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11 June, 2012

The pen-ultimate birthday


जन्मदिन...यानि एक दिन की बादशाहत. उस दिन सब कुछ आपकी मर्जी का...जो भी मांगो सब पूरा हो जाए. अभी तक के सारे जन्मदिन ऐसे ही रहे हैं. राजकुमारी जैसे. इस बार वाला कुछ अलग था. रिअलिटी चेक. मेरी कुक को मैंने इस महीने फाइनली टाटा कह दिया कि उसका खाना चंद रोज़ और खाते तो जान देने की नौबत आ जाती और कामवाली इंदिरा के भाई की शादी थी तो वो चार की छुट्टी पर गयी थी. मुझे यूँ तो घर का सारा ही काम करना नापसंद है पर इसमें भी बर्तन धोने से ज्यादा बुरा मुझे कुछ नहीं लगता. तो मेरे इस लाजावाब बर्थडे की शुरुआत हुयी एक चम्मच विम लिक्विड से. कभी न कभी तो नींद से जागना ही था :) :) तो सुबह सुबह बर्तन वर्तन धो कर खाना वाना बना कर थक हार कर बैठ गए. बर्थडे मेरी बला से...थोड़ी देर सो लेते हैं. फिर एक कड़क कॉफी बना कर पी...आपको पता है कि कॉफी में सुपरपावर होती है? नहीं पता? फिर तो आपको ये भी नहीं पता होगा कि मैं सुपरगर्ल हूँ! वैसे तो अधिकतर लड़कियां सुपरगर्ल होती हैं पर मोस्टली उनको ये बात पता नहीं होती हैं. उन्हें कोई इडियट बचपन में पढ़ा जाता है कि नारी अबला होती है तो बस वो अबला होने की कोशिश में हमेशा सुपरमैन का इंतज़ार करती रह जाती है उसे मालूम ही नहीं होता कि उसकी खुद की सुपरपॉवर बहुत सारी हैं.

मैं अधिकतर जन्मदिन के पहले वाले हफ्ते बहुत ही धीर गंभीर सोचने वाले मूड में चली जाती हूँ पर ये हफ्ता तो जैसे कब आया कब गया मालूम ही नहीं चला. पिछले हफ्ते मैं एक भी शाम अकेले नहीं रही...और कुछ बेहतरीन लोगों से मिली और दोस्तों के साथ बेहद मस्ती काटी. एक फुल दिन शौपिंग भी मारी. दिमाग का पैरलल ट्रैक चलता रहा. इस बीच एक दोस्त के लिए 'माय ब्लूबेरी नाइट्स' की डीवीडी बर्न कर रही थी तो उसका एक सीन सामने आया...इत्तिफ़ाक इसे ही कहते हैं...मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रही थी. एलिज़ाबेथ चिट्ठी में लिखती है...

Dear Jeremy,
In the last few days I have been learning how to not trust people and I am glad I failed.
Sometimes we depend on other people as a mirror to define us and tell us who we are and each reflection makes me like myself a little more.
Elizabeth

मुझे गलतियाँ कर के सीखने की आदत है...कोई कितना भी समझा ले कि उधर तकलीफ है...उधर मत जाओ मगर जब तक खुद चोट नहीं लगेगी दिल मानता ही नहीं है. मुझे 'बुरे लोग' का कांसेप्ट समझ नहीं आता...कोई भी सबके लिए बुरा नहीं होता. मेरी जिंदगी में बहुत कम लोग हैं...मैं अपनेआप को लेकर बहुत fiercely protective हूँ. चूँकि मैं जैसी हूँ वैसी सबके सामने हूँ...तो वल्नरेबल भी हूँ बहुत हद तक. आप किसी को कैसे जानते हैं? मुझे लगता है कि तब जानते हैं जब आप उसकी कमजोरियां जानते हों...उसका डर जानते हों...उसके मन के अँधेरे जानते हों...और इसके बावजूद उससे प्यार करते हों. जो मेरे दोस्त हैं वो इसी तरह जानते हैं मुझे...और जिन्हें मैं अपना दोस्त मानती हूँ, मैं इसी तरह जानती हूँ उन्हें. कभी कभार मुझसे लोगों को पहचानने में गलती भी हो जाती है. मुझे कोई कितना भी समझा ले कि बेटा दुनिया बहुत बुरी है...मुझे नहीं समझ आता...हालाँकि इसके अपने खतरे हैं, अपनी तकलीफें हैं...मगर दुनिया वैसी है जैसे हम खुद हैं.

