बचपन में नानाजी खूब कहानी सुनाये थे हमको उसी में सुने थे कि ब्रह्मा जी कितना मेहनत से दुनिया बनाये, अकेले उनसे नहीं हो रहा था तो सरस्वाजी जी का हेल्प लेना पड़ा(और हम एक्साम या पोस्ट लिखें के लिए उनका हेल्प मांगते हैं तो क्या गलत करते हैं, हम ठहरे साधारण इंसान). ब्रह्मा जी ने जिस तरह से दुनिया बनाई उसमें बड़े लफड़े जान पड़े मुझे, हर बार कहानी सुनते थे तो एक version बदला हुआ हो जाता था, गोया विन्डोज़ का नया version रहा हो इसी तरह नानाजी भी बहुत सारी थ्योरी सुनाये थे हम लोग को.
स्कूल में आये तो पढ़ा कि प्रभु ने कहा "लेट देयर बी लाईट" और प्रकाश हो गया, इसी प्रकार विश्व की रचना हुयी, वो नाम लेते गए और चीज़ें पैदा होती गई...आज सोचती हूँ की प्रभु ने कहा "ब्लॉगर" और ब्लॉगर बन गया...ऐसा तो नहीं हुआ था?!...फिर लगा की ब्लॉगर जैसी महान और काम्प्लेक्स चीज़ इतनी आसानी से पैदा नहीं हो सकती...तो इसके लिए हमें रिसर्च करना पड़ा...वैसे तो माइथोलोजी में जाइए तो कोई मुश्किल ही नहीं है, क्योंकि वहां सबूत नहीं ढूंढें जाते, विश्वास से काम चल जाता है। तो मैं आराम से कह देती कि एक ब्लॉग्गिंग पुराण भी है जो लुप्त हो गया था...कुछ दिन पहले सुब्रमनियम जी ने एक खुदाई के बारे में बताया था, वहां के पाताल कुएं में गोता लगा कर मैंने ख़ुद से ये पुराण ढूंढ निकाला है(मानवमात्र की भलाई के लिए मैं क्या कुछ करने को तैयार नहीं हूँ). मगर मैं जानती हूँ आप लोग इस बात को ऐसे ही नहीं मांगेंगे...आपको सुबूत चाहिए।
ब्लॉगर के बनने की बात को समझने के लिए हमें इवोलूशन(evolution) की प्रक्रिया का गहन अध्ययन करना पड़ा...हमारी खोज से कुछ महत्वपूर्ण बातें सामने आयीं. ब्लॉगर होना आपके डीएनए में छुपा होता है, इसके लिए जेनेटिक फैक्टर जिम्मेदार होते हैं, बहुत सारी कैटेगरी में से हम ये छाँट के लाये हैं इसको समझने के लिए थोडा मैथ समझाते हैं हम आपको...
- सारे कवि ब्लॉगर हो सकते हैं मगर सारे ब्लॉगर कवि नहीं होते(कुछ तो कवियों के घोर विरोधी भी होते हैं, उनके हिसाब से सारे कवियों को उठा कर हिंद महासागर में फेंक देना चाहिए)
- सारे इंसान ब्लॉगर हो सकते हैं मगर सारे ब्लॉगर इंसान नहीं होते(आप ताऊ की रामप्यारी को ले लीजिये या फिर सैम या बीनू फिरंगी)
- ऐसे ब्लॉगर जो इंसान होते हैं और कवि नहीं होते गधा लेखक होते हैं(रेफर करें समीरलाल जी की पोस्ट)
खैर, मैथ से बायोलोजी पर आते हैं...चूँकि जीव विज्ञान में सब शामिल होते हैं इसलिए इसी सिर्फ़ इंसानों के लिए वाली पोस्ट नहीं मानी जाए...वैसे भी हमारे प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस ने बहुत पहले साबित कर दिया था की पेड़ पौधे संगीत के माहौल में तेजी से बढ़ते हैं, कल को कौन जाने ये साबित हो जाए कि पेड़ पौधे ब्लॉग्गिंग करने से जल्दी बढ़ते हैं तो कोई पेड़ भी अपना ब्लॉग बना लेगा। हम उस परिस्थिति से अभी से निपट लेते हैं...
