अमीबा से हमारा पहला पाला बायोलोजी की क्लास में पड़ा था, इस कमबख्त की अंग्रेजी स्पेलिन्ग amoeba होती है और बोलते अमीबा है...यानि ओ साईलेंट रहता है। क्लास के अधिकतर बच्चो ने ग़लत स्पेलिन्ग बता दी थी...हम उस वक्त शायद कक्षा पाँच में पढ़ते थे...तो बस सबको होमवर्क मिल गया ५०० बार लिख के लाने का...उसके बाद मजाल है हम कभी भूलें हों।
तो इस जीव से चिढ़ हमें पहली ही मुकालात में हो गई थी...
फर्स्ट इम्प्रेशन इतना ख़राब बनाया था इसने,
भई हमारी क्या गलती है। लेकिन एक ही दो साल में हमें यह अमीबा बेचारा बड़ा प्यारा प्राणी लगने लगा...
आप भी सोचेंगे क्यों भला...
तो ये दर्द वही जाने है जिसने कभी बायोलोजी प्रैक्टिकल में बाकी जानवरों के डायग्राम बनाये हैं। माहौल देखिये...
रात के कोई दस ग्यारह बजे हैं...
मुहल्ले के कुत्तों का कोरस चालू हो चुका है...
बिजली कटी हुयी है और लैंप की रौशनी में कोई बेचारी लड़की किताब से देख कर डायग्राम बनने में जुटी हुयी है,
चारो तरफ़ छिली हुयी पेंसिल,
रबर, कटर,
ब्लेड आदि चीज़ें फैली हुयी हैं। हवा के कारण लैंप की लौ डिस्को कर रही है...
लाख चिमनी लगा लो...
ये लौ आज की लड़कियों की तरह बाहर की थोड़ी हवा लगते ही थिरकने लगती है। इस थिरकन के कारण कागज पर अजीब आजीब आकृतियाँ बन बिगड़ रही हैं...
और इन प्रेतनुमा आकृतियों से घिरे कागज पर उसे उस पेट चिरे हुए मेंढक का रेखाचित्र बनाना है।
उस बेचारे मरे हुए मेंढक की आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करते हुए कागज से घमासान जारी है...उस वक्त सोचिये कितना गुस्सा आता होगा...
अरे इस नामुराद मेंढक की आंतें होती ही क्यों हैं,
और ऐसी टांगें...
और ये सड़ी हुयी शकल...
गरियाने के क्रम में सब लपेट लिया जाता था, सरकार तक जो जिसके कारण बिजली नहीं है...
छोटे भाई को,
जो इमर्जेंसी को चार्ज में लगाना भूल गया था, मच्छरों को रात में नींद क्यों नहीं आती और यहाँ तक कि स्कूल पर भी कि गर्मियों में एक्साम होते ही क्यों हैं।
ऐसे माहौल में जब सब जानवरों कि शारीरिक स्थिति का सही सही विवरण देना पड़ता था...यही अमीबा हमें देवदूत लगता था...कुछ करना ही नहीं है, कैसी भी आकृति बना दो...बन गया अमीबा। हम इसके
एक सेल और
फ्लेक्सिबल आकार के कारण इसे सबसे ज्यादा पसंद करते थे। और जब भी अमीबा बनाना होता खुश हो
जाते(आपके लिए भी फोटो दे रखी है, आए हाय देखिये तो कित्ता क्यूट लग रहा है)। पर हमारी बायोलोजी टीचर को जाने क्या खुन्नस थी...होमवर्क में सब कुछ बनवाती थी, अमीबा छोड़ कर। धरती पर वाकई अच्छे
लोगो की बड़ी कमी है।
खैर...
हमारी डॉक्टरी पढ़ाई का किस्सा तो आप जानते ही हैं, सो हमारा इस प्यारे जीव से नाता टूट गया था काफ़ी सालों से। अभी शनिवार को हम खुशी खुशी अपना ड्राइविंग लाइसेंस के लिए फोटो खिंचाने गए तो लगा कि इतनी बड़ी उपलब्धि पर बाहर खाना तो बनता है...
सो हम बड़े आराम से दाल मखनी,
तंदूरी रोटी और अचारी पनीर पर टूट पड़े। सोचा रामप्यारी का जवाब थोड़ा आराम से दे देंगे घूमने निकल लिए...
रात को घर आते आते पेट में दर्द शुरू। मगर हम इत्ते से घबराने वालों में थोड़े ही हैं,
पुदीन हरा पिया,
अजवाईन खायी और आराम से कम्बल ओढ़ के सो गए...
सुबह उठे तो बुखार। अब तो हमारे पसीने छूट गए...
पहले तो सोचा कि रामप्यारी को ही बुलवा लें कैट्स्कैन के लिए,
फ़िर डर लगा कि अभी तक उसके सवाल का जवाब नहीं दिया है,
पहले जवाब पूछना शुरू कर देगी तो क्या करुँगी।
तो दूसरी डॉक्टर के पास गई...
उसने बताया कि इन्फेक्शन है...