मैंने अपने फेसबुक का अकाउंट पिछले महीने डिजेबल किया था और तबसे शांति थी बहुत. हाँ, दोस्तों की याद आती थी तो कभी रात दो बजे के बाद लोगिन होकर उनकी तसवीरें देख लेती थी. फेसबुक मेरे लिए मेजर टाइमवेस्ट है. क्या है कि मुझे बीच का रास्ता अपनाना तो आता नहीं है. दिन में लिखने का काम लैपटॉप पर ही करती हूँ तो ऐसे में अगर एक टैब में फेसबुक खुला है तो कहीं ध्यान से कुछ कर नहीं सकती...सारे वक्त ध्यान बंटा रहता है. फिर मेरे जो क्लोज फ्रेंड्स हैं वो अधिकतर फेसबुक पर सक्रिय नहीं रहते. वर्चुअल की अपनी सीमाएं हैं...मैं फेसबुक, फोन और चैट के बावजूद कहीं 0 और 1 की बाइनरी दुनिया में खोती जा रही थी. इसका हासिल कुछ नहीं था...टोटल जीरो. उसपर हर समय कुछ अपडेट करने की बेवकूफी. महीने भर से काफी शांति थी और वक्त का बहुत अच्छा इस्तेमाल किया. कुछ बेहतरीन फिल्में देखीं...कुछ दोस्तों के साथ बहुत सा वक्त बिताया.

कल मेरे सारे अपनों ने फोन किया...कोई भी मेरा बर्थडे नहीं भूला...इस बार मैंने किसी को याद भी नहीं दिलाया था कि मेरा बर्थडे है...जो कि अक्सर करती हूँ कि मेरे कुछ दोस्त इतने भुलक्कड हैं कि मेरी खुद की ड्यूटी है उनको एक दो दिन पहले याद दिलाना...वरना वो झगड़ा भी करते हैं. घर से फोन आये...फिर दो बजे अनुपम का मेसेज आया. दिन में सारे दोस्तों के फोन आये...सारे...कोई भी नहीं भूला. इतना अच्छा लगा कि बता नहीं सकते हैं. फेसबुक ओर नो फेसबुक...मेरी लाइफ में अभी भी इतने सारे अच्छे दोस्त हैं कि ध्यान से मेरा बर्थडे याद रखते हैं. सबका बहुत बहुत बहुत सारा थैंक यू है.

कल कुणाल ने नयी पेन खरीदी मेरे लिए...अच्छी सी...वाइन कलर की...और पर्पल इंक भी दिलाया. घर से भी सब लोगों ने कॉल करके खूब सारा आशीर्वाद दिया...देवर ननदों ने पूछा कि क्या गिफ्ट चाहिए...भाई ने कहा कि गिफ्ट थोड़ा देर से पहुंचेगा...कुरियर हो गया है...कितना तो प्यार करते हैं सब मुझसे.

इस जन्मदिन में खुद को थोड़ा और समझते हुए जाना...मैं अपनेआप से और जिंदगी से बहुत प्यार करती हूँ. मेरे कुछ बेहद अच्छे दोस्त हैं जो मुझसे बहुत प्यार करते हैं और कि मैं कभी हार नहीं मानती.

I am at a cliff...about to take a jump...and in my heart of hearts, I know....
I'll Fly!

Happy Birthday Mon Amour! You are 29 and rocking!

16 May, 2012

मुस्कुरा कर मिलो जिंदगी...

परसों एक एचआर का फोन आया एक जॉब ओपनिंग के बारे में...मैं आजकल फुल टाइम जॉब करने के मूड में थी नहीं तो अधिकतर सॉरी बोल कर फोन रख दिया करती थी. इस बार पता नहीं...शायद हिंदी का कोई शब्द था या दिल्ली के नंबर से फोन आया था या कि जिस ऑफिस में पोजीशन खाली थी वो घर के एकदम पास था...मैंने इंटरव्यू के लिए हाँ कर दी.

मेरे इंटरव्यू नोर्मली काफी लंबे चलते हैं...कमसे कम दो घंटे और कई बार तो चार घंटे तक चला है...अनगिनत बातें हो जाती हैं. मुझे खुद भी महसूस होता है इंटरव्यू देते वक्त कि मैं काफी इंटरेस्टिंग सी कैरेक्टर हूँ और मेरे जैसे लोग वाकई इंटरव्यू के लिए कम ही आते होंगे. कभी कभी होता भी है कि इंटरव्यू के लिए गयी हूँ तो लाउंज में बैठे बाकी कैंडिडेट्स को देखती हूँ और सोचती हूँ कि कैसे लोग होंगे. उनमें से अधिकतर मुझे काफी सजग और एक आवरण में ढके हुए लगते हैं...मैं इंटरव्यू में भी फ्री स्पिरिट जैसी रहती हूँ. कितना भी  कोई बोल ले...कभी फोर्मल कपड़े पहन कर नहीं गयी...वही पहन कर जाती हूँ जो मूड करता है. जैसे आज का इंटरव्यू ले लो...प्लेन वाईट कुरता पहना था फिर दिल नहीं माना तो बस...चेक शर्ट, जींस, थोड़ी हील के सैंडिल, प्लेन सा बैग और पोर्टफोलियो. हाँ दो चीज़ें मैं कभी नहीं भूलती...हाथ में घड़ी और पसंद का परफ्यूम. 