ब्लॉग्गिंग का जीन जो होता है डीएनए में छुपा होता है...एक ख़ास तरह कि कोडिंग होती है इसकी, इसको अभी तक दुनिया का सबसे बड़ा supercomputer भी अनलाईज नहीं कर पाया है...इसलिए हमने चाचा चौधरी की मदद ली, आप तो जानते ही हैं कि चाचा चौधरी का दिमाग सुपर कंप्यूटर से भी तेज चलता है। हम दोनों ने काफ़ी दिनों तक एक एक करके डीएनए की कतरनें निकाली...एक बात बताना तो भूल ही गई कि हमारे पास इतने ब्लोग्गेर्स के डीएनए आए कहाँ से? तो ये बता दूँ कि जिस तरह आप ब्लॉग पर डाली पोस्ट चोरी होने से नहीं रोक सकते वैसे ही डीएनए चोरी होने से रोकना लगभग नामुमकिन है, और उसपर भी तब जब हमारे गठबंधन को दुनियाभर के मच्छरों का विश्वास मत मिल रखा हो...ये मच्छर दुनिया के कोने कोने से हमें खून के नमूने ला कर देते थे, वक्त के साथ इनमे ऐसे गुण डेवेलोप हो गए थे की सूंघ कर ही पता लगा लेते थे की सामने वाला ब्लॉगर है या नहीं...इन्हें फ़िर किसी नाम पते की जरूरत नहीं पड़ती थी।
ये ब्लोगजीन जो होता है...वक्त और मौके की तलाश में रहता है, आप इसे एक छुपे हुए संक्रमण की तरह समझ सकते हैं(इच्छा तो बहुत है की इसे इसके वास्तविक रूप में समझाउं पर आपको समझाते हुए कहीं मेरे फंडे न बिगड़ जाएँ इसका बहुत जोर से चांस है)। इसके पनपने और अपना लक्षण दिखाने में कुछ परिस्थितियों का अभूतपूर्व योगदान होता है जैसे की अकेलापन, मित्रों का कविता के प्रति उदासीन हो जाना, ऑफिस में स्थिरता का प्राप्त होना, पत्नी या प्रेमिका द्वारा प्रताड़ित होना, सफल कलाकार होना इत्यादि(आप इस लिस्ट में और भी बहुत कुछ जोड़ सकते हैं)। वैसे तो और भी बहुत सी परिस्थितियां होती हैं पर हम उनपर धीरे धीरे बात करेंगे(ताकि कोई सुन न ले)। ऐसी परिस्थितियां मिलते ही ये जीन जोर से अटैक करता है(आप इस जीन की अल्लादीन के जिन्न के साथ तुलना न करें ये आपके ही हित में होगा) और व्यक्ति में ब्लॉगर के लक्षण उभरने लगते हैं।
ये लक्षण हैं हमेशा कंप्यूटर पर बैठने की इच्छा होना, दूसरों के ब्लॉग पढ़ना, ब्लॉग्गिंग के बारे में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करना...ये लगभग २४ घंटे का फेज होता है, अगर इस समय व्यक्ति को ब्लॉग्गिंग के खतरों के बारे में चेता दिया जाए तो वह बच सकता है...वरना कोई उम्मीद नहीं...संक्रमण होने के २४ घंटे के अन्दर व्यक्ति अपना ब्लॉग बना लेता है...और पहली पोस्ट कर देता है।
इस तरह एक आम इंसान ब्लॉगर बन जाता है...इस समस्या से बचना नामुमकिन है, अभी तक इसकी न कोई दवाई है न वैक्सीन और कई लोग तो ये मानने से भी इनकार कर देते हैं कि उन के साथ कोई समस्या है। बाकी लोगो का फर्ज बनता है कि ब्लोग्गरों के प्रति संवेदनशील हों...पर अपनी संवेदनशीलता ह्रदय में ही रखें...यह एक संक्रामक बीमारी है और बहुत तेज़ी से फैलती है.
अगर जल्द ही इसे रोकने का उपाय न किया गया तो ये महामारी की शक्ल अख्तियार कर सकता है। डॉक्टर अनुराग आप कहाँ है?
बिंदास.... लाजवाब..!
ReplyDeleteआप दुरस्त फ़र्माती हैं डॉक्टर साहिबा.
ReplyDeleteलक्षणों के क्या कहने पत्नी पीड़िति,प्रेयसि पीड़ित तो ठीक हम तो डिपार्ट पीड़ित थे सो अपनी भड़ास निकाल कर शमन कर रहे थे कि विभाग कोख़बर लग गई.मौखिक वार्न किया गया.इस साल के सालाना रिपोर्ट बिगड़ने तय,इंक्रीमेंट रुकना,ट्रांसफर तो मामूली बातें हैं. अगर हमारी ब्लागिंग नहीं छूटी तो सर्विस बुक में स्वर्ण अक्षरों से लिख दिया जायेगा.
आपने एडस से ज्यादा खतरनाक ब्लागिंग बीमारी के लक्षण बतायें उपचार भी बतायें हम गरीबों को वर्ना मौत निश्चित है. आखिरी स्टेज है जीने की कोई जुस्तजू तो नही है खास कर बच्चों की जिम्मेदारियां अभी निभानी है.
बाबा राम देव इस बीमारी से बचने का कोई आसन बताते नहीं क्या करें.बहुत मुश्किल में हैं आजकल.
