कुछ लोगो को जिंदगी भर खुराफात का कीड़ा काटे रहता है। हम अपनेआप को इसी श्रेणी का प्राणी मानते हैं जिन्हें कुछ पल चैन से बैठा नहीं जाता है...
आज हम अपने पसंदीदा रिसर्च को पब्लिक की भलाई के लिए पब्लिक कर रहे हैं...ये रिसर्च २५ सालों की मेहनत का परिणाम हैइसे पूरी तरह सीरियसली लेने का मन है तो ही पढ़ें, नहीं तो और भी ब्लॉग हैं ज़माने में हमारे सिवा :)
हमारे रिसर्च का विषय है आदमी का दिमाग...हम यहाँ फेमिनिस्ट नहीं हो रहे इसी श्रेणी में औरत का दिमाग भी आना चाहिए कायदे से, पर वो थोड़ा काम्प्लेक्स हो जाता इसिलए सिम्प्लीफाय करने के लिए हमने उन्हें रिसर्च से बाहर रखा है। आप दिमाग के झांसे में मत पड़िये, रिसर्च सुब्जेक्ट सुनने में जितना गंभीर लगता है वास्तव में है नहीं...हमने कोई बायोलोजिकल टेस्ट नहीं किए हैं, किसी का भेजा निकाल के उसका वजन नहीं लिया है र सबसे बड़ी बात की इस रिसर्च में जानवरों पर कोई अत्याचार नहीं किया गया है...जो भी किया गया है सिर्फ़ आदमी पर किया गया है तो एनीमल लवर्स अपना सपोर्ट दें।
हमारी रिसर्च में आदमी का सोशल व्यवहार पता चला है...तो आइये हम आपको कुछ खास श्रेणी के इंसानों के मिलवाते हैं...हमारे रिसर्च का बेस यानि कि आधार है की दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं...और इस रिसर्च की प्रेरणा हमें हिन्दी फिल्में देख कर मिली...
- दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं...(ये वाक्य पूरी रिसर्च में रहेगा अब से इंविसिबल रूप में दिखाई देगा...यानी कि दिखाई नहीं देगा आप समझ जाइए बस)... शुरुआत करते हैं संगीत से...इनमें से पहली कैटेगोरी होती है उन लोगो की जो आपको हर जगह मिल जायेंगे यानी कि मेजोरिटी में...जैसे कि गरीबी, भ्रस्टाचार, कामचोरी वगैरह, खैर टोपिक से न भटका जाए पहली कैटेगरी के लोग होते हैं
अच्छे गायक...इनसे किसी भी फिल्म का गाना गवा लीजिये, हूबहू उतार देंगे, आलाप अलंकार दुगुन तिगुन सब बिना रोक टोक के कर लेंगे, गाना सुना और इनके दिमाग में रिकॉर्ड हो गया अब जब भी बजने को कहा जायेगा एकदम सुर ताल में बजेंगे. इनकी हर जगह हर महफ़िल में मांग रहती है...छोटे होते हैं तो माँ बाप इन्हें गवाते हैं हर अंटी अंकल के सामने और आजकल तो टीवी शो में भी दिखते हैं...बड़े होने पर ये गुण लड़कियों को इम्प्रेस करने के काम आता है. इन लोगो से आप कई बार और कई जगह मिल चुके होंगे.अब आते हैं हमारी दूसरी और ज्यादा महत्वपूर्ण कैटेगोरी की तरफ...इन्हें underdog कहा जाता है, या आज के परिपेक्ष में लीजिये तो स्लमडॉग कह लीजिये...ये वो लोग होते हैं जिन्हें माँ सरस्वती का वरदान प्राप्त होता है, इनमें गानों को लेकर गजब का talent होता है और ये पूरी तरह ओरिजिनालिटी में विश्वास करते हैं...नहीं समझे? ये वो लोग हैं जिन्हें हर गाना अपनी धुन में गाना पसंद होता है, गीत के शब्द भी ये आशुकवि की तरह उसी वक़्त बना लेते हैं...आप कभी इन्हें एक गीत एक ही अंदाज में दो बार गाते हुए नहीं सुनेंगे, मूर्ख लोग इन्हें बाथरूम सिंगर की उपाधि दे देते हैं...माँ बाप की इच्छा पूरी करने के लिए ऐसे कितने ही talented लोग बंगलोर में थोक के भाव में सॉफ्टवेर इंजिनियर बने बैठे हैं...अगर इन्हें मौका मिलता तो ये अपना संगीत बना सकते थे, गीतों में जान फूंक सकते थे, और अभी जो घर वालो का जीना मुहाल किये होते हैं गीत गा गा के, दोस्त इनका गाना सिर्फ चार पैग के बाद सुन सकते हैं...ऐसे लोग आज ऐ आर रहमान बन सकते थे, भारत के लिए ऑस्कर ला सकते थे...