आज भी बारह बजे दोपहर का इंटरव्यू था...मैं बाइक से पहुंची...हेलमेट उतारा...बालों को उँगलियों से हल्का काम्ब किया और पोनीटेल बना ली...रिसेप्शन डेस्क पर जो लड़की थी उसने एक मिनट वेट करने को कहा...तब तक जार्ज...जिसके साथ इंटरव्यू था सामने था. जो कि नोर्मल आदत है...एक स्कैन में पसंद आया कि बंदे ने पूरे फोर्मल्स नहीं पहने थे...डार्क ब्लू जींस, ब्लैक शर्ट और स्पोर्ट्स शूज. लगा कि ठीक है...क्रिएटिव का बन्दा है, क्रिएटिव जैसा है. उसने पूछा...चाय या कॉफी...मैंने कहा...नहीं, कुछ नहीं...बहुत दिन बाद किसी ने हिंदी में पूछा था...दिल एकदम हैप्पी हो गया...फिर जब वो मेरा पोर्टफोलियो देख रहा था तो मैंने देखा कि वो वही इंक पेन यूज कर रहा है जिसपर आजकल मेरा दिल आया हुआ है...LAMI का ब्लैक कलर में. एक पहचान सी बनती लगी...और इंस्टिंक्ट ने कहा कि इसके साथ काम करने में अच्छा लगेगा...अगेन...मुझे नोर्मली लोग पसंद नहीं आते. आजकल तो बिलकुल ही महाचूजी हो गयी हूँ.

इंटरव्यू कितना अच्छा होता है अगर इस बात का प्रेशर नहीं है कि जॉब चाहिए ही चाहिए...कितना अच्छा लगता है कोई आपसे कहे...टेल मे अबाउट योरसेल्फ...और आप फुर्सत और इत्मीनान से उसे अपने बारे में बताते जाइए. कई बार तो इगो बूस्ट सा होता है जब सोचती हूँ कि हाँ...कितना सारा तो तीर मार के बैठे हुए हैं...खामखा लोड लेते हैं, हमको भी न...उदास रहना अच्छा लगता है शायद मोस्टली. (प्लीज नोट द विरोधाभास हियर). मैं एकदम मस्त मूड में चहक चहक कर बात कर रही थी. 

इंटरव्यू लेने वाले लोग दो तरह के होते हैं...पहले थकेले टाइप...जो आपसे इतने गिल्ट के साथ बात करेंगे जैसे वो उस जगह काम नहीं करते किसी पिछले जन्म के पाप का फल भुगत रहे हैं और आप भी उस कंपनी में आयेंगे तो उनपर अहसान करेंगे टाइप...वे बेचारे दुखी आत्मा होते हैं, अपने काम से परेशान. मुझे ऐसे लोग एक नज़र में पसंद नहीं आते...अगर आप खुद खुश नहीं हो जॉब में तो नज़र आ जाता है...मेरे जैसे किसी को तो एकदम एक बार में. दूसरी तरह के वो लोग होते हैं जिन्हें अपने काम से प्यार होता है...जब वो आपको कंपनी के बारे में बता रहे होते हैं तो गर्व मिश्रित खुशी से बताते हैं...ये खुशी उनसे फूट फूट पड़ती है...ऐसे लोगों से बात करना भी बेहद अच्छा लगता है...उनके चेहरे पर चमक होती है और सबसे बढ़कर आँखों में चमक होती है. ऐसे लोगों के साथ किसी का भी काम करने का मन करता है और इंटरव्यू का रिजल्ट जो भी आये...मैं वहां ज्वाइन करूँ या न करूं पर इंटरव्यू में मज़ा आ जाता है. आज के इंटरव्यू में ये दूसरे टाइप का बन्दा बहुत दिन बाद देखने को मिला था...एकदम दिल खुश हो गया टाइप. 

मुझे एक और चीज़ भा गयी...मेरा नाम अधिकतर लोग Pooja लिख देते हैं...नाम के स्पेलिंग को लेकर बहुत टची हूँ...सेंटी हो जाती हूँ. मेरे ख्याल से ये दूसरी या तीसरी बार होगा लाइफ में कि किसी ने खुद से मेरे नाम की स्पेलिंग सही लिखी हो. मुझे नहीं मालूम कि फाइनली मैं वहां जॉब करूंगी कि नहीं...पर आज का इंटरव्यू लाइफ के कुछ बेस्ट इंटरव्यू में से एक रहेगा. 

