मुझे एक छोटी सी रिवोल्वर खरीदने का मन था...और बाहर जाते वक्त अपने पैर में नीचे की तरफ़ उसे बाँध के रखने का, एक दिन मैंने मम्मी से कहा था कि मेरे पास बहुत पैसे हो जायेंगे न तो मैं एक छोटी सी रिवोल्वर खरीदूंगी जिसे मैं हमेशा अपने पास रखूंगी। मुझे याद है उस दिन मम्मी से बहुत डांट पड़ी थी ये सब उलूल जलूल ख्याल तुम्हारे दिमाग में कहाँ से आता है।
ये वो वक्त था जब मैंने कॉलेज जाना शुरू किया था, और हमारे कॉलेज में चूँकि ड्रेस कोड था तो सिर्फ़ सलवार कुरता पहन कर ही जा सकती थी...उस वक्त कई बार हुआ था कि किसी लड़के ने दूर तक पीछा किया हो, और डर ये लगता था कि अगर किसी ने देखा तो मुझे डांट पड़ेगी। दुपट्टे को बिल्कुल ठीक से लेती थी अपने आप को पूरी तरह ढक के चलती थी, और उस वक्त बिल्कुल सिंपल कपड़े पहनती थी वो भी हलके रंगों में...फ़िर भी ऐसा कई बार होता था। पटना में ऑटो रिजर्व करके नहीं चलते, एक ऑटो में तीन या चार लोग बैठते हैं। कई बार लगता था कि बगल में बैठा लड़का जान कर कुहनी मार रहा है, मगर सड़कें ख़राब होती थीं तो कुछ कह भी नहीं सकते थे।
घर से कॉलेज कोई तीन किलोमीटर था और लगभग १० मिनट लगता था जाने में, पर वो दस मिनट इतनी जुगुप्सा में बीतते थे...वाकई घिन आती थी और लगता था कि काश मैं स्टील के या ऐसे ही कुछ कपड़े पहनती या बीच में एक पार्टीशन रहता। ऑटो में हमेशा देख कर बैठते, ये हम सब लड़कियों को अपने अनुभव और seniors में मिले नसीहतों के कारण पता था कि अधेड़ उम्र के पुरुषों के साथ बिल्कुल नहीं जाना है ऑटो में। उनका लिजलिजा स्पर्श ऐसी वितृष्णा भर देता था कि पहले period ठीक से पढ़ाई नहीं हो पाती थी। मम्मी ने कहा था कि जब भी असहज हो उतर जाऊं...और मैं ऐसा ही करती थी। लेकिन कई बार होता था कि लगता था कि कहीं हमें ही शक तो नहीं हो रहा...या फ़िर लेट हो रहा रहता था...कोई भी लड़का ये सोच भी नहीं सकता है कि ऐसी स्थिति में लड़की की क्या हालत होती है, मेरी तो साँस रुकी रहती थी, जितना हो सके अपनेआप में सिमट के बैठती थी।
वापस घर लौटते वक्त वही बेधती निगाहें, चौराहे पर खड़े लफंगे जाने आपस में क्या कहते हुए, बस सर झुका कर नज़र नीचे रखते हुए जितने तेजी से हो सके गुजर जाती थी वहां से...फ़िर भी लगता था वो नजरें पीछा कर रही हैं। और ऐसा एक दो दिन नहीं पूरे तीन साल झेला मैंने...और मैंने ही नहीं हर लड़की ने झेला था...हम सब का गुस्सा एक था और इस गुस्से को बाहर करने कि कोई राह नहीं।
