28 March, 2009
यूँ ही
मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ बहुत सारा कुछ
इसलिए नहीं कि तुम्हें मालूम नहीं है
इसलिए भी नहीं कि
मुझे यकीन हो कि मेरे बताने से तुम भूलोगे नहीं
शायद सिर्फ़ इसलिए
कि किसी दिन झगड़ा करते हुए
तुम ये न कहो कि तुम्हें मैंने बताया नहीं था
झगड़े भी अजीब होते हैं यार
कभी एक किलो झगड़ा, कभी आधा क्विंटल
तुम जानते हो
कभी कभी मेरा मन करता है
कि मेरी आँखें नीली होती
या हरी, भूरी या किसी भी और रंग की होती
लेकिन तुम्हें काली आँखें पसंद है न?
कुछ उँगलियों पर गिनी फिल्में हैं
जो तुम्हारे साथ बैठ कर देख लेना चाहती हूँ
इसलिए नहीं कि मैंने देखी नहीं है
बस एक बार तुम्हारे साथ देखने भर के लिए
गॉन विथ थे विंड मैंने जब पहली बार देखी थी
मुझे पहले से मालूम था कि अंत क्या होने वाला है
मैं फ़िर भी बहुत देर तक रोती रही थी
वो अकेलापन जैसे मेरे अन्दर गहरे उतर गया था
शायद तुम्हारे साथ देखूं...तो वो जमा हुआ अकेलापन पिघल जाए
तुम्हें हमेशा rhett butler से compare जो करती हूँ
शायद मैं कोई आश्वाशन चाहती हूँ
कि तुम मुझे छोड़ कर नहीं जाओगे कभी...
डर सा लगता है
जब सूनी सड़कों पर गाड़ी उड़ाती चलती हूँ
या दसमहले से एकटक नीचे देखती रहती हूँ
या खामोश सी सब्जी काटती रहती हूँ
कभी कभी तो गैस जलाते हुए भी
मौत की वजहें कहाँ होती हैं
वो तो हम ढूंढते रहते हैं
ताकि अपनेआप को दोषी ठहरा सकें
कि हम रोक सकते थे कुछ...हमारी गलती थी
किसी से बहुत प्यार करो
तो खोने का डर अपनेआप आ जाता है
क्या जिंदगी के साथ भी ऐसा ही होता है?
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BADHIYA LIKHA HAI PUJA JI AAPNE... BADHAAEE
ReplyDeleteARSH
झगड़े भी अजीब होते हैं यार
ReplyDeleteकभी एक किलो झगड़ा, कभी आधा क्विंटल
jhagada bhi taul maap ke bahut khub,achhi lagi rachana.
कविता एक ऐसे कॉपी राईटर का वक्तव्य लगती है जो या तो कॉफी हाउस की सबसे आखिरी टेबल पर बैठता है या फिर बाहर लगी रेलिंग पर.
ReplyDeleteहमारे तो झगडे भी सात किलो के लठ्ठ से होता है.:)
ReplyDeleteबहुत सुंदर और मन को भाई यह रचना. शुभकामनाएं.
रामराम.
bhawnaoo or shabdo ka achha sangharsh dikha aapke vicharo main...
ReplyDeleteits really natural poem...yaar i m impressed u such a multi tallented... shubhkamnayen
Jai Ho mangalmay HO
बहुत सुंदर रचना. शुभकामनाएं
ReplyDeletebful bful bful, kitte pyare shabdo kitte pyare ehsaso se badi hui kitni pyari kavita..... kabhi kabhi na socha hu ki kabhi kisis ko itna pyar hi kyn kar liya ki uske dur jane ke darr se dil kaap jata hai....
ReplyDeleteउदास मन की गंभीर कविता . अकेलेपन को बाहर निकालने की कविता , जो नहीं कहा उसे कहने की कविता तो कोई आप से सीखे बहुत खूब .
ReplyDeleteकई बार जब दिन को टटोला है
ReplyDeleteतो अक्सर
उसकी जेब में
पायी है कुछ उदासिया
कुछ खुशिया ओर अनकहा सा कुछ
जानते हो ऐसे कई दिनों के भीतर तुम हो ...
किसी से बहुत प्यार करो
ReplyDeleteतो खोने का डर अपनेआप आ जाता है
बहुत ठीक लिखा
पूजा जी,एक तो आपका ब्लॉग बहुत सुन्दर है,उस पर आपका लेखन मन को छू लेता है,आपकी रचनाओं में भावनाओं के निकट होने का एहसास होता है.
ReplyDelete'बताना चाहता हूँ बस बताने के लिए ..' का भाव पूर्ण शिल्प आरम्भिक पंक्तियो में ही पाठक को रचना से जोड़ देता है.
'...लेकिन तुम्हे मेरी काली आँखे पसंद है.' पंक्तियाँ मन में गहरे उतरती जाती है.
रचना में कहीं कहीं शब्द एवं शिल्प शिथिल जरूर हुआ है,परन्तु भाव की प्रभावोत्पादकता पूरी रचना में अक्षुण रही है.
मुझे यह कविता बहुत पसंद आई...
कभी एक किलो झगड़ा, कभी आधा क्विंटल !!!
