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23 January, 2019

उदासियों का इतना ख़ूबसूरत घर कहीं भी और नहीं।


महबूब की आवाज़
कपूर की ख़ुशबू थी।
मन को पूजाघर कर देती। 
लड़की ने चाहा 
कि काट दे दो रिंग के बाद फ़ोन
लेकिन उसके पास ज़ब्त बहुत कम था
और प्यार बहुत ज़्यादा।
जब न हो सकी बात, उसने जाना
प्रेम इतना भी ज़रूरी नहीं। 
किसी भी चीज़ से
भरा जा सकता है ख़ालीपन,
उदासी से भी।
***
ख़ानाबदोश उदासियों ने डेरा डाल दिया
लड़की के दिल की ख़ाली ज़मीन पर
और वादा किया कि जिस दिन महबूब आ जाएगा
वे किसी और ठिकाने चली जाएँगी। 
इंतज़ार में ख़ाली बैठी वे क्या करतीं
उदासियों ने पक्के मकान डालने शुरू किए। 
कई कई साल महबूब नहीं आया। 
नक्काशीदार मेहराब वाली हवेलियाँ
लकड़ी के चौखट, चाँदी के दरवाज़े
लोकगीतों में दर्ज है कि
उदासियों का इतना ख़ूबसूरत घर कहीं भी और नहीं।
***



लड़की ने अपनी डेस्क पर 
आँसुओं भर नमी का प्यासा
नन्हा सा हवा का पौधा रखा था।

मिट्टी नहीं माँगता, जड़ें नहीं उगाता
रेत में पड़ा रहता बेपरवाह
मुस्कुराता कभी कभी। 
लड़की उसे नाम नहीं देती
पौधा उसे नाम देता
जानां।

14 October, 2018

कविता पढ़ते हुए
उसके काग़ज़ी होंठ
नहीं मैच करते उसकी आवाज़ से।
थिर हो पढ़ता है कविता 
आवाज़ रह जाती है
सुनने वाले की चुप्पी में आजीवन। 
जी उठते हैं उसके होंठ
चूमने की हड़बड़ाहट में
छिनी जा रही होती है उम्र।
नहीं पड़ते हैं निशान
कि लौटानी भी तो होती है
उधार पर लायी प्रेमिका।
उसके प्रेम में उलझी स्त्रियों की
नश्वर देह में भी जीता है
उसका कालजयी कवि मन।
वो कविता पढ़ते हुए
कुछ और होता है
चूमते हुए कुछ और।
***
***
जाते हुए वह नहीं रुकता
शब्दों से, कविता से, या किताबों से ही
वो रुकता है सिर्फ़ देह पर।
इसलिए पिछली बार उसके जाते हुए
मैंने उसे लंघी मार दी
वो देहरी पर ऐसा गिरा कि कपार फूट गया
और कई कविताएँ बह गयीं टप टप उसके माथे से बाहर।
उस बार वह कई दिन रुका रहा था
शाम की सब्ज़ी, सुबह की चाय, और
दुनिया के सबसे अच्छे कवि कौन हैं
पर बक-झक करते हुए।

10 July, 2018

सोना बदन और राख दिल वाली औरतों का होना

कोई नहीं जानता वे कहाँ से आती थीं
सोना बदन और राख दिल वाली औरतें
कविताओं से निष्कासित प्रेमिकाएँ?
डेथ सर्टिफ़िकेट से विलुप्त नाम?
भ्रूण हत्या में निकला माँस का लोथड़ा?
बलात्कार के क्लोज़्ड केस वाली स्त्रियाँ?

उन्हें जहाँ जहाँ से बेदख़ल किया गया
हर उस जगह पर खुरच कर लिखतीं अपना नाम
अपने प्रेमियों की मृत्यु की तिथि
और हत्या करने की वजह
वे अपने मुर्दा घरों की चौखट लाँघ कर आतीं
अंतिम संस्कार के पहले माँगती अंतिम चुम्बन

किसी अपशकुन की तरह चलता उनका क़ाफ़िला
वे अपनी मीठी आवाज़ और साफ़ उच्चारण में पढ़तीं
श्राद्धकर्म के मंत्र। उनके पास होती माफ़ी
दुनिया के सारे बेवफ़ा प्रेमियों के लिए।

वे किसी ईश्वर को नहीं मानतीं।
सजदा करतीं दुनिया के हर कवि का
लय में पुकारतीं मेघ, तूफ़ान और प्रेम को
और नामुमकिन होता उनका आग्रह ठुकराना।

