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17 October, 2012

...and the world comes crashing down

इधर कुछ दिन पहले मेरा लैपटॉप क्रैश कर गया...कोई खबर नहीं...कोई अंदेशा नहीं...कोई भनक नहीं...बस ऐसे ही चलते फिरते...अचानक से क्रैश. ऑफिस की सारी फाइल्स उसमें हैं...पिछले तीन महीने का सारा काम वहीं है...अभी परफोर्मेंस रिव्यू का टाइम है और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं.

दूसरी तकलीफ है कि मैंने फोटोग्राफ्स के बैकअप नहीं लिए थे. हर बार ऐसा होता है कि जब मैं अपने फोटोग्राफ्स मेमोरी कार्ड से लैपटॉप पर ट्रांसफर करती हूँ तो साथ ही हार्ड डिस्क में भी सेव कर लेती हूँ. पुरानी आदत है. इस बार के यूरोप ट्रिप पर हार्ड डिस्क लेकर गयी नहीं थी तो सारे फोटो सिर्फ लैपटॉप में थे. डीएसएलआर मेमोरी भी ज्यादा खाता है उसपर पहली बार अच्छा कैमरा लेकर गयी थी तो बहुत सी फोटो भी खींची थी. छुट्टी से वापस आते ही सीधे ऑफिस...और ऑफिस से फुर्सत मिली नहीं कभी बैकअप करने की. लैपटॉप क्रैश भी कर सकता है ऐसा सोचा ही नहीं था कभी. कुछ स्लो हो गया हो...पुराना हो गया हो या ऐसी कोई और तकलीफ हो तो फिर भी समझ में आता है...चलते फिरते क्रैश. इंसानों की तरह अनप्रेडिक्टेबल हो गए हैं आजकल डिजिटल उपकरण भी.

लैपटॉप की आदत हो गई थी. इधर एक साल में कितना तो म्यूजिक इकठ्ठा किया था. कुछ यूट्यूब से डाउनलोड किया कुछ इधर उधर की सीडीज से कॉपी किया. अभी आई-फोन में सारा म्यूजिक पड़ा है लेकिन जैसे ही उसे किसी लैपटॉप से कनेक्ट करूंगी सारा म्यूजिक इरेज हो जाएगा. एप्पल की ये बंद/क्लोज्ड प्रणाली मुझे नहीं पसंद है...अभी कितना आसान होता अगर बाकी फोन्स की तरह आईफोन भी एक युएसबी ड्राईव की तरह काम करता...मैं सारी म्यूजिक फाइल्स किसी और लैपटॉप पर कॉपी कर सकती थी.

ऑफिस का आधा काम गूगल ड्राइव पर बैकअप में डाल रखा है लेकिन पर्सनल फाइल्स कहीं भी बैकअप नहीं की हैं. लगता है इसी को डिवाइन सिग्नल की तरह लेना चाहिए कि कुछ डेटा हमेशा क्लाउड में बैक अप करके रखना चाहिए. मुझे क्लाउड कभी पसंद नहीं आया...ऑनलाइन जितना कम हो सके चीज़ें डालती हूँ...पहले तो पिकासा पर फोटोज अपलोड कर देती थी मगर अब उसकी भी जरूरत नहीं महसूस होती. ऑफिस से दूसरा लैपटॉप अलोट हो गया है. नया डेल वोस्त्रो. इसका वजन काफी कम है तो ऑफिस से घर इसे लेकर आने जाने में भी तकलीफ नहीं होती है. जब पुराने लैपटॉप का बैकअप आ जाएगा तो ऑफिस की फाइल्स गूगल ड्राइव में शिफ्ट कर दूँगी और रोज रोज ऑफिस लैपटॉप ले कर नहीं जाउंगी. घर का लैपटॉप अलग...ऑफिस का अलग.

आज जितनी फाइल्स रिकवर हो सकती हैं...होकर आ जायेंगी. वायो मैंने काफी तमीज से इस्तेमाल किया था. सारी फाइल्स अच्छे से आर्डर में सेव की थीं. जाने कितना कुछ वापस आएगा कितना कुछ बिट्स और बाइट्स की मेट्रिक्स में हमेशा के लिए खो जाएगा. मुझे कभी लिखे हुए के जाने का अफ़सोस नहीं होता. उसमें बहुत सारे वर्ड ड्राफ्ट्स थे, आधी कहानियां. दो आधी कहानियां मिल कर एक पूरी कहानी नहीं बनाती...दो आधी कहानियां ही रहती हैं. अपने लैपटॉप को काफी मिस कर रही हूँ. मेरी म्यूजिक फाइल्स...मेरी पसंद की फिल्में...तसवीरें.

