17 November, 2023

Emotional anaesthesia

एक हफ़्ते पहले डेंटिस्ट के पास गयी थी। डेंटल सिरदर्द पूरी उमर चलता रहा है। बहुत कम वक्त हुआ है कि दांतों में कोई दिक्कत न रही हो और दोनों ओर से ठीक-ठीक चबा कर खाना खा सकें। कैविटी थी बहुत सारी, इधर उधर, ऊपर नीचे…ग़ालिब की तरह, एक जगह हो तो बताएँ कि इधर होता है।

डेंटिस्ट ने पूछा, अनेस्थेसिया का इंजेक्शन देना है कि नहीं। तो हम बोले, कि ऑब्वीयस्ली देना है। कोई बिना अनेस्थेसिया के इंजेक्शन के क्यूँ ये काम कराएगा, क्या कुछ लोगों को दर्द अच्छा लगता है? इसपर डेंटिस्ट ने कहा, कभी कभी दर्द बहुत ज़्यादा नहीं होता है, बर्दाश्त करने लायक़ होता है।
अब ये बर्दाश्त तो हर व्यक्ति का अलग अलग होता है, सो होता ही है। मुझे ये भी महसूस हुआ कि उमर के अलग अलग पड़ाव पर हमारे दर्द सहने की क्षमता काफ़ी घटती-बढ़ती रहती है। 2018 में महीनों तक मुझे घुटनों में बहुत तेज़ दर्द रहा था। रात भर चीखते चीखते आख़िर को चुप हो गयी थी, तब लगा था, इससे ज़्यादा दर्द हो ही नहीं सकता। फिर 2019 में बच्चे हुए। सिज़ेरियन एक बड़ा ऑपरेशन होता है, उसमें भी मेरे जुड़वाँ बच्चे थे। जब तक ख़ुद के शरीर में ना हो, कुछ चीज़ें सेकंड हैंड एक्स्पिरीयन्स से नहीं समझ सकते। जब पेनकिलर का असर उतरा था, तो लगा था जान निकल जाएगी, ये भी लगा था, इतना दर्द होता है, फिर भी कोई औरत दूसरा बच्चा पैदा करने को सोचती भी कैसे है। यह सोचने के दो दिन बाद मेरी दूसरी बेटी NICU, यानी कि Neonatal ICU से निकल कर आयी थी और पहली बार दोनों बेटियों को एक साथ देखा, तो लगा, यह ख़ुशी एक अनेस्थेसिया है। इस ख़ुशी की याद से शायद हिम्मत आती होगी। डिलिवरी के ठीक एक हफ़्ता बाद हम पूरी तरह भूल गए थे कि कितना दर्द था। मेरी दर्द को याद रखने की क्षमता बहुत कम है। जल्दी भूल जाती हूँ।
बचपन में डेंटिस्ट के यहाँ जाते थे तब ये पेनकिलर इंजेक्शन नहीं बना था। अब तो पेनकिलर इंजेक्शन के अलावा नमबिंग जेल होता है, जिसके लगाने पर इंजेक्शन देने की जगह भी दर्द नहीं होता। दांत साफ़ करने की मशीन की झिर्र झिर्र मुझे दुनिया की सबसे ख़तरनाक आवाज़ लगती है, जिसे सुन के ही उस दर्द की याद आती है और सिहरन होती है।
यहाँ मैं डेंटिस्ट की कुर्सी पर बैठी हूँ, और मैं ही हूँ जो डेंटिस्ट से कह रही हूँ कि बिना अनेस्थेसिया कर के देखते हैं, कहाँ तक दर्द बर्दाश्त हो सकता है।
आँख के ऊपर तेज़ रोशनी होती है। तो आँखें ज़ोर से भींच के बंद करती हूँ। कुर्सी के हत्थों पर हाथ जितनी ज़ोर से हो सके, पकड़ती हूँ। साँस गहरी-गहरी लेती हूँ। डॉक्टर कहता है, रिलैक्स।
बिना ऐनेस्थेटिक। जिसको हम मन का happy place कहते हैं। ज़ोर से आँख भींचने पर दिखता है। साँस को एक लय में थिर रखती हूँ। Emotional anaesthesia.
मन सीधे एक नए शहर तक पहुँचता है, धूप जैसा। Can a hug feel like sunshine? Filling me with warmth, light and hope? अलविदा का लम्हा याद आता है। क्यूँ आता है? किसी को मिलने का पहला लम्हा क्यूँ नहीं आता? या कि आता है। धुँधला। किसी को दूर से देखना। घास के मैदान और मेले के शोरगुल और लोगों के बीच कहीं। सब कुछ ठहर जाना। जैसे कोई आपका हाथ पकड़ता है और वक़्त को कहता है, रुको। और वक़्त, रुक जाता है।
