कागजों पर बिखरा दर्द
पुड़िया में बांधकर संदूक में रख देती थी
अब लगभग भर गया है वो पुराना संदूक
क्या करूँ इतने सारे अल्फाजों का
एक एक पुड़िया खोल कर
सारे शब्द हवा में उड़ा दूँ
हर लफ्ज़ कर जाए
आसमाँ की आँखें गीली
और शायद बरस जाए एक बादल
तुम भीगो तो याद आ जाएँ
वो आखिरी लम्हों के आंसू
जिस भी मोड़ पर तुम आज खड़े हो
या इन कागजों को जला कर
एक रात की सिहरन दूर कर दूँ
थोड़ी देर उजाले में तुम्हारी आँखें देख लूँ
या कि हर कागज को
कैनवस बना कर रंग दूँ
हंसती हुयी लड़की, भीगी आंखों वाली
इतना नहीं हो पाये शायद
सोचती हूँ...
एक नया संदूक ही खरीद लूँ.
अल्फाज़ तो कभी ख़त्म ना होंगे ...और ना ही कागजों पर अल्फाजों को उतारने का क्रम टूटेगा .........आखिर दिल को इसी पर तो उडेला जा सकता है
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना .
ReplyDeleteया कि हर कागज को
स्कैन कर किसी वेब साईट में लगा दूँ !
अपने दर्द से दुनिया को रूबरू करा दूँ
संदूक भर गया है, बता अब क्या करु!!
तुम भीगो तो याद आ जाएँ
ReplyDeleteवो आखिरी लम्हों के आंसू
जिस भी मोड़ पर तुम आज खड़े हो
या इन कागजों को जला कर
एक रात की सिहरन दूर कर दूँ
थोड़ी देर उजाले में तुम्हारी आँखें देख लूँ
waah bahut khub,sanduk mein chippe shabd padhna bahut achha laga.vaise aapki har kavita ek naya andaz liye hoti hai,bahut badhai.
क्या करूँ इतने सारे अल्फाजों का
ReplyDeleteएक एक पुड़िया खोल कर
सारे शब्द हवा में उड़ा दूँ
बहुत सुंदरतम रचना. लाजवाब अभिव्यक्ति है.
रामराम.
puja jee,
ReplyDeletesaadar abhivaadan, yadi aisaa hai to aap mujhe apnaa sandook dekar meri godrej kee aalmaaree le lein, kyun kya khyaal hai. aap likhtee rahein, sandook wandook to ham sambhaal lenge.
puja ji, waqai bahut khub likha hai, baat bahut khubsurti se kahi hai, alfajon ka chayan lajawab. aur ek khas baat aksar aesa hota tha ek likhne wali ladki kaiyon apni likhawt dusre ke naam se chhapwati thi ya ki use aag ke hawale kar deti thi.
ReplyDeletemagar ab daur badla.. aur dil ki khushi, dard tarannum sab kuchh bayan hai..is rachna men..
bahut khub.
shahid "ajnabi"
शब्द व भाव दोनों सुन्दर है
ReplyDeleteअनोखी अभिव्यक्ति-कुछ अलग सी..बढ़िया!!
ReplyDeleteकाश! दर्द संदूक में बन्द कर समन्दर में बहाया जा सकता!
ReplyDeleteये दर्द के शब्दों की संदूक है कोई पेंडोराज़ बाक्स नहीं जो सब के लिए खोल दें। इसे दिल में संजो कर रखें।
ReplyDeleteआहा क्या बात कही. वैसे कंटेनर जितने भी होंगे कंटेंट्स उनमें समां जाते हैं फिर भी जगह कम ही पड़ती है. इसलिए कंटेनर की संख्या बढ़ाना समाधान नहीं है.
ReplyDeleteहर लफ्ज़ कर जाए
ReplyDeleteआसमाँ की आँखें गीली
और शायद बरस जाए एक बादल
-सुंदर.
हर लफ्ज़ कर जाए
ReplyDeleteआसमाँ की आँखें गीली
और शायद बरस जाए एक बादल
-सुंदर.
आज लगता है की नज़्मो का मौसम आया है.....कुश के ब्लॉग से तुम्हारे ब्लॉग पर आई और अब मन कर रहा है एक आध मैं भी लिख ही दूं!