लिखने का काम इधर कुछ दिनों से कॉपी पर डाल रखा है फिर से. आजकल ग्रीन इंक में थोड़ा ब्लैक  मिक्स करके लिख रही हूँ. दो रंग के इंक्स से लिखने में बहुत अच्छा लगता है. पन्ने भरते जा रहे हैं. ऑफिस में एक आध लोगों ने कभी कभार मांग कर मेरे पेन से लिखा है...पेन बहुत अच्छा है. नेहा गोवा गयी थी तो वहां से मेरे लिए एक बेहतरीन नोटबुक लायी थी...डायरी ऑफ अ डायरी...बहुत अलग तरह के पन्ने हैं उसमें और ज्यादा जीएसएम पेपर है तो फाउन्टेन पेन से लिखा हुआ दूसरी ओर नहीं दीखता. आइवरी पन्ने पर किसी भी रंग की इंक अच्छी लगती है. ऑफिस में टीम के अधिकतर लोग अपनी पेन को लेकर सेंटी हैं. मेरा और जोर्ज का एक ही पेन है...लैमी...हाँ उसका काले रंग का है और मेरे पास सफ़ेद, हरा और पर्पल कलर का है. कल घर की सफाई में कुछ इरेजर मिले...अब सोच रही हूँ थोड़ा सा पेन्सिल से लिखूं...सिर्फ इरेजर से मिटाने के सुख के लिए.

लगता है इस साल में जितना लिखना था आलरेडी लिख चुकी हूँ. अब कुछ खास लिखने का मन नहीं करता. नॉर्मली साल का ये समय ऐसे ही ब्लैंक जाता है...फिर नवम्बर आते आते जैसे जैसे शाखों से पत्ते गिरेंगे और सड़क पर कतार में बिछेंगे मुझे भी कागज़ की पैरलल लाइनें याद आएँगी और लिखने का मन करेगा.

फिलहाल बहुत सा अलग अलग संगीत सुन रही हूँ...कर्टसी तृश. बात कुछ ऐसे होती है...पूजा हैव यू हर्ड दिस सोंग....और सुने बिना जवाब होता है...नो तृश आई हैव हर्ड वैरी फ्यू इंग्लिश सोंग्स...प्ले इट प्लीज. अंग्रेजी संगीत सुनते हुए सोनिया को मिर्ज़ा ग़ालिब सुना रही थी...

या रब वो न समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
दे और दिल उनको जो न दे मुझको जबां और 

यूट्यूब के अलावा विमेयो, एटट्रैक्स और ऐसा ही बहुत कुछ और सुन रही हूँ...अपने एक्सपेरिमेंट. विएना में ओपेरा सुनने के बाद कुछ क्लासिक वेस्टर्न म्यूजिक भी सुनना शुरू किया है. शोपें...मोजार्ट...खैर बहुत ज्यादा नहीं सुना है इसलिए नाम नहीं लूंगी. कुछ बेहतरीन फिल्में देखीं. क्लासिक. उनपर लिखने का मन नहीं कर रहा...जैसे मन के तल में वो कहीं सिंक हो रही हैं तो मैं उनको वक़्त दे रही हूँ.

कभी कभी बहुत शोर होता है...कभी कभी बहुत सन्नाटा. शांति कहीं नहीं है. मन अशांत है. कुछ दिन में पोंडिचेरी जाने का प्लान है. वहां समंदर किनारे बहुत अच्छा लगता है. उम्मीदें हैं. जिंदगी है. आज बस ऐसे ही कुछ लिख जाने का मन किया...खास नहीं.
कहीं किसी पैरलल दुनिया में सब अच्छा होगा. अपनी जगह पर होगा.


18 September, 2011

किस्सा नए लैपटॉप का- 2

इस भाग में आप पायेंगे की हमने कैसे वायो और डेल में पसंदीदा लैपटॉप चुना. इसके पहले का भाग यहाँ है. इसमें आप ये भी पायेंगे की एक लड़की का और एक लड़के का किसी भी तरह के सामान खरीदने के पीछे एकदम अलग मनोविज्ञान होता है. 

वायो VPCCB14FG/B के इस मॉडल में १५.५ इंच फुल हाई डेफिनिशन स्क्रीन थी और मैक के स्क्रीन की तुलना में सबसे अच्छी स्क्रीन लगी थी मुझे. लैपटॉप की प्रोसेसिंग स्पीड के अलावा जिस छोटे से फीचर के कारण मेरा चुनाव टिका हुआ था वो था बैकलिट कीबोर्ड. अक्सर मैं और कुणाल अलग अलग टाइम पर काम करना पसंद करते हैं तो कई बार होता है कि उसे सोना होता है और मुझे काम भी करना होता है. रात को कभी कभार लिविंग रूम में मुझे ३ बजे डर सा लगता है...अब लाईट जला के काम करती हूँ उसे सोने में दिक्कत होती है और बिना लाईट के लिखने में मुझे परेशानी. बैक लिट कीबोर्ड किसी लो-एंड मॉडल में नहीं था...तो ये मॉडल ५४ हज़ार का पड़ रहा था मुझे. बहुत दिन सोचा कि १० हज़ार के लगभग ओवर बजट हो रहा है मगर कोई और मॉडल पसंद ही नहीं आ रहा था और फिर लगा कि लंबे अरसे तक की चीज़ है...और कुणाल ने कहा...अच्छा लग रहा है ना, ले लो...इतना मत सोचो :)

