कैसी रास लगी आँखें हैं न. पानी भरी. अबडबयाईं. पानी से तीखा सान चढ़ा हो जैसे. उन आँखों में देखते डर लगे कि जैसे टुकड़े टुकड़े हो जाता है दिल उन आँखों को देख कर.
देखा है कभी चाकू पर सान चढ़ाते, बार बार घिसना होता है. पानी में भिगो कर. लगातार. कभी कभी तो चिंगारियां भी निकलती हैं. वैसी हैं उनकी आँखें. कान्गुरिया ऊँगली के पोर में काजल लगा जब बड़ी बड़ी आँखों की बाहरी रेखा खींचती हैं तो आईने से चिंगारियां फूटती हैं.
पहले लगता था छोटी बहू जमींदारों के खानदान की आखिरी हवेली में चिन दी गयी होंगी. फिर उनके बाद किसी खानदान में छोटी बहू जैसी दर्द को जीने वाली कोई नहीं आई होगी. हमें क्या पता था कि सिर्फ आउटडोर लोकेशन बदला है शूट का. कहानी अब भी वही है. घुटन अब भी वही और वैसी ही तन्हाई भी है.
ये कैसा खालीपन खाए जाता है. कार के शीशे चढ़ा कर एसी चलाये हुए है लड़की. कार में सिगरेट का धुआं भरा हुआ है और सीने में बेपनाह खालीपन. तनहा सड़कों पर तेज़ रफ़्तार उड़ते हुए सुनती है 'कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ'. भूतनाथ बड़ी मासूमियत से पूछता है 'वही बहुरानी न, जो बहुत रात गए बिरहा गाया करती हैं?' जवाब आता है 'बिरहा न गैहैं तो का मल्हार गैहैं'. सोचती है, उसके बारे में तो ऐसा कोई बताने वाला भी नहीं है. कोई सुनने वाला नहीं. कौन जानेगा दिल के अन्दर फैलता सूनापन.
समंदर का सारा नमक उसकी आँखों में पनाह पाता था. आँखों से बह कर ज़मीन पर पहुँचता तो नमक का पौधा उगने लगता वहां. बेहद जिद्दी और अक्खड़. किसी और को अपने पास रहने नहीं देता. तीखे नमक के कांटे बाड़ बनाने लगते कि कोई दुःख उस तक पहुँच न पाए. नमक के पौधे पर फूल आता तो लड़की अपने बालों में लगा लेती. सुर्ख लाल रंग के फूल से उसकी मुस्कुराहटें गुलाबी होने लगतीं थीं.
आज के दर्द का सबब कुछ और ही था. ये गम उसके खुद का नहीं था. किसी से बेपनाह प्यार करो तो उसके हिस्से का गम अपने बहीखाते में लिखवा सकते हो. किसी को मालूम नहीं चलता था मगर लड़की अंडरहैण्ड डीलिंग करती थी, खुदा के दरबार में उसकी चित्रगुप्त से खास जान पहचान थी. उसका रजिस्टर देखोगे तो लाल रेखाओं से भरा मिलेगा. ये वो तकलीफें नहीं थीं जो खुदा ने उसके नाम लिखी थीं. ये वो तकलीफें थीं जो दूसरे रजिस्टरों से उसके रजिस्टर में ट्रांसफर की गयीं थीं. यूँ तो उसे आदत थी तो अक्सर गम को छोटी छुट्टियों का सबब बना लेती थी. समंदर किनारे कोई छोटी सी बस्ती में एक कमरा बुक करती और देर देर रात तक समंदर को किस्से सुनाया करती. उसके आंसुओं से समंदर का पानी और खारा हो जाता. समंदर लेकिन कभी अधीर नहीं होता, इत्मीनान से उसकी कहानियां सुनता रहता.
लड़की बिरहा गाती तो दूर देश समंदर किनारे बैठे लड़के के सीने में हूक उठने लगती. उसने कितनी बार कहा था अकेली इतनी लाल लकीरें लेकर न चला करो, लाओ कुछ पन्नों की नाव बना देते हैं. बहती बहती मेरे बंदरगाह पर आ लगेंगी. होने दो कुछ मेरे शहर का पानी भी खारा. मगर लड़की उसके लिए डरती थी. यूँ कि उस शहर में बस एक ही झील थी, मीठे पानी की. झील से समंदर तक आती एक नदी थी छोटी सी. अगर समंदर का पानी नदी के रास्ते झील में चला जाता तो शहर के सारे लोग प्यास से मर जाते.