ReplyDeleteदिल को छू जाने वाली रचना। बहुत सुंदर लिखा है आपने यू हीं लिखते रहें।
ReplyDeleteएक बहुत ही सुंदर लेकिन भावूक कविता.
ReplyDeleteधन्यवाद
संदूक के भीतर संवेदनाओं का संसार.. खूबसूरत अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहार लौट आई लगता है.. बहुत ही डूब कर लिखा है.. मज़ा आ गया..
ReplyDeleteखाली कर दीजिये सफ्हो पे
ReplyDeleteया कि हर कागज को
ReplyDeleteकैनवस बना कर रंग दूँ
हंसती हुयी लड़की, भीगी आंखों वाली
अद्भुत सी।
बहुत सुन्दर इन लफ्जों को यूँ इन कागजों पर बिखरेती रहो ..
ReplyDeleteबहुत ही गहरी बातें लिखी हैं आपने काफी डूबकर लिखा है जी अच्छा लगा
ReplyDeleteया कि हर कागज को
ReplyDeleteकैनवस बना कर रंग दूँ
हंसती हुयी लड़की, भीगी आंखों वाली
सुंदर कविता, बधाई।
बहुत सुदर ... गजब की अभिव्यक्ति।
ReplyDeletenihayati khubsurat kalam pesh kiya he aapne....
ReplyDeletemohatarma thodi nazre inayat is garib k blog par bhi kijiye....
हंसती हुयी लड़की बनी रहो! सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteमैंने कहा जी..........ये भी बहुत ही अच्छी और बहुत गहरे भावों से भरी कविता है आपकी......बाकी चलते-चलते यह बताना उचित समझूंगा कि संदूक तो आप नया ही खरीद लें हाँ........!!
ReplyDeletebadi hi bhawpurn kavita hai. vastav men dil ko chhu gayee.
ReplyDeletehan, nayaa sanduk kharid lena hi behtar hoga, taki hamen canvas par aur naye rang mil saken.
या कि हर कागज को
कैनवस बना कर रंग दूँ
हंसती हुयी लड़की, भीगी आंखों वाली
इतना नहीं हो पाये शायद
सोचती हूँ...
एक नया संदूक ही खरीद लूँ.
khali panne.
इतना नहीं हो पाये शायद
ReplyDeleteसोचती हूँ...
एक नया संदूक ही खरीद लूँ.......
अति सुन्दर .
जिंदगी तो एक नदी है
ReplyDeleteजो बहना चाहती है
यादो के बाँध से उसे कोंन रोक पाया है
अनूठी रचना पूजा...अच्छी लगी
ReplyDeleteदिल से
hmmm.... yahi sahi rahega, ek naya sandook hi le aaiye, kyozki aaj bikhe bhi dengi lafz to kal fir itne ban padenge ki sandook fir se bhar jayega...asama.nkitne alfaz batorega akhir....!
ReplyDeletenice poem...
ReplyDeletei am just speechless for this expression of emotions in these smooth flow of words..
ReplyDeletebahut dil se badhai .. abhi pichle dino hi maine isi saubject par likhi thi ,ab use agale hafte post karunga ..
aap bahut accha likhti hai
badhai
दर्द की खूबसूरत अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteuprokt rachana ki sabhi ne bhoori-2 prasansa ki ...mujhe laga ki abhi bhi logo ko kavitao se lagaw hai ...parantu jis tarah bahan aapane apane dard ko shabdo mai piroya hai ...usake liye mai aapake vishuddh/pavitra/shubh bhaw ko/komal va nishchhal hraday ko naman karata hu .....ma sarswati aapake lekhani ko wo takat de ...jo aapake pavitr bhaaw ko/ man mai uthe jwar bhatao se mile motio ko shabd roop de sake ..ek bhai....SHUBH KAAMANA
ReplyDeleteजब कहने को इतना कुछ होता है तो यकीन मानिए वो संदूक भी अथाह होता है
ReplyDeleteध्यान से देखियेगा जगह हमेशा मिल जाएगी
नए संदूकों में पुरानी बाते नहीं आ पाती होंगी शायद
kya aap gulzar sahab ki triveni likhne ki style se inspired hain.. ! i felt so.
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