अमीबा ने किया है. अरे ये वही अमीबा है,
और हमारे पेट में घुस के बैठा है। तो हम दुखी हो गए...
बरसो की दोस्ती का ये सिला...दवाईयों के साथ हमने अपने दुःख को भी गटका...
और सोचा आपको भी किस्सा सुना दें।
एक अच्छा ब्लॉगर वही है जो छोटी से छोटी चीज़ से एक पोस्ट लायक माल निकाल सके। एक सेल के microscopic
अमीबा पर लिखी इस पोस्ट के लिए हम अपनी पीठ ख़ुद ठोकते हैं :D
किस्साए अमीबा बहुत अच्छा लगा ...हमें भी अमीबा बनाना अच्छा लगता था .....10th में biology बहुत अच्छी लगती थी ...पर वो क्या है न बनना था हमें इंजिनियर और ऊपर से मैथ से प्यार ...तो बस छोड़ देनी पड़ी biology
ReplyDeleteकमाल की बात है. आज तो वास्तव में हम यही सोच रहे थे. हमने जो थोडा सा लिखा उसे इमेल से भेज रहे हैं जिससे हमारी बात की पुष्टि हो जायेगी. आज तो मन गदगद हो गया. "ये लौ आज की लड़कियों की तरह बाहर की थोड़ी हवा लगते ही थिरकने लगती है" अब ऐसा लिखोगे तो मजा तो आना ही था.
ReplyDeleteअमीबा जेसे एक कोशकीय जीव के बारे में इतनी रोचक सामग्री पढकर अभिभूत हूं, बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
वाह वाह
ReplyDelete"एक अच्छा ब्लॉगर वही है जो छोटी से छोटी चीज़ से एक पोस्ट लायक माल निकाल सके। "
अमीबा को अपने पेट में आशियाना न बनाने दे उन्हें जल्दी से निकल बाहर करे .
अरे! किस कमबख्त की याद दिला दी! पर आज से पहले वो इतना रोचक कभी नहीं लगा
ReplyDeleteतुमने सही में पीठ ठोकने वाला काम किया है... शाब्बाश!
किस्सा ए अमीबा तो अपने से मिलता जुलता है.. बायो के प्रॅक्टिकल का सबसे ईज़ी डाय ग्राम था ये तो.. हालाँकि मैने तो अपनी प्रकतिकल फाइल कुछ लड़कियो से ही बनवाई थी.. हा पर अमीबा का चित्र तो वाकई बहुत ईज़ी होता था.. और बायो के प्रॅक्टिकल में डीसेक्शन क़ी भी अपनी एक कहानी है.. कभी शेयर करेंगे फ़ुर्सत से..
ReplyDeleteहम भी आपकी कलम की दाद देतें है .अमीबा की पीठ हमारी तरफ से भी ठोक देना ..अरे भाई आइडिया तो उसी ने दिया न तुम्हे लिखने का :) एक अच्छे ब्लागर की सही पहचान ....अमीबा का किस्सा यह याद रहेगा ..
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ReplyDeleteमेरे परिवार का सपना था मैं डॉक्टर बनू इसलिए विज्ञान में भरती करवा दिया गया पर दिल्ली प्रेस ने मेरी कुछ रचनाओं पर टिप्पणी और फिर एक कदम आगे बढ़ते हुए दो कवितायेँ छाप दी थी और अस्सी के दशक में परिवार का एक डॉक्टर पाने का सपना चुरा लिया था, सच तो ये है पूजा जी कि जिस तरह अमीबा का गुण सूत्रीय व्यवहार है वह प्यार से मिलता है ये हमने बायोलोजी कि क्लास में सिद्ध कर दिया था, अंग्रेजी के उच्चारण वाला फार्मूला भी सिद्ध कर दिखाया था कि LOVE में भी ओ साईलेंट होता है. आपकी पोस्ट को अमीबा की जगह लव शब्द के साथ पढ़ा बहुत मज़ा आया पंद्रह साल बाद फिर याद आई कुछ लेब्स कुछ लड़कियां जो प्रेक्टिकल करती थी और हम उनको देख कर कविता.
ReplyDeleteबहुत ही रोचक रचना.... मज़ा आ गया...
ReplyDeleteदास्ताने अमीबा - भई वाह......रोचक रचना।
ReplyDeletewaah mazedar amoeba:) kissa hai,ek shabashi hamari bhi;) fantastic post
ReplyDeletewaise puja ji biology ke chuninda dushmano mein ham shayad sabse upar ayenge.. aapne baat ki to apna kissa bhi yaad aa gaya.. class 9th hi thi jab poori class mein sabse kam marks aye the... 50 mein se 17.. teacher ne hamko zara zyada hi latad lagayi thi kyunki baki sab subjects mein hamne top kiya tha.. us din se kasam kha li thi ki 10th paas hote hi biology ko tyag denge .. waise apke amoeba se hamein koi galat feeling nahi hai.. shuruaat se bada massom sa prani laga hai hamko ye..