I float in that hug. Weightless. आख़िरी बार जब दो घंटे के MRI में मशीन के भीतर थी, तब भी यहीं थी। कि अपरिभाषित प्रेम से भी बढ़ कर होता है?
मुझे टेक्स्चर याद रह जाता है। रंग भी। कपास। लिनेन। नीला, काला, हल्का हरा। छूटी हुयी स्मृति है, कहती है किसी से, तुम्हारी ये शर्ट बहुत पसंद है मुझे। ये मुझे दे दो। उसे भूल जाने के कितने साल बाद यह लिख रही हूँ और उसके पहने सारे सॉलिड कलर्ज़ वाले शर्ट्स याद आ रहे, एक के बाद एक।
दो फ़िल्में याद आती हैं, वौंग कार वाई की। Days of being wild और As tears go by. इन दोनों में मृत्यु के ठीक पहले, एक लड़का है जो एक लड़की को याद कर रहा है। डेज़ ओफ़ बीइंग वाइल्ड वाला लड़का गलती से गोली लगने से मर रहा है और उस लड़की को याद कर रहा है, जिसके साथ उसने थिर होकर एक मिनट को जिया था और वादा किया था कि मैं इस एक मिनट को और तुम्हें, ताउम्र याद रखूँगा। As tears go by के लड़के को एक फ़ोन बूथ में हड़बड़ी में चूमना याद रहता है। स्लो मोशन में यह फ़ुटेज उसे लगती हुयी गोलियों के साथ आँख में उभरता है। हम पाते हैं कि we are unconsolable. मृत्यु इतनी अचानक, अनायास आती है, हमें खुद को सम्हालने का वक़्त नहीं मिलता। ये दोनों लड़के बहुत कम उमर के हैं। जिस उमर में मुहब्बत होती है, इस तरह का बिछोह नहीं।
मन में शांत में उगते ये लम्हे कैसे होते हैं। धूप और रौशनी से भरे हुए। मैं याद में और पीछे लौटती हूँ, सोचती हुयी कि ये लोग, ये शहर, ये सड़कें, ये इतना सा आसमान नहीं होता तो कहाँ जाती मैं, फ़िज़िकल दुःख से भागने के लिए। इन लम्हों में इतनी ख़ुशी है कि आँख से बहती है। आँसू। डेंटिस्ट की कुर्सी है। अभी अभी मशीन झिर्र झिर्र कर रही है, लेकिन मैं बहुत दूर हूँ, इस दर्द से। इतनी ख़ुशी की जगह जहाँ मैं बहुत कम जाती हूँ। मेरे पास ख़ुशी चिल्लर सिक्कों की तरह है जो मैंने पॉकेट में रखी है। इसे खर्च नहीं करती, इन सिक्कों को छूना, इनका आकार, तापमान जाँच लेना, यक़ीन कर लेना कि ये हैं मेरे पास। मुझे खुश कर देता है।
कि भले ही बहुत साल पहले, लेकिन इतना सा सुख था जीवन में…इतना सांद्र, इतना कम, इतना गहरा…अजर…अनंत…असीम।
इमोशनल अनेस्थेसिया के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये होती है, कि इसका असर हटता है तो मन में इतना दुःख जमता है कि लगता है इससे अच्छा कोई फ़िज़िकल पेन बर्दाश्त कर लेते तो बेहतर होता। मन इधर से उधर डोलता है। जैसे ज़मीन हिल रही हो। थोड़ी थोड़ी।
डेंटिस्ट के यहाँ से लौटते हुए देखती हूँ कि वहाँ पारदर्शी शीशा है। और वहाँ की कुर्सी, वहाँ के डॉक्टर, किसी ऑल्टर्नट दुनिया की तरह लगते हैं। कि मैं अभी जहाँ से लौटी हूँ कि जबड़ा पूरा दर्द कर रहा है। लेकिन दिल पर ख़ुशी का जिरहबख़्तर है और वो बेतरह खुश है। कि बदन को कुछ भी हो जाए, मुहब्बत में डूबे इस दिल को कोई छू भी नहीं सकता।