कहते हैं, बहुत साल पहले, दुःख में डूबा
कवि, चिट्ठियों के दावानल से निकला
तो उसकी आँखों में आग बची रह गयी
उस आग से पिघल सकती थी
दुनिया की सारी बेड़ियाँ।

उन्हीं दिनों
वे लिए आती थीं अपना बदन
कवि की आँखों में पिघल कर
सोना बन जाती थीं औरतें
उनके बदन से पैरहन हटाने वाली आँखें
उम्र भर सिर्फ़ अँधेरा पहन पाती थीं।

औरतें
लिए आतीं थीं अपना पत्थर दिल
कवि की धधकती आँखें, उन्हें
लावा और राख में बदल देतीं
उनसे प्रेम करने वाले लोग
बन जाते थे ज्वालामुखी

बढ़ती जा रही है तादाद इन औरतों की
ये ख़तरा हैं भोली भाली औरतों के लिए
कि डरती तो उनसे सरकार भी है
नहीं दे सकती उन्हें बीच बाज़ार फाँसी।

सरकारी ऑर्डर आया है
सारे कवियों को, धोखे से
मुफ़्त की बँट रही मिलावटी शराब में
शुद्ध ज़हर मिला कर
मार दिया जाए।

इस दुनिया में, जीते जी
किसी को कवि की याद नहीं आती।

ना ही उसके बिन बन सकेंगी
सोना बदन और राख दिल वाली औरतें
कि जो दुनिया बदल देतीं।

ये दुनिया जैसी चल रही,
चलती रहनी चाहिए।
तुम भी बच्चियों को सिखाना
कविता पढ़ें, बस
न कि अपना दिल या बदन लेकर
कवि से मिलने चली जाएँ।

औरतों को बताएँ नियम
कवि से प्रेम अपराध है
बनी रहें फूल बदन, काँच दिल
बनी रहें खिलता हुआ हरसिंगार
बनी रहें औरतें। औरतें ही, बस।

26 April, 2018

तुमसे बात करना
बारिश में भीगना था
पोर पोर से उड़ती थी
ललमटिया देहगंध
छम छम हँसता था
आम का बौर 

तुमसे बात करके
धुल जाती थी कविताएँ
दिखते थे नए, चमकीले बिम्ब
तुम हँसते थे, और
पिकासो का नीला अवसाद
धुल जाता था आत्मा से

तुमसे बात किए बिना
मैं उजड़ता हुआ किला हूँ
टूटती मुँडेरों वाला
जिस पर दुश्मन या दोस्त
कोई भी आक्रमण कर सकता है

बरसों बीते तुमसे बात किए हुए
मैं इन दिनों,
तलवार की सान तेज़ करती हूँ
दुर्गा कवच पढ़ती हूँ
जिरहबख़्तर पहन के सोती हूँ
डरती हूँ

अपने टूटे हुए दिल से खेलती
सोचती हूँ अक्सर
जाने तुम मेरे हृदय का कवच थे
या तुमने ही मेरा कवच तोड़ा है।

19 January, 2018

हमारे अलविदा को ना लगे, किसी दिलदुखे आशिक़ की काली नज़र


विस्मृति की धूप से फीके हो जाएँगे सारे रंग
एक उजाड़ पौधे पर सूख गए आख़िरी फूल दिखेंगे
धूल धुँधला कर देगी खिड़की से बाहर के दृश्य
हमारे नहीं होने के कई साल बाद भी

मैं तलाशती रहूँगी हमारे ना होने की वजहें
अपने मन के अंधारघर में
मैं रहूँगी, इकलौती खिड़की पर
अंतहीन इंतज़ार में।

***

मैं नहीं रोऊँगी इस बार
कि आँख में बचा रहे काजल
और हमारे अलविदा को ना लगे
किसी दिलदुखे आशिक़ की काली नज़र

याद के बेरंग कमरे को
रंग दूँगी तुम्हारे साँवले रंग में।
स्टडी टेबल के ठीक ऊपर
टाँग दूँगी तुम्हारी हँसी की कंदीलें।

अलविदा के पहर कम दुखें, इसलिए ही
जलाऊँगी दालचीनी की गंध वाली मोमबत्ती।

हिज्र उदास कविताओं का श्रिंगार है
कहो अलविदा,
कि स्याही के अनेक रंग और कुछ सफ़ेद पन्ने
इंतज़ार में हैं।

