इतनी कोमलता कैसे है इस दुनिया में? कितनी ख़तरनाक हो सकती है कोमलता?
इस कोमलता से जान जा सकती है क्या? इतनी कठोर दुनिया में कैसे जी सकता है कोई इतना कोमल हो कर।
ये सारे आर्टिस्ट्स ऐसे क्यूँ होते हैं? पिकासो की तस्वीर देखते हुए उसकी आँखों का वो हल्का का पनियल होना क्यूँ दिखता है किसी भागते शहर की भागती मेट्रो में ठहरे हुए दो लोगों को एक दूसरे की आँखों में। इतने क़रीब से देखने पर आँखें ज़रा ज़रा लहकती हैं। मैं भूल जाती हूँ उसे देख कर पलकें झपकाना। ऊँगली से खींच कर काजल लगाती हूँ ज़रा सा ही, कि बचा रहे थोड़ा सा प्यार हमारे बीच।
दिल्ली में इस बार हिमांशु वाजपेयी की दास्तानगोई थी। उससे मिल कर अंकित की फिर याद आयी। आम की दास्तान सुनना असल में तकलीफ़देह था। अंकित की इतनी याद आयी। इतनी। परसों एक दोस्त से मिली तो उस वाकये का ज़िक्र करते हुए कह उठी, मैं अंकित को ज़िंदगी भर नहीं भूल सकती। उसका होना जादू था। एक क़िस्से का जादू, किसी फ़रिश्ते सा। कि उसमें कुछ था जो इस दुनिया का नहीं था। कि वो जाने किस दुनिया का लड़का था। फिर इतनी कम उम्र में कौन लौटता है इस तरह अपने ईश्वर के पास।
मुझे बहुत प्यारे लोगों से डर लगता है। ये डर बहुत दिनों तक अबूझ था, इन दिनों थोड़ा सा मुझे समझ में आ रहा है। ये जो फूल सा हाथ रखना होता है। सिर्फ़ अंकित ने रखा था…जब हम आख़िरी बार मिले थे। मुझे उस दिन भी उसका हाथ बिलकुल रोशनी और दुआओं का बना हुआ लगा था। मगर फिर अंकित नहीं रहा बस उसके तितलियों से हाथ रह गए हैं मेरे काँधे पर। उसके जीते जी कितना कुछ था वो। मैंने वो मैं क्यूँ नहीं लिखी कभी उसको। उसकी ईमेल id उसकी हैंडराइटिंग में मेरी नोटबुक पर है। कि कहा नहीं कभी उसके जीते जी।
***
तस्वीर खींचते हुए वो मुस्कुराया और फिर तस्वीर देखी मोबाइल पर…हमारे बीच ज़रा सी दूरी थी। उसने काँधे पर हाथ रखा और मुझे ज़रा सा अपने क़रीब खींच लिया। उसके हाथ इतने हल्के कैसे थे?
उसे विदा कहने के लिए मैं कार से उतरी। ऐसे कैसे गले लगाते हैं किसी को जैसे वो फ़्रैजल हो। एकदम ही नाज़ुक, कि छूने से टूट जाएगा। जैसे कोई तितली आ बैठी हो हथेली पर अचानक। precious। कितना क़ीमती है वो मेरे लिए। कितना प्यार उमड़ता है कभी कभी। जल्दी आना, उसने कहा। ज़्यादा मिस मत करना, मैंने कहना चाहा, पर कहा नहीं।
वे लड़के होते हैं ना, जिनसे मिलने ख़ाली हाथ जाने का मन नहीं करता। हम थोड़े अपॉलॉजेटिक से हो जाते हैं। सॉरी, आज मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं लायी। कहानी सुनोगे? नयी सुनाएँगे, जो किसी को नहीं सुनायी है अभी। वो लड़के जिन से मिल कर जाने मन में कौन सी मौसी, दीदी, फुआ की याद आ जाती है जो हमारे लिए हमेशा कुछ न कुछ लेकर ही आती थी बाहर से। जिनके आने का इंतज़ार हमारे भीतर बसता था। जो मेरी ज़िंदगी में कभी नहीं रहीं, लेकिन जिनकी कमी मुझे हमेशा खली।
