कल ब्लॉग जगत के परम ज्ञानी और सत्य के ज्ञाता महानुभावों ने हमारी थीसिस पर हमें डॉक्टरेट की उपाधि दी॥कायदे से तो हमारा मन फूल के कुप्पा हो जाना चाहिए था और अपने इस महान उपलब्धि रुपी टिप्पणियों को प्रिंट करा के फ्रेम में मढ़ कर दीवाल पर टांगना चाहिए था...पर हमने ऐसा नहीं किया, इसलिए नहीं कि हम भी ज्ञानी हैं और जानते हैं कि ये सब क्षणभंगुर है...परन्तु इसमें एक गूढ़ रहस्य छिपा हुआ है।
तो (दुर)घटना की शुरुआत १० जून को ही हो गई थी...यानि की जिस दिन हम धरती पर अवतरित हुए थे...अजी क्या बताएं भगवान ने बिल्कुल ही हमसे तबाह होकर हमें नीचे भेज दिया था, वहां हम उनका माथा खाते थे बहुत न इसलिए। बिहार की राजधानी पटना में हमने अपने कोलाहल की शुरुआत की, जैसे ही हम थोड़े बड़े हुए पटर पटर बोलना शुरू कर दिए...माँ की सिखाई सारी कवितायेँ तुंरत कंठस्थ कर लेते थे और टेबल पर खड़े होकर कविता पाठ शुरू करने में हमें कुछ भी शर्म नहीं आती थी...साधारण बच्चे थोड़ा बहुत नखरे दिखाते हैं, मगर मैं श्रोता को देख कर ऐसा अभिभूत हो जाती थी कि उसे पूरे सम्मान से जो भी आता था अर्पित करने में विश्वास रखती थी। आप लोग चूँकि इतने दिन से हमको झेल रहे हैं इसलिए इतने प्रकरण में ही समझ गए होंगे कि हममें बचपन से ही कवित्व के गुण विद्यमान थे। लेकिन हमारे मम्मी पापा को थोड़ा एक्सपेरिएंस कम था...आख़िर पहली संतान थे हम...तो उन्होंने इस सारे प्रकरण का एकदम उल्टा मतलब निकाल लिया...मतलब ये निकाला कि लड़की होशियार है, intelligent है, पढने में तेज है।
अब ऐसी लड़की का हमारे बिहार में उस वक्त एक ही भविष्य होता था...लड़की डॉक्टर बनेगी। बस बचपन से ही ये बात दिमाग में थी कि बड़े होकर डॉक्टर बनना है...क्लास में हमेशा अच्छे मार्क्स आते थे, और हमारे पढने का तरीका तो आप जानते ही हैं ऐसे में किसी को शक भी कैसे हो सकता था कि हम डॉक्टर नहीं बनेंगे...बचपन तक तो ये ठीक लगा, जब भी कोई अंकल या अंटी गाल पकड़ के पूछते थे बेटा बड़े होकर आप क्या बनोगे तो हम फटाक से जवाब देते थे कि डॉक्टर...ये बचपन के दिन भी कितने सुहाने होते हैं , सिर्फ़ बोलना पड़ता है...पर हम किस कठिन मार्ग पर जा रहे थे ये हमें बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था।
हमारे ऊपर पहली बिजली गिरी ११वीं में, पापा के साथ किताबें खरीदने गए थे...कम से कम ५ किलो वजन और कुछ एक बित्ता चौड़ाई की वो किताब हाथ में उठाते ही हम जैसे धड़ाम से जमीन पर गिरे और ये पहली किताब थी बायोलोजी की, इसके बाद फिजिक्स और केमिस्ट्री भी थे...कायदे से तो इनका सम्मिलित वजन हमारे डॉक्टर बनने के सपनों को कुचलने को काफ़ी होता मगर बचपन से दिमाग में घूमती सफ़ेद कोट और गले में स्टेथोस्कोप की हमारी तस्वीरों ने हमें पीछे हटने से रोक दिया। फ़िर भी उम्मीद की एक लौ को हमने जिलाए रखा और एक्स्ट्रा पेपर में हिन्दी ली(जिसमें हमें ९५ आए, और बाकियों के मार्क्स मत पूछिए..पर वो किस्सा फ़िर कभी)
अभी तक जो मन किताबों के वजन से घबरा रहा था...किताबें खोल कर देखें तो आत्मा ऊपर इश्वर के पास प्रस्थान कर गई कि मेरे पिछले जनम के पापों का पहले हिसाब दो...आख़िर ऐसा क्या किया है मैंने जो इतना पढ़ना पड़ेगा मुझे, उसपर ये नई बात पता चली थी कि डॉक्टर बनने के लिए कम से कम पाँच साल पढ़ना पड़ता है। हमने चित्रगुप्त को धमकाया कि हमारा अकाउंट दिखाओ वरना अभी कोर्स में जो हिन्दी वाली कवितायेँ पढ़ रही हूँ एक लाइन से सब सुनाना शुरू कर दूँगी। चित्रगुप्त काफ़ी दिनों से बेचारा मेरा सताया हुआ था, उसने फटाफट अपना कम्प्यूटर खोला और देखा...बोला चिंता मत करो, बस एक दो साल की बात है किताबों को पढने का नायाब नुस्खा तो मैंने तुम्हें सिखा कर ही भेजा है...बस वैसे ही पढ़ते रहो। और हमारी डॉक्टर की डिग्री? हमें भी तो बचपन से सुन सुन कर नाम के आगे डॉक्टर लिखने का शौक चर्रा गया था...वो मेरा डिपार्टमेंट नहीं है...तुम ऊपर के बाकी भगवानो से संपर्क करो.
