चलो,
हथेलियों से उगायेंगे बारिशें
किसी शहर में
जहाँ होंगी गलियां
खुरदुरी चट्टानों से बनी हुयीं
सुनो,
चौराहे पर आती है
अनगिन वाद्ययंत्रों की आवाज़
बहती हवा के साथ बह कर
संतूर की धुन चुनते हैं
बारिश के बैकड्रॉप में
देखो,
नदी पर पाल वाली नावों को
नक़्शे में ढूंढो हमारा घर
गुलाबी हाइलाईटर से मार्क करो
दिल से दिमाग के रास्ते को
भटक जाती हूँ कितनी बार
लिखो,
एक ख़त मुझे
ऐसी भाषा में जो मुझे नहीं आती
समझाओ एक एक शब्द का अर्थ
पन्ने पर करना वाटरमार्क
तुम्हारे नाम का पहला अक्षर
रचो,
एक दुनिया
कि जिसमें मेरी पसंद के सारे लोग हों
ढूंढ के लाओ खोये हुए किस्से
टहकते ज़ख्म, अधूरी कवितायें
सीले कागज़ और टूटी निब वाले पेन
जियो
इस लम्हे को मेरे साथ
कि छोटी है उम्र की रेखा
ह्रदय रेखा से
जैसे प्यार होता है बड़ा
जिंदगी और मौत से
मॉडर्न आर्ट की तरह है यह कविता. इन शब्दों में अफ़साने कितने हैं, ढूँढ़ते ही रह जायेंगे.
ReplyDeleteपढ़ो,
ReplyDeleteकिसा का सुन्दर लिखा,
बहता एक झरने सा,
गिरती फुहारों से ढका,
आवरण स्वप्न का।
पता नहीं कि आपकी विधा चोरी हो पायी या नहीं?
जैसे प्यार होता है बड़ा
ReplyDeleteजिंदगी और मौत से
मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते जिस काफ़िर पे दम निकले
अब अगर कोई ऐसे गुजारिश करें तो भला कौन मना करना चाहेगा...|
ReplyDeleteआपने पूरी दुनिया को समेट कर इस रचना में रख दिया है...बहुत खूब |
सादर नमन |
ReplyDeleteजियो
इस लम्हे को मेरे साथ
कि छोटी है उम्र की रेखा
ह्रदय रेखा से
जैसे प्यार होता है बड़ा
जिंदगी और मौत से
्वाह …………बहुत सुन्दर
अद्भुत कविता ।
ReplyDeleteसुन्दर कविता
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