मैं एक बार ऐसे ही बोरिंग रोड के पास अपने प्रोजेक्ट के लिए कुछ सामान ले रही थी, एक दुकान से दूसरी जाते हुए एक आदमी साइकिल से मेरे पीछे से कुछ बोलते हुए गुजरा, मैंने नजरअंदाज कर दिया सामान लेकर वापस आई तो वही आदमी फ़िर कुछ बोलते हुए निकला...मैं आगे बढ़ी थी वो फ़िर आगे से आता दिखा...उस दिन शायद मेरा गुस्सा मेरे बस में नहीं रहा, मेरे हाथ में एक पोलीथिन बैग था जिसमे छाता और बहुत सा सामान था जो मैंने ख़रीदा था॥मैंने पोलीथिन से खीच कर मारा था उसे बहुत जोर से, सीधे मुंह पर...उसका साइकिल का करियर पकड़ लिया और जितनी गालियाँ आती थी बकनी शुरू कर दी, सोच लिया था की आज इसका मार मार के वो हाल करुँगी की किसी लड़की को छेड़ने में इसकी रूह कांपेगी...चाहे मुझे पुलिस के पास जाना पड़े, परवाह नहीं। मैंने उसे तीन चार बार मारा होगा उसी पोलीथिन से और जोरो से गुस्से में चिल्लाये जा रही थी पर आश्चर्य जनक रूप से कहीं से कोई भी कुछ कहने नहीं आया...वो आदमी आखिर साइकिल छुड़ा के भाग गया।
मैंने ऑटो लिया और सीधे घर आ गयी, घर पर किसी को कुछ नहीं बताया, अगले दिन कॉलेज में दोस्तों को बताया...बात पर सब खुश भी हुए और डरे भी...की मान लो वो आदमी फिर आ गया और खूब सारे लोगो के साथ आया तो तुम अकेली क्या कर लोगी। बात डरने की थी भी, पर खैर वो आदमी फिर नहीं दिखा मुझे, पर बोरिंग रोड मैं अगले कुछेक हफ्तों तक अकेले नहीं गयी.
ऐसी एक और घटना ऑटो में हुयी, एक लड़का बगल में बैठा था, कुछ १६-१७ साल का होगा...सारे रास्ते कुहनी मार रहा था और जब उसे डांटा की क्या कर रहे हो, तमीज से बैठो तो उसने ऑटो रुकवाया और कुछ तो कहा, बस मैं भी उतरी और उसका कॉलर पकड़ के एक झापड़ मारा, बस वो हड़बड़ाया और भागने के लिए हुआ, पर कॉलर तो मेरे हाथ में था और मैं छोड़ नहीं रही थी उसका कॉलर पूरी तरह फट गया और वो भाग गया.
ये दो दुस्साहस के काम मैंने किये थे...पर मुझे बहुत डर लगता था, डर उनसे नहीं अपनेआप और अपने इस न डरने से लगता था कि किसी दिन इसके कारण मुसीबत में न फंस जाऊं। पटना में उस वक़्त पुलिस और कानून नाम की कोई चीज़ नहीं थी, पूरा गुंडाराज चलता था...ऐसे में अगर कोई मुझे उठा के ले जाता तो कहीं से कोई चूँ नहीं करता.
आज जब लोगो को बोलते हुए सुनती हूँ कि लड़की ने छोटे या तंग कपड़े पहने थे इसलिए उसके साथ ऐसा हादसा हुआ तो मन करता है एक थप्पड उन्हें भी रसीद कर दूँ...क्योंकि मैंने बहुत साल फिकरे सुने हैं और ये वो साल थे जब मैं सबसे संस्कारी कपड़े पहनती थी जिनमें न तो कोई अश्लीलता थी और न मेरे घर से निकलने का वक़्त ऐसा होता था कि मेरे साथ ऐसा हो। जब भी ऐसी कोई बहस उठती है मेरे अन्दर का गुस्सा फिर उबलने लगता है और इन समाज के तथाकथित ठेकेदारों और झूठे संस्कारों कि दुहाई देने वालो को सच में गोली मार देने का मन करता है.
दिल्ली में बस पर चलती थी तो हमेशा हाथ में एक आलपिन रहता था कि अगर किसी ने कुहनी मारी तो चुभा दूंगी...नाखून हमेशा बड़े रखे इसलिए नहीं कि खूबसूरत लगते हैं, इसलिए कि अगर किसी ने मुझे कुछ करने की कोशिश की तो कमसे कम अँधा तो कर ही सकती हूँ...और यही नहीं कई दिन बालों में जूड़ा पिन लगाती थी सिर्फ इसलिए कि ये एक सशक्त हथियार बन सकता है.
