-एक-
तुम तो धुमुस जानते हो न. अरे वही जिसको धुरमुस कहते हैं. एक लोहे का छोटा सा वृत्त होता है, बेहद भारी, एक ओखल जैसे मोटे लकड़ी का सिरा होता है. इसे बार बार ज़मीन पर पटकते हैं जिससे मिटटी अच्छे से जम जाए. इससे मिटटी का लेवल भी बराबर करते हैं. कोंच कोंच कर भरते हैं जैसे शीशे के मर्तबान में कुछ.
तुम वैसे ही बसे हो न मन में. मिट्टी के कण के बीच हवा भर की जगह न हो जैसे. बहुत छोटा सा होता है दिल. कितने कितने दिन लम्हे लम्हे करके इसी तरह बसाती गयी हूँ तुम्हें दिल में. सख्त फर्श है अब बिलकुल. इसमें किसी पौध की रोपनी नहीं की जा सकती है. तुम्हारे खो जाने जैसा ही शोर होता है धुरमुस का. धम धम बजता है बारिश वाली शामों में. इतनी बारिश में गंगा किनारे तोड़ कर बही है. घर में घुस आये पानी को निकालने के बाद उसमें बहुत सारी मिट्टी गिराई गयी है. सुबह से मजदूर लगे हुए हैं. हर आवाज़ के साथ तुम्हारा नाम गहरे धंसता जाता है मिट्टी में. इसी कबर में तुम्हारे नाम के सारे ख़त डाल देती हूँ. अगली साल बारिश में फिर बहा देगी गंगा तुम्हें. मिटा देगी तुम्हारा नाम. ये क्या है कि मेरे तुम्हारे बीच बहती है. तुम एक नाव लेकर मेरे पार क्यूँ नहीं आ जाते?
तुम कहीं भी तो नहीं हो. गंगा में नहीं. बारिश में नहीं. धुरमुस यूँ भी अब कौन इस्तेमाल करता है. फिर मैं कहीं का कोई इंस्ट्रुमेंटल संगीत सुनते हुए तुम्हारी याद में कहाँ डूबने लगती हूँ. मेरे छोटे छोटे टुकड़े करता जाता है संगीत और पार्सल कर देता है. गंगा किनारे मांसखोर मछलियों को खिला देने के लिए. मेरा कोई टुकड़ा तुम्हारे हाथ कभी नहीं लगता. तुम मान भी तो लेते हो कि मैं मर गयी हूँ.
तुम तो मुझसे कभी मिले भी नहीं हो. तुम्हें मालूम है मेरी आँखों का रंग कैसा है?
-दो-
हर शहर की अपनी गंध होती है. गंगा किनारे उफनते लाल पानी को देखते हुए. घुटने घुटने पानी के वापस लौट जाने के बाद शहर में बसती जाती है गंध. मुंबई में गेटवे के पास चुप सर पटकते समंदर की होती है एक गंध. नमक मिले पानी और आंसू में बहते हुए सपनों की मिलीजुली गंध. समंदर में विसर्जित अनगिन आत्माओं की गंध. समंदर से वापस लौटते हर रास्ते का पीछा करती है समंदर की गंध. वक़्त का एक सिरा पकड़ कर मैंने सोचा था तुम्हारा एक लम्हा अपने नाम लिखवा सकूंगी. इंतज़ार के कदमों वापस लौटता है शहर और 'सॉरी' का एक छोटा सा चिट थमाता है मुझे. पुराने पत्थरों में तुम्हारे टूटे वादों जैसा कुछ लिखा हुआ दिखता है. बहुत मुश्किल है इस भागते शहर से एक लम्हा चुरा पाना.
तुम्हें मालूम है मेरे पास तुम्हारी कोई तस्वीर नहीं है. याद का कोई टुकड़ा. स्पर्श का कोई लम्हा नहीं जो फ्रेम करके लगा सकूँ. जब तुम चले जाते हो तो मुझे यकीन नहीं होता कि तुम कभी थे भी. तुम्हारे नाम का टैटू बनवाने की इच्छा है. रूह का तो क्या है, जिस्म को तो याद रहे कि कभी छुआ था तुमने मुझे. 'you touched me here' कलाई में जहाँ दिल का तड़पना महसूस होता है वहीं.
