14 June, 2021

खारी आँखें

 मुझे ठंढ बहुत लगती है। बहुत। अभी बंगलोर में तापमान तेईस डिग्री है लेकिन हम हैं कि जैकेट पहन के बैठे हुए ख़ुद को कोस रहे हैं कि मोज़े धो देने चाहिए थे एक जोड़ी। पैर में बहुत ठंढ लगती है। हाथ में भी। टेबल पर एक कैंडिल जला ली है। कभी कभी उसपर हाथ सेंक लेते हैं। लैवेंडर कैंडिल है, काँच के जार में। तो हवा से बुझने का डर नहीं है। हाथ लौ के ऊपर रखने के बाद देखती हूँ कि हथेली से लैवेंडर की ख़ुशबू आने लगी है। इस छोटी सी बात से दिल्ली की कई साल पुरानी सुबह याद आती है। हम शायद नौ बजे ही सीपी पहुँच गए थे। उस वक़्त बस कैफ़े कॉफ़ी डे खुला हुआ था। हमने अपने लिए कॉफ़ी ऑर्डर की, वहाँ और कोई था भी नहीं। मैं हड़बड में पहुँची थी तो जाड़े के दिन होने पर भी बाल सुखाए बिना चली आयी थी। दिल्ली की सर्दियों में घर से निकलने के पहले बाल हेयर ड्रायर से सुखा लेती थी क्यूँकि अक्सर स्कार्फ़ या टोपी पहनने की ज़रूरत होती थी। उस रोज़ लेकिन तुमसे मिलना था और पहले से वक़्त डिसाइड नहीं किया था तो बस जैसे ही मेसेज आया नहा धो के सीधे निकल लिए। कैफ़े में बाल खोले बैठी थी। तुमने कॉफ़ी पी और नाश्ते में जो भी खाया होगा, उसके बाद हाथ धोने गए। वापसी में तुमने बाल हल्के से सहला दिए। उस साल के बाद कई कई दिन जब तुम्हारी बहुत याद आती तो दो चार सिगरेट पीती और बालों में उँगलियाँ उलझाती। सोचती कि मेरे हाथों से तुम्हारे हाथों जैसी ख़ुशबू नहीं आती है। बालों में धुएँ की गंध भर जाती। मैं काग़ज़ पर लिखती कुछ, सोचती तुम्हें। मेरे पास उन दिनों की गिनती नहीं है। पर ऐसी कई शामें थीं।

इन दिनों काग़ज़ की बहुत ज़रूरत लगती है। काग़ज़ अजीब क़िस्म से ज़िंदा होता है। ख़तों में ख़ास तौर से। A country without post-office, आगा शाहिद अली की कविताओं की छोटी सी किताब है जो इसी नाम की कविता पर रखी गयी है। इस कविता की आख़िरी पंक्ति है। “It rains as I write this. Mad heart, be brave.”। बहुत साल पहले एक लड़की ने इसका ट्रैन्स्लेशन करने को कहा था मुझसे। सिर्फ़ आख़िर के चार शब्द। मेरे पास कोई कॉंटेक्स्ट नहीं था। अब जब है, कहानी का, कविता का, लड़की का भी…मेरे पास शब्द नहीं हैं। कि टीस शायद हर भाषा में एक सी महसूस होती है। वे सारे लोग जो हमारे हिस्से के थे लेकिन हमें कभी नहीं मिले। जो मिले भी तो किसी दोराहे पर बिछड़ गए।
मेरी नोट्बुक में तुम्हारे लिखे कुछ शब्द हैं। उन्हें पढ़ते हुए रोना आ जाता है इसलिए उन शब्दों को आँख चूमने नहीं दे सकती। मैं सिर्फ़ कहानी लिख सकती हूँ जिसमें एक कैफ़े होता है और एक दरबान, कैफ़े में आगे नोटिस लगा होता है, यहाँ उदास आँखों वाली लड़कियों का बैठना मना है। तुम जानते हो, वो कैफ़े मेरा दिल है। और वो दरबान वक़्त है। कमज़र्फ़। जो कि चूम कर मेरी आँखें कहता है हर बार, इन आँखों का एक ही मिज़ाज है। उदासी।
तुम्हें तो मीठा पसंद है न मेरी जान। तुम भला क्यूँ चूमोगे मेरी खारी आँखें।