कहने को हम आजाद हैं, लड़कियों और लड़कों को बराबरी का दर्जा मिला है...मगर क्या ऐसी किसी भी मानसिक प्रताड़ना किसी लड़के ने कभी भी झेली है जिंदगी में? क्या ये कभी भी समझेंगे कि एक लड़की को कैसा महसूस होता है...नहीं...क्योंकि ये नहीं समझेंगे कि ऐसा होने पर हमारा क्या करने का मन करता है...ये कहेंगे अवोइड करो, ध्यान मत दो...अगर एक बार भी किसी लड़के को ऐसा लगा न तो वो बर्दाश्त नहीं करेगा लड़ने पर उतर आएगा...क्यों? क्योंकि वो सशक्त है? eve teasing जैसा नाम दिया जाता है और इसकी शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं देता.
आज मैं उस वक़्त सी छोटी नहीं रही...लड़के मुझे अब भी घूरते हैं...बाईक चलाती हूँ तो पीछा करते हैं...मैं अनदेखा कर देती हूँ...मगर हर उस वक़्त मैं परेशान होती हूँ और हालांकि उन शुरूआती दिनों में जब मेरी सोच खुली नहीं थी और आज जब मैंने इतनी दुनिया देख रखी है...इतने अनुभवों से गुजर चुकी हूँ. आज भी सिर्फ इसलिए कि मैं लड़की हूँ मुझे इस मानसिक कष्ट को झेलना पड़ता है.
मेरा आज भी मन करता है कि मेरे पास एक रिवोल्वर होता...इन लड़कों को कम से कम एक झापड़ मारने में डर तो नहीं लगता.
defenately you are right. we should change the such mindset of some people. no need any type of gender discription in modern society. this article is best written by you in my opinion. i will come on your blog regularly because i have found here something different....i am alone in my life...during the preparation.here i find a lot of satisfaction...
ReplyDeletebahut khoob likha hai.......
ReplyDeletebilkul theek likha hai aur kiya wo bhi theek, ladkiyan agar aise hi himmat dikhane lagen to chhed-chhaad ki ghatnayen samapt ho jaayen.
ReplyDeleteबहुत अछ्छा लिखा, पर सवाल ये है कि कितनी लडकियां ऐसा प्रतिकार कर पाती हैं? ज्यादातर तो डर के मारे कुछ बताती ही नही है.
ReplyDeleteकाश सभी लडकियां ऐसा कर पाये तो बहुत कुछ बदल सकता है. फ़िर भी इस घटना से सबक तो सभी को लेना ही चाहिये. बहुत शुभकामनाएं.
होली की घणी रामराम.
बहुत अच्छे उद्गार लिखे हैं आपने.. कई बार तो ऐसी घटनाए सुन सम्झ कर बहुत शर्म आती है अपने पुरुष होने पर.. सच में पर पता है यह सब संस्कारों की बात है.. खैर. आपकी तरह हर लडकी इस तरह की समस्याओ से दो चार होती है.. और पनी तरह से मुकाबला भी कर लेती हैं.. समाज बहुत घिनौना है... वास्तव में. मेरी पत्नी मुझे इस तरह के कई अनुभव सुना चुकी है... वह भी यही कहती है कि कांश मेरे पास भी रिवोल्वर होती. और तो और मेरी १० साल की बेटी एक दिन अपनी मम्मी से कह रही थी मम्मी मैं न अगले जन्म में लडका ही बनूंगी तब आप मुझे अकेले नीचे जाने से कभी नहीं रोकोगी... विडंबना है यह इस देश की... सबके घरों मे मां है बहन है. और उनके सम्मान कि चिंता भी सभी को है. पर इसके बावजूद यह सब होता है... अफसोस है... और क्या करें क्या किया जाये... यह भी कोई समझाये तो...
ReplyDeleteसही लिखा है. समझ में आता है कि इतनी घृणा कैसे हो सकती है. जब तक रिवाल्वर नहीं ले लेतीं तबतक लात, घूँसा, जूता, चप्पल से काम चलाया करिए. इस तरह की करतूत करने वाले ऐसे किसी को भी बिना जूता मारे जाने मत दीजिये.
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ReplyDeleteपूजा मैं भी तुम्हारी जैसी स्थितिओं से गुजर चुकी हूँ ..मैंने भी प्रतिकार किया है ..मुझे भी डर लगा हालाँकि झारखण्ड में गुंडा राज जैसी बात नही थी ..फिर भी कोयला माफिया तो थे ही .कई बार मैं चिढ़कर माँ के पास जाके कहती मुझे नहीं जाना कौलेज .