कुछ दो ढाई बजे वापस आई तो कुणाल का फोन आया उसके इनकम टैक्स के पेपर की जरूरत थी ऑफिस में. मौसम एकदम कातिलाना हो रखा था...ड्राइव करते हुए मस्त गाने सुने और उसके ऑफिस पहुंची. वहां बगल में फोरम मॉल है जहाँ उसे कुछ काम था. हम वहां गए ही थे कि भयानक तेज बारिश शुरू हो गयी...आसमान जैसे टूट कर बरस रहा था. काफी देर सब वेट किये उधर फिर ऑफिस में डिले हो रहा था तो बारिश में भी भीगते भागते सब लोग गए. मैं उस झमाझम बरसती बारिश में एक प्यारे दोस्त से बात कर रही थी...हवा बारिश से भीगी हुयी थी...मॉल में मेरी पसंद के गाने बज रहे थे...इंटरव्यू अच्छा गया था. ओफ्फ क्या मस्त माहौल था. 

आज कुणाल ने ऑफिस थोड़ा बंक किया कि आठ साढ़े आठ टाइप छुट्टी...फिर घर पहुंचे. इधर एक App बनाने के मूड में हैं हम लोग तो उसी का रिसर्च चल रहा है. अभी तीन बजे तक साकिब के साथ डिस्कस किये हैं...अब सोने का टाइम आया...पर जैसा कि होता है, जाग गए हैं तो नींद नदारद. सोचा कुछ लिख लूं...अच्छे मूड में लिखने का कम ही मन करता है. बस ऐसे ही...यहाँ सकेरने का मन किया. इतनी अनप्रेडिक्टेबल लाइफ में कभी पुराने पन्ने पलटा कर देखूं तो यकीन हो तो सही कि खिलखिला के हँसने वाले दिन भी होते हैं. भोर होने को आई...अब हम सोने को जाते हैं. आप मेरी पसंद का गाना सुनिए जो मॉल में बज रहा था...बीटल्स का है. मेरा फेवरिट बैंड है. 

ग्लास फ्लूट के इन्स्ट्रुमेन्टल में ये गीत...ओह...जानलेवा था...कुछ गीतों पर ऐसे ही यादें स्टैम्प हो जाती हैं...मैं इस गीत को अब कभी भी सुनूंगी..उधर फोरम मॉल की रेलिंग से नज़र आती बारिश, एक दिलफरेब आवाज़ और अनंत खुशियों को महसूस करूंगी.

Sometimes...really...all you need is a tight hug... the wonderful thing about life and friendship and love is...sometimes...a friend sitting in some forlorn corner of the world says those simple words...and you really feel like you have been hugged...tightly. Imagine...underestimating the power of words! It simply is about the intensity behind those words...when you say those words as you feel them...even if you are kilometers apart...a friend's embrace melts all your sadness away. Words heal. Words hug. Words hold your hand.

Thank you...so much...I am glad I have you in my life. I love you.

PS: It just started raining again...my friends in Delhi...I am thinking of you...and for those in the parched corner of the country...for you too. Hugs.

24 November, 2011

विल यू एवर मिस मी?

मैं महज़ कागज़ का टुकड़ा भर हूँ तुम्हारे लिए कि खतों में मेरी आँखें चमकती हैं? तुम तो कहते थे कि खतों से खुशबू आती है तुम्हें...मुझे तुम्हारी बात पर कभी यकीन नहीं था इसलिए तो ख़त में इत्र छिड़क कर भेजती थी कि अगली बार कभी कहो तो नाम पूछ लूँ कि अच्छा, बताओ तो सही, कौन सी खुशबू आती है...और अगर तुमने सही नाम ले लिया तब मान जाउंगी कि मेरे ख़त पढ़ने के बाद तुम्हारी उँगलियाँ सिगरेट नहीं, एक दूसरी ही गंध में महकती हैं...नहीं?

खतों की अपनी जिंदगी हो जाती है न...मेरे खतों में मेरा एक हिस्सा चला जाता है जो तुम मानो ना मानो, तुम्हारे घर की जासूसी कर आता है. मैंने ख़त लिखे ही इसलिए हैं कि मेरे शब्द कूदते, फांदते तुम्हारे मन के उदास कोनों को बुहार दें...तुम नहीं जानते, मुझे जादू आता है. तुम जब भी ख़ामोशी में हँसते हो मुझे मालूम चल जाता है तुम मेरी बेवकूफी पर हँसते हो...पर पता है, मैं ख़त इसलिए नहीं लिखती कि मुझे तुम्हें दिखाना है कि मैं कित्ती होशियार हूँ...वो तो मैं बहुत हूँ...हाँ, तुम नहीं मानते, अरे सब कहते हैं बाबा! पर चिट्ठी इसलिए लिखती हूँ कि तुम खुश होते हो जब वो बुड्ढा पोस्टमैन तुम्हें अपने घर के दरवाजे पर दिखता है. अरे अब तो दोस्ती कर लो उससे...फिर उसे किस्से सुनाना कि ये कौन पागल लड़की है जो तुम्हें आज के दौर में भी चिट्ठियां लिखती है. तुम यही सोचते हो न मन में...पागल लड़की...है न? है ना?