और ब्लागिंग ऐसी बला कि,
छुटती नहीं है काफ़िर ये मुंह की लगी हुई.
आजकल तो जबरदस्ती नमाज़ी बना दिया गया है.
सो मौन रहकर ही इबादत हो रही है.
आपकी व्यंग्य की कारगर रेंज बढ़ती जा रही हैं.
सागर आज़मी का शेर याद आ गया आपको नज़र है मोहतरमा.
शुहरत की फज़ाओं में इतना न उड़ो सागर,
परवाज़ न खो जायें कहीं ऊंची उड़ानो में.
एक बेहतरीन पोस्ट पढाने के लिए शुक्रगुज़ार हूँ.
बयान ज़ारी रहे.
सच कहती हैं आप, तीन साल पहले जब हमें पहले पहल ब्लॉगिंग का चस्का लगा, हमारा यही हाल था- दिन के दस से ज्यादा घंटे कम्प्यूटर के सामने बैठते थे, पोस्ट होने के तीन मिनिट बाद पेज को रिफ्रेश कर-कर देखते थे कि कोई टिप्पणी आई या नहीं!
ReplyDeleteसुबह कॉफे खोल कर सबसे पहले मेल या ब्लॉग चेक करते कि कितनी टिप्पणियां आई है।
खैर, अब जब तीन साल पूरे होने वाले हैं धीरे धीरे इस संक्रमण से थोड़ी थोड़ी मुक्ति मिलने लगी है।
मस्त पोस्ट!!
कुछ सुधार कर दूं..
ReplyDelete1. चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है.. ना की सुपर कंप्यूटर से.. (वैसे उस समय कंप्यूटर ही बहुत था.. अब शायद सुपर कंप्यूटर से भी तेज चलने लगा हो.. :))
2. सारे कवि ब्लौगर को हिंद महासागर में ही नहीं, कुछ के लिये बंगाल की ख्ड़ी या अरब सागर का भी ऑप्सन खुला रखो.. कवि ब्लौगर अपने हिसाब से अपने डूबने की जगह तलासेंगे.. (वैसे मेरे जैसे पार्ट टाईम कवि ब्लौगर के लिये तो चुल्लू भर पानी ही बहुत है.:D.)
3. महामारी के समय के लिये ही तो तुम्हें डा. बनाया गया है.. बाकी डा.ब्लौगर(जैसे अनुराग जी, प्रवीण चोपड़ा जी, अमर जी, इत्यादी) तो ब्लौग लिखने में बीजी हैं..
जबर्दस्त सच्चाई लिखी है आपने लेकिन थैंक्स गॉड कि मेरा नाम नहीं लिया वरना बैठे बिठाए हिंदी हो जाती क्योंकि मुझे भी लिखना नहीं आता बस यूं आप सभी को टार्चर करता हूं
ReplyDeleteha ha doc poojaji:),sahi lakshan aurkaran bhi bataye blogger bimari ke,thesis bahut badhiya mod pe aakejami hai:),waah,lajawab post:),hastehaste lotpot huye hai hum:)
ReplyDeleteअब कौन जाये गालिब ब्लागिंग की गलियाँ छोड़ के ....:) यह नशा सच में बहुत बुरा है ..जिस को लागे वही जाने :) डॉ पूजा के बताये लक्षण सही है ..बहुत बढ़िया लिखा है आपने...
ReplyDeleteभई कमाल का सोच लेतीं हैं आप तो। बड़ा ही रोचक लगा आपका आलेख।
ReplyDeleteman kar raha hai ki aapkaa is wakt pujia jee na kah kar gujia jee kahun, kya beemaaree pehchaanee hai aur wo bhee mujh jaise beemaar kee nabj bina dekhe. apne clinic mein aise shodh jaaree rakhein. holi ki agrim badhai.
ReplyDeleteबड़ा ही रोचक लगा.....
ReplyDeleteवाह, इस रिसर्च पर तो आपको डॉक्टरेट मिल सकती है. :)
ReplyDeleteसुन्दर थीसिस बन पड़ी है. आभार.
ReplyDeleteसही कहा। मुझे तो लगता रहा कि मैं मुझ पर लिखा वर्णन पढ रहा हूं।
ReplyDeleteसही है ... पढना अच्छा लगा।
ReplyDeleteसबने इतना कुछ कह दिया है की ज्यादा कुछ बाकी नहीं है ...... औपचारिकता जो कि ज्यादातर ब्लागर करते हैं वही मैं भी करूं क्या ? मैं तो बस पढता गया आखिरी तक.....
ReplyDeletemaamla waakayi bahut gambheer hai pooja ji....