24 November, 2017

ये सातवाँ था ब्रेक-अप और बारवीं मुहब्बत, दिल तोड़ने की तौबा मशीन हो रहे हो

ग़ुस्ताख़ हो रहे हो 
रंगीन हो रहे हो 
सारी हिमायतों की 
तौहीन हो रहे हो 

वो और होते होंगे 
बस हैंडसम से लड़के 
तुम हैंडसम नहीं रे 
हसीन हो रहे हो

होठों पे जो अटकी है 
आधी हँसी तुम्हारी
चक्खेंगे हम भी तुमको 
नमकीन हो रहे हो 

ये सातवाँ था ब्रेक-अप 
और बारवीं मुहब्बत 
दिल तोड़ने की तौबा 
मशीन हो रहे हो 

इतनी अदा कहाँ से 
तुम लाए हो चुरा के 
इतना नशा कहाँ पे   
तुम आए हो लुटाते 
छू लें तो जल ही जाएँ 
उफ़, इतने हॉट हो तुम 
हों दो मिनट में आउट
टकीला शॉट हो तुम 

थोड़ा रहम कहीं से 
अब माँग लो उधारी 
वरना तो मेरे क़ातिल
लो जान तुझपे वारी 
अब जान का मेरी तुम
चाहे अचार डालो 
हम फ़र्श पे गिरे हैं
पहले हमें उठा लो 

इतना ज़रा बता दो
तुम्हें पूरा भूल जाएँ 
या दोस्ती के बॉर्डर 
पर घर कोई बनाएँ 
लेकिन सुनो उदासी 
तुमपर नहीं फबेगी
कल देखना कोई फिर
अच्छी तुम्हें लगेगी 

तुम फिर से रंग चखना 
तुम फिर अदा से हँसना 
दिल तोड़ना कोई फिर 
और ज़ख़्म भर टहकना 
तुम इक नया शहर फिर
होना कभी कहीं पर 
हम फिर कभी मिलेंगे 
आँखों में ख़्वाब भर कर

अफ़सोस की गली की  
कोठी वो बेच कर के 
लाना बुलेट नयी फिर 
घूमेंगे हम रगड़ के
ग़ालिब का शेर बकना 
विस्की में चूर हो के 
कहना दुखा था कितना
यूँ हमसे दूर हो के 

इस बार पर ठहरना 
जैसे कि बस मेरे हो 
मन, रूह या बदन फिर 
कोई जगह रुके हो 
हम फिर कहेंगे तुमसे 
ग़ुस्ताख़ हो गए हो 
तुम चूम के चुप करना 
और कहना तुम मेरे हो 

16 October, 2017

कि जिनकी हँसी का अत्तर मोलाया जा सके सिर्फ़ आँसू के बदले

1. 
खुदा, हमारे इश्क़ पर 
बस इतनी इनायत करना
हमारा रक़ीब सिर्फ़ 'वक़्त' हो
कोई शख़्स नहीं 
कि जो छीन ले जाए
तुमको मेरी बाँहों से कहीं दूर
तुम्हारे ख़्वाबों से बिसार दे मेरी आँखें
तुम्हारी कविताओं से मेरी देहगंध
और तुम्हारी उँगलियों से सिगरेट 
वो बेरहम, बेसबब, बेदिल
वक़्त के बीतते पहर हों
ना कि कोई मुस्कुराती आँखों वाली लड़की
कि जिसे साड़ी पहनने का सलीक़ा हो
कि जिसके गालों में पड़े हल्के गड्ढे की रियल एस्टेट वैल्यू
न्यू यॉर्क के पॉश इलाक़े से भी ज़्यादा हो,
'प्रायस्लेस'/ बेशक़ीमत
कि जिसके दिल के आगे जंग लगा, पुराना 'नो एंट्री' बोर्ड ठुका हो 
रक़ीबों के हिस्से न आएँ कभी
सफ़ेद शर्ट्स और
बेक़रीने से इस्त्रि किए हुए ब्लैक पैंट्स
कि जिनके माथे पर झूलती लट को डिसप्लिन सिखाने को
किसी का जी ना चाहे
कि जिनकी हँसी का अत्तर
मोलाया जा सके सिर्फ़ आँसू के बदले 
दिल में ख़ाली जगह रखो तो
हर कोई चाहता है करना उसपर अवैध क़ब्ज़ा
इसलिए बना दो ऊँची चहारदिवारी
दरवाज़े पर बिठा दो स्टेनगन वाले ख़तरनाक गार्ड
कोई अंदर आने ना पाए
कोई भी नहीं 
सीने के बीचों बीच एक सुरंग खुदवा दो
जिसके दरवाज़े की चाभी सिर्फ़
बूढ़े वक़्त के पास हो
कि जो अंदर आए
देखे तुम्हें
मगर चाह कर भी
ना कर पाए तुमसे प्रेम

