डेंटिस्ट की खतरनाक सी कुर्सी पर बैठी लड़की सोच रही थी एनेस्थीसिया के बारे में. ऐसा कुछ है क्या जिसके बाद कोई दर्द महसूस न हो. सोचती रही इश्क से बेहतर एनेस्थीसिया उसे मालूम नहीं है. उसने सोचा डॉक्टर से पूछे कि उसके पास कोई इश्कनुमा एनेस्थीसिया है क्या. लड़की को मालूम है कि वो थोड़ी वीयर्ड है उसके हिसाब से जो चीज़ें नार्मल होती हैं वो आम लोगों को पागलपन जैसी लगती हैं. अपने अनुभवों से सीखती वो लड़की अक्सर ऐसे फुजूल सवाल अब खुद के लिए रिजर्व कर लेती है.
दो दिन हो गए. सूजन बढ़ती ही गयी है. पेनकिलर से राहत नहीं आती. हालाँकि उसका कोई हक नहीं बनता पर वो पूछना चाहती है कि तुम्हारे नाम, ख्याल या तस्वीरों को पेनकिलर की तरह इस्तेमाल करना एथिकली सही है या गलत है. सिर्फ तुम्हारे बारे में सोचने भर से उसका दांत का दर्द कम हो जाये तो क्या उसे इजाजत है तुम्हारे बारे में सोचने भर की...या तुम्हें एक फ़ोन करने की? तुम क्या सोचोगे अगर कोई तुम्हें फ़ोन करके कहे कि बहुत तेज़ दर्द हो रहा है, कुछ देर मेरा ध्यान भटका दो...किसी भी और चीज़ की तरफ. तुम करोगे किसी के लिए इतना?
दर्द यूँ बुरा नहीं लगता. दर्द की महीन उँगलियाँ होती हैं...जैसे नसों में खून दौड़ता है वैसे ही दर्द भी दौड़ता है. बारीक पतली पतली उँगलियों वाला दर्द बायें गाल से होता हुआ कनपटी तक पहुँच गया है, गले का बायाँ हिस्सा सूजा हुआ है. बोलने में भी तकलीफ होती है. दर्द का स्वाद होता है. खास तौर से जब टाँके पड़े हों. खून का रिसता हुआ स्वाद. ऐसा लगता है जैसे कोई नदी बह रही हो...नमकीन धार वाली. हर कुछ देर में नमक पानी के गरारे भी करने पड़ते हैं.
चेहरे का आधा हिस्सा सुन्न पड़ गया है. दांत के दर्द को टक्कर सिर्फ और सिर्फ इश्क दे सकता है. वो भी ऐरा गैरा लफुआबाज़ टाईप इश्क नहीं. सड़कछाप आवारा वाला नहीं. गहरा दर्द. रात के पहर के साथ चढ़ता हुआ. नींद के किसी झांसे में नहीं आने वाला दर्द. अँधेरे में याद के कितने तहखानों की टहल करवा देने वाला दर्द. पेनकिलर और एंटीबायोटिक के मिक्स में उभरने वाली नीम बेहोशी में रह रह करंट के झटके लगाता दर्द. हर कुछ घंटों में अपने होने को कई गुना शिद्दत से ज्यादा महसूस करने वाला दर्द.
जिंदगी में हर चीज़ में इश्क की घुसपैठ नहीं होनी चाहिए. कम से कम दांत दर्द तो तमीज से दांत दर्द की तरह पेश आये. दर्द हो तो सब भूल जाए लड़की. भूरी आँखें. डेरी मिल्क. धूप. दिल्ली. ठंढ. बीमार की तरह कम्बल ओढ़ ले और कराहे. मगर ये कराह में किसका नाम लिए जा रही है लड़की. "खुदाया मेरे आंसू रो गया कौन". वो कहती है उसका दर्द का थ्रेशहोल्ड बाकी लोगों से ज्यादा है. बहरहाल. कुछ दिनों से कुछ भी करने की कोशिशें नाकाम हैं. पढ़ने लिखने में उसका दिल नहीं लगता. ऐसा कुछ लग रहा है जैसे एक्जाम के दिन हों और सिलेबस ख़त्म हो चुका हो. बस रिवाइज करना जरूरी हो.
जब कुछ काम न आये तो लिखना काम आता है. फिलहाल दर्द की एक तीखी लपट है. दांत के ऊपर से उठती है और वर्टिकली ऊपर दिमाग की ओर चली जाती है. मेमोरी इरेजिंग टूल टाईप कुछ है. कोई याद नहीं. कोई शख्स नहीं. सफ़ेद काली बेहोशी है. संगीत की कुछ धुनें हैं. व्हाइट नोइज जैसी कुछ. इच्छा है कि थोड़ी धूप रहती तो खून का बहाव थोड़ा तेज़ होता. उसे हमेशा धूप अच्छी लगती है. रात के इस पहर धूप कहाँ से बुला लाये लड़की.
एनेस्थीसिया मेरी बला से! मुझे तो लगता है कि लड़की का दिमाग ख़राब हो गया है. पर जाने दो. वो क्या कहते हैं हमारी हिंदी फिल्म में डॉक्टर.
'अब इन्हें दवा की नहीं, दुआ की जरूरत है'
PS: अब इन्हें ब्लॉग्गिंग की नहीं, पागलखाने की जरूरत है. वगैरह वगैरह.
इस पोस्ट के माध्यम से आप आपने पाठकों को क्या सन्देश देना चाहेंगी?
हम तो क्या कहें, कह भी देते लेकिन कोई हमसे पहले कह गया है कि...और भी गम हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा, राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा.
बहरहाल.
