Love is temporary madness.
-Louis de Bernieres
---
'डेज ऑफ़ बीइंग वाइल्ड'. एक मिनट के लिए ऐसे ही रहना बस...सिर्फ एक मिनट. कहना न होगा कि जब से इस फिल्म को देखा है उस आखिर के लम्हे का इंतज़ार बेतरह बढ़ गया है. क्या नज़र आता है उस आखिरी लम्हे में...क्या वाकई ऐसी छोटी छोटी चीज़ें, छोटे छोटे वादे याद रहते हैं?
तो क्या लगता है...उस एक लम्हे की उम्र कितनी होगी? एक लम्हे...उसका चेहरा भी नहीं था सामने. आँखें देख नहीं सकती थीं मगर उसे छू कर महसूस कर सकती थी. वक़्त को भांग का नशा हो रखा था और वो धीमे गुज़र रहा था. जादू की तरह सारे लोग कहीं गायब हो गए...लम्हे भर को सूरज निकला और बहुत सारी रौशनी कमरे में भर गयी...मैं देख नहीं सकती थी इसलिए धूप दिखी नहीं वरना शायद पार्टिकल्स का डांस देख पाती कि कैसे धूल का एक एक कण मुझे देख कर मुस्कुरा रहा है...आती हुयी धूप हथेलियों में भर गयी और एक पूरे लम्हे की गर्माहट मैंने मुट्ठी में बंद कर ली. इश्वर के तथास्तु कहने के बाद का लम्हा था वो...जिसमें और कुछ भी मांगने की गुंजाईश ही नहीं बचती थी.
कभी कभी कितना जरूरी होता है ये अहसास कि कोई खो भी सकता है. फेसबुक के जमाने में किसी का खो जाना ही ख़त्म हो गया है...किसी से आखिरी बार मिलना. किसी से दूर जाते हुए उस आखिरी नज़र को किताब में बुकमार्क की तरह इस्तेमाल करना. खो जाना कभी कभी अच्छा होता है. खो जाने में उम्मीद होती है कभी तलाश लिए जाने की...कभी अचानक से मिल जाने की. वो दिन अच्छे थे जब बिछड़ना होता था. कीप इन टच एक जुमला नहीं होता था बस. किसी के चले जाने पर दिल में एक जगह खाली हो जाती थी और उसके कभी वापस आने का इंतज़ार करते हुए हम वो जगह हमेशा खाली रखते थे. ट्रेन में छेकी गयी सीट की तरह. कि यहाँ कोई अगले स्टेशन पर आ कर बैठने वाला है. कहने को जगह खाली होती थी पर यादें परमानेंट किरायेदार होती थीं. इस लिए कभी कभी जरूरी हो जाता है कि हम खुद खो जाएँ, ऐसी जगह कहाँ कोई और तलाश न सके.
वो बड़ी मीठी गंध थी. गाँव के लोग जैसी मीठी. अच्छे लोगों जैसी अच्छी. ताज़ी रोटियों की गंध जैसी अतुलनीय...मैं उसकी हथेली की एक लकीर माँगना चाहती थी, मेरे शब्दों के ऊपर की रेखा खींचनी थी...फिलहाल सारे अक्षर अलग अलग थे. उस एक लकीर से जोड़ना चाहती थी. उसकी हथेली में बहुत सी रेखाएं थीं मगर सिर्फ एक कविता कहने के लिए कैसे मैं एक लकीर मांग लेती. इकतारा बजाता एक फकीर गुज़रता है दरवाज़े से...उसकी फैली हुयी झोली में वो मेरे हाथ से एक रेखा मांगता है...मैं उसे अपनी हार्ट लाइन देती हूँ...फकीर उसे अपने झोले में रख लेता है...फिर अचानक से कहता है...उसे हार्ट लाइन नहीं लाइफ लाइन चाहिए थी. वो मेरी लकीर वापस करता है मुझे. मैं उसे कहना चाहती हूँ, ये मेरी हार्ट लाइन नहीं, किसी और की है...मगर मेरी लाइफ लाइन के बदले मुझे वही तुम्हारी एक रेखा मिलती है. उस रेखा को अपने अक्षरों के ऊपर रख कर मैं कविता पूरी करती हूँ. तब तक जिंदगी पूरी हो गयी है...मुझे सिर्फ एक ही कविता लिखने का वक़्त मिला है. मैं हैरान हूँ कि मुझे कोई शिकायत नहीं है.
The aftertaste of strawberry afternoons is you.