2. 
चौराहों का दोष नहीं
कि वे प्रेम की सड़क पर पड़े हुए
भाग जाने को नए शहरों के नाम सुझाते
नयी दिल्ली। न्यू यॉर्क। 
पुराना प्रेम रह जाता पुराने शहर में
इंतज़ार की पुरानी शराब में तब्दील होता हुआ 
आख़िर को लौट कर आता पुराना प्रेमी
नए प्रेम के गहरे ज़ख़्म लिए हुए
काँच प्याली की पुरानी शराब में
डुबो कर रखता कच्चा, टूटा दिल 
जब कि उसे चाहिए
कि कच्चे दिल को कर दे
हवस की आग के हवाले
बदन की रख से भर जाते हैं सारे ज़ख़्म 
सारे ख़ानाबदोश चारागर मर गए
पुराने शहर में कोई भी तो नहीं बचा
जो दरवाज़े की कुंडी पर टांग सके रूह को
बदन जलाने से पहले 
जानां, वो अभिशप्त चौराहा था
जिसने तुम्हें उस लड़की का रेगिस्तान दिल दिखलाया
रूहों को जिस्म के खेल समझ नहीं आते
उस लड़की को चूम लेना
उसे मुक्त करना था
तुम्हें क़ैद।

30 September, 2017

पुराने, उदार शहरों के नाम

शहरों के हिस्से
सिर्फ़ लावारिस प्रेम आता है
नियति की नाजायज़ औलाद
जिसका कोई पिता नहीं होता 
याद के अनाथ क़िस्सों को
कोई कवि अपनी कविता में पनाह नहीं देता
कोई लेखक छद्म नाम से नहीं छपवाता
कोई अखबारी रिपोर्टर भी उन्हें दुलराता नहीं 
इसलिए मेरी जान,
आत्महत्या हमेशा अपने पैतृक शहर में करना
वहाँ तुम्हारी लाश को ठिकाना लगाने वाले भी
तुम्हें अपना समझेंगे 
***
बाँझ औरत
दुःख अडॉप्ट करती है
और करती है उन्हें अपने बच्चों से ज़्यादा प्यार 
लिखती है प्रेम भरे पत्र
पुराने, उदार शहरों के नाम
कि कुछ शहर बच्चों से उनके पिता का नाम नहीं पूछते 
***
असफल प्रेमी
मरने के लिए जगह नहीं तलाशते
जगहें उन्हें ख़ुद तलाश लेती हैं
दुनिया की सबसे ऊँची बिल्डिंग के टॉप फ़्लोर पर
उसके दिल में एक यही ख़याल आया 
***
उस शहर को भूल जाने का श्राप
तुम्हारे दिल ने दिया था
इसलिए, सिर्फ़ इसलिए,
मैंने इतना टूट कर चाहा
हफ़्ते भर में हो चुकी है कितनी बारिश
तुम्हें याद है जानां, सड़कों के नाम?
स्टेशनों के नाम? कॉफ़ी शाप, व्हिस्की, सिगरेट की ब्राण्ड?
तो फिर उस लड़की का क्या ही तो याद होगा तुमको
भूल जाना कभी कभी श्राप नहीं, वरदान होता है 
***
बंद मुट्ठी से भी छीजती रही
तुम्हारी हथेली की गरमी
दिल के बंद दरवाज़े से
रिस रिस बह गया कितना प्रेम
कैलेंडेर के निशान को कहाँ याद
बाइस सितम्बर किस शहर में थी मैं
रूह को याद है मगर एक वादा
अब इस महीने को, 'सितम' बर कभी ना कहूँगी

29 August, 2017

कोई कविता आख़िरी नहीं होती, ना कोई प्रेम

कविता हलक में अटकी है
होठों पर तुम्हारा नाम

और साँस में मृत्यु

***
क़लम को सिर्फ़ कहानियाँ आती हैं।
ज़ुबान को झूठ।

तुम्हें तो तरतीब से मेरा नाम लेना भी नहीं आता।

***
कविता लिखने को ठहराव चाहिए।
जो मुझमें नहीं है। 

***
मैंने अफ़सोस को अपना प्रेमी चुना है
तुम्हारा डिमोशन हो गया है

'पूर्व प्रेमी'

***
शहर, मौसम, सफ़र
मेरे पास बहुत कम मौलिक शब्द हैं

इसलिए मैं हमेशा एक नए प्रेम की तलाश में रहती हूँ

***
तुम्हें छोड़ देना
ख़यालों में ज़्यादा तकलीफ़देह था
असल ज़िंदगी में तो तुम मेरे थे ही नहीं कभी 

***
मैंने तुमसे ही अलविदा कहना सीखा
ताकि तुम्हें अलविदा कह सकूँ 

***
तुम वो वाली ब्लैक शर्ट पहन कर
अपनी अन्य प्रेमिकाओं से मत मिलो
प्रेम का दोहराव शोभा नहीं देता

***
तुम्हारे हाथों में सिगरेट
क़लम या ख़ंजर से भी ख़तरनाक है

तुम्हारे होठों पर झूलती सिगरेट
क़त्ल का फ़रमान देती है

तुम यूँ बेपरवाही से सिगरेट ना पिया करो, प्लीज़!

