14 October, 2018

कविता पढ़ते हुए
उसके काग़ज़ी होंठ
नहीं मैच करते उसकी आवाज़ से।
थिर हो पढ़ता है कविता 
आवाज़ रह जाती है
सुनने वाले की चुप्पी में आजीवन। 
जी उठते हैं उसके होंठ
चूमने की हड़बड़ाहट में
छिनी जा रही होती है उम्र।
नहीं पड़ते हैं निशान
कि लौटानी भी तो होती है
उधार पर लायी प्रेमिका।
उसके प्रेम में उलझी स्त्रियों की
नश्वर देह में भी जीता है
उसका कालजयी कवि मन।
वो कविता पढ़ते हुए
कुछ और होता है
चूमते हुए कुछ और।
***
***
जाते हुए वह नहीं रुकता
शब्दों से, कविता से, या किताबों से ही
वो रुकता है सिर्फ़ देह पर।
इसलिए पिछली बार उसके जाते हुए
मैंने उसे लंघी मार दी
वो देहरी पर ऐसा गिरा कि कपार फूट गया
और कई कविताएँ बह गयीं टप टप उसके माथे से बाहर।
उस बार वह कई दिन रुका रहा था
शाम की सब्ज़ी, सुबह की चाय, और
दुनिया के सबसे अच्छे कवि कौन हैं
पर बक-झक करते हुए।

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