बारिश धो देती है तुम्हारी खुशबू. छाता खो जाता है लोकल ट्रेन मैं. तुम्हारी साँसों में बसने लगा है अजनबी शहर. मेरे आने से उस शहर में खुलने लगती है किताबों की एक आलसी लाइब्रेरी जहाँ लोग फुर्सत में लिखते हैं अपने महबूब को ख़त. तुम वहां हर शाम रिजर्वेशन करवाते हो मगर ठीक आठ बजे तुम्हारी एक मीटिंग अटक जाती है सुई पर और तुम्हारा क्लाइंट तुम्हें समझाता है किन जिंदगी में प्रमोशन मुहब्बत से ज्यादा जरूरी क्यूँ है. यूँ कि इश्क तो ऐरे गैरे गरीब को भी हो जाता है मगर मिसाल की बात पर लोगों को ताजमहल याद आता है. जब तक तुम इस काबिल न हो जाओ कि कम से कम दो लाख की कीमती अंगूठी खरीद कर महबूबा को न दे सको, इश्क के नाम को कलंकित ही करोगे. तुम्हें बरगलाना इतना आसान है तो मैं क्यूँ नहीं बरगला पाती कभी?
हालाँकि तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारे कभी होने का कोई सबूत नहीं रह जाता. फिर भी जानते तो हो न कि मैं प्यार करती हूँ तुमसे?
-तीन-
नहीं. मुझे तुम्हारे ख़त कभी नहीं मिले. इसलिए कि तुमने कभी लिखे ही नहीं मुझे. हाँ. मैंने लिखे थे तुम्हें बहुत सारे ख़त. हाँ मैं थोड़ी पागल हूँ तुम्हारे बारे में. यु नो हाउ वुमेन आर. उनकी छठी इन्द्रिय होती है ऐसी ही. माँ की होती है. प्रेमिका की भी होती है. बीवी की होती है. मेरी क्यूँ है लेकिन? मैं तुम्हारी कुछ भी तो नहीं लगती. तुम्हारा ख्याल रखने को पूरी दुनिया के लोग हैं मगर तुम्हें तकलीफ होती है तो मेरी रातों की नींद क्यूँ उड़ती है?
तुम्हें लगा तुमने मुझे ख़त लिखे हैं? तुम्हें कभी ये लगा कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ? सब कुछ लगेगा तुम्हें कमबख्त...सर्दी लगेगी, गर्मी लगेगी मगर ये नहीं लगेगा कि मुझे तुम्हारी बातें लग जाती हैं. तुम दिल्ली छोड़ कर चले क्यूँ नहीं जाते? दुनिया के इतने सारे शहर हैं, कभी इटली में जा के रहो न...वैसे टिम्बकटू भी अच्छी जगह है. कहीं चले जाओ जहाँ का पता मुझे मालूम न हो. वो लाल डब्बा मुझे देख कर ऐसे मुंह चिढ़ाता है कि दिल करता है पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दूं.
मालूम, तुमसे मिल कर बहुत साल बाद किसी को चिट्ठियां लिखने का दिल किया था. सुनो, तुम्हें क्यूँ लगता है कि मैं तुम्हें समझती हूँ? कितना वक़्त ही बिताया है तुमने मेरे साथ...इतने देर में लोगों को प्यार नहीं, धोखा होता है बस. तब जब कि मुझे यकीन हो जाना चाहिए था किन समन्दरों के शहर वाले लोग किसी गाँव में लंगर नहीं डालते मैं तुम्हारे लिए डॉकिंग स्टेशन बनवा रही हूँ. मुसाफिर सही, कभी दिन के एक घंटे रुकने को जी किया तो इधर नेरुदा की कवितायेँ हैं, दिलफरेब तसवीरें हैं जो मैंने ग्रीस के किसी द्वीप पर उतारीं थीं, कुछ तुम्हारी पसंद के लोग भी हैं...अँधेरे वाले लाईटबल्ब हैं. काली रौशनी वाले रोशनदान हैं.
And he hugs me like I am made of glass...and so tightly that I shatter...into dust and get imbibed in his blood...a fragment of me sparkles into his eyes...the last light of a dying star.
सोचा तो ये था कि विदा कह रही हूँ तुम्हें. लगता ऐसा है जैसे सी यू टुमारो कहा है.
-चार-
आई नो, यू लव मी टू. इट हर्ट्स. बट नेवरमाइंड.