***
'तुम्हें समंदर पसंद हैं या पहाड़?'
मुझे तुम पसंद हो, जहाँ भी ले चलो। 

***
'तुम्हारी क़लम मिलेगी एक मिनट के लिए?'
'मिलेगी, अपना दिल गिरवी रखते जाओ।'

कि इस बाज़ार में ख़रा सौदा कहीं नहीं।

***
आसमान से मेरा नाम मिटा कर
तसल्ली नहीं मिलेगी तुम्हें 

कि दुःख की फाँस हृदय में चुभी है

***
कोई कविता आख़िरी नहीं होती, ना कोई प्रेम
हम आख़िरी साँस तक प्रेम कर सकते हैं 

या हो सकते हैं कविता भी

09 February, 2016

जादूगर, जो खुदा है, रकीब़ भी और महबूब भी

वे तुम्हारे आने के दिन नहीं थे. मौसम उदास, फीका, बेरंग था. शाम को आसमान में बमुश्किल दो तीन रंग होते थे. हवा में वीतराग घुला था. चाय में चीनी कम होती थी. जिन्दगी में मिठास भी.

फिर एक शाम अचानक मौसम कातिल हो उठा. मीठी ठंढ और हवा में घुलती अफीम. सिहरन में जरा सा साड़ी का आँचल लहरा रहा था. कांधे पर बाल खोल दिये मैंने. सिगरेट निकाल कर लाइटर जलाया. उसकी लौ में तुम्हारी आँखें नजर आयीं. होठों पर जलते धुयें ने कहा कि तुमने भी अपनी सिगरेट इसी समय जलायी है. 

ये वैसी चीज थी जिसे किसी तर्क से समझाया नहीं जा सकता था. जिस दूसरी दुनिया के हम दोनों बाशिंदे हैं वहाँ से आया था कासिद. कान में फुसफुसा कर कह रहा था, जानेमन, तुम्हारे सरकार आने वाले हैं. 

'सरकार'. बस, दिल के खुश रखने को हुज़ूर, वरना तो हमारे दिल पर आपकी तानाशाही चलती है. 

खुदा की मेहर है सरकार, कि जो कासिद भेज देता है आपके आने की खबर ले कर. वरना तो क्या खुदा ना खास्ता किसी रोज़ अचानक आपको अपने शहर में देख लिया तो सदमे से मर ही जायेंगे हम. 

जब से आपके शहर ने समंदर किनारे डेरा डाला है मेरे शब्दों में नमक घुला रहता है. प्यास भी लगती है तीखी. याद भी नहीं आखिरी बार विस्की कब पी थी मैंने. आजकल सरकार, मुझे नमक पानी से नशा चढ़ रहा है. बालों से रेत गिरती है. नींद में गूंजता है शंखनाद. 

दूर जा रही हूँ. धरती के दूसरे छोर पर. वहाँ से याद भी करूंगी आपको तो मेरा जिद्दी और आलसी कासिद आप तक कोई खत ले कर नहीं जायेगा.

जाने कैसा है आपसे मिलना सरकार. हर अलविदा में आखिर अलविदा का स्वाद आता है. ये कैसा इंतज़ार है. कैसी टीस. गुरूर टूट गया है इस बार सारा का सारा. मिट्टी हुआ है पूरा वजूद. जरा सा कोई कुम्हार हाथ लगा दे. चाक पे धर दे कलेजा और आप के लिये इक प्याला बना दे. जला दे आग में. कि रूह को करार आये. 

---
किसी अनजान भाषा का गीत
रूह की पोर पोर से फूटता
तुम्हारा प्रेम
नि:शब्द.

--//--
वो
तुम्हारी आवाज़ में डुबोती अपनी रूह 
और पूरे शहर की सड़कों को रंगती रहती 
तुम्हारे नाम से
--//--

तर्क से परे सिर्फ दो चीज़ें हैं. प्रेम और कला. 
जिस बिंदु पर ये मिलते हैं, वो वहाँ मिला था मुझे. 
मुझे मालूम नहीं कि. क्यों.