ReplyDeleteवाह भई वाह... बहुत खूब लिखा है
और मैं देखना चाहता हूँ वो एकटक आँखें
ReplyDeleteऔर उन आँखों का सूनापन
जिन्हें में छोड़ आया था
उस मोड़ पर जहाँ से रास्ते बदल गए
क्या अब भी वो आँखें वैसी ही दिखती हैं ...
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
पहले पाने की इच्छा और फिर उसको खोने का डर..कुछ कहता अनकहा सा हर लफ्ज़ खुद में एक कविता ब्यान कर जाता है .बहुत संदर बिम्ब और भाव ..
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है , आप बहुत सुन्दर लिखती हैं.
ReplyDeletebahut aacha likha haa....
ReplyDeletekeep it up
किसी से बहुत प्यार करो
ReplyDeleteतो खोने का डर अपनेआप आ जाता है
क्या जिंदगी के साथ भी ऐसा ही होता है?
बहुत सुंदर! आम जिंदगी से जुड़ी रचना।
किसी से बहुत प्यार करो
ReplyDeleteतो खोने का डर अपनेआप आ जाता है.
बहुत ही सुंदर कविता...
लेकिन प्यार करने वाले हिसाब किताब कहं रखते है ?
Simple but complicated.
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDeleteइक नयी स्कारलेट को मेरा सलाम
ReplyDeleteकविता अच्छी लगी
ReplyDeleteSahi Kaha..Jab tak pyar nahin hota hum adventure dhoondhte hain, Pyar aane par wahi ek adventure hota hai..Aur ye bhi sonchna padta hai ki hum chale gaye, to Uska kya hoga..
ReplyDeleteWasie Anurag ji ki kavita wali baat se main bhi agree kerta hoon haan lekin aap 'exception' hain :)
कविता के पूर्वार्ध के बारे में तो यही लगता है हमें कि यह पूरी तरह से ब्लॉग परंपरानुकूल है - व्याकरण आदि से मुक्त - फकत विचार प्रवाह। सहज रूप से मन को शब्द देना वह भी Unabridged. (कदाचित यह टिप्पणी आपकी अन्यान्य कविताओं और आलेखों के लिये भी है)
ReplyDeleteउत्तरार्ध में "डर सा लगता है... क्या जिंदगी के साथ भी ऐसा ही होता है?" में भी ऐसा ही था। हाँ कुछ विश्लेषणात्मक, प्रश्नात्मक निष्कर्ष के साथ!
अंत की पंक्तियाँ -
"किसी से बहुत प्यार करो
तो खोने का डर अपनेआप आ जाता है"
हमें तो यह शाश्वत सिद्धांत लगता है। चाहे हम इसे किसी मानवीय सम्बन्धों की कसौटी पर परखें अथवा पालतू पशु के सन्दर्भ में देखें। अर्जित भौतिक सम्पदा और सामगी के लिये भी - जितना चाहेंगे उतना ही भय। व्यक्तिगत गुण आदि जैसे उपलब्धियाँ, यश यहाँ तक शारीरिक सौन्दर्य, बल, सौष्ठव आदि में भी, कदाचित यह सही हो - जितना प्यार, लगाव उतना ही डर उसे खोने का।
On a lighter note: Insurance business is based on this very fundamental concept, I presume.
हमारे इस प्रेक्षण / विचार से कोई असहमत भी हो सकता है।
कई बार आँखों से गुजरा था नाम आपका
ReplyDeleteआज गुजरा तो जैसे ठहर हीं गया.
दिल को अच्छी लगी आपकी ये छोटी छोटी ख्वाहिशें.
puja ji.. lau ke neeche jaise sabse zyada andhera rehta hai waise hi.. pyaar jahan sabse zyada hota hai wahin sabse zyada khone ka darr rehta hai.. ye lazmi hai..mera mehsoos kiya hua hai..
ReplyDeleteacchi kavita..
Sach batau ?? ..mujhe itani pasand nahi aayi..matlab aap ke anya kavitao ko dekhate hue..
ReplyDeleteAap ke kafi kavitae mene padhi he..vo bachotaahi jyada achhi lagi isase..
Kya pata, shayad meri nasamzi ki vajah se mujhe aisa lagta hoga ;)
bahoot khubsuraat si soch k sath bahoot sunder kavita.......
ReplyDeleteऐसा ही कुछ हमने भी महसूस किया है.. कुछ ऐसा जो हम जानते है पर उसे बताने पर जो सुकून मिलता है.. वो समंदर किनारे नंगे पाँव रेत पर टहलने में भी नही आता..
ReplyDeleteख्यालो को बाँधने का हुनर तुम जानती हो..
पढ़ तो तीन दिन पहले ही लिये थे लेकिन सोचते रहे कि आपसी गुफ़्तगू में क्यों खलल डालें? क्या कहें?
ReplyDeleteमौत की वजहें कहाँ होती हैं
ReplyDeleteवो तो हम ढूंढते रहते हैं
ताकि अपनेआप को दोषी ठहरा सकें
कि हम रोक सकते थे कुछ...हमारी गलती थी
किसी से बहुत प्यार करो
तो खोने का डर अपनेआप आ जाता है
shayad yahi sachchayi hai, behtar hai ham ise kubul kar len.