14 March, 2018

सपने में एक नदी बहती थी

मेरे सपनों में कुछ जगहें हमेशा वही रहती हैं। बहुत सालों तक मुझे एक खंडहर की टूटी हुयी दीवाल का एक हिस्सा सपने में आता रहा। उन दिनों मैं बिलकुल पहचान नहीं पाती थी कि ये कहाँ से उठ के आया है। आज पहली बार उस बारे में सोचते हुए याद आया है कि पटना में नानीघर जाने के रास्ते रेलवे ट्रैक पड़ता था। रेलवे ट्रैक के किनारे किनारे दीवाल बनी हुयी थी। वो ठीक वैसे ही टूटी थी जैसे कि मैं सपने में देखती आयी रही थी, कई साल। हाँ सपने में वो हिस्सा किसी क़िले की सबसे बाहरी चहारदिवारी का हिस्सा होता था।

इन दिनों जो सपने में कई दिनों से देख रही हूँ, लौट लौट कर जाते हुए। वो एक मेट्रो स्टेशन है। मैं हमेशा वही एक मेट्रो स्टेशन देखती हूँ। काफ़ी ऊँचा। कोई तीन मंज़िल टाइप ऊँचा है। और मैं हमेशा की तरह सीढ़ियों से चढ़ती या उतरती हूँ। इसे देख कर कुछ कुछ कश्मीरी गेट के मेट्रो की याद आती है। वहाँ की ऊँची सीढ़ियों की। मैं कब गयी थी किसी से मिलने, कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन पर उतर कर? याद में सब भी कुछ साफ़ कहाँ दिखता है हमेशा। या कि अगर दिखता ही हो, तो हमेशा जस का तस लिख देना भी तो बेइमानी हुआ। वो कितने कम लोग होते हैं, जिनका नाम हम ले सकते हैं। किसी पब्लिक फ़ोरम पर। ईमानदारी से। फिर ऐसे नाम लेने के बाद लोग एक छोटे से इन्सिडेंट से कितना ही समझ पाएगा कोई। हर नाम, हर रिश्ता अपनेआप में एक लम्बी कहानी होता है। छोटे क़िस्से वाले लोग कहाँ हैं मेरी ज़िंदगी में।

इस मेट्रो स्टेशन के पास नानी की बहन का घर होता है। स्टेशन से कुछ डेढ़ दो किलोमीटर दूर। हमेशा। मैं जब भी इस मेट्रो स्टेशन पर होती हूँ, मेरे प्लैंज़ में एक बार वहाँ जाना ज़रूर होता है।

आज रात सपने में में इस मेट्रो स्टेशन से उतर कर तुम्हारे बचपन के घर चली गयी। शहर जाने कौन सा था और मुझे तुम्हारा घर जाने कैसे पता था। और मैं ऐसे गयी जैसे हम बचपन के दोस्त हों और तुम्हारे घर वाले भी जानते हों मुझे अच्छे से। तुम घर के बरांडे में बैठ कर कॉमिक्स पढ़ रहे थे। हम भी कोई कॉमिक्स ले कर तुमसे पीठ टिकाए बैठ गए और पढ़ने लगे। आधा कॉमिक्स पहुँचते हम दोनों का मन नहीं लग रहा था तो सोचे कि घूमने चलते हैं।