--//--

उसने जाना कि प्रेम की गवाही सिर्फ़ हृदय देता है। वो भी प्रेमी का हृदय नहीं। उसका स्वयं का हृदय।
वह इसी दुःख से भरी भरी रहती थी।
इस बार उसने नहीं पूछा प्रेम के बारे में। क्यूंकि उसके अंदर एक बारामासी नदी जन्म ले चुकी थी। इस नदी का नाम प्रेम था। इसका उद्गम उसकी आत्मा थी।

--//--

उसने कभी समंदर चखा नहीं था मगर जब भी उसकी भीगी, खारी आँखें चूमता उसके होठों पर बहुत सा नमक रह जाता और उसे लगता कि वो समंदर में डूब रहा है।

--//--

तुम जानती हो, उसके बालों से नदी की ख़ुशबू आती थी। एक नदी जो भरे भरे काले बादलों के बीच बहती हो।

--//--

तुम मेरी मुकम्मल प्यास हो.

--//--

नमक की फितरत है कच्चे रंग को पक्का कर देता है. रंगरेज़ ने रंगी है चूनर...गहरे लाल रंग में...उसकी हौद में अभी पक्का हो रहा है मेरी चूनर का रंग...
और यूं ही आँखों के नमक में पक्का हो रहा है मेरा कच्चा इश्क़ रंग...
फिर न पूछना आँसुओं का सबब.

--//--

प्यास की स्याही से लिखना
उदास मन के कोरे खत
और भेज देना 
उस एक जादूगर के पास
जिसके पास हुनर है उन्हें पढ़ने का
जो खुदा है, रकीब़ भी और महबूब भी

--//--

वो मर कर मेरे अन्दर
अपनी आखिर नींद में सोया है
मैं अपने इश्वर की समाधि हूँ.

***
----
***

मैं तुम्हारे नाम रातें लिख देना चाहती हूँ 
ठंडी और सीले एकांत की रातें 
नमक पानी की चिपचिपाहट लिए 
बदन को छूने की जुगुप्सा से भरी रातें 
---
ये मेरे मर जाने के दिन हैं मेरे दोस्त 
मैं खोयी हूँ 'चीड़ों पर चाँदनी में' 
और तुम बने हुए हो साथ
--/
मैं तुम्हारे नाम ज़ख़्म लिख देना चाहती हूँ
मेरे मर जाने के बाद...
तुम इन वाहियात कविताओं पर 
अपना दावा कर देना
तुमसे कोई नहीं छीन सकेगा 
मेरी मृत्यु शैय्या पर पड़ी चादर 
तुम उसमें सिमटे हुए लिखना मुझे ख़त 
मेरी क़ब्र के पते पर
वहाँ कोई मनाहट नहीं होगी 
वहाँ सारे ख़तों पर रिसीव्ड की मुहर लगाने 
बैठा होगा एक रहमदिल शैतान 
---/
मुझे कुछ दिन की मुक्ति मिली है 
मुझे कुछ लम्हे को तुम मिले हो
उम्र भर का हासिल
बस इतना ही है.

19 May, 2015

इक रोज़ उसी बेपरवाही से क़त्ल किया जाएगा हमें | जिस बेपरवाही से हमने जिंदगी जी है


इस कविता को बहुत दिन पहले फेसबुक पर लिखा था. कल रात इसकी अचानक तलब लगी. कोई एक टुकड़ा था जो याद में चुभ गया था. यहाँ के बुरे इन्टरनेट कनेक्शन में इसे तलाशना भी मुश्किल था. फिर सोच रही थी कि हमें टूटी फूटी चीज़ें अक्सरहां ज्यादा पसंद आती हैं. के मुझे साबुत चीज़ों को तोड़ देने का और टूटी चीज़ों को जोड़ देने का शौक़ है. जाने क्या सोचते हुए परख रही थी उसका दिल. देख रही थी कि कितनी खरोंचें लगी हैं इस पर. फिर अपने दिल को देखा तो लगा कि है इसी काबिल के इसे तोड़ दिया जाए.
---

इन्हीं आँखों से क़त्ल किया जाएगा हमें 
और भीगी रात के कफ़न में लपेट कर
दफना दिया जाएगा
किसी की न महसूस होती धड़कनों में

कोई चुप्पी बांधेगी हमारे हाथ
और विस्मृति की बेड़ियों में रहेंगे वो सारे नाम
जिनकी मुहब्बत
हमें लड़ने का हौसला दे सकती थी 