मेरी दोपहरों में रंग नहीं हैं इसलिए मुझे खुशबुएँ याद रह जाती है...तुम्हें पता है...इंसान सबसे जल्दी सेन्स ऑफ़ स्मेल एडजस्ट कर लेता है. मुझे तुम्हारे ब्रांड का परफ्यूम चाहिए...तुम जो परफ्यूम लगाते हो उसका ब्रांड नहीं. बताओ...है कोई जो तुम्हारा इत्र एक शीशी में बंद कर मुझे गिफ्ट कर सके. मैं तुम्हें छूने में डरती हूँ...मेरी उँगलियाँ तुम्हारी आँखों की याद दिलाती हैं...उन आँखों की जो मैंने देखी नहीं हैं. कोई गीत गुनगुनाते हुए तुम्हारी आदत है कुर्सी पर आगे पीछे झूलने की...मेरी आँखों पर रौशनी और परछाई के परदे बदलते रहते हैं. तुम्हें नहीं देख पाना एक अजीब किस्म की घबराहट है.
शायद एक दिन मैं फिर से देख पाउंगी...दुनिया शायद तब तक वैसी ही रहेगी. सूरज तब भी गुलाबी रंग का होगा...सड़क किनारे पेड़ों पर गुलाबी पत्ते होंगे...मेरे गाँव में बर्फ पिघल चुकी होगी और स्ट्राबेरी के छोटे पेड़ों पर पके लाल स्ट्राबेरी तोड़ने के लिए मैं एक छोटी डोलची लेकर घर से चलूंगी...तुम किसी सराय में रुके होगे और मैं तुम्हें देख कर पहचान नहीं पाउंगी क्यूंकि मेरी यादों में तुम्हारा कोई चेहरा ही नहीं है.
मैं हर बार भूल जाउंगी कि किसकी तलाश में गाँव के एकलौते बस स्टॉप पर बैठी हूँ...वहीं किसी पैरलल दुनिया में मेरी आँखों की रौशनी सलामत होगी और मैं तुम्हें देखते ही पहचान जाउंगी...तुम गाँव के मुखिया को रीति रिवाज के अनुसार मेरी चुनी हुयी स्ट्राबेरी की डोलची दोगे और बदले में मेरा हाथ मांग लोगे. जब इतना कुछ हो रहा होगा...किसी और पैरलल दुनिया में मैं ऐसा कुछ लिख रही होउंगी.
तो ये कौन सी वाली दुनिया है?
-Louis de Bernieres
---
'डेज ऑफ़ बीइंग वाइल्ड'. एक मिनट के लिए ऐसे ही रहना बस...सिर्फ एक मिनट. कहना न होगा कि जब से इस फिल्म को देखा है उस आखिर के लम्हे का इंतज़ार बेतरह बढ़ गया है. क्या नज़र आता है उस आखिरी लम्हे में...क्या वाकई ऐसी छोटी छोटी चीज़ें, छोटे छोटे वादे याद रहते हैं?
तो क्या लगता है...उस एक लम्हे की उम्र कितनी होगी? एक लम्हे...उसका चेहरा भी नहीं था सामने. आँखें देख नहीं सकती थीं मगर उसे छू कर महसूस कर सकती थी. वक़्त को भांग का नशा हो रखा था और वो धीमे गुज़र रहा था. जादू की तरह सारे लोग कहीं गायब हो गए...लम्हे भर को सूरज निकला और बहुत सारी रौशनी कमरे में भर गयी...मैं देख नहीं सकती थी इसलिए धूप दिखी नहीं वरना शायद पार्टिकल्स का डांस देख पाती कि कैसे धूल का एक एक कण मुझे देख कर मुस्कुरा रहा है...आती हुयी धूप हथेलियों में भर गयी और एक पूरे लम्हे की गर्माहट मैंने मुट्ठी में बंद कर ली. इश्वर के तथास्तु कहने के बाद का लम्हा था वो...जिसमें और कुछ भी मांगने की गुंजाईश ही नहीं बचती थी.
कभी कभी कितना जरूरी होता है ये अहसास कि कोई खो भी सकता है. फेसबुक के जमाने में किसी का खो जाना ही ख़त्म हो गया है...किसी से आखिरी बार मिलना. किसी से दूर जाते हुए उस आखिरी नज़र को किताब में बुकमार्क की तरह इस्तेमाल करना. खो जाना कभी कभी अच्छा होता है. खो जाने में उम्मीद होती है कभी तलाश लिए जाने की...कभी अचानक से मिल जाने की. वो दिन अच्छे थे जब बिछड़ना होता था. कीप इन टच एक जुमला नहीं होता था बस. किसी के चले जाने पर दिल में एक जगह खाली हो जाती थी और उसके कभी वापस आने का इंतज़ार करते हुए हम वो जगह हमेशा खाली रखते थे. ट्रेन में छेकी गयी सीट की तरह. कि यहाँ कोई अगले स्टेशन पर आ कर बैठने वाला है. कहने को जगह खाली होती थी पर यादें परमानेंट किरायेदार होती थीं. इस लिए कभी कभी जरूरी हो जाता है कि हम खुद खो जाएँ, ऐसी जगह कहाँ कोई और तलाश न सके.