21 March, 2023

तिलिस्म में उसे बनाने वाले के साथ घूमते हैं

वत्सलामेरी कॉलेज की दोस्तउसने कहानी के बाद सवाल पूछा। ‘तुम जो कहानियाँ लिखती होऐसी तिलिस्मी कहानियाँऐसी कहानी और जिंदगी के बीच में बैलेन्स कैसे बिठाती हो? How do you stay sane?’
'I don't. I can't. I am insane'. बहुत मुश्किल है ज़िंदगी जीना। कि हम सिलेक्टिव्ली वल्नरेबल नहीं हो सकते। कि कहानी लिखते हुए दिल को छोड़ दियासब कुछ महसूस लेने को। और कहानी ख़त्म होते ही दिल के दरवाज़े बंद कर किसी खोल में घुस गएकोई जिरहबख़्तर बाँध लिया कि ज़िंदगी का कोई दुःख मुझे छू  सके।
इस शनिवारबैंगलोर में स्टोरीटेलिंग का प्रोग्राम था। इश्क़ तिलिस्म जिस समय प्रिंट हो कर आयी थीउस वक्त अति-उत्साह में इतने वक्त आगे, मार्च का दिन और जगह बुक कर दिए थे। भूल गए थे कि ये बैंगलोर हैयहाँ किसके पास ऐसे कहानियों की फ़ुरसत होगीसुबह हुयी तो कुणाल ने कहाबीस मिनट से आधे घंटे मैक्स किसी का अटेन्शन स्पैन होगा। उस समय तक मैंने जो एक बार खुद की तसल्ली के लिए कहानी रेकर्ड करने की कोशिश की थीवो एक घंटा हो चुकी थीकम से कम आधा घंटा और होती। हम घबराए हुए थे। एक घंटे से कम में तो किसी भी तरह से कहानी सुना ही नहीं सकते। इम्पॉसिबल। इस इम्पॉसिबल के साथ घर से चले तो अपने ही इवेंट पर आधा घंटा लेट पहुँचे। Atta Galatta का न्यूज़लेटर पढ़ कर एक व्यक्ति आया थाइवेंट पर। अमित चतुर्वेदीउन्हें लिखने-पढ़ने का ख़ूब शौक़ हैऔर वे शहर में नए हैं। बाक़ी सब अपने दोस्त थे। बैंगलोर को बहुत ज़्यादा स्टीरियोटाइप कर दिया है लोगों नेकि सबके लिए आसान होता है। जब हम हर व्यक्ति को अलग अलग जानने के बजाए एक ही खाँचे में डाल देते हैं तो आसान होता है। शायद बाज़ार के लिए। धीरे धीरे सब लोग खुद भी मानने लगते हैं कि वे उसी स्टीरियोटाइप को बिलोंग करते हैं। बैंगलोर में कौन कहानी सुनने आएगाएक ऐसा ही सवाल है। मेरी कहानी सुनने जो लोग आएअधिकतर सॉफ़्ट्वेर में काम करते हैं। इश्क़ तिलिस्म में जो आर्टिफ़िशल इंटेलिजेन्स का हिस्सा हैमैंने उसकी कहानियाँ इन लोगों से सुनी हैं। 
छोटा सा ऑडिटॉरीयम। कुर्सियाँ लगी हुयीं। अच्छी साउंड-प्रूफ़िंग। मैंने माइक नहीं लिया। स्टेज पर रखी कुर्सी पर नहींनीचे स्टेज पर बैठी। जैसे पुराने जमाने में अपने घर में लोगों को चारपाई पर बैठ कर कहानी सुनाते देखा था। मैंने अजरख की लाल-कत्थई मिट्टी रंग की साड़ी पहनी थी। दिल्ली से लौटे ज़्यादा वक़्त नहीं हुआ थामैं भूली नहीं थीकि मैंने एक तिलिस्म रचा है। कि मैं एक तिलिस्म हूँ। कहानियाँ कहते हुए मैं कोई और होती हूँइस बार मैंने उस और को थोड़ा सा जीने से खुद को रोका नहीं। 
एक एक करके तिलिस्म के दरवाज़े खोलती गयी। लोग मेरे साथ कहानी में गहरे उतरते गए। इतराँउसका गाँव तिलिसमपूरउसका रूद्रउसकी नब्ज में सुनाई देती चिट्ठियाँकई सारी कहानियाँउसकी दादी सरकारहवा में जादू घुल रहा था। सब कहानी में खो गए थे। 
किसी ने मोबाइल निकाल कर विडीओ नहीं बनायाफ़ोटो तक नहीं खींचे। किसी ने नोटिफ़िकेशन नहीं देखे। एक घंटा हो गया था। कहानी में मोक्ष की एंट्री हो गयी थी। कुलधरा में। मेघ रंग आँखों वाला मोक्ष। बारिश के दिन इतरां से सिगरेट माँगता। काँधे पर के टैटू, ‘तत् त्वम असि’ से लिखता सवालतुम वही होजिसकी मुझे तलाश हैमैंने सुनने वालों से पूछा। ‘ब्रेक चाहिएचायकॉफ़ीखाने को कुछ?’ किसी को कुछ नहीं चाहिए था। सिर्फ़ कहानी सुनने आए थे लोग। 