तुम आजकल मुझसे भी झूठ बोलने लगे हो, मुझे मालूम नहीं कि क्यूँ...पर प्लीज मुझसे झूठ मत बोला करो...लड़ लो, झगड़ लो...सता लो मुझे...गुस्सा हो जाओ, डांट लो...पर यूँ मुझसे झूठ मत बोलो. मुझे भी तुम्हारा झूठ पकड़ना आता है. मुझसे झूठ बोलकर कहाँ जाओगे बाबा...किसी से तो सच बोलो. वैसे भी तो तुम जो बोलोगे उसका उल्टा ही समझूंगी. तुम्हें लगता होगा मैं एकदम ही बुद्धू हूँ...पर मैं हूँ नहीं. हाँ तुम्हारी तरह इंटेलिजेंट नहीं हूँ पर इतना भी नहीं कि तुम्हारी बातों को पकड़ नहीं पाऊं. अच्छा, दूसरे लोग क्यूँ नहीं पकड़ पाते? दूसरे लोगों के पास इतनी फुर्सत नहीं है न...मेरे पास बहुत सी फुर्सत है जो मैं तुम्हारे बारे में सोच सोच के बिताती हूँ...और जब तुमसे बातें करती हूँ तो बातों के अन्दर की आवाज़ सुनते सुनते...यु नो रीडिंग बिटवीन द लाइंस. तुम्हें पढ़ना थोड़ा मुश्किल है...तुम सब कुछ छुपा जाते हो. बहुत मेहनत करनी होती है...तैरना न आने पर भी डाइव मारनी होती है...डर भी लगता है पर तुम्हारे लिए इतना तो करना पड़ेगा. तुम्हें पता है बस मम्मी थी, जिसकी आँख के इशारे से डर जाती थी मैं...एक तुम हुए हो...सोच के भी डर जाती हूँ कि तुम्हारी भृकुटी तन गयी होगी. फ़ोन पर डराए हो और किसी को भी इस तरह?

कर लो झगड़ा मुझसे, जी भर कर लो...जब मर जाउंगी न तब याद आएगी मेरी. तुम्हें क्या...तुम तो जिद्दी हो बला के...तुम्हें पता भी नहीं चलेगा बहुत दिन तक...और देखना न, जब पता चलेगा न बहुत अफ़सोस करोगे. सेंटी मार रही हूँ तुम्हें, और क्या करूँ...रूठ के बैठे हो...उसपर मानते भी नहीं कि रूठे हो...मनाऊं भला कैसे...हद्द हो. पर सोचो भला...क्या मिस करोगे तुम...सिर्फ चिट्ठियां लिखने वाली लड़की को कितना मिस कर सकता है कोई. जो मान लो, मरुँ न भी...बस खो जाऊं कभी...कहीं. 

विल यू एवर मिस मी?


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कोरी चिट्ठी, तुम्हारे नाम...जो मन चाहे लिख लो...अब तो मान जाओ बाबा...क्या बच्चे की जान लोगे?

