अन्दर एक विशाल खालीपन है. वैक्यूम. जैसे अन्तरिक्ष में होता है.
हम लिखते हैं कि इस खालीपन को भर सकें किसी तरह. शब्दों से. चुप्पी से. कहानियों से. उलटे-पुल्टे किरदारों से. हम लिखते हैं कि मुट्ठी मुट्ठी शब्दों से भर सकें एक कोना ही सही. कहीं एक घर बना सकें शब्दों का और रह सकें उसमें. हम शब्दों से खड़ी करते हैं दीवार. अपनी सुरक्षा के लिए. कि जिससे टिक कर महसूस किया जा सके अपने होने को भी.
हम लिखते हैं कि भूल न जायें कि हमारा होना क्यों है. हम कई बार इसलिए भी लिखते हैं कि इसके सिवा हमें और कुछ नहीं आता. हमने अपनी जिंदगी में किसी को शब्दों के सिवा कुछ नहीं दिया है. हम दर्ज करते जाते हैं अपने दिन. रात. सुबह. शहर. व्हिस्की की ब्रांड. सिगरेट का धुआं. गाड़ियों का शोर. अनजान शहरों में मिले अजनबी के बच्चों के नाम. ट्रेन पर दिखा कोई गहरे लाल शर्ट पहने खूबसूरत लड़का. किसी म्यूजियम में किसी तस्वीर के सामने बैठी लड़की...जो फ्रेम में दिखती है इतनी खूबसूरत कि लगती है फ्रेम का हिस्सा.
हम लिखते हैं कि हमें लगता है दुनिया लुप्त होती जा रही है. देखते देखते गायब हो जाते हैं लाल पोस्टबॉक्स. अगर हम न लिखें तो कोई जानेगा भी नहीं कि हुआ करता था यहाँ एक लाल डब्बा कोई. हम लिखते हैं पोस्टकार्ड कि दूर देश बैठे हमारे दोस्त गायब न हो जाएँ दुनिया से. कागज़ के इक टुकड़े पर हम लिखते हैं एड्रेस तो पुख्ता हो जाती है उनकी मौजूदगी. उन्हें कोई यूं ही मिटा नहीं सकता फिर दुनिया के मानचित्र से. हम लिखते हैं घुल जाने वाली शाम के बारे में. कि हम जानते हैं इस होटल में हमारे सिवा शायद ही कोई और देख रहा होगा इस 'heartbreakingly beautiful' शाम को. हम करते हैं जिद कि हमें पश्चिम दिशा का कमरा मिले कि सिर्फ हमारे लिए जरूरी होता है सूर्यास्त.
हम लिखते हैं कि हमें कोई समझ नहीं सकता. हम लिखते हैं इकतरफे ख़त. हमारी दोस्तियों में भी बची रह जाती है थोड़ी सी जगह. हम लिख लिख कर उस जगह को पाट देना चाहते हैं. हम दिल की दरकी हुयी दरारों को भर देना चाहते हैं कविताओं से...कहानियों से...हैप्पी एंडिंग से. हम जाना चाहते हैं ग्रेवयार्ड. पढ़ते हैं किसी कब्र के पत्थर पर लिखी कहानी कोई. किसी के जीने का गुलाबी पन्ना. किसी के होने का सबसे खूबसूरत अहसास. हम लिखते हैं कि हमें नहीं आता है तसवीरें खींचना. हम लिखते हैं कि हमें चुप रहना नहीं आता.
हम लिखते हैं कि भूल न जाएँ हम कौन हुआ करते थे. हमारा कोई दुश्मन नहीं. अपने दुश्मन हम खुद हुआ करते हैं. हम देर रात सुबकते हुए कहते हैं अपने बेस्ट फ्रेंड्स को...हमें इन लोगों से क्यूँ हुआ करता है इश्क़...हम क्यूँ नहीं जी सकते बाकी लोगों की तरह. हुआ होगा तुम सबके साथ ये हादसा भी कभी. कोई चाहता है लिखना वैसा जैसे कि लिखते हो तुम...मगर कोई नहीं चाहता वैसा जीना कि जैसे जीते हो तुम. इन तकलीफों को बुला कर अपने दिल में रिफ्यूजी कैम्प नहीं खोलना चाहता है कोई.
हम अभिशप्त लोग हैं. जीने को अभिशप्त. हमें सीमाएं समझ नहीं आतीं. हम ताउम्र परेशान रहते हैं कि हमसे कहाँ गलतियाँ हुयीं और के ये दुनिया इतनी सिंपल क्यूँ नहीं है जैसी हमें लगती है. किसी से बात करने का मन हुआ तो बात क्यों नहीं की जा सकती...कितना मुश्किल होता है बात करना. आखिर हम क्यूँ कर सकते हैं किसी से भी बात. एअरपोर्ट पर कस्टम ऑफिसर से अचार के बारे में मज़ाक कर सकते हैं. होटल के रिसेप्शन पर लोगों को पोस्टकार्ड के पीछे लिखी हिंदी के छोटे से ख़त का अंग्रेजी अनुवाद कर सकते हैं. हम अगर पूरी दुनिया से बात कर सकते हैं तो उससे क्यों नहीं कर सकते जिससे करने को जी चाह रहा है. ऐसा कौन सा आसमान टूट पड़ता है बात करने से. क्या हो जाता है. क्या. बटरफ्लाई इफ़ेक्ट. उनसे एक रोज़ बात करने से कहीं समंदर में तूफ़ान आ जाता है. है न?
