लिखने का सिलसिला स्कूल और कॉलेज के दिनों में जारी रहा. बहुत से अवार्ड्स वगैरह भी जीते. स्लोगन राइटिंग, डिबेट, एक्स्टेम्पोर...और इस सब के अलावा बतकही तो खैर चलती ही थी. उन दिनों कविता लिखते थे. जिंदगी का सबसे बड़ा शौक़ था कादम्बिनी के नए लेखक में छप जाना. इस हेतु लेकिन न तो कोई कविता भेजी कभी, न कभी तबियत से सोचा कि कैसी कविता हो जो यहाँ छप जाए. पढ़ने-सुनने वाले लोग बहुत ही दुर्लभ थे. दोस्तों को कुर्सी से बाँध कर कविता सुनाने लायक दिन भी आये. उन दिनों हम बहुत ही रद्दी लिखा करते थे. माँ अलग गुस्सा होती थी कि ये सब कॉपी के पीछे क्या सब कचरा लिखे रहता है तुम्हारा. उन दिनों भले घरों की लड़कियों की कॉपी के आखिरी पन्ने पर इश्क मुहब्बत शायरी जैसी ठंढी आहें भरना अच्छी बात तो थी नहीं. देवघर ने हमारी मासूमियत को बरकरार रखा तो पटना ने हमें आज़ाद ख्याल होना सिखाया. मेरी जिंदगी में जिन लोगों का सबसे ज्यादा असर पड़ता है, उसमें सबसे ऊपर हैं पटना वीमेंस कोलेज के कम्यूनिकेटिव इंग्लिश विद मीडिया स्टडीज(CEMS) के हमारे प्रोफेसर फ्रैंक कृष्णर. सर ने हमारी पूरी क्लास को सिखाया कि सोचते हुए बंधन नहीं बांधे जाने चाहिए...कि दुनिया में कुछ भी गलत सही नहीं होता...हमें चीज़ों के प्रति अपनी राय सारे पक्षों को सुन कर बनानी चाहिए. दूसरी चीज़ जो मैंने सर से सीखी...वो था गलतियां करने का साहस. टूटे फूटे होने का साहस. कि जिंदगी बचा कर, सहेज कर, सम्हाल कर रख ली जाने वाली चीज़ नहीं है...खुद को पूरी तरह जीने का मौका देना चाहिए.

तीन रोज़ इश्क - गुम होती कहानियां. मेरा पहला कहानी संग्रह है. इसमें कुल ४६ छोटी कहानियां हैं. आखिरी लम्बी कहानी, तीन रोज़ इश्क के सिवा सारी ब्लोग्स पर थीं. मगर अब आपको वही कहानियां पढ़ने के लिए किताब खरीदनी पड़ेगी. मुझे पहले इस बात का बहुत अपराधबोध था और इसलिए किताब के बारे में ब्लॉग पर कुछ खास लिखा नहीं था. लेकिन जिस दिन पहली बार पेंग्विन के ऑफिस में किताब हाथ में ली और अपना पहला ऑटोग्राफ दिया...समझ में आया कि ब्लॉग दूसरी चीज़ है...किताब में छपने की बात और होती है. वही कहानियां जिन्दा महसूस होती हैं. सांस लेती हुयी. इस डर से परे कि अब इनको कुछ हो जाएगा. कुछ कुछ वैसे ही जैसे कि अब मुझे मरने से डर नहीं लगता. कि अब मैं गुम नहीं होउंगी. अब मेरा वजूद है. कागज़ के पन्नों में सकेरा हुआ.
इस शनिवार, 9 मई को मेरी किताब का लोकार्पण है. 4-7 बजे शाम को, दिल्ली के इन्डियन वुमेन्स प्रेस कोर(IWPC), 5 विंडसर प्लेस, अशोका रोड में. मेरे साथ होंगे निधीश त्यागी, अनु सिंह चौधरी और मनीषा पांडे. इन तीनों लोगों को ब्लॉग के मार्फ़त जाना है. फिर मुलाकातें अपना रंग लेती गयी हैं. अनु दी अपने बिहार से हैं और IIMC की सीनियर भी. जब बहुत उलझ जाती हूँ तो उनको फोनियाती हूँ...किसी परशानी के हल के लिए नहीं, उस परेशानी से लड़ने के ज़ज्बे और धैर्य के लिए. 'नीला स्कार्फ' और 'मम्मा की डायरी', दोनों किताबों को खूब खूब प्यार मिला है लोगों का.
निधीश जब आस्तीन के अजगर के उपनाम से लिखते थे तब ही उनसे पहली बार चैट हुयी थी. पिछले साल ३१ दिसंबर की इक भागती शाम पहली बार मिली...उनकी 'तमन्ना तुम अब कहाँ हो' हाल फिलहाल में पढ़ी सारी किताबों में सबसे पसंदीदा किताब है. निड से बात करना लम्हों में जिंदगी की खूबसूरती को कैप्चर करना है.
मनीषा से मिली नहीं हूँ. गाहे बगाहे पढ़ती रही हूँ उसे. किताब के सिलसिले में ही पहली बार फोन पर बात हुयी. उसकी आवाज़ में कमाल का अपनापन और मिठास है. दो अनुवाद, 'डॉल्स हाउस' और 'स्त्री के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है' खाते में दर्ज है. इन्हें पढूंगी जरूर. तीन रोज़ इश्क के जरिये इक और खूबसूरत शख्स को करीब से देखने और जानने का मौका मिलेगा.
ब्लॉग से किताब के इस सफ़र में आप लगातार मेरे साथ रहे हैं. उम्मीद है ये प्यार किताब को भी मिलेगा. अगर इस शनिवार 9th May आप फ्री हैं तो इवेंट पर आइये. मुझे बहुत अच्छा लगेगा. एंट्री फ्री है. आप अपने साथ अपने दोस्तों को भी ला सकते हैं. इवेंट के प्रचार के लिए, फेसबुक इवेंट पेज है. इसे अपना ही कार्यक्रम समझिये. फ्रेंड लिस्ट में लोगों को इनवाईट भेजिए...कुछ को साथ लिए आइये. तीन रोज़ इश्क़ आप इवेंट पर खरीद सकते हैं. साथ में मेरा ऑटोग्राफ भी मिल जायेगा :) फिरोजी सियाही से चमकते कुछ ऑटोग्राफ देने का मेरा भी मन है.
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किताब अब तक बुकस्टोर्स में आ गयी है. इसके अलावा, तीन रोज़ इश्क़ खरीदने के लिए इन लिंक्स को क्लिक कर सकते हैं.