Showing posts with label Blue Dunhills. Show all posts
Showing posts with label Blue Dunhills. Show all posts

27 October, 2013

रात का इन्सट्रुमेंटल वेपन दैट किल्स इन साइलेंस

पिछली पोस्ट से आज तक में दस ड्राफ्ट पड़े हुए हैं. ऐसा तो नहीं होता था. अधूरेपन के कितने सारे फेजेस में रखे हुए हैं. सलामत. स्नोवाइट की तरह. गहरी नींद में. सेब का एक टुकड़ा खा लेने के कारण शापित.
---
कितनी सारी कहानियां हैं अधूरी. बचपन के किस्से कुछ. टूटे हुए कविता की पंक्तियाँ कहीं. किसी अनजान शहर से आती आवाज़ तो कहीं समंदर किनारे की आवाज़. पॉकेट में मुट्ठी भर भर के रेत है. ये कुछ भी बचा जाने की ख्वाहिश के टुकड़े हैं. जेबों में यूँ तो समंदर से उठा कर दो मुट्ठी खारा पानी भरा था मगर जाने क्या हुआ कि पानी तो सारा समंदर में वापस चला गया बस ये किचकिच करती रेत रह गयी है. समंदर कितना निष्ठुर हो गया है. एक मुट्ठी पानी से उसमें कौन सा अकाल पड़ जाता. क्या मिला मेरे हिस्से का थोड़ा सा पानी वापस मांग के.

मुझे दुनिया में जो सबसे वाहियात काम लगता है वो है अपने लिखे को वापस पढ़ना. हालत ऐसी थी कि एक्जाम में कभी पेपर रिविजन तक नहीं कर पाती थी. जितने मार्क्स काटने हैं कट जायें. पर्फेकशनिष्ट की एक ये भी किस्म होती है मेरे जैसी. जिसको अपना किया कुछ कभी अच्छा ही नहीं लगता...कुछ यूँ कि उसे ठीक करने की कोशिश भी बेमानी लगती है. इसी अफरातफरी में इतना कुछ लिखा भी जाता है. जैसे एक कदम आगे चलके दो कदम पीछे चलना.

मुझे एक महीने की छुट्टी चाहिए. समंदर किनारे. समंदर जरूरी है. दिमाग का ये ज्वारभाटा कहीं उतरता नहीं है. हालाँकि इतने सालों में मुझे आदत पड़ जानी चाहिए. नवम्बर. दिसंबर. जाड़ों के ये सर्द दिन बुखार के होते हैं. हरारत के. बिना नींद आँखों वाली बेचैन रातों के. मगर आदत है कि गलत चीज़ों की पड़ती है. अच्छी चीज़ों की पड़ती नहीं. दो किताबें पढ़ीं. इतनी बुरी लगीं...वाकई इतनी बुरीं कि आग लगा देने का मन किया. पापा से बात कर रही थी तो पापा कह रहे थे दुनिया में हर तरह की चीज़ होती है...तुम इतना एक्सट्रीम क्यूँ सोचती हो. पिछले सन्डे ऐसी ही एक किताब में बर्बाद कर दी थी. उम्मीद बड़ी कमबख्त चीज़ होती है. पूरी किताब ये सोच कर पढ़ गयी कि कमबख्त कुछ तो अच्छा होगा आखिर इतने सारे लोग क्या गधे हैं. इसके बाद तौबा कर ली...अपनी पसंद की किताब पढूंगी...और जो किताब शुरू में अच्छी नहीं लग रही उसे छोड़ देने में ही भलाई है. देवघर में होती तो शायद वाकई एक धामा उठा कर लाती और किताबों में आग लगा देती. यहाँ दीवारें काली हो जायें शायद. खतरनाक किस्म की अजीब इंसान हूँ शायद. वक़्त बर्बाद होने पर सबसे ज्यादा कोफ़्त होती है.