डैलस आये हुए तीन दिन हुए. कहीं गयी नहीं हूँ. खिड़की से गहरे नीले आसमान से गुज़रते सफ़ेद बादल दिखते हैं. गाड़ियों का शोर आता है. उदासी और आलस का गहरा और खतरनाक कॉम्बिनेशन है. हम चाहते हैं कि लिख लिख कर सारी उदासी को ख़त्म कर दें. आज शहर घूमने जायेंगे. थोड़ी दारू पियेंगे. थोड़ी तसवीरें खींचेंगे. भेजेंगे कुछ पोस्टकार्ड. अपने बदतमीज दोस्तों को. जहाँ गाड़ियां इतनी तेज़ी से गुज़रती हैं कि जिंदगी भी नहीं गुज़रती...उस शहर में लेना चाहती हूँ एक गहरी सांस और चीखना चाहती हूँ अपने सारे दोस्तों का नाम. आई मिस यू. ब्लडी इडियट्स.
हम लिखते हैं कि इस खालीपन को भर सकें किसी तरह. शब्दों से. चुप्पी से. कहानियों से. उलटे-पुल्टे किरदारों से. हम लिखते हैं कि मुट्ठी मुट्ठी शब्दों से भर सकें एक कोना ही सही. कहीं एक घर बना सकें शब्दों का और रह सकें उसमें. हम शब्दों से खड़ी करते हैं दीवार. अपनी सुरक्षा के लिए. कि जिससे टिक कर महसूस किया जा सके अपने होने को भी.
हम लिखते हैं कि भूल न जायें कि हमारा होना क्यों है. हम कई बार इसलिए भी लिखते हैं कि इसके सिवा हमें और कुछ नहीं आता. हमने अपनी जिंदगी में किसी को शब्दों के सिवा कुछ नहीं दिया है. हम दर्ज करते जाते हैं अपने दिन. रात. सुबह. शहर. व्हिस्की की ब्रांड. सिगरेट का धुआं. गाड़ियों का शोर. अनजान शहरों में मिले अजनबी के बच्चों के नाम. ट्रेन पर दिखा कोई गहरे लाल शर्ट पहने खूबसूरत लड़का. किसी म्यूजियम में किसी तस्वीर के सामने बैठी लड़की...जो फ्रेम में दिखती है इतनी खूबसूरत कि लगती है फ्रेम का हिस्सा.
हम लिखते हैं कि हमें लगता है दुनिया लुप्त होती जा रही है. देखते देखते गायब हो जाते हैं लाल पोस्टबॉक्स. अगर हम न लिखें तो कोई जानेगा भी नहीं कि हुआ करता था यहाँ एक लाल डब्बा कोई. हम लिखते हैं पोस्टकार्ड कि दूर देश बैठे हमारे दोस्त गायब न हो जाएँ दुनिया से. कागज़ के इक टुकड़े पर हम लिखते हैं एड्रेस तो पुख्ता हो जाती है उनकी मौजूदगी. उन्हें कोई यूं ही मिटा नहीं सकता फिर दुनिया के मानचित्र से. हम लिखते हैं घुल जाने वाली शाम के बारे में. कि हम जानते हैं इस होटल में हमारे सिवा शायद ही कोई और देख रहा होगा इस 'heartbreakingly beautiful' शाम को. हम करते हैं जिद कि हमें पश्चिम दिशा का कमरा मिले कि सिर्फ हमारे लिए जरूरी होता है सूर्यास्त.
हम लिखते हैं कि हमें कोई समझ नहीं सकता. हम लिखते हैं इकतरफे ख़त. हमारी दोस्तियों में भी बची रह जाती है थोड़ी सी जगह. हम लिख लिख कर उस जगह को पाट देना चाहते हैं. हम दिल की दरकी हुयी दरारों को भर देना चाहते हैं कविताओं से...कहानियों से...हैप्पी एंडिंग से. हम जाना चाहते हैं ग्रेवयार्ड. पढ़ते हैं किसी कब्र के पत्थर पर लिखी कहानी कोई. किसी के जीने का गुलाबी पन्ना. किसी के होने का सबसे खूबसूरत अहसास. हम लिखते हैं कि हमें नहीं आता है तसवीरें खींचना. हम लिखते हैं कि हमें चुप रहना नहीं आता.
हम लिखते हैं कि भूल न जाएँ हम कौन हुआ करते थे. हमारा कोई दुश्मन नहीं. अपने दुश्मन हम खुद हुआ करते हैं. हम देर रात सुबकते हुए कहते हैं अपने बेस्ट फ्रेंड्स को...हमें इन लोगों से क्यूँ हुआ करता है इश्क़...हम क्यूँ नहीं जी सकते बाकी लोगों की तरह. हुआ होगा तुम सबके साथ ये हादसा भी कभी. कोई चाहता है लिखना वैसा जैसे कि लिखते हो तुम...मगर कोई नहीं चाहता वैसा जीना कि जैसे जीते हो तुम. इन तकलीफों को बुला कर अपने दिल में रिफ्यूजी कैम्प नहीं खोलना चाहता है कोई.