इन्साफ के तराजू में
हमारे गुनाहों का पलड़ा भारी पड़ेगा
सबकी दुआओं पर
और तुम्हारी माफ़ी पर भी 

हमारे लिए बंद किये जायेंगे दिल्ली के दरवाजे
देवघर के मंदिर का गर्भगृह
और सियाही की दुकानें

बहा दिया जाएगा जिस्म से
खून का हर कतरा
तुम्हारी तीखी कलम की निब से काट कर हमारी धमनी

हमें पूरी तरह से मिटाने को
बदल दिए जायेंगे तुम्हारी कहानियों के किरदारों के नाम
तुम्हारी कविताओं से हटा दी जाएँगी मात्रा की गलतियाँ
और तुम्हारे उच्चारण से 'ग' में लगता नुक्ता

इक रोज़
उसी बेपरवाही से क़त्ल किया जाएगा हमें
जिस बेपरवाही से हमने जिंदगी जी है

20 January, 2015

टूट जाने का हासिल होना भी क्या था...

उसका सारा बदन बना है शीशे का
काँच के होठ, काँच बाँहें 
उससे बेहद सम्हल के मिलती हूँ
फिर भी चुभ ही जाता है 
माथे पर कोई आवारा बोसा

कभी काँधे पे टूट जाती हैं 
उसकी नश्तर निगाहें 
और उंगलियों में फँसी रह जाती हैं 
उसकी काँच उंगलियाँ
फिर कितने दिन नहीं लिख पाती कोई भी कविता

उसके कमरे में सब कुछ है काँच का
वो उगाता है काँच के फूल
जिन्हें बालों में गूँथती हूँ
तो ख्वाब किरिच किरिच हो जाते हैं

ये जानते हुये कि एक दिन
मुझसे टूट जायेगा उसका काँच दिल
मैं करती हूँ उससे टूट कर प्यार
धीरे धीरे होने लगा है
मेरा दिल भी काँच का।

शायद हम दोनों के नसीब में
साथ टूटना लिखा हो।

14 January, 2015

एक रोज़ वो खरीद लाता मेरे लिए गुलाबी चूड़ियाँ

उससे बात करते हुए उगने लगता है एक नया शहर
जिसमें हम दोनों के शहरों से उठ कर आये कुछ रस्ते हैं
कुछ गलियां, कुछ पगडंडियां और कुछ पुराने बाज़ार भी

उसके शहर का डाकिया मुझसे पूछता है उसकी गली का पता
मेरे मोहल्ले के मोड़ पर शिफ्ट हो जाता है उसकी सिगरेट का खोमचा
फेरीवाला उसके यहाँ से खरीदता है पुराना कबाड़
और मुझे बेच देता है उसकी लिखी सारी डायरियां
मैं देर देर रात भटकती रहती हूँ बैंगलोर में
यहाँ गंध आती है उसके गाँव की
उसके लड़कपन की...
उसके आवारागर्दी के किस्सों की

हम दोनों निकाल लाते हैं अपनी अपनी स्ट्रीट कैट
और उसके काले हैंडल पर फ़िदा होते हैं एक साथ ही
मुझे यकीन नहीं होता कि हमारे पास हुआ करती थी एक ही साइकिल
सुबहों पर मेरा नाम लिखा होता था, शामों पर उसका
हम किसी दोपहर उसी एक साईकिल पर बैठ कर निकल जाते किसी भुट्टे के खेत में

मैं उसे सिखाती गुलेल से निशाना लगाना
और वो मुझे तोड़ के देता मोहन अंकल के बगान से कच्चा टिकोरा
मैं हाफ पैंट की जेब में रखती नमक के ढेले
हम लौट कर आते तो पीते एक ही घैला से निकाला ठंढा पानी

उसे बार बार लगता मैं मैथ के एक्जाम में फेल हो जाउंगी
मुझे लगता वो सारे एक्जाम में फेल हो जाएगा
जब कि हम क्लास में फर्स्ट और सेकंड आते, बारी बारी से

एक रोज़ वो खरीद लाता मेरे लिए गुलाबी चूड़ियाँ
मैं अपने दुपट्टे से पोछ देती उसके माथे पर बहता पसीना
वो मुझे वसंत पंचमी के दिन एक गाल पर लगा देता लाल अबीर
मैं इतने में हो जाती पूरी की पूरी उसकी

मगर फिर ख़त्म हो जाते उसकी डायरी के पन्ने
और मुझे लिखनी होती एक पूरी किताब
सिर्फ इसलिए कि उसके नाम से रच सकूं एक किरदार
और कह सकूं दुनिया से 'कहानी के सारे पात्र काल्पनिक हैं'