मगर फिर कहीं कोई खुदा है कि जो बैलेंस बरक़रार रखता है. कुछ लोग होंगे जिनकी दुआओं का टोकन अप्रूव्ड हो जाता होगा. एक बेहतरीन फिल्म देखी 'सिनेमा पैराडिसो', तब से लगातार उसका ही थीम स्कोर सुन रही हूँ. इस अद्भुत दुनिया में जितना जानो उतना ही मालूम चलता है कि कुछ नहीं आता...अभी तो कुछ नहीं देखा. कई सारी ख्वाहिशों में एक ये भी थी कि कलर लेंस लगाऊं. टु डू लिस्ट से एक आर्टिकल कटा. नीले लेंस ख़रीदे थे. अपनी ही आँखों पर फ़िदा हुयी जा रही थी. चूँकि मेरी आँखें गहरी काली हैं इसलिए लेंस भी ऐसा था कि जिसमें रेखाएं थीं कि काले से मिलजुल कर ही रंग आया था आँखों का. गहरा नीला. कन्याकुमारी से दूर दीखते समंदर के रंग जैसा. फ़िल्मी. ड्रामेटिक.

एकदम खाली. निर्वात. बारिश के बाद के बाढ़ जैसा बाँध तोड़ने वाला उफान. अबडब. कुछ बीच में नहीं कि गंभीर नदी की तरह तयशुदा रास्ते पर चलते रहे नियमित. तमीजदार. उम्र के इस सिरे पर भी बचपना बहुत सा और जिंदगी से अजीब दीवाने किस्म की मुहब्बत. कभी कभी तो ऐसा भी लगा है कि लिखना छूट गया है अब शायद कभी नहीं लिख पाउंगी. मौसम की तरह होता है न सब. फेज. गुजरने वाला. कलमें हैं. जाने कितने रंगों की सियाही खरीद कर लाइन लगा रखी है. कभी कभी उपरवाले से बहुत झगड़ा करने का मन करता है. खुश हो न तुम...तुम्हें मुझसे क्या मतलब. अच्छी खासी चल रही थी जिंदगी. चले आये मुंह उठा कर. मेरी बला से. हुंह. मैं नहीं बात कर रही तुमसे. कभी. मगर याद रखना एक दिन मेरी याद इतनी आएगी न कि इंसान बन कर धरती पर मिलने आओगे मुझसे.

नींद आ रही है. कमरे में सारी किताबें करीने से लगी हुयी हैं आजकल. उनकी कतार देख कर बड़ा सुकून होता है. लगता है कि दुनिया में कहीं कुछ बहुत अच्छा है. लगता है कहीं और रह रही हूँ आजकल. ठीक ठीक मालूम नहीं कैसी हूँ मैं. कोई नब्ज़ पहचान कर मर्ज़ बताये. दवा बताये न सही चलेगा. जीने के लिए कुछ चीज़ें बेइन्तहा जरूरी होती हैं. ऊपर वाली तस्वीर मेरी डेस्कटॉप की है आजकल. टोनी की तस्वीर लगी है. थोड़ी धुंधली सी. मुझे हमेशा ऐसा महसूस होता है कि इसी दीवार के उस तरफ कोई परफेक्ट दुनिया है. इससे टिक कर एक सिगरेट पी लेने भर से कुछ दिन और जी लेने का हौसला आ जाता है. ऑफिस में एक पैकेट सिगरेट है. ब्लू डनहिल्स. साल भर में कोई दो सिगरेट पी होगी बमुश्किल मगर उस डब्बी का वहीं, वैसे ही, बिना बदले पड़ा होना अजीब सुकून देता है. इजाजत के इस सीन की तरह. 'सब कुछ वही तो नहीं, पर है वहीं'.

लिखने को इतना कुछ हो जाता है. जीने को इतना कुछ कि चौबीस घंटे बहुत कम पड़ते हैं. बहुत कम. इतने में तो तमीज से एक तरकारी, भुनी हुयी रहर की दाल और भात तक नहीं बना के खा सकती रोज. कहाँ से चुराऊं थोड़ा सा और समय. थोड़ा दोस्तों से मिलने को. थोड़ी चढ़ी हुयी विस्की उतारने को. थोड़ी लिखी हुयी को फिर पढ़ने को. नीली आँखों में जो झांकती है वो कोई और है, मैं नहीं. मगर कसम से...कितना प्यार करती हूँ मैं उससे. कितना सारा.
---
परसों तुम्हें गए हुए छः साल बीत जायेंगे. मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करती हूँ. काश कि तुम्हारे जैसी हो पाती जरा जरा भी. तुम्हारी खुशबू मुट्ठी से बिसरती जा रही है मगर तुम कहीं नहीं बिसरती. इस जिंदगी में तो तुम्हारे बिना जीना नहीं आएगा रे.
I love you. Still. More than yesterday and less than tomorrow. 