डेढ़ घंटा। सिर्फ़ कहानी। एक छोटे से स्टेज पर बैठे हुए हम कहानी कहते रहे और लोगों ने पूरा डूब कर सुना। रील्स और वाइरल विडीओ के इंस्टंट दौर में इतने देर तक किसी का ध्यान भटका नहीं। ये जादू थाकुछ भी और नहीं। मैं भी इतने ही अचरज में थीजितना कि सुनने वाले। इतनी ही खुश थी। इस दुनिया में क्या कुछ नहीं हो सकतायक़ीन की बात है। 
आने वाले हर व्यक्ति के यहाँ होने की अपनी कहानी थी। उनका मेरे साथ एक क़िस्से का रिश्ता था। उन्होंने कभी किसी कहानी को सच होते देखा था। उनका मेरा यहाँ होनाइस शहर में कहानियों के बचे रहने की मेरी अपनीछोटी सी जगह थी। मैंने पिछले नौकरी लिखने के लिए छोड़ी थीवहाँ मुझे रहिल और बग्स मिले। इस क़िस्से को सुनने दोनों अपने पार्ट्नर्ज़ के साथ आए थे। मुझे हमेशा मालूम होता है कि वे आएँगेकितनी दूर से भीदेर-सवेर सहीपर आएँगे ज़रूर। निशांतमेरी कहानी का पहला श्रोताजिसने इस कहानी के कई और ऑल्टर्नट हिस्से सुने हैं। 
साक़िबजिसके साथ मैंने और कुणाल ने ढेर सी रोड ट्रिप्स की हैं। जो अपने बेटे अयान के साथ आया थापर इस कहानी में ड्रैगन तो था नहींतो अयान को तो मज़ा नहीं आया। अब उसके लिए एक ड्रैगन की कहानी लिखनी पड़ेगी।  

शिवांगीजिसे आज हम्पी में होना थालेकिन मौसम थोड़ा मेहरबान हो गया और वो बड़े प्यार से अपने नए नवेले दूल्हे को कम्बल ओढ़ के सोने का बेहतरीन मशवरा देकर मेरी कहानी सुनने आयी। 