03 January, 2015

दिल भूल के उर्दू दिल में कहता, वो चोट्टा भी बिहारी है

रात रात जगने की हमको पुरानी जरा बिमारी है
इक उम्र की मुहब्बत होनी थी, एक सदी से तारी है

मेरी शामत ही आनी थी देख के तेरी आँखों को
आँखों आँखों ही में जानम सारी रात गुजारी है

सोच के तुमको आम के बौरों जैसा बौरा जाते हैं
दिल भूल के उर्दू दिल में कहता, वो चोट्टा भी बिहारी है

तरतीबों वाले चक्खेंगे तरतीबी से होठ तेरे
मेरे हत्थे चढ़ोगे जिस दिन, काटेंगे ज्यों केतारी है

दिलवालों की दुनिया में कुछ अपनी तानाशाही है
तेरी बुलेट पर तुझे भगा लें ऐसी अदा हमारी है

आंधी से लिपट कर कहते हो डर लगता है रफ्तारों से
लो पकड़ो आँचल मेरा, मेरी तूफानों से यारी है

कहाँ कलेजा है तुमको कि ले भी पाओ नाम मेरा
कोई पूछे तो कहते हो वो बस 'दोस्त' हमारी है 

***
रात कुएं में भांग पड़ी थी,
भोर को भी थोड़ी सी चढ़ी थी
हम दोनों ने कित्ती पी थी?
ग़ज़ल कभी मीटर में भी थी?
***
नए साल का पहला जाम...मुहब्बत तेरे नाम.

सोचा तो था कि तमीज से न्यू इयर रिजोल्यूशन की पोस्ट डालेंगे...मगर लग रहा है कि कोई रिजोल्यूशन नहीं बनने वाला तो पोस्ट का क्या ख़ाक अचार डालेंगे. ग़ज़ल वज़ल हमको लिखनी आती नहीं और न लिखने का शौक़ है. वो रात भर आज नींद नहीं आ रही थी तो जो खिटिर पिटिर कर रहे थे पोस्ट कर दिए. सुधी जन जानते हैं कि मेरा और मैथ का छत्तीस का आंकड़ा है...तो साल किसी अच्छे आंकड़े से शुरू करते हैं.

थ्री चियर्स फॉर २०१५. तमीज से रहना बे नए साल, नहीं तो इतना पटक पटक के धोयेंगे कि जनवरी में ही पुराने पड़ जाओगे.

This new year...may adventures find their way to you...and just when it tends to get a tad bit overwhelming...I wish you peace.

Happy New Year. 

21 December, 2014

कि रात भर बजा है हिचकियों का ओर्केस्ट्रा

नींद
एक गुमा हुआ देश है
बिना सरहदों, बिना नियमों वाला
जहाँ इजाज़त होती है इश्क को
बिलावजह चले आने की
और भटकने की दर बदर
जब तलक कि कोई उदास आँखों वाली लड़की
उसे अपने चौकोर कमरे वाले दिल में पनाह न दे दे

नींद
मारिजुआना का मीठा नशा है
याद की धुंध में तुम्हारी महक से घुलता-लिपटता
सिगरेट के पहले गहरे कश की तरह
सुलगाता. जलाता. भुलाता.
बंद करता आँखें जैसे खेल रहे हों लुक्का छिप्पी
और अचानक ही भर लेता आलिंगन में. धप्पा.

नींद
उसकी आँखों में लिखी कोई सीली इबारत है
जिसे पढ़ती हूँ तो उँगलियों के पोर ठंढे पड़ते जाते हैं
वो अलाव में गर्म करता अपने हाथ
हथेलियों में भरता मेरा चेरा
और सेक देता लम्हा लम्हा तड़पती रूह को

नींद
चाँद रंग वाली एक लड़की की हंसी है
चिनारों पर उतरती हुयी
हवा के राग में लेती उसका नाम
कानों के पास से गुजरती तो देती धोखे
सी...सी...सी...
मगर वो दिखता नहीं कोहरीली आँखों के पार

नींद
पहले ब्रेकऑफ का हैंगोवर है
बदन में मरोड़ की तरह टूटता
नाख्याली के सियाह में गुम हो जाने के पहले
कर्ट कोबेन की आवाज़ में चीखता
'नो आई डोंट हैव अ गॉड'

नींद
एक अलसाई सुबह है
तुम्हारे कंधे पर कुनमुनाती
शिकायतों का पिटारा खोलती
रात भर बजा है हिचकियों का ओर्केस्ट्रा
सुनो, ये रात रात भर हमें याद करना बंद करो

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