मगर चिढ भी नहीं थी.. मगर किसी के चले जाने के बाद उसके नाम से चिढ भी हो गई..
वईसे हमारे पास कऊनो जंतर-मंतर नहीं है, नहीं तो बता देते.. तुम्हरा भूतो तो उतारना है ना.. :P
अब क्या बतायें..मानोगी है नहीं तो हनुमान चालीसा से ही काम चलाओ!! :)
ReplyDeleteकौनो गंडा ताबीज लेती आओ देवघर से..हम तो ठाकुर अनुकुल चन्द्र जी के आश्रम का ही सहारा लिए देवघर तक हो आते हैं तो भूत पिचाश नहीं पकड़ते कभी राधा स्वामी राधा स्वामी जपते. :)
अब हम ऐसे थेथर कि डरेंगे भी और भूत वाला पिक्चर भी देखेंगे और घबराएंगे और बिचारे को रात में जगाते रहेंगे कि डर लग रहा है...अच्छे खासे भले आदमी की नींद ख़राब।
ReplyDelete... मेरी बहना का भी यही हाल है.
वैसे हमको आदमी से ज्यादा दर लगता है और भूत उत सच्चे में नहीं होता है... अ इ सब झूठ - फूस... बात फेक के टाइम मत ख़राब करो .).).)
पता नहीं ...अब बहुत दिन हुए डरे हुए .एक बार आठवी में थे तब नोवल पढ़ रहे थे ओर घर में कोई नहीं था शादी ब्याह में गए हुए थे सब ....उस दिन रात आठ बजे .डर लगा तो रेडियो चला दिया .हनुमान चालीसा बड़ी मुश्किल है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeletejai hanuman ji ki jai
ReplyDeletebhoot bhag jata hai......
भुत आजकल नहीं पकड़ता....बल्कि आदमी से डरता है की कहीं वो ही न पकड़ ले उसको....पर डर का भूत सबसे भयानक होता है....तब हनुमान जी ही याद आते हैं और काम हो जाता है...
ReplyDelete...bhoot sirf vartmaan se dartaa hai...
ReplyDeletePakdega to bhut hee...bhut yaane jo beet gaya..jo aane wala hai vo akele me nahi darata .. jo beet gaya wahi darata hai...kabhi suna hai..lagta hai bhavishy hai..ya mujhe bhavisy se bada dar lagta hai....me akele rahu to bhavishy darane lagta hai...waise accha laga aapko padhna...
ReplyDeleteNishant
www.taaham.blogspot.com
डर और भुत दोनों का चोली दामन का साथ है..वसे मैं सुर से डरता थोडा कम था.हर दम दोस्तों के सामने बच्चपन में शेखी बघारता रहता कि हम तो भैया नहीं डरते.बाकि दोस्त मुझे अजूबे कि तरह देखते थे.कभी कभी कोई गावं के किसी भुतहा खंडहर या भुतहा बगीचे में दोपहर १२-१ के बीच मेरे बहदुरपन को जचने के लिए भी भेजा और हम तो भैया बड़े मजे से बाग-बगीचा और खंडहर घूम भी आते थे..नवम्बर या दिसम्बर कि एक शाम जम हम हाई स्कूल में थे...7 -8 pm के बीच खेतों में घर कि चाभी भूल आये थे..उसे खोजते खोजते थोड़ी मस्ती में दुबारा खेतो में जा रहे थे. अकाक लगा सामने कोई बहुत बड़ा आदमीं है मुझे वों साफ दिख भी रहा था..अपुन कि सारी हेकड़ी निकल ली ये तो साला भुत लग रहा है.अब क्या करें ..डर के मारे १००-१५० m हम पीछे खिसक लिए.और काफी टाइम तक वहीँ खड़े रहे समझ में नहीं आरहा था करें तो क्या करें.भुत के डर से आगे नहीं जा सकते थे ..और चाभी घर ले के नहीं पहुचे तो पिटाई भी तयं थी.कसम कश जरी था .