09 November, 2011

सियाही

निब का आगे का नुकीला हिस्सा टूटता है और धारदार स्टील उसकी ऊँगली में धंस जाता है. बेहद तेजी से खून बहता है और लड़की अचंभित सी गहरे लाल रंग के खून में मिलती काली स्याही देखती रह जाती है. सफ़ेद कागज़ पर एक तरफ से खून की धारा बहती है और दूसरी तरफ काली सियाही की...दोनों मिलकर  ऐबस्ट्राक्ट सा कुछ रच रहे हैं...अमूर्त जिसमें देखो तो सब कुछ दिख जाए. लड़की गहरी उसांस लेती है जैसे खुद को समझा रही हो कि ये तो होना ही था एक दिन. तुम्हें भी पता था, मुझे भी. सादे कागज़ पर अब बहुत सारी कहानियां रची जा चुकी हैं पर लड़की जैसे स्लो मोशन में स्टेच्यु हो गयी है. देख रही है...खून बह रहा है, दर्द हो रहा है, स्याही गिर रही है, टेबल पर बिखर रही है...उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा. ऊँगली में निब धंसा हुआ है, गहरे.
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उसकी आँखें काली थीं...एकदम गहरी, रात की तरह...उसे जान पाना बहुत मुश्किल था. ब्लैक होल में से रौशनी भी बाहर नहीं आती. उसकी आँखें सब कुछ सोख लेती थीं, पर वापस कुछ नहीं करतीं. शायद उन्होंने स्वार्थी होना दुनिया से सीखा हो...लड़कों से भी सीख सकती हैं...बुराइयाँ बहुत तेजी से फैलती हैं. (स्याही भी तो गिर रही है, पैरेरल स्टोरी में जहाँ लड़की खिड़की किनारे वाली टेबल पर धूप में अमूर्त में आकार ढूंढ रही है).
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उसके पास दुनिया भर की तन्हाई थी...जैसे दवात को अक्षयपात्र होने का वरदान मिला हो. कलम, निब, स्याही और सफ़ेद कागज़...इतने भर दुनिया थी उसकी. उसके पात्र पैदा होते और पन्नों में ही मर जाते...वो स्टेच्यु ही बनी रहती. जब पहला अबोर्शन कराया था कितना खून बहा था...और दर्द...दर्द तो पन्नों से उभर आता है. उसकी चीखों जैसा जो कि मुंह पर हाथ रखने से बंद नहीं होतीं थी, न कमरे का दरवाजा बंद करने से. यकीन करना कहाँ मुमकिन था कि इस शताब्दी में भी लड़कियों को जन्म लेने की इजाजत नहीं थी. या शायद यकीन करना बहुत आसान था...समाज के कुछ सियाह हिस्से उसके हिस्से में नहीं आये थे कभी. उसके हिस्से बस खुला आसमान था और सादे कागज़. आज उसे देर रात तक रोना था...बिलख बिलख कर उस बेटी के लिए जिसकी रक्षा नहीं कर पायी वो.
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उसे बहुत से सवालों का जवाब देना था जिसमें प्रमुख ये था कि वो कलमुंही सिर्फ बेटियां क्यूँ पैदा करना चाहती है...ये सवाल सिर्फ उसकी सास ही नहीं उसके पन्नो से उभर कर किरदार भी पूछते थे. वो इतनी बेबस हो जाती कि किरदारों का गला घोंट देती, कुछ को खाने में जहर मिला के मार देती और कुछ किरदार उसे इतना तड़पाते कि वो इंतज़ार करती और उनके बेटों के हिस्से में उम्र भर का अकेलापन लिख देती...ये अभिशप्त बेटे थे जिन्हें कभी उनका प्यार नहीं मिला...वो किसी लड़की की एक नज़र के लिए तरस तरस कर मर जाते थे. उसकी कहानियां दिन चढ़ते वीभत्स होती जा रहीं थी...जैसे उसके पाँव भारी होते किसी किरदार की जिंदगी में भयानक उथल पुथल मच जाती. वो किरदार जो उसकी खुली हंसी और खिली धूप में जीते थे उनकी जिंदगी में कभी सुनामी आता कभी भूचाल...और मरना...वो तो नियति बनती जा रही थी. 
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नियति के खेल अनोखे होते हैं...सास ने पता लगते ही उसका खास ख्याल रखना शुरू कर दिया था...इस बार खानदान का चिराग आने वाला था घर में. आखिर उसका वंश आगे बेटे से ही तो बढेगा...लड़की राजरानी की तरह रहती थी, खुली खिड़की में धूप तापती थी, सबको लगा था कि इस बार उसकी आँखों में कोई रौशनी की किरण चमकेगी. 
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ऊँगली में निब धंसा हुआ था...गहरे...और बहुत देर धंसा रहा...बहुत देर खून बहने के कारण लड़की टेबल पर बेहोश हो गयी...होश आया तो उसने खुद को अस्पताल में पाया...मोनिटर पर सिर्फ एक ही दिल की धड़कन सुनाई पड़ रही थी...बेड के इर्द गिर्द मुखोटा लगाये किरदार खड़े थे, पति, सास, ननद और पूरा कुनबा...उसे समझ नहीं आया कि उनके दुःख का कारण उसका जिन्दा बचना है या घर के चिराग का बुझ जाना. लड़की पागलों की तरह हंस उठी और इतनी देर हंसती रही कि उसे सेडेट करना पड़ा...ऑपरेशन के टाँके खुल गए और इन्टरनल ब्लीडिंग के कारण डॉक्टर उसे बचा नहीं पाए. 
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लड़की के पति की दूसरी शादी करा दी गयी...हफ्ते भर में ही नयी दुल्हन ने चीख चीख कर पूरे मोहल्ले को बता दिया कि उसका पति 'नामर्द' है. 

02 November, 2011

बारिशों से, बारिशों में लिखे खत

इकतरफा प्यार भी इकतरफे खतों की तरह होता है...किसी लेखक की बेहद खूबसूरत कवितायें पढ़ कर हो जाने वाले मासूम प्यार जैसा. किसी नाज़ुक लड़की के नर्म हाथों से लिखे मुलायम, खुशबूदार ख़त जब किसी लेखक तक पहुँचते हैं तो उसे कैसा लगता होगा? घुमावदार लेखनी में क्या लड़की के चेहरे का कटीलापन नज़र आता है? क्या सियाही के रंग से पता चलता है की उसकी आँखें कैसी है? काली, नीली या हरी.