मेरे लिए लैपटॉप का भी सुन्दर होना अनिवार्य था...मैं बोरिंग सा डब्बा लेकर नहीं घूम सकती...लैपटॉप सिर्फ क्रियात्मक(functional) होने से नहीं चलेगा. उसे मेरे स्टाइल के मानकों पर भी खरा उतरना होगा. मैं डेल के शोरूम गयी, डेल के मॉडल ने मुझे प्रभावित नहीं किया. मेरे लिए लैपटॉप भी पहली नज़र का प्यार जैसा होना जरूरी था...यहाँ के लैपटॉप मुझे अरेंज मैरिज जैसे लगे. उसपर डेल की जो सबसे बड़ी खासियत है, वो आपकी पसंद के फीचर्स के हिसाब से लैपटॉप कस्टमाईज कर के देंगे, मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा. लगा की गोलगप्पा या चाट बनवा के खा रही हूँ...थोडा मिर्ची ज्यादा देना...ना न नमक तेज लग रहा है. मेरी ये बात सुन के टेकिस(Techies/Geeks) अपना सर फोड़ सकते हैं इसलिए उनको यहीं चेता रही हूँ की कृपया आगे न पढ़ें. मेरे लैपटॉप खरीदने के कारण यहाँ से होरोर मोड में आगे बढ़ेंगे. डेल के लैपटॉप थोड़े ज्यादा भारी(read bulky) लगे, किसी लड़के के लिए ठीक हैं पर मेरे लिए...उनमें नज़ाकत नहीं थी(आप कहेंगे होनी भी नहीं चाहिए, खैर). कुणाल के लिए, या मेरे भाई के लिए परफेक्ट हैं (पापा के पास भी डेल ही है) पर मेरे लिए...एकदम न...ऐसा लैपटॉप लेकर मैं नहीं घूम सकती. 

तो फिर सोनी का VPCCB14FG/B चुना...बुक करवा दिया था और जब खरीदने पहुंची तो उन्होंने बताया की ये मॉडल स्टॉक में ही नहीं है सिर्फ नारंगी और हरे रंग में है. मुझे एकदम रोना आ गया...मैं वहीं बैठ के आंसू बहाने वाली थी की क्रोमा के फाइनांस वालों ने तुरंत्बुद्धि का परिचय देते हुए मुझे बगल में ही सोनी शोरूम चलने को कहा. वहां भी बहुत देर तलाशने के बाद मॉडल नहीं मिला...तब तक मेरी नज़र इस लैपटॉप पर जा चुकी थी VPCCA15FG/R...गहरे लाल रंग का ये लैपटॉप उसी दिन आया था शोरूम में...और इससे प्यार हो चुका था. इसके सारे फीचर्स पहले वाले के ही थे बस स्क्रीन १४ इंच थी और फुल हाई डेफिनिशन नहीं थी. मुझे पहले भी १५.५ थोडा ज्यादा बड़ा लग रहा था  क्यूंकि मैं लैपटॉप लेकर अक्सर घूमती फिरती रहती हूँ. फुल HD नहीं होने का थोडा चिंता हुयी पर मैं वैसे भी लैपटॉप पर फिल्में नहीं देखती...तो लगा की छोटे साइज़ में और इस रंग के लिए ये कॉम्प्रोमाइज चलेगा. 

वैसे भी सोनी के लाल रंग के लैपटॉप पर मेरा सदियों पहले से दिल आया हुआ था. लैपटॉप बेहद अच्छा चल रहा है...बहुत ही फास्ट है, हल्का है २.४ किलो और रंग ऐसा की जिस मीटिंग में जाती हूँ नज़रें लैपटॉप पर :) ये रंग मार्केट में सबसे तेज़ी से बिकता भी है...जब भी ढूंढिए आउट ऑफ़ स्टोक मिलता है. 

पिछले कुछ दिनों में प्रवीण जी और अनुराग जी ने भी लैपटॉप ख़रीदे. प्रवीण जी का मैक एयर है और अनुराग जी ने डेल इन्स्पिरोन(लाल रंग में) ख़रीदा. प्रवीण जी अपने लैपटॉप को पहली नज़र का प्यार कहते हैं जबकि अनुराग जी उसे 'मेरा प्यार शालीमार'. इन दोनों की और मेरी खुद की पूरी प्रक्रिया पर नज़र डालती हूँ तो एक बात साफ़ दिखती है...हम चाहे जो सोच कर, दिमाग लगा कर, लोजिक बिठा कर खरीदने जाएँ...लैपटॉप जैसे मशीन भी हम प्यार होने पर ही खरीदते हैं. :) दिल हमेशा दिमाग से जीतता है. 

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