दो दिन हो गए. सूजन बढ़ती ही गयी है. पेनकिलर से राहत नहीं आती. हालाँकि उसका कोई हक नहीं बनता पर वो पूछना चाहती है कि तुम्हारे नाम, ख्याल या तस्वीरों को पेनकिलर की तरह इस्तेमाल करना एथिकली सही है या गलत है. सिर्फ तुम्हारे बारे में सोचने भर से उसका दांत का दर्द कम हो जाये तो क्या उसे इजाजत है तुम्हारे बारे में सोचने भर की...या तुम्हें एक फ़ोन करने की? तुम क्या सोचोगे अगर कोई तुम्हें फ़ोन करके कहे कि बहुत तेज़ दर्द हो रहा है, कुछ देर मेरा ध्यान भटका दो...किसी भी और चीज़ की तरफ. तुम करोगे किसी के लिए इतना?
दर्द यूँ बुरा नहीं लगता. दर्द की महीन उँगलियाँ होती हैं...जैसे नसों में खून दौड़ता है वैसे ही दर्द भी दौड़ता है. बारीक पतली पतली उँगलियों वाला दर्द बायें गाल से होता हुआ कनपटी तक पहुँच गया है, गले का बायाँ हिस्सा सूजा हुआ है. बोलने में भी तकलीफ होती है. दर्द का स्वाद होता है. खास तौर से जब टाँके पड़े हों. खून का रिसता हुआ स्वाद. ऐसा लगता है जैसे कोई नदी बह रही हो...नमकीन धार वाली. हर कुछ देर में नमक पानी के गरारे भी करने पड़ते हैं.
चेहरे का आधा हिस्सा सुन्न पड़ गया है. दांत के दर्द को टक्कर सिर्फ और सिर्फ इश्क दे सकता है. वो भी ऐरा गैरा लफुआबाज़ टाईप इश्क नहीं. सड़कछाप आवारा वाला नहीं. गहरा दर्द. रात के पहर के साथ चढ़ता हुआ. नींद के किसी झांसे में नहीं आने वाला दर्द. अँधेरे में याद के कितने तहखानों की टहल करवा देने वाला दर्द. पेनकिलर और एंटीबायोटिक के मिक्स में उभरने वाली नीम बेहोशी में रह रह करंट के झटके लगाता दर्द. हर कुछ घंटों में अपने होने को कई गुना शिद्दत से ज्यादा महसूस करने वाला दर्द.
जिंदगी में हर चीज़ में इश्क की घुसपैठ नहीं होनी चाहिए. कम से कम दांत दर्द तो तमीज से दांत दर्द की तरह पेश आये. दर्द हो तो सब भूल जाए लड़की. भूरी आँखें. डेरी मिल्क. धूप. दिल्ली. ठंढ. बीमार की तरह कम्बल ओढ़ ले और कराहे. मगर ये कराह में किसका नाम लिए जा रही है लड़की. "खुदाया मेरे आंसू रो गया कौन". वो कहती है उसका दर्द का थ्रेशहोल्ड बाकी लोगों से ज्यादा है. बहरहाल. कुछ दिनों से कुछ भी करने की कोशिशें नाकाम हैं. पढ़ने लिखने में उसका दिल नहीं लगता. ऐसा कुछ लग रहा है जैसे एक्जाम के दिन हों और सिलेबस ख़त्म हो चुका हो. बस रिवाइज करना जरूरी हो.
जब कुछ काम न आये तो लिखना काम आता है. फिलहाल दर्द की एक तीखी लपट है. दांत के ऊपर से उठती है और वर्टिकली ऊपर दिमाग की ओर चली जाती है. मेमोरी इरेजिंग टूल टाईप कुछ है. कोई याद नहीं. कोई शख्स नहीं. सफ़ेद काली बेहोशी है. संगीत की कुछ धुनें हैं. व्हाइट नोइज जैसी कुछ. इच्छा है कि थोड़ी धूप रहती तो खून का बहाव थोड़ा तेज़ होता. उसे हमेशा धूप अच्छी लगती है. रात के इस पहर धूप कहाँ से बुला लाये लड़की.
एनेस्थीसिया मेरी बला से! मुझे तो लगता है कि लड़की का दिमाग ख़राब हो गया है. पर जाने दो. वो क्या कहते हैं हमारी हिंदी फिल्म में डॉक्टर.
'अब इन्हें दवा की नहीं, दुआ की जरूरत है'
PS: अब इन्हें ब्लॉग्गिंग की नहीं, पागलखाने की जरूरत है. वगैरह वगैरह.
इस पोस्ट के माध्यम से आप आपने पाठकों को क्या सन्देश देना चाहेंगी?
हम तो क्या कहें, कह भी देते लेकिन कोई हमसे पहले कह गया है कि...और भी गम हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा, राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा.
बहरहाल.
दर्द की महीन उँगलियाँ होती हैं...जैसे नसों में खून दौड़ता है वैसे ही दर्द भी दौड़ता है.
ReplyDelete***
दर्द को जीकर ही दर्द के विषय में यूँ लिखा जा सकता है.... इनकी महीन उँगलियों को महसूस कर रहे हैं हम भी!
दवा लेती रहें, दुआएं हम करते हैं तो दवा दुआ दोनों मिलकर जल्द असर करेंगे!
सुन्न दाँत, दर्द भरे दाँत से अधिक अटपटा लगता है। जीभ को लगता है कि वहाँ कुछ था, अब नहीं है। प्रेम की पीड़ा भली।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार -01/09/2013 को
ReplyDeleteचोर नहीं चोरों के सरदार हैं पीएम ! हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः10 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
खूबसूरत लेखन !
ReplyDeleteThere is something here also..
ReplyDeletehttp://drparveenchopra.blogspot.in
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