हाथ के लिखे खतों में जिंदगी होती है...लड़की को मालूम भी नहीं होता की कब उसके दुपट्टे का एक धागा साथ चला गया है ख़त के तो कभी पुलाव बनाते हुए इलायची की खुशबू. लेखक सोचता की लड़की कभी अपना पता तो लिखती की जवाब देता उसे...कि कैसे उसके ख़त रातों की रौशनी बन जाते हैं. पर लड़की बड़ी शर्मीली थी, दुनिया का लिहाज करती थी...घर की इज्ज़त का ध्यान रखती थी...और आप तो जानते ही हैं कि जिन लड़कियों के ख़त आते है उन्हें अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता. 

तो हम बात कर रहे थे इकतरफी मुहब्बत की...या कि इकतरफी चिट्ठियों की भी. ऐसी चिट्ठी लिखना खुदा के साथ बात करने जैसा होता है...वो कभी सीधा जवाब नहीं देता. आप बस इसी में खुश हो जाते हैं कि आपकी चिट्ठियां उस तक पहुँच रही हैं...कभी जो आपको पक्का पता चल जाए कि खुदा आपके ख़त यानि कि दुआएं सच में खोल के पढ़ता है तो आप इतने परेशान हो जायेंगे कि अगली दुआ मांगने के पहले सोचेंगे. गोया कि जैसे आपने पिछली शाम बस इतना माँगा था कि वो गहरी काली आँखों वाली लड़की एक बार बस आँख उठा कर आपकी सलामी का जवाब दे दे. आप जानते कि दुआ कबूल होने वाली है तो खुदा से ये न पूछ लेते कि लड़की से आगे बात कैसे की जाए...भरी बारिश...टपकती दुकान की छत के नीचे अचकचाए खड़ा तो नहीं रहना पड़ता...और लड़की भी बिना छतरी के भीगते घर को न निकलती. न ये क़यामत होती न आपको उससे प्यार होता. आप तो बस एक बार नज़र उठा कर 'वालेकुम अस्सलाम' से ही खुश थे. 

यूँ कि बारिशों में किसी ख़ास का नाम न घुला तो तब भी तो बारिशें खूबसूरत होती हैं...अबकी बारिश में यादें यूँ घुल गयीं कि हर शख्स उसके रंग में रंग नज़र आता है. जिधर नज़र फेरें कहीं उसकी आँखें, कहीं भीगी जुल्फें तो कहीं उसी भीगी मेहंदी दुपट्टे का रंग नज़र आता है. हाय मुहब्बत भी क्या क्या खेल किया करती है आशिकों से! घर पर बिरयानी बन रही है और मन जोगी हो चला है, लेखक अब शायर हो ही जाए शायद, यूँ भी उसके चाहने वाले कब से मिन्नत कर रहे हैं उर्दू की चाशनी जुबान में लिखने को. कब सुनी है लेखक ने उनकी बात भला कितने को किस्से लिए चलता है अपने संग, हसीं ठहाके, दर्द, तन्हाई, मुफलिसी, जलालत...लय के लिए फुर्सत कहाँ लेखक की जिंदगी में. 

कौन यकीन करे कि लेखक साहब आजकल बारिश में ताल ढूंढ लेते हैं, मीटर बिना सेट किये सब बंध जाता है कि जैसे जिंदगी खातून की आँखों में बंध गयी है. आजकल लेखक ने खुदा को बैरंग चिट्ठियां भेजनी शुरू कर दी हैं...पहले तो सारे वादे दुआ कबूल होने के पहले पूरे कर दिए जाते थे...पर आजकल लेखक ने उधारी खाता भी शुरू करवा लिया है खुदा के यहाँ. दुआएं क़ुबूल होती जा रहीं हैं और खुदा मेहरबान. 

कुछ रिश्ते एक तरफ से ही पूरी शिद्दत से निभाए जा सकते हैं. जहाँ दूसरी तरफ से जवाब आने लगे, खतों की खुशबू ख़त्म हो जाती है. वो नर्म, नाज़ुक हाथों वाली लड़की याद तो है आपको, जो लेखक को ख़त लिखा करती थी? जी...जैसा कि आपने सोचा...और खुदा ने चाहा...लेखक को अनजाने उसी से प्यार हुआ. दोनों ने एक दुसरे को क़ुबूल कर लिया. 

मियां बीवी भला एक दुसरे को ख़त लिखते हैं कभी? नहीं न...तो बस एक खूबसूरत सिलसिले का अंत हो गया. तभी न कहती हूँ...सबसे खूबसूरत प्रेम कहानियां वो होती हैं जहाँ लोग बिछड़ जाते हैं. 