मगर अफ़सोस। ये वो हीरा है जिन्हें जौहरी नहीं मिला है...आप इन लोगो से बच के भागने की बजाये इन्हें प्रोत्साहित करें यही मेरा उद्देश्य है। उम्मीद है आप लोग मुझे नाउम्मीद नहीं करेंगे। - ये एक बहुत ही खास श्रेणी है...इस श्रेणी को कहते हैं कवि...इनकी पहुँच बहुत ऊँचे तक होती है, बड़े लोग तो यहाँ तक कह गए हैं की जहाँ न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि. ये बड़े खतरनाक लोग होते हैं कुछ भी कर सकते हैं, आम जनता इनके डर से थर थर कांपती है. इनके बारे में श्री हुल्लड़ जी ने ऐसा कहा है "एक शायर चाय में ही बीस कविता सुना गया, फोकटी की रम मिले तो रात भर जम जायेगा", हुल्लड़ जी के बारे में फिर कभी, आप कवि की सुनाने की इच्छा देखिये...गजब की हिम्मत है, इन्हें किसी से डर नहीं लगता न बिना श्रोताओं वाले कवि सम्मलेन से, न अंडे टमाटर पड़ने से(वैसे भी महंगाई में कौन खरीद के मारे भला). और मैं एक राज़ की बात बता देती हूँ...ये तो चाँद पर चंद्रयान भेजा गया है सिर्फ इसलिए की आगे से कवियों को चाँद पर भेजा जा सके ताकि बाकी हिन्दुस्तान चैन की नींद सो सके। चाँद की खूबसूरती में दाग या गोबर ना आये इसलिए ताऊ ने भी अपनी चम्पाकली को चाँद से बुलवा लिया है...अब दूसरी कैटेगोरी के लोगों की बात करते हैं...जो कविता झेलते हैं, ऐसे लोग आपको मेजोरिटी में मिल जायेंगे. ये वो लोग हैं जिन्होंने पिछले जनम में घोर पाप किये हों...इन्हें अक्सर कवि मित्रों का साथ भाग्य में बदा होता है, इनके पडोसी कवि होते हैं, दूध मांगने के बहाने कविता सुना जाते हैं...अगर कहीं पाप धोने का कोई यत्न न किया हो कभी तो उसे कवि बॉस मिलता है। अगर आप कवि हैं और इनके घर पहुँच जाएँ तो आपको एक गिलास पानी भी पीने को नहीं मिलेगा, ये जिंदगी से थके हारे दुखी प्राणी होते हैं. इन्हें हर कोई सताता है, इन्हें न बीवी के ख़राब और जले हुए खाने पर बोलने का हक है न गाड़ी लेट आने पर ड्राईवर को लताड़ने का...ये सबसे निक्रिष्ट प्राणी होते हैं इनसे कोई दोस्ती नहीं करना चाहता की कहीं इनके कवि मित्र गले न पड़ जाएँ, इनके घर पार्टी में जाने में लोग डरते हैं. और यकीं मानिए ऐसे लोग अपना दुःख किसी से बता भी नहीं सकते. मुझे इनसे पूरी सहानुभूति है.
- अब मैं आपको बताती हूँ एक उभरती हुयी कैटेगरी के बारे में...इन्हें कहते हैं ब्लॉगर...जी हाँ इनका नाम सम्मान से लिया जाए ये आम इंसान नहीं हैं बल्कि एवोलुशन की कड़ी में एक कदम आगे बढ़े हुए ये परामानव हैं, मैंने रिसर्च करके पाया है कि सभी superheroes ब्लॉग्गिंग करते हैं छद्म नाम से...हमारे हिंदुस्तान में हीरो तो ब्लोगिंग करते ही हैं अमिताभ बच्चन से लेकर आमिर खान तक...सभी ब्लॉग लिखते हैं. इससे आप समझ सकते हैं कि ये कितना महत्वपूर्ण रोल अदा करते हैं. ये असाधारण रूप से साधारण व्यक्ति होते हैं...या साधारण रूप से असाधारण व्यक्ति होते हैं. इनका लेखन क्षेत्र कुछ भी हो सकता है, कविता से लेकर शायरी तक और गीत से लेकर कव्वाली तक, मजाक से लेकर गाली गलोज तक ये किसी सीमा में नहीं बांधे जा सकते. स्वतंत्रता की अभूतपूर्व मिसाल हैं. शीघ्र ही संविधान में इनके लिए खास अध्याय लिखा जाने वाला है. वर्चुअल दुनिया में पाए जाने वाले ये शख्स मोह माया से ऊपर उठ चुके होते हैं, ब्लॉग्गिंग ही उनका जीवन उद्देश्य होता है और इसी के माध्यम से वो परम ज्ञान और परम सत्य को पा के आखिर अंतर्ध्यान हो जाते हैं. ब्लॉगर की महिमा अपरम्पार है.