ये सुनना था कि हम परम सत्य कि खोज में निकल लिए...बहुत सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद जा कर भगवान् से अपौइन्टमेन्ट मिला...भगवान् हमको देखते ही टेंशन में आ गए, फ़ौरन चित्रगुप्त को बुलाया...ये क्या कर रहे हो तुम आजकल, एक कैलकुलेशन ठीक से नहीं कर सकते इस आफत को कितने साल इतने लिए नीचे भेजा था हमने? चित्रगुप्त इस अचानक से हमले इतने लिए तैयार नहीं था...हड़बड़ा गया गिनती भूल गया। इससे पहले कि एक राउंड डांट का चलता हम बीच में कूद पड़े, हम बस ये जानने आये थे कि हमको बिना पढ़े डॉक्टर की उपाधि कैसे मिल सकती है.
भगवान ने शायद शार्टकट की बात पहली बार सुनी थी, तो मंद मंद मुस्कुरा कर बोले...कलयुग में मनुष्य के पाप धोने का एक नया तरीका उत्पन्न होगा...ब्लॉग्गिंग। तुम उस नदी में अपने पाप रगड़ रगड़ कर धोना...शीघ्र ही मेरे दूत हिसाब लगायेंगे कि तुम्हारे डॉक्टर बनने के लायक पॉइंट जुड़े या नहीं...और जिस दिन तुम ब्लॉग विसिटर, कमेन्ट नंबर और चिट्ठाजगत के कम्बाइन्ड स्कोर से बेसिक requirement पूरा कर लोगी और अपना थीसिस पोस्ट कर दोगी...मेरी कृपा से ये दूत तुम्हें डॉक्टर की उपाधि दे देंगे.
वो दिन था और आज का दिन है...जय हो भगवान् के दूतों तुम्हारी मैथ मेरी तरह ख़राब नहीं थी...तुमने बाकी सर्च इंजन के बजाये चिट्ठाजगत पर भरोसा किया...और पेज रैंक के चक्कर में नहीं पड़े...मैं ये पोस्ट उन दूतों और भगवान् को धन्यवाद के लिए लिख रही हूँ।
जय हो!
जोहार
ReplyDeleteडाक्टर बनने की हार्दिक बधाईया, सच है अगर कोई काम पूरी लगन और मेहनत से किया जाये तो सफल होने से कोई नहीं रोक सकता , और उसे रोकना तो नामुमकिन है जो भगवान से मिल आया हो .
आपने बहूत सुन्दर लिखा है--- ब्लोगिंग जारी रखें
ReplyDeleteabhi aapki thesis padhke aa rahe hai:):),kya detailing se likha wah,doctarate ki upadhi to milni hi thi:),badhai badhai,double kyunki blogging pe aapki pehli ekmev thesis hai:)
ReplyDeleteजय हो डाक्टर मईया की.. जै हो..
ReplyDeleteअगली बार टांग टूटा तो डा.अमर कुमार और डा.अनुराग आर्य को छोड़छाड़ कर बस बैंगलोर पहूंच जाऊंगा तुम्हारे पास..
बस आज से भगवान का नाम जपना शुरू कर दो की प्रशान्त का बस्स एक.. ज्यादा नहीं, बस्स्स्स एक एक्सिडेंट और हो ही जाये.. ;)
हम फ़ोन लगा रहे है चित्रगुप्त को आख़िर हमने भी बचपन में अपने गाल खींचे जाने पर लोगो के सामने डॉक्टर बनने क़ी घोसणा क़ी थी..
ReplyDeleteइस बार तो मस्त स्टाइल है.. सौ नंबर!