18 September, 2013

इट हर्ट्स. बट नेवरमाइंड.

-एक-
तुम तो धुमुस जानते हो न. अरे वही जिसको धुरमुस कहते हैं. एक लोहे का छोटा सा वृत्त होता है, बेहद भारी, एक ओखल जैसे मोटे लकड़ी का सिरा होता है. इसे बार बार ज़मीन पर पटकते हैं जिससे मिटटी अच्छे से जम जाए. इससे मिटटी का लेवल भी बराबर करते हैं. कोंच कोंच कर भरते हैं जैसे शीशे के मर्तबान में कुछ.

तुम वैसे ही बसे हो न मन में. मिट्टी के कण के बीच हवा भर की जगह न हो जैसे. बहुत छोटा सा होता है दिल. कितने कितने दिन लम्हे लम्हे करके इसी तरह बसाती गयी हूँ तुम्हें दिल में. सख्त फर्श है अब बिलकुल. इसमें किसी पौध की रोपनी नहीं की जा सकती है. तुम्हारे खो जाने जैसा ही शोर होता है धुरमुस का. धम धम बजता है बारिश वाली शामों में. इतनी बारिश में गंगा किनारे तोड़ कर बही है. घर में घुस आये पानी को निकालने के बाद उसमें बहुत सारी मिट्टी गिराई गयी है. सुबह से मजदूर लगे हुए हैं. हर आवाज़ के साथ तुम्हारा नाम गहरे धंसता जाता है मिट्टी में. इसी कबर में तुम्हारे नाम के सारे ख़त डाल  देती हूँ. अगली साल बारिश में फिर बहा देगी गंगा तुम्हें. मिटा देगी तुम्हारा नाम. ये क्या है कि मेरे तुम्हारे बीच बहती है. तुम एक नाव लेकर मेरे पार क्यूँ नहीं आ जाते?

तुम कहीं भी तो नहीं हो. गंगा में नहीं. बारिश में नहीं. धुरमुस यूँ भी अब कौन इस्तेमाल करता है. फिर मैं कहीं का कोई इंस्ट्रुमेंटल संगीत सुनते हुए तुम्हारी याद में कहाँ डूबने लगती हूँ. मेरे छोटे छोटे टुकड़े करता जाता है संगीत और पार्सल कर देता है. गंगा किनारे मांसखोर मछलियों को खिला देने के लिए. मेरा कोई टुकड़ा तुम्हारे हाथ कभी नहीं लगता. तुम मान भी तो लेते हो कि मैं मर गयी हूँ.

तुम तो मुझसे कभी मिले भी नहीं हो. तुम्हें मालूम है मेरी आँखों का रंग कैसा है?

-दो-
हर शहर की अपनी गंध होती है. गंगा किनारे उफनते लाल पानी को देखते हुए. घुटने घुटने पानी के वापस लौट जाने के बाद शहर में बसती जाती है गंध. मुंबई में गेटवे के पास चुप सर पटकते समंदर की होती है एक गंध. नमक मिले पानी और आंसू में बहते हुए सपनों की मिलीजुली गंध. समंदर में विसर्जित अनगिन आत्माओं की गंध. समंदर से वापस लौटते हर रास्ते का पीछा करती है समंदर की गंध. वक़्त का एक सिरा पकड़ कर मैंने सोचा था तुम्हारा एक लम्हा अपने नाम लिखवा सकूंगी. इंतज़ार के कदमों वापस लौटता है शहर और 'सॉरी' का एक छोटा सा चिट थमाता है मुझे. पुराने पत्थरों में तुम्हारे टूटे वादों जैसा कुछ लिखा हुआ दिखता है. बहुत मुश्किल है इस भागते शहर से एक लम्हा चुरा पाना.

तुम्हें मालूम है मेरे पास तुम्हारी कोई तस्वीर नहीं है. याद का कोई टुकड़ा. स्पर्श का कोई लम्हा नहीं जो फ्रेम करके लगा सकूँ. जब तुम चले जाते हो तो मुझे यकीन नहीं होता कि तुम कभी थे भी. तुम्हारे नाम का टैटू बनवाने की इच्छा है. रूह का तो क्या है, जिस्म को तो याद रहे कि कभी छुआ था तुमने मुझे. 'you touched me here' कलाई में जहाँ दिल का तड़पना महसूस होता है वहीं.