इसके ठीक उलट आते हैं वो इंसान जिन्हें टाइप करना नहीं आता...जी हाँ यही वह एक बंधन है जो किसी इंसान को एक ब्लॉगर से अलग करता है. जिसे भी लिखना आता है वो ब्लॉगर बन सकता है...यानि कंप्यूटर पर लिखना. ये आम इंसान अपनी रोजमर्रा की जिंदगी जीते हैं इनके मुंह में जबान नहीं होती, इनकी उँगलियों में समाज को बदलने की ताकत नहीं होती, ये चुप चाप गुमनामी में अपनी जिंदगी गुजार कर चले जाते हैं...किसी को इनके बारे में कुछ भी पता नहीं चलता. कोई नहीं जानता कि इन्होने दुनिया के किस किस कोने में भ्रमण किया है, न कोई इनके पालतू कुत्ते बिल्लियों के बारे में जानता है और तो और कोई ये भी नहीं जान पाता कि इनकी कोई प्रेमिका रही थी जिसकी याद में हर अब तक कविता लिखते हैं...किस काम की ऐसी जिंदगी? ये न टिप्पणियों के इंतजार में विरह का आनंद ले पाते हैं न visitors कि गिनती में कुछ हासिल करने का भाव जान पाते हैं और तो और ये इतने साधारण होते हैं कि इन्हें फोलोवेर मिलते ही नहीं. ये underprivileged लोग होते हैं जिनका पूरा जीवन ब्लॉग्गिंग के अभूतपूर्व सुख के बगैर अधूरा सा व्यतीत होता है और मरने के बाद ये अपने अधूरी इच्छाओं के कारण नर्क से ब्लॉग्गिंग करते हैं.
चूँकि ये खास कैटेगरी है इसलिए इसमें तीसरे प्रकार के इंसान भी होते हैं...इन्हें कहते हैं जलंतु...यानि जलने वाले. ये वो लोग होते हैं जो अपना ब्लॉग खोल कर एक दो पोस्ट लिख कर गायब हो जाते हैं...कभी साल छह महीने में एक पोस्ट ठेलते हैं...ये सबके ब्लॉग पर जाते हैं पर कहीं टिप्पनी नहीं करते बाकी ब्लोग्गेर्स की लोकप्रियता देखकर जलते हैं...बेनामी टिप्पनी लिखकर लोगो को दुःख पहुँचने का काम करते हैं और हर विवाद में घी झोंकते हैं. ये वो लोग हैं जिन्हें ढूंढ़ना हम सबका कर्त्तव्य बनता है. ये भटके हुए लोग हैं, इन्हें ब्लोग्गिन का मुक्तिमार्ग दिखाना हमारा फर्ज बनता है. हमें इनका हौसला टिप्पनी दे दे कर बढ़ाना चाहिए...प्यार से निपटने पर ये सभी रास्ते पर आ जायेंगे. इसलिए आप सबसे अनुरोध है कि इनकी मदद करें आखिर इसलिए तो हम ब्लॉगर साधारण मनुष्य से ऊपर हैं.
चेतावनी: उपरोक्त लिखी सारी बातें एक ऐसे व्यक्ति ने लिखी है जो split personality disorder(SPD) से ग्रस्त है इसलिए इस लिखे की जिम्मेदारी किसी की नहीं है...SPD के बारे में ज्यादा जानने के लिए हिंदी फिल्में देखें.
प्रणाम
ReplyDeleteइतनी खतरनाक और अदभुत खोज तो बहुत चिंतन और मनन से ही संभव हुई होगी .
किन्तु बहुत कठिन कार्य है जलन्तु चिट्ठाकार लोगों को ढूंढ़ना और ब्लोग्गिन का मुक्तिमार्ग दिखाना. ईश्वर की कृपा रही तो हर असंभव, संभव हो जायेगा .