जय हो डॉ पूजा की जय हो ..:) बहुत हो रोचक ढंग से लिखा है ..कोई शक नहीं हमें भी की आप बहुत intelligent हैं
ReplyDeleteजय हो जी जय हो डॉ पूजा जी की...हम भी यही थिसिस टीप कर लगाये देते हैं, बाकी का स्कोर तो ठीक ठाक है..जरा दिलवा दिजिये डॉक्टरेट..बड़ा शौक सा आ लिया है डॉ उड़न तश्तरी लिखने का. प्लीज्ज्जा डॉ साहिबा!!!
ReplyDeleteमुझे तो पहले ही पता था,
ReplyDeleteकी आप पी एच डी धारक हो!!!! अब निश्चित हो गया हू।
पर पता नहीं मैं क्यां हुं????
"jack of all but master of none."
इसी में उलझ कर रह गया।
मुझे भी रास्ता दिखाओ।
भगवान के दूत ब्लागिंग में हैं!!!! ऊपर से डॉक्टर तैयार कर रहे हैं!!!!
ReplyDeleteजय भगवान...जय दूत...जय ब्लागिंग.
और जय डॉक्टर
जय ्हो... मजा आ गया.. बहुत सुन्दर लिखा..
ReplyDeleteकल दोपहर में कुछ फ्रेम ढूँढने निकलूंगा ....तुम्हे गिफ्ट जो करने है....मेथ्स का नाम बार बार मत लिखा करो डर लगता है
ReplyDelete.ये बचपन के दिन भी कितने सुहाने होते हैं , सिर्फ़ बोलना पड़ता है..
ReplyDeleteमजा आ गया.. बहुत सुन्दर लिखा..
कमाल की लेखन शैली है आपकी। आपके आलेख हमें भी बहुत पसंद आते हैं।
ReplyDeleteइसीलिए कहा जाता है कि लिखा हुआ साहित्य हो जाता है। डॉक्टर पूजा बधाई
ReplyDeleteबधाईयाँ ... पटाखे .....डॉक्टर बनने की ढेर साड़ी बधाईयाँ
ReplyDelete"तुमने बाकी सर्च इंजन के बजाये चिट्ठाजगत पर भरोसा किया...और पेज रैंक के चक्कर में नहीं पड़े..."
ReplyDeleteदिलचस्प निरीक्षण !!
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
"तुमने बाकी सर्च इंजन के बजाये चिट्ठाजगत पर भरोसा किया...और पेज रैंक के चक्कर में नहीं पड़े..."
ReplyDeleteदिलचस्प निरीक्षण !!
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
जय हो जी जय हो.........
ReplyDeleteजय हो. बहुत ही सुन्दर.
ReplyDeleteअभी भी भरम है ई थिसिसवा आभासी हौवे या सच्चै में !
ReplyDeleteचित्रगुप्त से मुलाकात अच्छी रही. पहले वो सिर्फ़ ताऊ और चम्पाकली से परेशान था अब और एक ब्लागर ने उसका घर देख लिया, और वो भी कोई सीधा साधा ब्लागर नही बल्कि डाक्टर पूजा उपाध्याय ने.
ReplyDeleteमजा आगया अब यमराज की ऐसी तैसी पक्की ही समझो. उस तक अब कोई पहुंचेगा ही नही. सा्रे फ़ार्मुले तो डाक्टर पूजा उपाध्याय ने यहां थिसीस मे खोल दिये हैं.:)
रामराम.
डाक्टर बनने का जो सपना था वह पुरा हुआ इसके लिए बधाई । हर लोगो के जीवन में कुछ न कुछ बनने का एक हसीन सपना होता है औऱ तमन्ना होती है कि वह पूरा हो ताकि वह अपने मकसद में कामयाब हो । ऐसा वाकया हर लोगो के जीवन से होकर गुजरता है । अच्छी टिप्पणी है आभार
ReplyDeletesuperb!
ReplyDeleteghughutibasuti
gazab hi kare de rahi ho aajkal....soch rahe hain aisi hi ek aadh theesis ham bhi kar len.....after all ham bhi bachpan se hi mare ja rahe the doctor banne ko!
ReplyDeleteजै हो डाक्टर देवी, जय हो! बड़ा धड़ल्ले से शानदार लिखे जा रही हैं! बधाई है जी!
ReplyDelete...कलयुग में मनुष्य के पाप धोने का एक नया तरीका उत्पन्न होगा...ब्लॉग्गिंग। तुम उस नदी में अपने पाप रगड़ रगड़ कर धोना...शीघ्र ही मेरे दूत हिसाब लगायेंगे कि तुम्हारे डॉक्टर बनने के लायक पॉइंट जुड़े या नहीं.