उदासी के सब शेड पहचाने हुए हैं

आख़िर क्यूँ है कि कुछ फ़िल्में देख कर आह तक नहीं निकलती लेकिन कुछ फ़िल्में हमें बेध देती हैं। हमारे भीतर एक सिसकी  ड्रिल होती जाती है। एक रिसता हुआ दुःख जिनमें शायद हमारे जैसे लोग पनप सकते हैं। कि हमने धान की खेती देखी है। घुटने भर पानी भरे खेतों में उगे और उखाड़ कर फिर से लगाते हुए धान के बिचड़े देखे हैं। जो गीत खेतिहर औरतों ने नहीं गाए, वे गीत हमारी चुप्पी की शब्दावली रचते हैं। 

हैपी टुगेदर नाम की फ़िल्म में ख़ुशी के बहुत छोटे छोटे टुकड़े हैं। प्रेम का भोला पागलपन है। एक प्रेमी युगल आर्जेंटीना घूमने गए हैं, वहाँ एक लैम्प पर बहते झरने की तस्वीर है जिसके व्यू पोईंट पर एक युगल खड़ा है। वे उस झरने को जा कर देखना चाहते हैं। वे साथ में प्रेम में तो हैं लेकिन ख़ुश नहीं हैं। कभी कभी वे ख़ुश हैं लेकिन प्रेम में नहीं हैं। उनमें से एक झरने पर जब जाता है तो उसे लगता है वहाँ उन दोनों को होना चाहिए था। और कभी कभी  वे ख़ुश हैं, सिर्फ़ इसलिए कि वे साथ में हैं।


कुछ दृश्यों का एक पैटर्न वौंग कार वाई की कई फ़िल्मों में होता है। टैक्सी वाला सीन। बालकनी से नीचे दिखता दृश्य। और अकेला सिगरेट पीता हुआ आदमी। 


हर बार वे रिश्ता तोड़ते और एक कहता, हम फिर से शुरू करते हैं। एक वक़्त के बाद, दूसरा इस शुरुआत से उकता गया होता है। वो अब लौट कर हॉंकांग जाना चाहता है, अपने घर। ऐसे ही बोर होने के बाद रिश्ता तोड़ कर एक जा चुका है और बहुत दिन बाद फिर लौट कर आया है। उसके के दोनों हथेलियों पर प्लास्टर है। वे दोनों जब टैक्सी में बैठे होते हैं तो एक सिगरेट पी रहा होता है और दूसरे के होठों पर भी लगा रहा होता है क्यूँकि वो ख़ुद सिगरेट पकड़ नहीं सकता। उसके चेहरे पर विरक्ति है। दुःख के लूप में जीने का भय है। ख़ुशी का अंदेशा है। पीली रोशनी में टोनी के चेहरे पर आते जाते भावों में लय है। वह कितना कुछ  अपने चेहरे पर दर्शा सकते हैं, यह अपने आप में कविता है।   


उसका एक मित्र उसे एक वॉकमैन देता है कि मेरे लिए कुछ रेकर्ड कर दो। भले कोई उदास बात सही। मैं तुम्हारी उदासी को दुनिया के आख़िरी छोर पर बने लाइटहाउस में छोड़ आऊँगा। शोर-शराबे वाले उस बार में वह लड़का वॉकमैन पकड़े धीमे धीमे रोने लगता है। हम इन मूड फ़ॉर लव में ऐसा ही एक दृश्य देखते हैं जिसमें अपना दुःख, अपना राज़, अपना प्रेमसब एक पेड़ की खोह में कह रहा होता है। इस दृश्य से बिलकुल उसी दृश्य की याद आती है। ऐसी चुप्पी वाला रोना लेकिन इसे सब लोग समझ नहीं सकते। वो लड़का जो बचपन में कम देख सकता था, इसलिए ज़्यादा सुनता था। वो जब वॉकमैन को प्ले करता है तो उसे लगता है रिकॉर्डर ख़राब हो गया था और उसमें किसी के रोने जैसी  आवाज़ आती है। 


फ़िल्म ब्लैक ऐंड वाइट और कलर के बीच घटती है। कल इसे पहली बार देखा। अभी कुछ और बार  देखूँगी बेहतर समझने के लिए। कुछ दृश्य बार-बार देखने लायक़ हैं। इसमें एक में उसने सिगरेट माँगी है। फिर लाइटर। लाइटर नहीं है, सिगरेट से सिगरेट जलानी है। वो मुस्कुराते हुए उसका हाथ पकड़ता है जिसमें सिगरेट थमी है। उसकी अनिच्छा और ग़ुस्से के बीच धुआँ है। एक उलझा हुआ रिश्ता है। अजीब सी  तन्हाई है। ख़ुशी और उदासी को साथ गूँथती हुयी धुनें हैं। जीने का सामान है। नेस्तनाबूद हो जाने  का भी। 

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