ReplyDeleteपर फिर सोंचती माँ क्या कर सकती है ...कुछ नही ..कल उसने झेला आज मैं झेल रही हूँ ..कल शायद मेरी बेटी झेलेगी.मैं उसे कोलेज जाने के लिए गाड़ी तो दे सकती हूँ , पर खुल कर साँस लेने के लिए अच्छी दुनिया नही. अगर रिवाल्वर होता भी तो भी हम सिर्फ गन्दी नजरों से देखने वाले को इस सिर्फ इस बात के लिए गोली मार पाते..? नहीं न..तब भी हमारी गलती देखि जाती ..तुम ही गलत होगी ..दलीलों से यह साबित किया जाता...हाँ तुम्हारी बात सच है की डर कुछ कम हो जाता.
इस तरह की हरकते करने वाले कम नहीं है ...इस तरह की हरकते करने वालों को सबक मौका मिलते ही सिखा देना चाहिए
ReplyDeleteकितनी अजीब बात है, कल ही मेरी बात मेरी एक मित्र से हो रही थी जो दिल्ली में डाक्टर है.. गुस्से में आकर वही बात बोल रही थी जो आज तुम लिखी हो.. मेरा उसे कहना था की तुम डाक्टर हो और बिमारियां दूर करती हो.. मगर ऐसे मानसिक रूप से बीमार लोगों की बिमारी तुम कभी नहीं हटा सकती हो.. ऐसे मानसिक रूप से बीमार लोगों की बीमारी उनके साथ ही जायेगी.. और यह जितना जल्दी जाये इस समाज के लिये उतना ही अच्छा है..
ReplyDeleteजब तक समाज की नज़ारे और मान्यतायें नहीं बदलेंगी, कोई बदलाव नहीं आने वाला... अपने जो झेला है वो लगभग हर लड़की झेलती है और ये सरे अनुभव शर्मिंदा करते है हमे जब भूल से भी पुरुष होने का दंभ भरने लगते है..
ReplyDeleteआपने पीडा को सुन्दर तरीके से शब्द दिया
बहुत सच लिखा है पूजा....ऐसी स्थिति से लगभग हर लड़की को गुज़रना पड़ता है!पर हर लड़की में इतनी हिम्मत नहीं होती!आत्म रक्षा के लिए अपने पास कुछ न कुछ रखना चाहिए!आजकर स्प्रे आते हैं जो तुंरत असर करते हैं.....या एक छोटा चाकू या और कुछ नहीं तो आलपिन,सेफ्टी पिन या मिर्च पावडर ही अपने पर्स में रख लेना चाहिए ताकि विपरीत परिस्थिति से निपट सके!
ReplyDeleteएक मजेदार बात लिखना तो भूल ही गया.. सभी लोग समझते हैं की जो दबंग होते हैं उन्हें परेशानियां नहीं झेलना परता है.. मगर यहां मैं अपनी जिस मित्र की बात कर रहा हूं वह बिहार के जाने-माने दबंग और बाहुबली परिवार से आती है.. इससे मैं सीधा यही निस्कर्ष निकाल रहा हूं की मामला चाहे कहीं का भी हो, मगर महिलाओं की स्थिती पुरूष खुद ही नहीं सुधरने देना चाहते हैं..
ReplyDeletebas poojaji hum itana hi kehenge aapne har ladki ke dil ki baat keh di,kaash har ladki ko ek pistol rakhne ki izzazat mile...bahut sachha lekh.har ladki ko aapki hi tarah khud hi aise mamlo ka jawab dena hoga,bahaduri se.
ReplyDeleteअचानक लगा कि कितनी बड़ी लिबर्टी है मेरे पास कि कभी रिवॉल्वर लेने-रखने का विचार ही मन में न आया।
ReplyDeleteऑफ कोर्स; यह भी है कि ऐसी स्थिति नहीं बनाई कि मेरे कारण किसी के मन में रिवॉल्वर लेने का विचार आये।
पर यह पोस्ट सोचने को बाध्य अवश्य कर रही है।
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ReplyDeletebahut hi badiya likha he.....