हम जब शायद कुछ और उम्र दराज़ हो जाएँगे तो तुमसे पूछ सकेंगे और तुम्हारा हाथ पकड़ कर बैठ सकेंगे किसी कॉफ़ी शॉप में, बिना कोई एक्स्प्लनेशन दिए बग़ैर। तुम्हारे सामने बैठ कर नर्वस हो कर लगातार कुछ न कुछ कहे जाने की बेबसी नहीं होगी। हम चुपचाप बैठ कर देख सकेंगे तुमको, आँख झुकाए बग़ैर। बिना कुछ कहे। किसी अकोर्डिंयन की धुन को रहने देंगे हमारे बीच, जैसे वक़्त का एक वक्फ़ा हमेशा के लिए याद रह जाएगा। हमेशा। जिसपर कि तुम यक़ीन नहीं करते हो।
इस दुनिया में मेरे जैसा होना। इस दुनिया का इस दुनिया जैसा होना।
बदन दुखता रहे, हज़ार हस्पताल की दौड़ भाग के बाद, कितने इंजेक्शंज़ और जाने कितने टेस्ट्स की थकान के बाद।
लव यू।
इस कोमलता से जान जा सकती है क्या? इतनी कठोर दुनिया में कैसे जी सकता है कोई इतना कोमल हो कर।
स्पर्श को कैसे लिखते हैं कि वो पढ़ते हुए महसूस हो? इतने साल हो गए, अब भी कुछ बहुत गहरे महसूस होता है तो लिखना बंद हो जाता है। कि कैसे, इतनी कोमलता कैसे है इस दुनिया में? कैसे बचे रह गए हो तुम, इतना कोमल होते हुए भी।
ये सारे आर्टिस्ट्स ऐसे क्यूँ होते हैं? पिकासो की तस्वीर देखते हुए उसकी आँखों का वो हल्का का पनियल होना क्यूँ दिखता है किसी भागते शहर की भागती मेट्रो में ठहरे हुए दो लोगों को एक दूसरे की आँखों में। इतने क़रीब से देखने पर आँखें ज़रा ज़रा लहकती हैं। मैं भूल जाती हूँ उसे देख कर पलकें झपकाना। ऊँगली से खींच कर काजल लगाती हूँ ज़रा सा ही, कि बचा रहे थोड़ा सा प्यार हमारे बीच।
दिल्ली में इस बार हिमांशु वाजपेयी की दास्तानगोई थी। उससे मिल कर अंकित की फिर याद आयी। आम की दास्तान सुनना असल में तकलीफ़देह था। अंकित की इतनी याद आयी। इतनी। परसों एक दोस्त से मिली तो उस वाकये का ज़िक्र करते हुए कह उठी, मैं अंकित को ज़िंदगी भर नहीं भूल सकती। उसका होना जादू था। एक क़िस्से का जादू, किसी फ़रिश्ते सा। कि उसमें कुछ था जो इस दुनिया का नहीं था। कि वो जाने किस दुनिया का लड़का था। फिर इतनी कम उम्र में कौन लौटता है इस तरह अपने ईश्वर के पास।
मुझे बहुत प्यारे लोगों से डर लगता है। ये डर बहुत दिनों तक अबूझ था, इन दिनों थोड़ा सा मुझे समझ में आ रहा है। ये जो फूल सा हाथ रखना होता है। सिर्फ़ अंकित ने रखा था…जब हम आख़िरी बार मिले थे। मुझे उस दिन भी उसका हाथ बिलकुल रोशनी और दुआओं का बना हुआ लगा था। मगर फिर अंकित नहीं रहा बस उसके तितलियों से हाथ रह गए हैं मेरे काँधे पर। उसके जीते जी कितना कुछ था वो। मैंने वो मैं क्यूँ नहीं लिखी कभी उसको। उसकी ईमेल id उसकी हैंडराइटिंग में मेरी नोटबुक पर है। कि कहा नहीं कभी उसके जीते जी।
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तस्वीर खींचते हुए वो मुस्कुराया और फिर तस्वीर देखी मोबाइल पर…हमारे बीच ज़रा सी दूरी थी। उसने काँधे पर हाथ रखा और मुझे ज़रा सा अपने क़रीब खींच लिया। उसके हाथ इतने हल्के कैसे थे?