ReplyDeleteaccha vyang.. pasand aaya :)
किस्सा-ए-अमोइबा को पढ़कर मैं अपनी दादी के उस निर्णय का पहली बार स्वागत करता हूं, जिसके तहत मुझे जीव हत्या की दुहाई देकर बायोलॉजी लेने से रोक दिया गया था। नहीं तो हमें भी यह शब्द 500 बार लिखना पड़ता। हालांकि इससे यह नुकसान जरूर हुआ कि हमें एक अच्छी पोस्ट के लिए इस तरह के माइक्रो सब्जेक्ट नहीं मिल सके.. बहुत अच्छा लिखा आपने..
ReplyDeleteइस अमीबा को तो मैं पूरा ही ठोक्ने के चक्कर मे हूं, मुझे इसी की वजह से बायो छोडकर मैथ्स लेना पडा वर्ना आज मैं ढोर डाक्टर की बजाये आदमी डाक्टर होता और रामप्यारी के कैट स्केन के बजाये CT-SCAN से इलाज कर रहा होता.:)
ReplyDeleteरामराम.
बड़े ढीठ होते है ये बायो के छुटके. अभी एक दिन पता चला कि चिकन पोक्स का वाइरस सालों किसी नर्व सेल में ठिकाना बना कर किसी दिन हर्पीज़ के रूप में व्यक्त होता है.और आपकी पोस्ट पर तो यही कहूंगा कि अमीबा को इतना महान तरीके से शायद ही किसी ने याद किया हो.
ReplyDeleteकरलो बात ! इस कमबख्त अमीव की वजह से ही मै अपना प्यारा वतन छोड कर यहां आया, लेकिन यह नही मरा, सच मै हमारी प्यारी प्यारी मेडम कहती थी कि यह अमिवा कभी नही मरता, मरे या ना मरे,लेकिन अब सब को बहुत तंग करता है यह ठीक नही... अब तो ताऊ को भी जानवर डाकटार बना दिया, इंसान बनाते बनाते
ReplyDeleteहवा के कारण लैंप की लौ डिस्को कर रही है...लाख चिमनी लगा लो...ये लौ आज की लड़कियों की तरह बाहर की थोड़ी हवा लगते ही थिरकने लगती है। इस थिरकन के कारण कागज पर अजीब आजीब आकृतियाँ बन बिगड़ रही हैं...और इन प्रेतनुमा आकृतियों से घिरे कागज पर उसे उस पेट चिरे हुए मेंढक का रेखाचित्र बनाना है।
ReplyDeleteअच्छी वाक्य रचना है.
वैसे अमीबा मुझे इसलिए अच्छा लगता था क्यूँ कि इसका daigram बनाने में हमें कोई दिक्कत नहीं होती थी.
हम भी आपकी पीठ ठोक देते हैं....अपने पेट के अमीबा को भी सुना दो ये पोस्ट पढ़कर ...क्या पता ख़ुशी के मारे आपको छोड़ कर चला जाए!
ReplyDeleteअमीबा प्रेम के लिये आपकी तारीफ़ तो करनी ही पड़ेगी,लेकिन अमीबा को पाल मत लेना,वर्ना दाल मखनी,अचारी पनीर सपने मे ही खाने को मिलेंगे।वैसे आजकल की लड़कियो की नई डेफ़िनेशन गज़ब की है,उसकी भी तारीफ़ करनी पड़ेगी।
ReplyDeleteसुन्दर अमीबा कथा। अभी है कि गया?
ReplyDeleteएक अच्छा ब्लॉगर वही है जो छोटी से छोटी चीज़ से एक पोस्ट लायक माल निकाल सके। एक सेल के microscopic अमीबा पर लिखी इस पोस्ट के लिए हम अपनी पीठ ख़ुद ठोकते हैं :D
ReplyDeleteये किस्सा ए अमीबा तो बड़ा ही प्यारा है। हम भी बचपन से अमीबा का डायग्राम का सबसे पहले बनाते थे, कैसा भी बन जाए हमेशा सही ही होता है खासकर हमारे जैसे लोग जिनकी ड्राइंग इतनी खराब हो उनके लिए तो ये राणबाण है
अमीबा का जो वर्णन आपने किया है,ब्लॉग अमीबालय में स्पंदित होता महसूस हुआ....आपको ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने की बधाई.होटल वाले एवं अमीबा का आभार जिनके कारण इतनी अच्छी पोस्ट पढने को मिली.
ReplyDeletewah wah ..kya baat hai....aapki post ki wazah se mujhe bacpan yaad aa gaya jo main yaad kerna kuch pasand nahi kerta hun....but abhi lagta hai ki apne past me bhi bahut kuch hai ji mere present and future kbehtar bana sakta hai.....khoobsurat post..
ReplyDeleteकुछ कुछ हमारे साथ भी अमीबा के कारण ऐसा ही हुआ हैं...
ReplyDeleteलेकिन आपने ठीक कहा कि..
एक अच्छा ब्लॉगर वही है जो छोटी से छोटी चीज़ से एक पोस्ट लायक माल निकाल सके।
बहुत बढ़िया...
waakai, single cell ke jantu pe itna likhna woh bhi majedar :-)!
ReplyDeleteAchchha likhti ho bhai!