तुम तो धुमुस जानते हो न. अरे वही जिसको धुरमुस कहते हैं. एक लोहे का छोटा सा वृत्त होता है, बेहद भारी, एक ओखल जैसे मोटे लकड़ी का सिरा होता है. इसे बार बार ज़मीन पर पटकते हैं जिससे मिटटी अच्छे से जम जाए. इससे मिटटी का लेवल भी बराबर करते हैं. कोंच कोंच कर भरते हैं जैसे शीशे के मर्तबान में कुछ.
तुम वैसे ही बसे हो न मन में. मिट्टी के कण के बीच हवा भर की जगह न हो जैसे. बहुत छोटा सा होता है दिल. कितने कितने दिन लम्हे लम्हे करके इसी तरह बसाती गयी हूँ तुम्हें दिल में. सख्त फर्श है अब बिलकुल. इसमें किसी पौध की रोपनी नहीं की जा सकती है. तुम्हारे खो जाने जैसा ही शोर होता है धुरमुस का. धम धम बजता है बारिश वाली शामों में. इतनी बारिश में गंगा किनारे तोड़ कर बही है. घर में घुस आये पानी को निकालने के बाद उसमें बहुत सारी मिट्टी गिराई गयी है. सुबह से मजदूर लगे हुए हैं. हर आवाज़ के साथ तुम्हारा नाम गहरे धंसता जाता है मिट्टी में. इसी कबर में तुम्हारे नाम के सारे ख़त डाल देती हूँ. अगली साल बारिश में फिर बहा देगी गंगा तुम्हें. मिटा देगी तुम्हारा नाम. ये क्या है कि मेरे तुम्हारे बीच बहती है. तुम एक नाव लेकर मेरे पार क्यूँ नहीं आ जाते?
तुम कहीं भी तो नहीं हो. गंगा में नहीं. बारिश में नहीं. धुरमुस यूँ भी अब कौन इस्तेमाल करता है. फिर मैं कहीं का कोई इंस्ट्रुमेंटल संगीत सुनते हुए तुम्हारी याद में कहाँ डूबने लगती हूँ. मेरे छोटे छोटे टुकड़े करता जाता है संगीत और पार्सल कर देता है. गंगा किनारे मांसखोर मछलियों को खिला देने के लिए. मेरा कोई टुकड़ा तुम्हारे हाथ कभी नहीं लगता. तुम मान भी तो लेते हो कि मैं मर गयी हूँ.
तुम तो मुझसे कभी मिले भी नहीं हो. तुम्हें मालूम है मेरी आँखों का रंग कैसा है?
-दो-
हर शहर की अपनी गंध होती है. गंगा किनारे उफनते लाल पानी को देखते हुए. घुटने घुटने पानी के वापस लौट जाने के बाद शहर में बसती जाती है गंध. मुंबई में गेटवे के पास चुप सर पटकते समंदर की होती है एक गंध. नमक मिले पानी और आंसू में बहते हुए सपनों की मिलीजुली गंध. समंदर में विसर्जित अनगिन आत्माओं की गंध. समंदर से वापस लौटते हर रास्ते का पीछा करती है समंदर की गंध. वक़्त का एक सिरा पकड़ कर मैंने सोचा था तुम्हारा एक लम्हा अपने नाम लिखवा सकूंगी. इंतज़ार के कदमों वापस लौटता है शहर और 'सॉरी' का एक छोटा सा चिट थमाता है मुझे. पुराने पत्थरों में तुम्हारे टूटे वादों जैसा कुछ लिखा हुआ दिखता है. बहुत मुश्किल है इस भागते शहर से एक लम्हा चुरा पाना.
तुम्हें मालूम है मेरे पास तुम्हारी कोई तस्वीर नहीं है. याद का कोई टुकड़ा. स्पर्श का कोई लम्हा नहीं जो फ्रेम करके लगा सकूँ. जब तुम चले जाते हो तो मुझे यकीन नहीं होता कि तुम कभी थे भी. तुम्हारे नाम का टैटू बनवाने की इच्छा है. रूह का तो क्या है, जिस्म को तो याद रहे कि कभी छुआ था तुमने मुझे. 'you touched me here' कलाई में जहाँ दिल का तड़पना महसूस होता है वहीं.