ReplyDeleteमेरे अंदाज में तो यह वैसा ही है जैसे भक्तों से भगवान बनते हैं वैसे ही ब्लॉग लेखकों से ब्लॉगर बना है।
ReplyDeleteहां फिलहाल इसकी पूजा लिख लिखकर की जा रही है। कुछ भक्त इसकी घण्टी भी बजा देते हैं। और आरती वो तो सब एक दूसरे की उतार ही रहे हैं। :)
हा! हा! डाक्टर अनुराग क्या इलाज करेंगे। वे खुद ही घोर संक्रमित हैं ब्लॉगेरिया से! :)
ReplyDelete्तैनू लग्या ब्लोगिंग द रोग,
ReplyDeleteबुरा न मानो होली है।
ज्ञान जी, झूठ मत बोलिए कि अनुराग जी ब्लोगेरिया से ग्रस्त हैं... वो तो आपके गुझिया सम्मलेन में भंग वाली गुझिया खाने से बीमार पड़े हैं...हमें सब पता है :)
ReplyDeleteएपिडेमिक फैला है पूजा ....वेक्सिन की तलाश जोरो से है ...जिनकी इम्मुनिटी कम है वे बेचारे नाजुक हालत में है...बाकी अभी कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ....थोडा गुंजिया का असर है...मिलते है ब्रेक के बाद
ReplyDeleteसुक्ष्म पर्यवेक्षण पूजा जी.... लाजवाब :-)
ReplyDeleteवाह वाह डा॓. पूजा जी, आपने हमेशा की तरह कमाल लिखा है। इसी बहाने हमें गुज़रे ज़मानों की सैर भी करा दी आपने। आपको डा॓क्टरेट की बहुत बहुत बधाई। अल्ला मियाँ आपको ढ़ेर सारी तरक्कियाँ अता फ़रमाए।
ReplyDeleteभाई डाक्टर को बाते सार्वजनिक नही करनी चाहिये .:)
ReplyDeleteहमारा कच्चा चिठ्ठा काहे खोल के सबके सामने रख दिया. अभी हमारे इतने घनघोर संक्रमित होने की खबर ताई को नही है. किसी तरह काम के नाम पर मैनेज कर रखा है. किसी रोज आपकी पोस्ट पर उसकी नजर पड गई तो सारी ताऊगिरी निकल जायेगी.
रामराम.
डाक्टर साहिबा को सलाम....
ReplyDeleteलाजबाव........रोज एक नई ऊँचाई . बधाई हो. पर मेरी कुछ शंकाओं का निवारण कर दो. ब्लोगरों की दो और श्रेणी होती है. उस पर तुम्हारा अनुसंधान क्या कहता है , जानना चाहूँगा. एक तो ऐसे ब्लोगर जो बड़े उत्साह से ब्लॉग तो बनाते हैं परन्तु
ReplyDeleteउसपर कभी कोई पोस्ट नहीं डाल पाते हैं. क्या संक्रमण इतनी जल्दी भी ठीक हो सकती है? और दूसरे वो जो कुछ दिन तो ब्लोगिंग बड़े जोश से करते हैं परन्तु कुछ दिनों में ही देश की इकोनोमी की तरह स्लो हो जाते हैं या तो नेताओं में ईमानदारी की तरह गायब ही हो जाते हैं. कृपया प्रकाश डालने की जहमत उठाओ परन्तु लेट देयर बी लाइट की तरह नहीं.
वरुण
सही कहा आपने लाजवाव है
ReplyDeleteवाह, मजेदार विश्लेषण किया है। अब कोई वैक्सीन निकालिए और पेटेन्ट भी करवा लीजिए। मैं सहयोग देने को तैयार हूँ, गिना पिग बनने को भी।
ReplyDeleteवैसे कई शहर का बिजली विभाग बिजली बंद कर नहाने धोने, खाने का समय उपलब्ध करा देता है। कभी कभी टेलिफोन विभाग भी।
होली की आपको व आपके परिवार को शुभकामनाएँ।
घुघूती बासूती
बहुत शानदार!
ReplyDeleteholi mubarak.
ReplyDeletebahut achchha likha hai apane.
अरे इब तो मेरा भी जीन बेकाबू हो गया है.....जल्दी से मेरा इलाज करो रे......इत्ती बात मैं क्यूँ नहीं सोच पाता.....??
ReplyDeleteअद्भुत ग्यान......ये ग्यान बांटकर तुमने हम जैसेनए bloggers पर कितनी कृपा की है बता नहीं सकती..कमाल की intensive research की है...ब्रह्मा भी मुस्कुरा उठे होंगे ये पढ़ कर(conditions apply)....;-)
ReplyDeleteयह तो फ़ेसबुक के लिए बढ़िया पैरोडी बन गई -
ReplyDeletehttp://www.rachanakar.org/2016/11/blog-post_0.html
कालजयी रचना! :)