हम घूमने के लिए जहाँ आते हैं वहाँ एक नदी है और मौसम ठंढा है। नदी में स्टीमर चल रहे हैं। जैसे स्विट्ज़रलैंड में चलते थे, उतने फ़ैन्सी। हम हैं भी विदेश में कहीं। मैं स्टीमर जहाँ किनारे लगता है वहाँ एक प्लाट्फ़ोर्म बना है। तुम कहते हो तैरते हैं पानी में। मैं कहती हूँ, पानी ठंढा है और मेरे पास एक्स्ट्रा कपड़े नहीं हैं। तभी प्लैट्फ़ॉर्म शिफ़्ट होता है और मैं सीधे पानी में गिरती हूँ। पानी ज़्यादा गहरा नहीं है। तुम भी मेरे पीछे जाने बिना कुछ सोचे समझे कूद पड़ते हो। फिर तुम तैरते हुए नदी के दूसरे किनारे की ओर बढ़ने लगते हो। मुझे तैरना ठीक से नहीं आता है पर मैं ठीक तुम्हारे पीछे वैसे ही तैरती चली जाती हूँ और हम दूसरे किनारे पहुँच जाते हैं। ये पहली बार है कि मैंने तैरते हुए इतनी लम्बी दूरी तय की है। हम पानी से निकलते हैं और सीढ़ियों पर खड़े होते हैं। इतना अच्छा लग रहा है जैसे लम्बी दौड़ के बाद लगता है। पानी साफ़ है। थोड़ा आगे सीढ़ियाँ बनी हुयी हैं और दूसरी ओर पहाड़ हैं। मैं कहती हूँ, आज मुझे तुम्हारे कपड़े पहनने पड़ेंगे। थोड़ी देर घूम भटक कर वापस जाने का सोचते हैं। उधर रेस्ट्रांट्स की क़तार लगी हुयी है नदी किनारे। हम उनके पीछे नदी की ओर पहुँचते हैं तो देखते हैं कि उनकी नालियों से नदी का पानी एकदम ही गंदा हो गया है। कोलतार और तेल जैसा काला। वहाँ से पानी में घुसने का सोच भी नहीं सकते। हम फिर तलाशते हुए नदी के ऊपर की ओर बढ़ते हैं जहाँ पानी एकदम ही साफ़ है। तुम होते हो तो मुझे पानी में डर एकदम नहीं लगता। हम हँसते हैं। रेस करते हैं। और नदी के दूसरे किनारे पहुँच जाते हैं। तुम्हारी सफ़ेद शर्ट है उसका एक बटन खुला हुआ है। मैं अपनी हथेली तुम्हारे सीने पर रखती हूँ। पानी का भीगापन महसूस होता है।

हम किसी डबल बेड पर पड़े हुए एक स्टीरियो से गाने सुन रहे हैं। एक किनारे मैं हूँ, लम्बे बाल खुले हुए हैं और बेड से नीचे झूल रहे हैं।एक तरफ़ तुम दीवार पर टाँग चढ़ाए सोए हुए हो। घर में गेस्ट आए हैं। तुम्हारी दीदी या कोई किचन से चिल्ला के पूछ रही है मेरे घर के नाम से मुझे बुलाते हुए...ये मेरा पटना का घर है...और स्टीरियो प्लेयर वही है जो मैंने कॉलेज के दिनों में ख़ूब सुना था। कूलर पर रख के, कमरे में अँधेरा कर के, खुले बाल कूलर की ओर किए, उन्हें सुखाते हुए। तुम मेरे इस याद में कैसे हो सकते हो। इतनी बेपरवाही से।

***
सपने में चेहरे बदलते रहे हैं, सो याद नहीं कितने लोगों को देखा। पर जगहें याद हैं और पानी की ठंढी छुअन। फिर मेरे पीछे तुम्हारा पानी में कूदना भी। सुकून का सपना था। जैसे आश्वासन हो, कि ज़िंदगी में ना सही, सपने में लोग हैं कितने ख़ूबसूरत।

तेज़ बुखार में तीन दिन से नहाए नहीं हैं, और सपना में नदी में तैर रहे हैं! 

07 March, 2018

अलविदा के गीत

कुछ फ़िल्में हमें बहुत बुरी तरह अफ़ेक्ट करती हैं। हम नहीं जानते कौन सा raw nerve ending touch हो जाता है। कुछ एकदम कच्चा, ताज़ा, दुखता हुआ ज़ख़्म होता है। रूह में गहरे कहीं। हम उन दुखों के लिए रो देते हैं जो हमारे अपने नहीं हैं। रूपहले परदे पर की मासूमियत कैसा कच्चा ख़्वाब तोड़ती है। कौन से दुःख की शिनाख्त कराती है? क्या कुछ दुःख यूनिवर्सल होते हैं? जैसे बचपने की मृत्यु।

हम कितनी चीज़ें फ़ॉर ग्रंटेड लेते हैं। आज़ादी। प्रेम। दोस्ती।
किसी को प्रेम करने का अधिकार।