वो बड़ी मीठी गंध थी. गाँव के लोग जैसी मीठी. अच्छे लोगों जैसी अच्छी. ताज़ी रोटियों की गंध जैसी अतुलनीय...मैं उसकी हथेली की एक लकीर माँगना चाहती थी, मेरे शब्दों के ऊपर की रेखा खींचनी थी...फिलहाल सारे अक्षर अलग अलग थे. उस एक लकीर से जोड़ना चाहती थी. उसकी हथेली में बहुत सी रेखाएं थीं मगर सिर्फ एक कविता कहने के लिए कैसे मैं एक लकीर मांग लेती. इकतारा बजाता एक फकीर गुज़रता है दरवाज़े से...उसकी फैली हुयी झोली में वो मेरे हाथ से एक रेखा मांगता है...मैं उसे अपनी हार्ट लाइन देती हूँ...फकीर उसे अपने झोले में रख लेता है...फिर अचानक से कहता है...उसे हार्ट लाइन नहीं लाइफ लाइन चाहिए थी. वो मेरी लकीर वापस करता है मुझे. मैं उसे कहना चाहती हूँ, ये मेरी हार्ट लाइन नहीं, किसी और की है...मगर मेरी लाइफ लाइन के बदले मुझे वही तुम्हारी एक रेखा मिलती है. उस रेखा को अपने अक्षरों के ऊपर रख कर मैं कविता पूरी करती हूँ. तब तक जिंदगी पूरी हो गयी है...मुझे सिर्फ एक ही कविता लिखने का वक़्त मिला है. मैं हैरान हूँ कि मुझे कोई शिकायत नहीं है.
The aftertaste of strawberry afternoons is you.
मेरी दोपहरों में रंग नहीं हैं इसलिए मुझे खुशबुएँ याद रह जाती है...तुम्हें पता है...इंसान सबसे जल्दी सेन्स ऑफ़ स्मेल एडजस्ट कर लेता है. मुझे तुम्हारे ब्रांड का परफ्यूम चाहिए...तुम जो परफ्यूम लगाते हो उसका ब्रांड नहीं. बताओ...है कोई जो तुम्हारा इत्र एक शीशी में बंद कर मुझे गिफ्ट कर सके. मैं तुम्हें छूने में डरती हूँ...मेरी उँगलियाँ तुम्हारी आँखों की याद दिलाती हैं...उन आँखों की जो मैंने देखी नहीं हैं. कोई गीत गुनगुनाते हुए तुम्हारी आदत है कुर्सी पर आगे पीछे झूलने की...मेरी आँखों पर रौशनी और परछाई के परदे बदलते रहते हैं. तुम्हें नहीं देख पाना एक अजीब किस्म की घबराहट है.
शायद एक दिन मैं फिर से देख पाउंगी...दुनिया शायद तब तक वैसी ही रहेगी. सूरज तब भी गुलाबी रंग का होगा...सड़क किनारे पेड़ों पर गुलाबी पत्ते होंगे...मेरे गाँव में बर्फ पिघल चुकी होगी और स्ट्राबेरी के छोटे पेड़ों पर पके लाल स्ट्राबेरी तोड़ने के लिए मैं एक छोटी डोलची लेकर घर से चलूंगी...तुम किसी सराय में रुके होगे और मैं तुम्हें देख कर पहचान नहीं पाउंगी क्यूंकि मेरी यादों में तुम्हारा कोई चेहरा ही नहीं है.
मैं हर बार भूल जाउंगी कि किसकी तलाश में गाँव के एकलौते बस स्टॉप पर बैठी हूँ...वहीं किसी पैरलल दुनिया में मेरी आँखों की रौशनी सलामत होगी और मैं तुम्हें देखते ही पहचान जाउंगी...तुम गाँव के मुखिया को रीति रिवाज के अनुसार मेरी चुनी हुयी स्ट्राबेरी की डोलची दोगे और बदले में मेरा हाथ मांग लोगे. जब इतना कुछ हो रहा होगा...किसी और पैरलल दुनिया में मैं ऐसा कुछ लिख रही होउंगी.
तो ये कौन सी वाली दुनिया है?
yah tumhare kahwabo ki nahsili duniya hae
ReplyDeleteविश्व कितने मांगते, पर एक हैं हम,
ReplyDeleteहम पहुँचना चाहते, पर एक हैं हम,
हैं हजारों स्वप्न, कब से ऊँघते सब,
छूटना निश्चित बहुत, पर एक हैं हम।
Love tends to become a sickening madness.
ReplyDeletebeautiful
ReplyDeleteआपका लिखा पढना शुरू करता हूँ , इक गंध घुलती है , तेज धूप वाली दुपहरी में जब कोई पगला बादल बरस जाता है , उसके ठीक बाद जैसी गंध आती है ना ठीक वैसी ही। सोचता हूँ हिंदी मे फिर पढना शुरू करूँ । देवनागरी मे लिखा कितना अच्छा दिखता है।
ReplyDeleteaap love story likho na, bade dino se nahin likhi koi aapne. aapka likha padh ke achha lagta hai.
ReplyDelete