आप किसी को ख़त लिखते हैं तो उनमें अपना नाम कभी न लिखा कीजिए.

30 September, 2011

फाउंटेन पेन से निकले अजीबो गरीब किस्से

'तुम खो गए हो,' नयी कलम से लिखा पहला वाक्य काटने में बड़ा दुःख होता है, वैसे ही जैसे किसी से पहली मुलाकात में प्यार हो जाए और अगले ही दिन उसके पिताजी के तबादले की खबर आये. 

'तुम खोते जा रहे हो.' तथ्य की कसौटी पर ये वाक्य ज्यादा सही उतरता है मगर पिछले वाक्य का सरकटा भूत पीछा भी तो नहीं छोड़ रहा. तुम्हारे बिना अब रोया भी नहीं जाता, कई बार तो ये भी लगता है की मेरा दुःख महज एक स्वांग तो नहीं, जिसे किसी दर्शक की जरूरत आन पड़ती हो, समय समय पर. इस वाक्य को लिखने के लिए खुद को धिक्कारती हूँ, मन के अंधियारे कोने तलाशती भी हूँ तो दुःख में कोई मिलावट नज़र नहीं आती. एकदम खालिस दुःख, जिसका न कोई आदि है न अंत. 

स्याही की नयी बोतल खोलनी थी, उसके कब्जे सदियों बंद रहने के कारण मजबूती से जकड़ गए थे. मैंने आखिरी बार किसी को दवात खरीदते कब देखा याद नहीं. आज भी 'चेलपार्क' की पूरी बोतल १५ रुपये में आ जाती है. बताओ इससे सस्ता प्यार का इज़हार और किसी माध्यम से मुमकिन है? अर्चिस का ढंग का कार्ड अब ५० रुपये से कम में नहीं आता. गरीब के पास उपाय क्या है कविता करने के सिवा. तुम्हें शर्म नहीं आती उसकी कविता में रस ढूँढ़ते हुए. दरअसल जिसे तुम श्रृंगार रस समझ रहे हो वो मजबूरी और दर्द में निकला वीभत्स रस है. अगर हर कवि अपनी कविता के पीछे की कहानी भी लिख दे तो लोग कविता पढना बंद कर देंगे. इतना गहन अंधकार, दर्द की ऐसी भीषण ज्वाला सहने की शक्ति सब में नहीं है.

सरस्वती जब लेखनी को आशीर्वाद देती हैं तो उसके साथ दर्द की कभी न ख़त्म होने वाली पूँजी भी देती हैं और उसे महसूस करके लिखने की हिम्मत भी. बहुत जरूरी है इन दो पायदानों के बीच संतुलन बनाये रखना वरना तो कवि पागल होके मर जाए...या मर के पागल हो जाए. बस उतनी भर की दूरी बनाये रखना जितने में लिखा जा सके. इस नज़रिए से देखोगे तो कवि किसी ब्रेन सर्जन से कम नहीं होता. ये जानते हुए भी की हर बार मरीज के मर जाने की सम्भावना होती है वो पूरी तन्मयता से शल्य-क्रिया करता है. कवि(जो कि अपनी कविता के पीछे की कहानी नहीं बताता) जानते हुए कि पढने वाला शायद अनदेखी कर आगे बढ़ ले, या फिर निराशा के गर्त में चले जाए दर्द को शब्द देता है. वैसे कवि का लिखना उस यंत्रणा से निकलने की छटपटाहट मात्र है. इस अर्थ में कहा नहीं जा सकता कि सरस्वती का वरदान है या अभिशाप.

ये पेन किसी को चाहिए?
तुम किसी अनजान रास्ते पर चल निकले हो ऐसा भी नहीं है(शायद दुःख इस बात का ही ज्यादा है) तुम यहीं चल रहे हो, समानांतर सड़क पर. गाहे बगाहे तुम्हारा हँसना इधर सुनाई देता है, कभी कभार तो ऐसा भी लगता है जैसे तुम्हें देखा हो- आँख भर भीगती चांदनी में तुम्हें देखा हो. एक कदम के फासले पर. लिखते हुए पन्ना पूरा भर गया है, देखती हूँ तो पाती हूँ कि लिखा चाहे जो भी है, चेहरा तुम्हारा ही उभरकर आता है. बड़े दिनों बाद ख़त लिखा है तुम्हें, सोच रही हूँ गिराऊं या नहीं. 


हमेशा की तरह, तुम्हारे लिए कलम खरीदी है और तुम्हें देने के पहले खुद उससे काफी देर बहुत कुछ लिखा है. कल तुम्हें डाक से भेज दूँगी. तुम आजकल निब वाली पेन से लिखते हो क्या?


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