उसे विदा कहने के लिए मैं कार से उतरी। ऐसे कैसे गले लगाते हैं किसी को जैसे वो फ़्रैजल हो। एकदम ही नाज़ुक, कि छूने से टूट जाएगा। जैसे कोई तितली आ बैठी हो हथेली पर अचानक। precious। कितना क़ीमती है वो मेरे लिए। कितना प्यार उमड़ता है कभी कभी। जल्दी आना, उसने कहा। ज़्यादा मिस मत करना, मैंने कहना चाहा, पर कहा नहीं।
वे लड़के होते हैं ना, जिनसे मिलने ख़ाली हाथ जाने का मन नहीं करता। हम थोड़े अपॉलॉजेटिक से हो जाते हैं। सॉरी, आज मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं लायी। कहानी सुनोगे? नयी सुनाएँगे, जो किसी को नहीं सुनायी है अभी। वो लड़के जिन से मिल कर जाने मन में कौन सी मौसी, दीदी, फुआ की याद आ जाती है जो हमारे लिए हमेशा कुछ न कुछ लेकर ही आती थी बाहर से। जिनके आने का इंतज़ार हमारे भीतर बसता था। जो मेरी ज़िंदगी में कभी नहीं रहीं, लेकिन जिनकी कमी मुझे हमेशा खली।
हम जब शायद कुछ और उम्र दराज़ हो जाएँगे तो तुमसे पूछ सकेंगे और तुम्हारा हाथ पकड़ कर बैठ सकेंगे किसी कॉफ़ी शॉप में, बिना कोई एक्स्प्लनेशन दिए बग़ैर। तुम्हारे सामने बैठ कर नर्वस हो कर लगातार कुछ न कुछ कहे जाने की बेबसी नहीं होगी। हम चुपचाप बैठ कर देख सकेंगे तुमको, आँख झुकाए बग़ैर। बिना कुछ कहे। किसी अकोर्डिंयन की धुन को रहने देंगे हमारे बीच, जैसे वक़्त का एक वक्फ़ा हमेशा के लिए याद रह जाएगा। हमेशा। जिसपर कि तुम यक़ीन नहीं करते हो।
कुछ और समय बाद बुला सकूँगी तुम्हें अपने घर खाने पर। सिर्फ़ दाल भात चोखा। दिखा सकूँ तुम्हें दुनिया भर से लायी हुयी छोटी छोटी चीज़ें…कि ज़िद करके दे सकूँ तुम्हें चिट्ठियाँ लिखने का सुंदर काग़ज़, कि लिखो मत। रखना लेकिन पास में। कभी किसी को चिट्ठी लिखने का मन किया और काग़ज़ नहीं मिला सुंदर तो क्या ख़राब काग़ज़ पर लिख के दोगे।
एक तुम्हारी आउट औफ़ फ़ोकस फ़ोटो खींच लूँ, अपनी ख़ुशी के लिए। अपने धुँधले किसी किरदार को तुम्हारी शक्ल दूँगी। कि तुम ज़रा से और ख़ूबसूरत होते तो मुश्किल होती। अच्छा है तुम्हारा ऐसा होना, कि अच्छा है मेरा भी इन दिनों कुछ कम ख़ूबसूरत होना। हम अपने से बाहर की दुनिया देख पाते हैं। तुम्हें देखते ही रहने का मन करता रहता तो तुम्हें शूट कैसे करती।
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वो कितना मीठा और हल्का सा है। हवा मिठाई जैसा। उसके साथ होना कितना आसान है। जैसे पचास पैसे में ख़रीद कर खा लेने वाली हवा मिठाई। जिसके लिए ज़्यादा सोचना नहीं पड़ता। किसी की इजाज़त नहीं लेनी पड़ती। बचपन की एक छोटी सी ख़ुशी…उसके साथ ज़रा सा होना। सड़क पार करते हुए अचानक से हाथ पकड़ लेना। उससे मिलने के पहले आते हुए रास्ते में छोटी सी मुस्कान मुसकियाना।
कोमल होना। प्यारा होना। अच्छा होना।
इस बेरहम दुनिया में ज़रा सा होना किसी की पनाह। किसी का शहर, न्यू यॉर्क। किसी की पसंद की कविता की किताब के पहले पन्ने पर लेखक का औटोग्राफ।
इस दुनिया में मेरे जैसा होना। इस दुनिया का इस दुनिया जैसा होना।
बदन दुखता रहे, हज़ार हस्पताल की दौड़ भाग के बाद, कितने इंजेक्शंज़ और जाने कितने टेस्ट्स की थकान के बाद।
हर कुछ के बाद भी। किसी शाम कह सकना ज़िंदगी से। शुक्रिया। फिर भी। काइंड होने के लिए। कि मुहब्बत मुझे जीने का हौसला देती है और लिखना मुझे जीने के लायक़ मुहब्बत।
लव यू।