आजकल तो स्लमडाग का ज़माना है, फिर ये अंडरडाग कहां से आ गया आपके लेख में। आपने यह बात तो सही ही कही कि औरत का दिमाग थोडा काम्प्लेक्स होता है। तभी तो कहते हैं कि ईश्वर भी नारी की सोच को नहीं जान सके:)
ReplyDeleteमुझे कई बार तुम्हारा यह फीडबैक मिला है कि तुम पद्य से अच्छा गद्य लिखती हो.. यह इसमें झलक कर आ रहा है..
ReplyDeleteबहुत शानदार.. :)
मुझे लगता है तीसरी केटेगरी सबसे गंभीर है.. बाकी ऊपर कि दोनो केटेगरी में हम समान रूप से विधमान है..
ReplyDeleteस्प्लिट पर्सनालिटी कि चालीस सीडिया लाया हू दुकान से अब एक वीक के लिए बस यही फ़िल्मे देखूँगा..
चेतावनी: उपरोक्त टिप्पणी एक ऐसे व्यक्ति ने लिखी है जो स्प्लिट पर्सनॅलिटी डिसॉर्डर(SPD) से ग्रस्त है इसलिए इस लिखे की जिम्मेदारी किसी की नहीं है...SPD के बारे में ज्यादा जानने के लिए हिंदी फिल्में देखें
टिप्पणी देने के लिये एक बार तो आपने मुझे अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन मैं भी इसी तरह की बीमारी (split personality disorder) से ग्रस्त हुं, इसलिये>>>>>बुरा लगे तो भी आप जानों ओर नहीं लगे तो भी आप ही जानो>>>>>
ReplyDeleteक्या करे अपण भी इसी तरह की बीमारी से ग्रस्त है!!!!
पर कुछ भी हो आपके इस लेख में बहुत दम है।
मंगलकामनाएं।
सुपठनीय और दिलचस्प.
ReplyDeleteबड़ा गहन शोध किया है जी. एनीमल लवर हूँ सो सपोर्ट किए दे रहा हूँ. :)
ReplyDeleteवाकई, शोध के परिणाम देखकर आँखें खुल गई. :)
@कुश भई ये चालीस सीडी और एक हफ्ते का कैलकुलेशन जरा हमको समझ नहीं आया ७ दिन में ४० सीडी यानि एक दिन में...कुल जमा चालीस बटे सात...गडबडा गए भई वैसे भी मैथ के मामले में बचपन से थोडी कड़की रहे है अपनी तो...आप खाली हमको ये बता दो की ये आंकडा किस रिसर्च से लाये हो? ;) :)
ReplyDeleteगहन शोध देखकर डिप्रेस हो लिया हूँ..हाय हम न समझ सके मानव मस्तिस्क ..खैर आपसे अनुरोध है ऐसे शोध सार्वजनिक न किया करे ....ऐसी बीमारियों के ऐपीडेमिक फैलने का डर है
ReplyDeleteबहुत ही गहरा अध्यन किया है पूजा जी आपने तो ...अभी कुछ दिन पहले सुना था कि किसी ने ब्लागिंग में पी एच डी करी है .कहीं वह आप हो तो नहीं है :) बहुत बढ़िया लिखा है आपने
ReplyDelete@पूजा..
ReplyDeleteअरे मैने लिखा तो था की ये SPD से ग्रसित किसी बंदे ने लिखी है.. मुझे तो आइडिया भी नही की मैं कब कौन होता हू.. बिल्कुल अपरिचित स्टाइल में कभी अंबी कभी R-E-M-O रेमो, तो कभी अपरिचित..
वर्चुअल दुनिया में पाए जाने वाले ये शख्स मोह माया से ऊपर उठ चुके होते हैं, ब्लॉग्गिंग ही उनका जीवन उद्देश्य होता है और इसी के माध्यम से वो परम ज्ञान और परम सत्य को पा के आखिर अंतर्ध्यान हो जाते हैं. ब्लॉगर की महिमा अपरम्पार है.
ReplyDeleteवाह वाह आनन्द आगया और जीवन सफ़ल हुआ हमारा तो ब्लागर बन कर.. जो आपके शोध के हिसाब से परम ज्ञान और परम सत्य को पा गये.:)
आज एक बार तो पढते २ लगा की कहीं अनुप शुक्ल जी (फ़ुरसतिया जी) की पोस्ट तो नही पढ रहा हूं. फ़िर स्क्रोल करके देखा..नही भाई ये तो डाक्टर पूजा का ही ब्लोग है जिन्होने अभी २ Phd
किया है.:)
वाकई कमाल की पोस्ट है.
रामराम.
रोचक रिसर्च.....किंतु थेसिस पढ़ कर मैं उलझ गया कि खुद को किस श्रेणी में रखूं....