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट! बच्चियाँ निडर बने और सामना करने से एकदम न भागें।
ReplyDeleteआपकी भावनाओं और इरादों की मिसाल हमने देखी है। इस पर एक पोस्ट भी लिखी थी-यहाँ जाकर पढ़ी जा सकती है।
http://pasand.wordpress.com/2007/04/03/welldone/
khoob likhti hai or khatarnak bhi. blogvani par teen din pahale aapka blog pahli baar padha jaldi me tha. isliye poora nahi padh saka. fir dhundh raha tha aapka blog ki achanak mil gaya. aapko ma sarsvati ka vardan hai. bahut khoob!
ReplyDeleteआपकी क्रांतिकारी सोच को सलाम . मेरी बेटी जो अभी छोटी है आपसे दो हाथ आगे है इस मामले मे .वह तो रिवाल्वर चला भी लेती है और गाली मे तो शायद डाक्टरेट है उसे
ReplyDeleteभारतीय समाज में एक आम लड़की की स्थिति का बेहतरीन चित्रण करती हुयी पोस्ट। पठनीयता गजब। बधाई!
ReplyDeleteयह पोस्ट पढकर मुँह से एकदम निकला " कमाल की बहादुर लड़की है पूजा।" वैसे लड़कियों को ऐसी ओछी हरकतों का सामना करना पड़ता है। सच उनको ऐसे ही मुँहतोड़ जवाब मिलना चाहिए। जब ही कुछ होगा। और हाँ रंगो भरी होली मुबारक।
ReplyDeleteसोचता हूँ तुम्हें एक रिवाल्वर प्रजेंट करूँ......कैपचर्ड वाली चलेगी क्या?
ReplyDeleteसच लिखा है पूजा...दो बड़ी बहनों में छोटा हूँ और अपने सहरसा की सड़कों पर दोनों बहनों के संग गुजरते ऐसे ही हालात से वाकिफ़ हूँ\ उस वक्त छोटा था, अपने हिस्से की छोटी लड़ाइयां कर लिया करता था उन बड़े लड़कों से.....
तुम्हारा ये पोस्ट कापी कर के अपनी दीदी को भेज रहा हूँ....
और होली के ढ़ेर सारे रंग मुबारक
hats off to u!!!
ReplyDeleteआप रिवॉल्वर की बात कर रहीं है!?
ReplyDeleteमेरी बिटिया तो बम की जिद किए हुये है :-)
क्या ये कभी भी समझेंगे कि एक लड़की को कैसा महसूस होता है....बिल्कुल सही कहा!!
ReplyDeleteजय हो निकल पड़ा पढ़ते पढ़्ते तुम्हारी बहादुरी पर. शाबाश!!
पूजा जी,
ReplyDeleteमनी और मसल की दुरभि ताकत को तो आप जानती ही होगी जब और जहॉ भी इसका प्रभाव बढा इसने दूसरे को उत्पीडित ही किया है वात चाहे पुरूष का हो या महिला की हॉ महिलाओ की संख्या अधिक होती है,
मनी और मसल का दुरूपयोग हमेंयह भी बताता है कि हम कभी न कभी बहुत ही बर्बर अवस्था मे रहे होगे
मतलब कि हमारी लड़की बहादुर है... महिला मित्रों से बात करके और ऐसे वाकये उनके मुंह से सुनकर लगा कि पुरुष होने के कारण हम पचास प्रतिशत दुनिया को उनसे तमाम तरह की नजदीकी होने के बावजूद नहीं जान पाते...
ReplyDeleteअज्ञेय ने कहा था, "अपनी रक्षा के लिए मैं किसी और की हत्या का सामान लेकर नहीं घूम सकता." और मेरा इस वक्तव्य से पूरा इत्तेफाक रहा है मगर स्त्री के मामले में इसपर दुबारा विचार की ज़रुरत है.
ज्ञान जी की बात से शत प्रतिशत सहमत...
होली कैसी हो..ली , जैसी भी हो..ली - हैप्पी होली !!!
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाओं सहित!!!
प्राइमरी का मास्टर
फतेहपुर
क्या कहूं................................
ReplyDeleteवितृष्णा सी होती है इस समाज से.
जेएनयू आने के बाद जब यहाँ का माहौल देखा तो लगा की काश पूरे देश में महिलाओं के लिए ऐसा माहौल बन पाता.
आप IIMC में पढ़ी हैं, जेएनयू आती जाती रही हैं आपको पता होगा की यहाँ महिलाएं किस तरह दिन हो या रात स्वछन्द और निर्भय होकर घूमती हैं. न किसी की चुभती निगाहों का डर, न बेधते कमेंट्स का.