सोनालीकिसी रोज़ स्टारबक्स में बहुत उदास कॉफ़ी पीते हुए उसे फ़ोन पर कहा, I want to go dancing, कहाँ जाएँबताओऔर ले चलो मुझे। उसकी एक ब्लैक ऐंड व्हाइट तस्वीर में उसकी सोना रंग आँखें चमकती हैं। दिखती नहीं अपने रंग मेंपर चमकती हैं। 
पूजा ललित को खुद भी थोड़ा लिखने और शायद ज़्यादा पढ़ने का शौक़ है। जिसके काम की मैंने हमेशा सिर्फ़ तारीफ़ सुनी है। 


रमनजिसकी रॉयल एनफ़ील्ड डेज़र्ट स्टॉर्म कहानी का किरदार है। कि अगर उसके मेरे बाइक वाले क़िस्से नहीं होते तो कहानी में सिर्फ़ बाइक होती। साथ में पुराना रूम पार्ट्नरवरुण। कभी कभार पेज पर उसका कमेंट आया तो मुझे समय ये जानने में लगा कि ये वही वरुण हैलेकिन उसको पढ़ने लिखने का शौक़ भी है। गाड़ी पंचर हो गयीतो दोनों इवेंट के बाद पहुँचे और कहानी के बाद की कहानी का क़िस्सा बने। 
हिमांशु और उसकी दुल्हनिया को, सबसे पहले पहुँचने के लिए और चाय-कॉफ़ी बनवा देने के लिए, शुक्रिया। कभी कहानी में साथ में म्यूज़िक की ज़रूरत लगेगी तो ड्रम्स तुम्हें ही बजाना है। ठीक से प्रैक्टिस करो।  



गौरवअपने घर का बच्चाजिसको रेणु पढ़ने को बोल सकते हैं। कहानी का तिलिसमपूर जैसा गाँव उसने पास से देखाजिया है। जिसको डान्स करने जाने के लिए भी बुला सकते हैं और कहानी सुनने के लिए भी। इस भरोसे के साथकि वो आएगा पक्के से।

छोटी - बहन, सौम्या उपाध्याय, कि जिसने किताब के प्रूफ़-वाले ड्राफ़्ट को पढ़ा था। इक छोटी सी फ़िल्म भी शूट की थी उसके साथ, जो बाद में अपलोड करेंगे। और जो इलेक्ट्रॉनिक सिटी से कहानी सुनने आयी। कहानी जैसी लड़की।  


कहानी को थोड़ा पानी के रंग में देखने की ख्वाहिश लिए वाटरकलर पेंटिंग बनवायी थीकवर के लिए। दो और हिस्से रंगने के लिए परिणीता कोणानुर को तलाशा था। चिकमगलूर में रहने वाली परिणीताइत्तिफ़ाक़ से आज बैंगलोर में थीं और इवेंट पर भी आयी।

हमसफ़र कुणाल। जो शायद घर में मुझे देखते भूल जाता है कि मेरा कोई और भी रंग है। ख़ास impressed हो कर लौटा। पंद्रह साल पुराने पति को इम्प्रेस करना शायद सबसे बड़ी बात है। 


जो आएउनके अलावा शुक्रिया उनकाजो नहीं  पाए ताकि मैं जा सकूँमेरी सास का और छोटे देवरशाश्वत काजिन्हें घर पर रहना पड़ा क्योंकि छोटे बच्चों को लेकर नहीं जा सकते थे और कुणाल भी कहानी सुनने आया था। 

शुक्रिया बहुत छोटा सा शब्द है। लेकिन दिल से कहा जाएतो कई दिनों तक कलाई में ख़ुशबू की तरह गमकता है। 


आप सब का ढेर सारा शुक्रिया। 


(इस पोस्ट की फ़ॉर्मैटिंग ठीक नहीं हो रही, बहुत कोशिश कर के देख लिए। )


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