दिमाग में मैं गहरे तक पहले ही बिठा चूका था कि भुत बेताल कुछ नहीं होता बस लोगों का डर है...तभी दिल में एक बात आई अगर आज डर गए तो हर दम डरते रहेंगे.किसी तरह हिम्मत बढ़ी खेत जूता हूवा था.वहां से कुछ कंकड़ पत्थर हाथ में लिया और धीरे धीरे उसके करीब जाने लगा.करीब जा के उसे आवाज देने लगा.मैं बोला कोण है वहां..बोलो कोंन है..बोलो वेरना मैं तुम्हे मार दूंगा..मैं मार दूंगा...कोई आवाज नहीं..कापते हउवे किसी तरह से एक पत्थर मरा फिर दूसरा..थोडा हिला वों.पर वावज कुछ भी नहीं आई मैं तो सोच रहा था भाई मैं तो आज गया.बुत कोई प्रतक्रिया नहीं होसला बढा..ध्यान से देखते हउवे थोडा थोडा नजदीक गया..देखा तो एक सुखा पेड़ था उसपे मकड़ियों ने जले लगा रखे थे.सीत कि वजह से कुछ ज्यादे ही ब्लैक हो गया था...और मैं उसे भुत समझ बता था.. लेकिन तसल्ली कर लेने के बाद.. मैं गया चाभी लेकर आया..तब से आज तक फिर कभी भूतों से मुलाकात नहीं हुई ...हाँ उसदिन डर जाता दुबारा उसे जा के नहीं देखता मैं तो पता नहीं ये भुत मुझे कितने परेशां करते ...मेरे पास तो हनुमान चालीसा भी नहीं है..और अब तो वसे भी नास्तिक काफ़िर बन गया हूँ...
ReplyDeleteपूजा...बहुत ही आनंद आया पोस्ट पढ़कर...बहुत मतलब बहुत....
ReplyDeleteएक लिंक दे रही हूँ..आप पढ़कर देखिएगा...इसी पोस्ट के इनलाइन है...
http://samvednasansaar.blogspot.com/
पहली बार हनुमान जी की दया से ;) आपके ब्लाग पर आना हुआ...अच्छा लगा इस हास्य भरे लेख मे भी आपका ये लिखना भावुक कर गया..कि.....
ReplyDeleteफिर मम्मी का अचानक चले जाना...मैं आखिरी वक़्त तक उसका हाथ लिए जितने मन्त्र मुझे आते थे, गायत्री मन्त्र, महा मृत्युंजय मन्त्र, हनुमान चालीसा...सब पढ़ गयी...मगर वो नहीं रुकी।..
धन्यवाद
भूतों का डिपार्टमेंट एक्स्क्लुसिव्ली हनुमान जी के पास है।
ReplyDelete----------
यह सत्य बताने के लिये बहुत धन्यवाद! हनुमान चालिसा की पुरानी प्रति गुम गई है। आज ही नई मंगवा कर रख लेते हैं।
आपको पहले बताना था! :)
nice
ReplyDeleteहम तो हनुमान चालीसा ही पूरी कंठस्थ करके बैठे है.. इधर भूत आया नही की इधर हम चालु.. पर का करे ससुरा एक्को भूत ही नहीं मिला अब तक.. हा एक दो ऐसे लोग जरुर मिले जिन्हें हम ही पीछे से भूत कहते थे..
ReplyDeleteएंड में हनुमान जी की जय बोल देते है..
मै भी इन्ही दोनो भगवन जी के साथ अभी तक क सफ़र काट दिया..अभी अभी शिव मन्दिर होकर आ रहा हू..काफ़ी दिनो के बाद मोर्निंग वाक पर गया था..
ReplyDeleteमुझे जब डर लगता था तब लगता था कि पीछे कोई है, मै पलटकर नही देखता था, बस आगे बढता जाता था...यहा तो खुद भूत बन गया हू, वो सब भी बेचारे अब मेरे पास नही आते :P बताना पैरानार्मल एक्टिविटी कैसी है बताना...
अपने एक दोस्त के लिये लास्ट टाइम हमने सारे मन्त्र पढे थे..
http://pupadhyay.blogspot.com/2009/03/blog-post.html
रातभर मत सोया करो, भूत दिन मे नही आते.. :)
Thanks
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