ReplyDeleteभई कमाल की लिखती हो पूजा
आलेख पढ़ा,विस्तृत विवरण और सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई
ReplyDeleteबहुत अच्छा
-विजय तिवारी ' किसलय '
सबसे पहले तो इस मौलिक शोध के लिए तुम्हे डॉक्टरेट की उपाधि दिए देते हैं ....अब सोचते हैं अपनी श्रेणी...शायद सभी श्रेणियों में आ जायेंगे! तुम इतना बढ़िया लिख रही हो तो जलन्तु तो हो ही गए हैं!ऐसे ही लिखती रहो....और जलाती रहो!
ReplyDeleteलेख पढ़ते समय हमारे अंदर जलन्तु ब्लागर की आत्मा भड़भड़ाने लगी। लेकिन जब जलन्तु लोगों के बारे में अच्छी -अच्छी बातें पढ़ीं तो आत्मा टिपिया के पतली गली से फ़ूट ली। और ये जो बात पीडी ने कही न कि पूजा मैडम गद्य अच्छा ज्यादा अच्छा लिखती हैं वो बात सबसे पहिले हमने कही थी। अब बताओ ये लड़का कमेंट भी चुराने लगा। आपके शोध से खुश होकर हम आपको डा. की उपाधि दिये देते हैं। डा.पूजा!
ReplyDeleteपूजा मैडम ऐसे रिसर्च देखकर मैं तो दंग रह गया ...और लोगों ने तो आपको उपाधियाँ भी दे दी हैं ....ज़रा थोडा बच बचा के रहना ....
ReplyDeleteसार्थक आलेख
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ReplyDeleteई कम्पूटरवा कौन श्रेणी में आता है, डाक्टराइन दीदिया ?
हम आधा ही प
पढ़े हैं कि
कि खुद ईहै जरने लगा
बा .. बा..बाद में टिपेगे
ReplyDeleteऎ टीपने वाले भाई साहब, जरा संभर के !
इनका बड़ा न डैंज़र ब्लाग है
@अमर जी, कम्पूटर की श्रेणी पर भी हमने रिसर्च की है...जल्दी ही बताएँगे...आपने इतनी मेहनत से टिप्पणी की वो भी कम्पूटर के जलने के बावजूद... पर बताने के पहले डॉक्टर अनुराग से पूछ लेंगे, देखिये अभी से एपिडेमिक की चिंता हो रही है उन्हें.
ReplyDeleteजलन्तुओं... इत्यादि किस्म के ब्लॉगरों के विश्लेषण की ये श्रृंखला जारी रहे... :)
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने
ReplyDeleteबहुत रोचक... सॉरी सोचक पोस्ट है.
ReplyDeleteअरे शुकुल अंकल, हमने कमेंटवा नहीं चुराया है.. हम अभी त सिर्फ़ लड़की की डायरी ही चुराने में दिन भर मगज मारी करते हैं.. हम तो वहीं लिख थे की कहीं से फीडबैक मिला है.. बस आपका नाम नहीं दिये थे.. :)
ReplyDeleteकाफी दिलचस्प खोज की है आपने पूजा जी
ReplyDeleteवैसे एक बात और बता दें कि हम अपने आपको किस कैटेगरी में सम्मिलित करें
बहुत खूब
अच्छी बात है जी. अच्छा विश्लेषण है.
ReplyDeleteबहुत अच्छा शोध है आपका जो आत्मशोध के बिना संभव न था।
ReplyDeleteइसी तरह आईना दिखाती रहिए। अच्छी पोस्ट के लिए बधाई।
Jabardast shodh.....
ReplyDeletePuja Jee
ReplyDeleteKuchh bhi postiya kar gaflat paida kar apni wahwahee batorna jyadatar logon ko achchha lagta hai. Lekin aapkee jaisi buddhimani kisi ki nahee dekhi. Waqai MANN GAYE MUGHLE AZAM.
SPD ka chokha mazak.
Bahut badhiya laga aapka aapka gahan adhyayan.
Wah again.......n again...
वाह, वाह्!! बडी दिलचस्प खोज की है आप ने!
ReplyDeleteसस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??
http://www.Sarathi.info
गजब की रिसर्च है भई
ReplyDelete"रिसर्च के लिए 67 रोचक विषय" टाइप कोइ पोस्ट भी लिख ही दीजिए :)
गहरा अध्यन किया है पूजा जी आपने!!!
ReplyDeleteअच्छा शोध....डा. की उपाधि पाने की बधाई !!
gajab !
ReplyDeleteghughutibasuti
hamko lagta tha ke ham psychic hai...aaj jaane hai ki kaun se disorder ka shikaar hai :-) SPD yaad rahega
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