17 March, 2009

अजन्मी कविता


कविता तो अजन्मी होती है
मर ही नहीं सकती...

जो लोग कह रहे हैं की कविता मर चुकी है
छलावे में रह रहे हैं

जब तक स्त्री के ह्रदय में स्पंदन है
जीवित है कई अजन्मी कवितायेँ
साँसों के राग में...दिन-रात, सोते जागते

अपने पति के माथे पर थपकियाँ देते
हाथों के ताल में उठते गिरते
होठों पर किसी पुराने गीत की तरह

कविता जी उठती है हर सुबह
अल्पना के घुमावदार रास्तों में
पैरों में रचाई महावर में

त्योहारों में अतिथियों के कलरव में
गोसाईंघर में आरती करती दादी के कंठ में
आँगन में छुआ छुई खेलती बेटी की किलकारी में

सांझ देते तुलसी चौरा के दिये की लौ में
गोधूली में घर लौटती गायों की घंटियों में
चूल्हे में ताव देती माँ की चूड़ियों की खनक में

कुएं से बाल्टी खींचती दीदी के हाथों की फुर्ती में
सिलबट्टे पर मसाला पीसती चाची के माथे पर झूलती लटों में
लिपे हुए आंगन के अर्धचन्द्राकार pattern में

मैं स्त्री हूँ
जो भी मैंने छुआ, देखा, जिया
कविता बन जाता है

कविता को शब्दों की बैसाखियों की जरूरत नहीं
हर स्त्री अपनेआप में होती है एक कविता
सिर्फ़ अपने होने से...
-----------------०००००००---------------------------------००००००००००००००--------------------


मेरी पिछली पोस्ट पर डॉक्टर अनुराग की टिप्पनी आई:
"कुश पहले की कहता है की हिंदी ब्लॉग अन्दर के कवि को धीरे धीरे मार देता है आपको ख़त्म किया देखिये पूजा की कविता को भी कर रहा है........क्या सचमुच ??????जवाब स्पीड पोस्ट से दीजियेगा ..."

डॉक्टर अनुराग...ये मेरा जवाब है :) उम्मीद है आपको पसंद आएगा.

28 comments:

  1. मैं स्त्री हूँ
    जो भी मैंने छुआ, देखा, जिया
    कविता बन जाता है

    बहुत सुंदरतम अभिव्यक्ति.

    रा्मराम.

    ReplyDelete
  2. जीवित है कई अजन्मी कवितायेँ
    साँसों के राग में...दिन-रात, सोते जागते
    हमने भी पढ़ी है एक अजन्मी कविता
    जवाब स्पीड पोस्ट से नहीं कविता से दिया
    बहुत अच्छा किया / लिखा

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब!

    जवाब बहुत बढ़िया है.

    ReplyDelete
  4. jawaab aap ne bhale Dr.Anuraag ki baat ka diya ho... par baat shashwat kahi hai...!!

    ho sakta hai ki shabda na de paaye, magar aurat ka hona hi kavita ka hona hai...!

    har shabda sanvedansheel

    ReplyDelete
  5. pooja ji ,

    kavita bahut sundar ban padhi hai aur bhaavo ki abhivyuakhti bhi bahut sashakt hui hai ..

    meri badhai sweekar kijiye..

    vijay
    www.poemsofvijay.blogspot.com

    ReplyDelete
  6. मैं स्त्री हूँ
    जो भी मैंने छुआ, देखा, जिया
    कविता बन जाता है


    कुएं से बाल्टी खींचती दीदी के हाथों की फुर्ती में
    सिलबट्टे पर मसाला पीसती चाची के माथे पर झूलती लटों में
    लिपे हुए आंगन के अर्धचन्द्राकार pattern में


    कविता मर नहीं सकती और आपका>>>>>>

    ReplyDelete
  7. मैं स्त्री हूँ
    जो भी मैंने छुआ, देखा, जिया
    कविता बन जाता है

    कविता को शब्दों की बैसाखियों की जरूरत नहीं
    हर स्त्री अपनेआप में होती है एक कविता
    सिर्फ़ अपने होने से...
    sach kahen shabd maun hai,bas is kavita mein hamari bhi bhawnaye beh nikli,tariff ke liye alfazz nahi,har naari mann ka marm liye khubsurat bhav saji lajawab rachana.

    ReplyDelete
  8. यह तो अब कुछ बदल गया है - अन्यथा गांव में आंगन लीपने, जांत चलाने, लोरी सुनाने और ससुराल जाते रोने का सभी काम नारियां काव्यमय तरीके से करती थीं। बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ उस जमाने को!

    ReplyDelete
  9. मैं स्त्री हूँ
    जो भी मैंने छुआ, देखा, जिया
    कविता बन जाता है
    लाजवाब...इससे बढ़िया जवाब क्या होगा? बेहतरीन कविता...
    नीरज

    ReplyDelete
  10. कविता को शब्दों की बैसाखियों की जरूरत नहीं
    हर स्त्री अपनेआप में होती है एक कविता
    सिर्फ़ अपने होने से.....

    बेहतरीन जवाब .बढ़िया ....यह पंक्तियाँ ही सब कुछ कह गयीं ..