फ़िल्म सिम्फ़नी फ़ॉर ऐना का एक सीन भुलाए नहीं भूलता है मुझे...स्कूल के बच्चे हैं, कुछ चौदह साल के आसपास की उम्र के...उनके साथ ही पढ़ने वाले एक लीडर की गोली मार के हत्या कर दी गयी है। बच्चे उसके कॉफ़िन को हाथों में ले कर चल रहे हैं। यह दृश्य श्वेत श्याम में फ़िल्माया गया है। सब बच्चों की आँखों में आँसू हैं। उन्होंने आँखें झुका रखी हैं। वे रो रहे हैं। लेकिन जैसे जैसे क़ाफ़िला उनके पास आता है, वे हाथ उठा कर V का सिम्बल बना रहे हैं। विक्टरी का। जीत का। अपने साथी को विदा कहते हुए भी वे कहते हैं कि हम जीतेंगे। Ever onward, to victory! ऐना इस सीन को नैरेट कर रही होती है। वो कहती है कि उस दिन के बाद हम सब बदल गए। हम बड़े हो गए।

मैं इस फ़िल्म को देखने के बाद देर तक रोती रही थी। चौदह पंद्रह साल के बच्चे...उनके हिसाब के क्रांति के उनके आदर्श। चे ग्वारा के नारे लगाते। लड़ते एक बेहतर दुनिया के लिए। जिस उम्र में उन्हें ठीक से दुनिया समझ भी नहीं आती, उस उम्र में उन्हें अरेस्ट कर लिया जाता है और फिर वे 'गुम' हो जाते हैं। फ़िल्म में कहती है इसा, तुम 'अरेस्ट' कर ली गयी, क्यूँकि उन दिनों हमारे पास 'disappear' शब्द नहीं था। बच्चे जो ग़ायब कर दिए गए। मार दिए गए। लम्बे समय तक टॉर्चर किए गए। इनसे सत्ता को कितना ख़तरा हो सकता था।

फ़िल्म के ट्रेलर में एक गीत होता है जो मैं पहचान नहीं पाती हूँ। youtube पर एक कमेंट में सवाल पूछा है जिसका कल जवाब आया है। मैं देर तक उसी गाने को सुनती रही हूँ। वो एक इतालवी युद्ध गीत है, एल पासो देल एबरो एक लोकगीत...जो कई सालों से गाया जाता रहा है। युद्ध चिरंतर हैं।

कल रात मैं देर तक अर्जेंटीना के इस स्टेट टेररिज़म के बारे में पढ़ती रही। इसे डर्टी वार कहा गया है। गंदा युद्ध। इसमें विरोधी राजनीतिक ख़याल रखने वालों लोगों को, जिनमें बच्चे, छात्र, औरतें थीं, मारा गया, अपहृत किया गया और ग़ायब कर दिया गया। इस जीनोसाइड में लगभग तीस हज़ार लोग मारे गए। औस्वितज से गुज़रना आपको ज़िंदगी भर के लिए बदल देता है। कुछ ऐसे कि उस समय भी मालूम नहीं होता है। किसी भी क़िस्म की जीनोसाइड के साथ एक मृत्युगंध चली आती है। उँगलियों में, हथेलियों में, बर्फ़ पड़ते सीने में और मैं एक मानवता के बेहद स्याह पन्ने तक पहुँच जाती हूँ। पढ़ते हुए जानती हूँ कि जो बच्चे ग़ायब कर दिए गए, उन्हें याद रखे रखने के लिए की गयी कोशिशें हैं। उनकी माएँ टाउन स्क्वेयर जाती हैं, अब भी, हर बृहस्पतिवार और अपने ग़ायब किए गए बच्चों के बारे में जानकारी माँगती हैं। अर्जेंटीना के इस ग्रूप का नाम Mothers of the Plaza de Mayo है। 

अलविदा। कैसा दुखता शब्द है। फ़िल्म के आख़िरी फ़्रेम में कुछ विडीओ रेकॉर्डिंज़ हैं जो उस समय की गयी थीं जब Ana, Lito और Isa एक समंदर किनारे गए हैं और ख़ुश हैं। प्रेम में हैं। मुझे अलविदा के कुछ लम्हे याद आते हैं।

आख़िरी बात कहता है वो मुझे, 'Au revoir' कहते हैं फ़्रेंच में। इसका मतलब होता है, फिर मिलेंगे। मैं नहीं जानती मैं उसे कब मिलूँगी फिर। दुनिया बहुत बड़ी है और तन्हाई इतनी कि दुनिया भर में बिखर जाए और पूरी ना पड़े। हम फिर कब मिलेंगे?

दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर उसे आख़िरी बार देखा था। ट्रेन के मुड़ जाने तक। उस दिन को बारह साल हुए। मैंने उसकी एक तस्वीर भी नहीं देखी है। वो कहता है मुझसे उम्र भर नहीं मिलेगा। मैं नहीं जानती ज़िंदगी कितनी लम्बी है। मैं नहीं चाहती मेरे मर जाने के बाद उसे इस बात का अफ़सोस हो कि मुझे एक बार मिल लेना चाहिए था।

सुनते हुए मैं Bella Ciao तक पहुँचती हूँ। जंग के समय एक व्यक्ति अपनी ख़ूबसूरत महबूबा को अलविदा कह रहा है, यह कहते हुए कि अगर मैं मर गया तो मुझे उस पहाड़ी पर दफ़नाना और वहाँ पर एक ख़ूबसूरत फूल उगेगा मेरी क़ब्र पर तो सब कहेंगे कि कितना ख़ूबसूरत फूल है।

सुनते हुए मैं hasta siempre तक पहुँचती हूँ। चे ग्वेरा के फ़िदेल को लिखे आख़िरी ख़त जिसमें वो कहते हैं 'Until victory, always' के जवाब में गाया गाया ये गीत अपने कमांडर को अलविदा कहता है 'until forever'. चे की मृत्यु के बाद क्यूबा की क्रांति में ये गीत बहुत महत्वपूर्ण रहा। इसे सुनते हुए अपना इंक़लाब ज़िंदाबाद याद आता है।

चीज़ों के समझने का हमारा अलगोरिदम लॉजिकल नहीं होता। यादों के साथ कहाँ कौन सा रेशा जुड़ेगा हम नहीं जानते। मेरी परवरिश एक नोर्मल मिडल क्लास परिवार में हुयी। हमारे परिवार में राजनीति के लिए जगह नहीं रही। पापा ने अपने समय में जेपी आंदोलन में हिस्सा लिया, चाचा शाखा में जाते हैं मगर ये बात अब समझ में आयी। बचपन में बस ये याद है कि चाची उनके हाफ़ पैंट पहनने पर ग़ुस्सा करती थी। मैंने कभी कार्ल मार्क्स की किताबें नहीं पढ़ीं। हाँ, मोटरसाइकल डाइअरीज़ ज़रूर पढ़ी है...लेकिन उसमें चे सिर्फ़ ख़ुद को तलाशते और समझते एक घुमक्कड़, सहृदय, युवा डॉक्टर की तरह दिखे हैं मुझे।

युद्ध से मेरी पहली मुलाक़ात महाभारत में हुयी। दूसरी, पानीपत के युद्ध में और फिर गॉन विथ द विंड पढ़ते हुए। इतिहास हमें इतने बोरिंग तरीक़े से पढ़ाया जाता है कि किसी को अच्छा नहीं लगता। अगर पढ़ाई का तरीक़ा बदल दिया जाए तो इतिहास झूठी कहानियों से बहुत ज़्यादा रोचक लगेगा। इतनी बड़ी दुनिया में इतनी सारी चीज़ें मुझे नहीं समझ आती हैं। मैं थोड़ा थोड़ा सब कुछ समझने की कोशिश करती हूँ। मेरे दिल में प्रेम के बाद की बची हुयी जगह में एक बहुत बड़ा ख़ाली मैदान है।  वहाँ अलग अलग बंजारा ख़याल डेरा डालते हैं। इन दिनों कला की प्रदर्शनी उठ गयी है और टेक्नॉलजी और युद्ध अपने खेमे डाल रहे हैं।
Screenshot from Symphony for Ana

मैं तुम्हारी अधूरी चिट्ठियाँ जला देना चाहती हूँ।
मैं तुम्हारी आवाज़ मिस करती हूँ।
और तुम्हें।

अलविदा के शब्दों को लिख रखा है। आख़िरी बार कहूँगी तुमसे। कितनी भाषाओं में गुनगुनाते हुए...अलविदा।

Hasta Siempre
Bella Ciao
Au revoir

*ये लेख तथ्यात्मक रूप से ग़लत हो सकता है। यहाँ इतिहास की घटनाएँ मेरी याद्दाश्त में घुलमिल गयी हैं, और फिर विकिपीडिया पर बहुत ज़्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता। 

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