बारिश धो देती है तुम्हारी खुशबू. छाता खो जाता है लोकल ट्रेन मैं. तुम्हारी साँसों में बसने लगा है अजनबी शहर. मेरे आने से उस शहर में खुलने लगती है किताबों की एक आलसी लाइब्रेरी जहाँ लोग फुर्सत में लिखते हैं अपने महबूब को ख़त. तुम वहां हर शाम रिजर्वेशन करवाते हो मगर ठीक आठ बजे तुम्हारी एक मीटिंग अटक जाती है सुई पर और तुम्हारा क्लाइंट तुम्हें समझाता है किन जिंदगी में प्रमोशन मुहब्बत से ज्यादा जरूरी क्यूँ है. यूँ कि इश्क तो ऐरे गैरे गरीब को भी हो जाता है मगर मिसाल की बात पर लोगों को ताजमहल याद आता है. जब तक तुम इस काबिल न हो जाओ कि कम से कम दो लाख की कीमती अंगूठी खरीद कर महबूबा को न दे सको, इश्क के नाम को कलंकित ही करोगे. तुम्हें बरगलाना इतना आसान है तो मैं क्यूँ नहीं बरगला पाती कभी?
हालाँकि तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारे कभी होने का कोई सबूत नहीं रह जाता. फिर भी जानते तो हो न कि मैं प्यार करती हूँ तुमसे?
-तीन-
नहीं. मुझे तुम्हारे ख़त कभी नहीं मिले. इसलिए कि तुमने कभी लिखे ही नहीं मुझे. हाँ. मैंने लिखे थे तुम्हें बहुत सारे ख़त. हाँ मैं थोड़ी पागल हूँ तुम्हारे बारे में. यु नो हाउ वुमेन आर. उनकी छठी इन्द्रिय होती है ऐसी ही. माँ की होती है. प्रेमिका की भी होती है. बीवी की होती है. मेरी क्यूँ है लेकिन? मैं तुम्हारी कुछ भी तो नहीं लगती. तुम्हारा ख्याल रखने को पूरी दुनिया के लोग हैं मगर तुम्हें तकलीफ होती है तो मेरी रातों की नींद क्यूँ उड़ती है?
तुम्हें लगा तुमने मुझे ख़त लिखे हैं? तुम्हें कभी ये लगा कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ? सब कुछ लगेगा तुम्हें कमबख्त...सर्दी लगेगी, गर्मी लगेगी मगर ये नहीं लगेगा कि मुझे तुम्हारी बातें लग जाती हैं. तुम दिल्ली छोड़ कर चले क्यूँ नहीं जाते? दुनिया के इतने सारे शहर हैं, कभी इटली में जा के रहो न...वैसे टिम्बकटू भी अच्छी जगह है. कहीं चले जाओ जहाँ का पता मुझे मालूम न हो. वो लाल डब्बा मुझे देख कर ऐसे मुंह चिढ़ाता है कि दिल करता है पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दूं.
मालूम, तुमसे मिल कर बहुत साल बाद किसी को चिट्ठियां लिखने का दिल किया था. सुनो, तुम्हें क्यूँ लगता है कि मैं तुम्हें समझती हूँ? कितना वक़्त ही बिताया है तुमने मेरे साथ...इतने देर में लोगों को प्यार नहीं, धोखा होता है बस. तब जब कि मुझे यकीन हो जाना चाहिए था किन समन्दरों के शहर वाले लोग किसी गाँव में लंगर नहीं डालते मैं तुम्हारे लिए डॉकिंग स्टेशन बनवा रही हूँ. मुसाफिर सही, कभी दिन के एक घंटे रुकने को जी किया तो इधर नेरुदा की कवितायेँ हैं, दिलफरेब तसवीरें हैं जो मैंने ग्रीस के किसी द्वीप पर उतारीं थीं, कुछ तुम्हारी पसंद के लोग भी हैं...अँधेरे वाले लाईटबल्ब हैं. काली रौशनी वाले रोशनदान हैं.
And he hugs me like I am made of glass...and so tightly that I shatter...into dust and get imbibed in his blood...a fragment of me sparkles into his eyes...the last light of a dying star.
सोचा तो ये था कि विदा कह रही हूँ तुम्हें. लगता ऐसा है जैसे सी यू टुमारो कहा है.
-चार-
आई नो, यू लव मी टू. इट हर्ट्स. बट नेवरमाइंड.
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ReplyDeleteBeautiful!
ReplyDeletetouching !
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