पूजा उपाध्याय
उस दौर की हूँ जब बिहार और झारखण्ड एक ही राज्य हुआ करते थे तो अपने को 'बिहारी' मानती हूँ. बचपन की खुराफातें देवघर में की, जो कि अब झारखण्ड का हिस्सा है. अच्छे स्कूल में मन लगा के पढ़ती थी, नंबर अच्छे आते थे. फिर पटना जाना हुआ ऊपर की पढ़ाई और पापा के ट्रांसफर के कारण...Women's College में पढ़ाई के अलावा सब कुछ सीखा...फिल्में बनायीं, रेडियो पर प्रोग्राम किये, फोटोग्राफी की, कॉलेज लाइब्रेरी को पूरा पढ़ जाने की कोशिश भी की. हसरतों से कॉलेज की चार दीवारी को देखती...फांदने या भाग के कुछ करने की हिम्मत नहीं हुयी तीन सालों में. कॉलेज के लगभग सारे कॉम्पिटिशन में भाग लेना, बहुत कुछ जीतना, क्लास बंक करना...सेंटी गाने सुनके रोना...सब किया.
आगे की पढाई इससे भी आगे....दिल्ली में Indian Institute of Mass Communication (IIMC) में दाखिल हुयी, लगा कि बहुत बड़ा तीर मारा है. जेएनयू की ख़ाक छानी, पार्थसारथी, गंगा ढाबा, टेफ्ला सब जगह पायी जाती थी. पढाई भी की, बहुत सारे प्रोजेक्ट निपटाए...advertising चुना खुद के लिए...नौकरी की. वर्किंग वुमन होस्टल को घर बनाया और NH8 से दिल लगाया...कुणाल से मिली और लगा कि वाकई जब उस खास से मिलते हैं तो बदल गरजते हैं, बिजली कड़कती है और पहली नज़र का प्यार होता है .
बंगलोर कुणाल के ट्रान्सफर के बाद आना हुआ...दिल वहीँ दिल्ली में अटका रह गया...बंगलोर से प्यार करना अरेंज मैरिज की तरह है...धीरे धीरे शायद होगा कभी जबकि दिल्ली was love at first sight. वो ३ अगस्त २००५ था...IIMC में मेरा पहला दिन जब एकदम अकेले थे, शाम के छह बज रहे थे और दिल्ली जैसे ओर्केस्ट्रा की धुन पर बारिश लायी थी, लैम्पपोस्ट की पीली रौशनी में.
बंगलोर में बाइक चलाने, शोपिंग करने और कन्नड़ न जाने पर सर फोड़ने के अलावा कभी कभार ऑफिस ज्वाइन कर लेते हैं, मात्र मनोरंजन के उद्देश्य से. लिखते हैं, पढ़ते हैं, फिल्म देखते हैं...गाने सुनते हैं. अच्छी कॉफी बनाते हैं.
घर में भाई है, बादल(जिमी) उससे दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करते हैं पापा के बाद. कुणाल के तरफ बड़ा सा परिवार है जिसमें आकाश को सबसे ज्यादा मानते हैं और फिर छुटंकी गुनगुन को.
बहुत बोलती हूँ, बहुत लिखती हूँ.
इत्ता काफी है.
उस दौर की हूँ जब बिहार और झारखण्ड एक ही राज्य हुआ करते थे तो अपने को 'बिहारी' मानती हूँ. बचपन की खुराफातें देवघर में की, जो कि अब झारखण्ड का हिस्सा है. अच्छे स्कूल में मन लगा के पढ़ती थी, नंबर अच्छे आते थे. फिर पटना जाना हुआ ऊपर की पढ़ाई और पापा के ट्रांसफर के कारण...Women's College में पढ़ाई के अलावा सब कुछ सीखा...फिल्में बनायीं, रेडियो पर प्रोग्राम किये, फोटोग्राफी की, कॉलेज लाइब्रेरी को पूरा पढ़ जाने की कोशिश भी की. हसरतों से कॉलेज की चार दीवारी को देखती...फांदने या भाग के कुछ करने की हिम्मत नहीं हुयी तीन सालों में. कॉलेज के लगभग सारे कॉम्पिटिशन में भाग लेना, बहुत कुछ जीतना, क्लास बंक करना...सेंटी गाने सुनके रोना...सब किया.
आगे की पढाई इससे भी आगे....दिल्ली में Indian Institute of Mass Communication (IIMC) में दाखिल हुयी, लगा कि बहुत बड़ा तीर मारा है. जेएनयू की ख़ाक छानी, पार्थसारथी, गंगा ढाबा, टेफ्ला सब जगह पायी जाती थी. पढाई भी की, बहुत सारे प्रोजेक्ट निपटाए...advertising चुना खुद के लिए...नौकरी की. वर्किंग वुमन होस्टल को घर बनाया और NH8 से दिल लगाया...कुणाल से मिली और लगा कि वाकई जब उस खास से मिलते हैं तो बदल गरजते हैं, बिजली कड़कती है और पहली नज़र का प्यार होता है .
बंगलोर कुणाल के ट्रान्सफर के बाद आना हुआ...दिल वहीँ दिल्ली में अटका रह गया...बंगलोर से प्यार करना अरेंज मैरिज की तरह है...धीरे धीरे शायद होगा कभी जबकि दिल्ली was love at first sight. वो ३ अगस्त २००५ था...IIMC में मेरा पहला दिन जब एकदम अकेले थे, शाम के छह बज रहे थे और दिल्ली जैसे ओर्केस्ट्रा की धुन पर बारिश लायी थी, लैम्पपोस्ट की पीली रौशनी में.
बंगलोर में बाइक चलाने, शोपिंग करने और कन्नड़ न जाने पर सर फोड़ने के अलावा कभी कभार ऑफिस ज्वाइन कर लेते हैं, मात्र मनोरंजन के उद्देश्य से. लिखते हैं, पढ़ते हैं, फिल्म देखते हैं...गाने सुनते हैं. अच्छी कॉफी बनाते हैं.
घर में भाई है, बादल(जिमी) उससे दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करते हैं पापा के बाद. कुणाल के तरफ बड़ा सा परिवार है जिसमें आकाश को सबसे ज्यादा मानते हैं और फिर छुटंकी गुनगुन को.
बहुत बोलती हूँ, बहुत लिखती हूँ.
इत्ता काफी है.