ReplyDeleteहे बाले हम तुम्हारे उपरोक्त जुमलों से बहुतै प्रसन्न हुए हम ब्लाग की दुनियां के छटे पापी है हम अपनी मैली चदरिया को धो रहे थे और साथ में औरों की भी रास्ता बता रहे थे कि हमारी शिकायत हाई कमान से हुई ऐसी जगह फेकें गये कि जहां ब्लाग की नदी तो नहीं एक गांव है जहां की नालियों में खूब कीचड़ बहता है जहां एक खोली में रहते हैं वहां पड़ोस में सुअर दंपत्ति अपने बाल गोपालों के साथ निवास करते हैं रात में उनमें कहा सुनी होती है या मुह्ब्बत का इज़हार उस पर हमारी रिसर्च ज़ारी है रात दो बजे ऐसी चिल्ल पों मचती है कि हमारी नींद खुल जाती है.
हमे फिलहाल हमारी हाई कमान ने वार्न किया है स्टोप इट. स्टोप इट. हमारी हाई कमान आई.एस.अफसरों के पास होती है सो अंग्रेजी में डांट पड़ती है.
पर अब जा ब्लागिंग नदी हो या नाला अब लागी नाही छूटे राम.स्टोप होना मुश्किल है. जा ब्लागिंग ने तो छोरी हमाई सच्चै कि डॉक्टरी छिनने के दिन ला दिए.जाये हमे इसकी परवाह नहीं.
और ऊपर से तुम गरीब डॉक्टरों को खींच खींच के रपट्टे दे रही हो.
अरे नाम के आगे जैसे तैसे डॉक्टर लिख के बच्चा जिया रहें हैं लाली और तुम मिर्ची का धुआं कर रही हो.
एक राज़ की बात डॉक्टरी ऐसे नहीं मिलती उसे आचार्य देते हैं और आचार्य रमा रमन के बाद ही करुणायतन होते हैं और खुद ही थीसिस लिख के छपा देते है.
आचार्यों की लीला से विश्व विद्यालयों में डॉक्टरनी ही डॉक्टरनी नज़र आती हैं.
आप इस डॉक्टरी का मोह छोड़े आपकी लेखनी कमाल कर रही है आजकल.
बहुत दिनों के बाद सारगर्भित व्यंग्य पढ़ने को मिला.अल्लाह करे ज़ोरे कलम और ज़्यादा.
शायद 'सर्च इंजन के बजाये चिट्ठाजगत पर भरोसा किया' जाना आज सच हो (इसमें भी संशय है) पर आने वाले कल तो सर्च इंजिनों का ही होगा।
ReplyDeleteअब चिन्ता बस मरीज़ो की है…
ReplyDeleteचलिये लेट ही सही, जिन्दगी में डाक्टर बनने की सम्भावनायें बरकरार हैं!
ReplyDeleteपूजा, ऐसे वैसे कैसे ही सही किसी का सपना पूरा हुआ, डॉक्टर बनने की बधाई
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ReplyDeleteऎ ब्लागिंग की डाक्टरनी दी,
हम लोग टिप्पणी का चंदा जोड़ जोड़ कर तुमको डाक्टरनी बना दिये,
अब तनि हमारी सड़िल्ली पोस्टों को भी हिट कराने का कोनो फ़श्श-किलास टानिक लिख दो
आप तो पहले से ही डॉक्टर हैं अमर जी, काहे हमारी टांग खींच रहे हैं..कहाँ हम जैसे मामूली ब्लॉगर और कहाँ आप...कहाँ? ये कैटेगोरी अगली पोस्ट में बताएँगे.
ReplyDeleteअच्छा तो यह पूजा पटने से आई हैं. अब तो डॉक्टर भी बन गयी आप. मुबारक हो.
ReplyDeleteइस ब्लोगियाने वाली बीमारी का इलाज जरूर निकालिएगा बहुत लोगों को लग चुका है और यह संक्रामक बीमारी लगती है. पता वता भी दे ही दें, बंगलोर में डॉक्टरों की फीस बहुत महंगी है. आप ब्लॉग-मेट होने के रिश्ते से कुछ रियायत तो देंगी ना?
@पल्लवी जी, पुलिस तो आप हैं ही डॉक्टर भी बनिएगा तो गड़बड़ हो जायेगा, पहले दो डंडा जमाइयेगा और फिर खुद ही दवा देना पड़ेगा...बदमाशों की चांदी हो जायेगी. उहूँ आप डॉक्टर नहीं बनिए ई हमारा रेकुएस्ट है.
ReplyDelete:)
ReplyDelete:)
:)
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