लेकिन ऐसा नहीं है यहाँ के लड़के बड़े सच्चरित्र हैं, या किसी अलग दुनिया से आये हैं. उनके अन्दर भी वही लिजलिजापन छुपा हुआ है पर उसे यहाँ दबा के रखा गया है. अच्छी कानून-व्यवस्था, न्याय और सजा के डर के द्वारा, (आप जैसी) निडर और अधिकारों के प्रति जागरूक लड़कियों के आत्मविश्वास के द्वारा. काश ऐसा माहौल हर जगह बन पाता. लोगों की मानसिकता को बदलना तो संभव नहीं है पर समाज और प्रशासन द्बारा ऐसा माहौल ज़रूर बनाया जा सकता है जिसमें लोग ऐसी हरकतें करनें से पहले सोचें; जिसमें लड़कियों को रिवॉल्वर खरीदने के बारे में न सोचना पड़े.
आज जब लोगो को बोलते हुए सुनती हूँ कि लड़की ने छोटे या तंग कपड़े पहने थे इसलिए उसके साथ ऐसा हादसा हुआ तो मन करता है एक थप्पड उन्हें भी रसीद कर दूँ...क्योंकि मैंने बहुत साल फिकरे सुने हैं और ये वो साल थे जब मैं सबसे संस्कारी कपड़े पहनती थी जिनमें न तो कोई अश्लीलता थी और न मेरे घर से निकलने का वक़्त ऐसा होता था कि मेरे साथ ऐसा हो। जब भी ऐसी कोई बहस उठती है मेरे अन्दर का गुस्सा फिर उबलने लगता है और इन समाज के तथाकथित ठेकेदारों और झूठे संस्कारों कि दुहाई देने वालो को सच में गोली मार देने का मन करता है.
ReplyDeleteMeri 04-03-2009 ki post meN ek sher hai:-
नज़र उतनी ही ज़्यादा बेहया थी
बदन को जितना ज़्यादा ढाँपता था
"पोएम"जी....कानून को अपने हाथ में ना लें.....इससे अच्छा खुद को ही गोली मार लें....क्यूंकि दो-चार को गोली मार भी देने से सिर्फ इक आदमी कम हो जाता है....दुनिया भला कहाँ बदलती है....!!दरअसल स्त्रियों के लिए धरती दोजख ही रही है....और शायद आगे भी ऐसा ही कायम रहे....अब आप अपवाद की बात मत कर देना.....!!(इस तरह के विचारों से ऐसा लगता है....कि मर्द के रूप में जन्म लेकर कहीं कुछ गलती हो गयी....है मुझसे.....मगर कुछ भी मेरे अख्तियार में ना था....मुझे भी किसी माँ-बाप ने जन्म दे दिया था....मगर अब जो आ ही गया हूँ....तो मर्द की नयी परिभाषा गढ़ कर ही जाऊँगा....सच....ये वादा है मेरा दुनिया के तमाम इंसानों से....और तमाम स्त्रियों से भी खासतौर पर....क्यूंकि स्त्री का विश्वास आदमी पर से बड़ी तेजी से छीज रहा है.....इसे हर हालत में स्त्री को उसे लौटाना है.....और यह तब तक संभव नहीं.....जब तक पुरुष अपनी ताकत और बुद्धि का दंभ ना छोड़ दे....और ये जल्दी ही होगा....मैं बिलकुल सच कह रहा हूँ.....!!
ReplyDeleteun ladkiyon ka kaya ho jo ladko ko coment pas karti hai ki iski aankhe kharab hai ya hizya hai jo kabhi coment hi nahai karta hum itna saj dhaj ke kiske liya nikalti hai kabhi coment pass karo to musibat nahi pass karo to hizre
ReplyDeletekaya koi bhi ladka ye sunne ko tayar hoga ki wo hizra hai ladko ki vayatha ko kon samzhe
पूजा, गौतम सर की तरह आपको रिवोल्वर तो गिफ्ट नहीं कर सकता पर ये गाने गिफ्ट कर रहा हूँ....
ReplyDeleteHope You'll like them.
:-)
ना अखियाँ मिलायेंगी, ना सखियाँ बुलाएंगी , ना नखरे उठाएंगी, चलाको !