    ReplyDelete
  11. इस बहाने एक बहुत ही सुन्दर रचना पढने को मिल गई।

    ReplyDelete
  12. इत्तिफकान आज गुलज़ार ओर आर .डी का नॉन फ़िल्मी अल्बम रास्ते में आते बजा....कोई दिया जले कही...रात कटती नहीं ..फिर तुम्हारी चिट्ठी दिखी...अमृता प्रीतम याद आयी......

    मेरी खामोशी की गली में
    अक्षरो के साए गुजरते रहे
    ओर
    चाँद की दहलीज पर
    तारे दुआ करते रहे ...

    अक्षरो के साये
    मन की पगडण्डी पे चलते है
    न कलम में ये कयाम करते
    न स्याही की धूप में बैठते
    न कागज की छाया में ठहरते

    चाँद की मटकी से जब
    कतरे से कुछ गिरते रहे
    रात की दहलीज पर
    तारे दुआ करते रहे


    सोचता हूँ रोज सुबह एक फरमाइश की चिट्ठी मोबाइल में डाल के तुम्हे भेज दूँ......रोज दोपहर एक कविता मिलेगी ...

    ReplyDelete
  13. बहुत सुंदर प्रस्‍तुति ... कविता तो अजन्मी होती है
    ... बिल्‍कुल सही ... आत्‍मा की तरह।

    ReplyDelete
  14. कविता को शब्दों की बैसाखियों की जरूरत नहीं
    हर स्त्री अपनेआप में होती है एक कविता
    सिर्फ़ अपने होने से...


    --क्या बात कही!!! एकदम सटीक!! बेहतरीन कविता.

    ReplyDelete
  15. बात तो ठीक ही है. लिखने की झंझट से मुक्ति. फोटो चिपका दो. हा हा हा . अब सीरियसली बोल रहे हैं.हमें तो पत्थरों में भी कविता ही दिखती है! यह रचना तो ज्ञान पीठ पुरस्कार के लिए उपायुक्त है.

    ReplyDelete
  16. उफ़...कितनी तारीफ़ करूँ पूजा!किसी के अन्दर का कवि मरे या नहीं मुझे नहीं पता! तुम तो हर बार और ज्यादा निखर कर सामने आती हो!

    ReplyDelete
  17. आपको पता है कि मेरे द्वारा देखे गए हजारों ब्लॉग में सबसे सुन्दर ब्लॉग किसका है? पूजा उपाध्याय का, इसे मैं तब से देख रहा हूँ जब इसके हेडर में आपकी ये तस्वीर भी नहीं थी जब मैंने सोचा नहीं था कि ब्लॉग लिखने का काम मैं भी करूँगा, मेरी कहानियां और फीचर जब दम तोड़ने लगे तब मैंने ये तय किया कि इनको कोई शक्ल दी जाये उन्ही दिनों आपका ब्लॉग सबसे प्रिय लगा मुझे, अब शायद मुझे ये कहने की आवश्यकता नहीं कि आपकी टिप्पणी के क्या मायने हैं मेरे लिए , दिल से आभार !

    ReplyDelete
  18. chalo in sab ke dauraan ...ek achchhi kavita padhne ko mili aapki

    ReplyDelete
  19. हर स्त्री अपनेआप में होती है एक कविता
    सिर्फ़ अपने होने से...

    you are being yourself on your blog thats most incredible....

    ReplyDelete
  20. badi achchhi rachna, lekin jara sa pakshpat.
    yani sirf stri hi nahi kavita hoti.
    n,n,vah to hoti hai kavita...

    ReplyDelete
  21. कविता है,गीत है और है सृष्टि सारी, जीवन है, जननी है और है जीवन शक्ति हमारी ...नारी स्वयम कविता समग्र है !एक अच्छी कविता ...सुन्दर शिल्प रचना, बधाई ...!

    ReplyDelete
  22. kabhi nabhi kahne ko shabd nahi milte. main kuch aesa hi mehsoos kar raha hoon..........

    ReplyDelete
  23. अच्छा कविता वक्तव्य है।

    ReplyDelete
  24. बहुत शुक्रिया पूजा जी. ब्लॉग की दुनिया मे एक दम नया हूँ ,वर्ड वेरिफिकेशन कैसे हटातेहै सीखना है...आपका लेखन सुन्दर है अनुसरण कर रहा हूँ ,आपकी अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा ...

    ReplyDelete
  25. मेरी समझ से जब आप कुछ पढ़ते हुए बरबस ही मुस्कुरा उठें
    कुछ पुराना याद कर के अपनी आँखे चोरी से पोंछदें
    तो समझ लें अपने कविता पढ़ी है।
    कविता पुरानी किताबों मे रखे सूखे फूलों जैसी होती है
    कविता यूँ ही लिख उठे बिना मतलब के अक्षरों या शब्दों मे होती है
    कविता ख़ुद को अतीत मे पहुँचा देने वाली तस्वीरों मे होती है
    कविता अतीत ही नही होती
    जब आप को अचानक किसी भी चीज़ से जुड़ाव सा लगने लगे
    तो वो परिस्थिति ख़ुद ही कविता होती है
    मुस्कुराहतें,
    उदासियाँ,
    कहकहे,
    सिहरन,
    आँसू,
    बरसातें,
    कुहरे,
    रातें,
    सुबहें............................बड़ी लंबी लिस्ट है
    आप महसूस तो करें कविता हर जगह है।

    कविता मरती नहीं है वह होती है
    जो चीजें होतीं हैं वो बस होतीं हैं
    महसूस करना होता है बस

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...