बारिश धो देती है तुम्हारी खुशबू. छाता खो जाता है लोकल ट्रेन मैं. तुम्हारी साँसों में बसने लगा है अजनबी शहर. मेरे आने से उस शहर में खुलने लगती है किताबों की एक आलसी लाइब्रेरी जहाँ लोग फुर्सत में लिखते हैं अपने महबूब को ख़त. तुम वहां हर शाम रिजर्वेशन करवाते हो मगर ठीक आठ बजे तुम्हारी एक मीटिंग अटक जाती है सुई पर और तुम्हारा क्लाइंट तुम्हें समझाता है किन जिंदगी में प्रमोशन मुहब्बत से ज्यादा जरूरी क्यूँ है. यूँ कि इश्क तो ऐरे गैरे गरीब को भी हो जाता है मगर मिसाल की बात पर लोगों को ताजमहल याद आता है. जब तक तुम इस काबिल न हो जाओ कि कम से कम दो लाख की कीमती अंगूठी खरीद कर महबूबा को न दे सको, इश्क के नाम को कलंकित ही करोगे. तुम्हें बरगलाना इतना आसान है तो मैं क्यूँ नहीं बरगला पाती कभी?

हालाँकि तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारे कभी होने का कोई सबूत नहीं रह जाता. फिर भी जानते तो हो न कि मैं प्यार करती हूँ तुमसे?

-तीन-
नहीं. मुझे तुम्हारे ख़त कभी नहीं मिले. इसलिए कि तुमने कभी लिखे ही नहीं मुझे. हाँ. मैंने लिखे थे तुम्हें बहुत सारे ख़त. हाँ मैं थोड़ी पागल हूँ तुम्हारे बारे में. यु नो हाउ वुमेन आर. उनकी छठी इन्द्रिय होती है ऐसी ही. माँ की होती है. प्रेमिका की भी होती है. बीवी की होती है. मेरी क्यूँ है लेकिन? मैं तुम्हारी कुछ भी तो नहीं लगती. तुम्हारा ख्याल रखने को पूरी दुनिया के लोग हैं मगर तुम्हें तकलीफ होती है तो मेरी रातों की नींद क्यूँ उड़ती है?

तुम्हें लगा तुमने मुझे ख़त लिखे हैं? तुम्हें कभी ये लगा कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ? सब कुछ लगेगा तुम्हें कमबख्त...सर्दी लगेगी, गर्मी लगेगी मगर ये नहीं लगेगा कि मुझे तुम्हारी बातें लग जाती हैं. तुम दिल्ली छोड़ कर चले क्यूँ नहीं जाते? दुनिया के इतने सारे शहर हैं, कभी इटली में जा के रहो न...वैसे टिम्बकटू भी अच्छी जगह है. कहीं चले जाओ जहाँ का पता मुझे मालूम न हो. वो लाल डब्बा मुझे देख कर ऐसे मुंह चिढ़ाता है कि दिल करता है पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दूं.

मालूम, तुमसे मिल कर बहुत साल बाद किसी को चिट्ठियां लिखने का दिल किया था. सुनो, तुम्हें क्यूँ लगता है कि मैं तुम्हें समझती हूँ? कितना वक़्त ही बिताया है तुमने मेरे साथ...इतने देर में लोगों को प्यार नहीं, धोखा होता है बस. तब जब कि मुझे यकीन हो जाना चाहिए था किन समन्दरों के शहर वाले लोग किसी गाँव में लंगर नहीं डालते मैं तुम्हारे लिए डॉकिंग स्टेशन बनवा रही हूँ. मुसाफिर सही, कभी दिन के एक घंटे रुकने को जी किया तो इधर नेरुदा की कवितायेँ हैं, दिलफरेब तसवीरें हैं जो मैंने ग्रीस के किसी द्वीप पर उतारीं थीं, कुछ तुम्हारी पसंद के लोग भी हैं...अँधेरे वाले लाईटबल्ब हैं. काली रौशनी वाले रोशनदान हैं.

And he hugs me like I am made of glass...and so tightly that I shatter...into dust and get imbibed in his blood...a fragment of me sparkles into his eyes...the last light of a dying star.

सोचा तो ये था कि विदा कह रही हूँ तुम्हें. लगता ऐसा है जैसे सी यू टुमारो कहा है.

-चार-
आई नो, यू लव मी टू. इट हर्ट्स. बट नेवरमाइंड.

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...