ना गोरी होके आएँगी ना चोरी से मनाएंगी, ना बोरी में समायेंगी, चलाको !
ना रोटियां खिलाएँगी , ना चोटियाँ बनायेंगी, ना पलकें झुकएँगी, चलाको !
ना छत पे बुलाएंगी, ना नंगे पैर आयेंगी, ना सर पे बिठाएँगी, चलाको !
http://www.youtube.com/watch?v=6j2L_BKawy8&feature=player_embedded
http://www.youtube.com/watch?v=HRnbmQYAIp0&feature=player_embedded
Once again i salute you lady. Specially for those two incidents.
लवली दीदी की बातों से सहमती लड़कियां ऐसे मौकों पर हमेशा गलत हो जातीं हैं घर वाले भी उन्हें ही जिम्मेदार ठहराते हैं....
ReplyDeletebahut achhe...
ReplyDeletejis pida ko apne shabdon men dhala hai..
wah is desh aur samaj ki sabse gandi haqiqat hai..
apr apka sahas vandniya hai..
Bahut Badhiya Laga Aapki Is Rachna Ko Padhkar, Very Nice..
ReplyDeleteमुझे लगता है कि लडकों को जिस तरह पाला जाता है, उन्हें यही लगता है कि लडकी कोई अज़ूबा है, और यही अजूबा होना उनका, साथ में उनका दबा शैतान, और साधारणतः सेक्स का टैबू होना सब का मिलाझुला असर है।
ReplyDeleteलेकिन सबसे बडी गल्ती उन माँओं की है जो लडकों को कभी घर का और रसोई का काम करने नहीं देतीं और लडकियों को ही इन सब कामों में लगाती हैं। बचपन से ही लडकों को लगता है कि वो कुछ स्पेशल हैं।
अगर बचपन से ही सेंसिटाइज़ किया जाये, तो लडकों का बर्ताव बदलेगा। मेरे ख्याल से हमें अपनी लडकियों को तो वीर बनाना ही है, मगर लडकों को भी बहुत सारी तमीज़ सिखानी है।
अभी कल ही अपनी एक महिला मित्र से कुछ इसी तरह की बात हो रही थी. बिल्कुल उसी तरह जिस तरह आपने कही. यह गुस्सा जायज़ और ज़रूरी है. रोष महत्वपूर्ण है.
ReplyDeleteबहुत अच्छा काम करा था
ReplyDeleteमैंने मेरी छोटी बहन को पूरी छूट दी हुई थी की अगर कोई परेशान करे तो खींच कर थप्पड़ मार देना बाकी मारने का काम मै कर लूँगा
पढ़ कर बहुत अच्छा लगा की आपने अपने आप को मजबूत बनाया
दूसरी बात जो आपने कही की कपड़ो के नाम पर ऐसा वर्गीकरण करना तो वो भी गलत है ये इंसान की अंदुरनी भावनाये होती है जो कपड़ो को गलत या सही बनाते हैं कपडे नहीं
अजी इन्हें खतामाफी दे दीजिये. . .
ReplyDeleteआखिर ऋषि मुनियों की संतान हैं ये . . .
महान देश भारत के महान सपूत हैं. . .
गीता, रामायण और कुरआन की रोशनी में इनकी परवरिश हुई है. . .
०००
हमारी समझ इतनी ही है कि
हम अपने बच्चों की परवरिश करते हुए. . .
लडको की गुस्ताखी को नज़रंदाज़ करते जाते हैं. . .
और लड़कियों को गुस्ताखी झेल जाना सिखाते हैं. . .
०००
आदम के ज़माने से अब तक
हमारी दुनिया इतनी समझदार या सुन्दर हुई ही नहीं
कि. . .पुरूष और स्त्री एक दूसरे का सम्मान कर सकें . . .
एक दूसरे को समान समझ सकें. . .
०००
कुछ दिनों के लिए निजाम बदल के देखिये. . .
दुनियाँ खूबसूरत होने को है. . .
Bahut Badhiya Laga Aapki Is Rachna Ko Padhkar, Very Nice..
ReplyDeleteहमारे साथ भी एक लड़की है देखने में भी सुंदर
ReplyDeleteउसके हाथ से भी दो मार खा चुके है |
मगर सोचना पड़ता समाज में आगे
हमारी बेटियाँ कैसे आगे बढेंगी }