आज बहुत साल बाद लड़के ने जिद बाँधी थी कि उसके शहर में लगने वाले मेले में जरूर आएगी. शहर दूर था कितना मगर चूँकि समंदर के पास था इसलिए लड़की ने हामी भर दी. छोटी सी एक छुट्टी बची हुयी थी साल की आखिरी. उसे लगा कभी कभी ख़ुशी की सुनहली पीली लकीर भी तो होनी चाहिए पन्ने में. एक ऐसी लकीर जो सारे पन्नों के पार दिखे. बहुत सालों बाद मिली थी उससे. शहर में मीठे पानी की बारिश होती थी. उसके बालों में लगा नमक का गुलाबी फूल कब का उस बारिश में घुल कर मिट्टी में मिल गया. लड़के ने उसके लिए ताज़े गुलाब के फूल ख़रीदे. सुनहले पीले रंग के. जब लड़की ने बालों में फूल लगाया तो उसके गहरे काल बाल सुनहले रंग में बदल गए...उसकी आँखों में इतनी धूप भर गयी कि सारे उदासी के सियाह बादल छंट गए. वो समंदर किनारे बैठी बस उस लड़के के किस्से सुनती रही. लड़का कोई गीत गुनगुना रहा था. दुनिया पागल थी ही हमेशा से...आज लड़की का दिल कर रहा था वो सारी चिंता फिकर छोड़ दे और यहीं बस जाए कहीं.
उसकी कार बहुत बड़ी तो नहीं थी मगर इतनी थी कि जब तक नया घर न मिल जाए उसमें ही सोया जा सके. उसने अपना शहर बाँधा और नाव में रख दिया. पूरे पूरे तूफानी दिन समंदर में गहरी ऊंची लहरें उठती रहीं. समंदर कितना डराता उसे कि उसका शहर डुबा देगा मगर लड़की को समंदर से डर नहीं लगता था. पूरे सात महीने लगे उस अँधेरे समंदर में बिना तारों की रौशनी के लड़के का शहर खोजने में. लड़की कितनी बार भटक जाती, अनजान किनारों पर पहुँच जाती जहाँ कई खूबसूरत नौजवान उसपर दिलो जान से निछावर होते मगर उसे तलाश थी तो बस उस लड़के की जिसने उसके बालों में सुनहला गुलाब गूंथा था.
जब किनारे पहुंची तो उसे मालूम हुआ कि शहर के नियम बदल गए हैं और नाव से किसी शहर को कहीं और ले जा कर बसाना गैरकानूनी है. उसने लोगों को बहुत समझाने की कोशिश की मगर कोई उसकी बात मानने को तैयार न हुआ. कोई उसे थोड़ी सी ज़मीन भी नहीं दे रहा था. आखिर छोटा सा तो था उसका शहर. समंदर का दिल पसीजा लेकिन. उसने एक टापू बनाया जहाँ लड़की ने लंगर डाल कर नाव रोकी और अपना शहर बसा लिया. लड़की के शहर के लोग मछली पकड़ते और बेचते. कुछ लोग मोतियों की खरीद फरोख्त में व्यस्त हो गए. लड़की खुश थी. हर शाम नाव खोलती और लड़के के शहर पहुँच जाती. फिर दोनों देर रात तक समंदर को कहानियां सुनाया करते.
तन्हाई यूँ तो भीड़ में अक्सर उग आती है मगर सदियों लम्बी उम्र की तन्हाई ख़त्म करने को एक इंसान ही काफी होता है. थोड़ा सा प्यार. थोड़ी बारिश. थोड़ा समंदर. बस.
करीबन तीन दिनों से पढ़ रहा हूँ आपको, बहुत ज्यादा तो नहीं कह सकता लेकिन इतना जरुर कहुंगा कि आप जो भूगोल रचती हैं, उसमे खो जाना मंगल से वापस आने जैसा होता है, कहीं दरीचे से रिसती धूप तैरती रहती है, तो कहीं अक्स पानी में बिना किसी आवाज़ के डूब कर खत्म हो जाता है, गुड़ुप......गुड़ुप........ और मैं फिर से निकल आता हूँ डूबता हुआ कि अभी कुछ छूटा हुआ है जो मैं पूरा नहीं कर पाया, कुछ शब्द तैर रहे हैं जिन्हें पकड़ना बाकी है, जिनकी बातें अभी भी गूँज रही हैं, और आप फिर कड़ी हो जाती हैं, आपकी हंसती हुई आँखें चश्मे के पार देखती हुई कोई तिलिस्म रचती हैं, सच कहूँ तो तिलिस्म ही है यह, "वो सिगरेट" पढ़ते हुए रोम रोम खड़े हो गए थे, वह डर नहीं था बल्कि आपका रच हुआ रोमांच था।
ReplyDeleteबस लिखती रहिये और हम जैसे यायावर पढ़ते रहेंगे, कभी सिगरेट का कश लेते हुए तो कभी जागती रातों में व्हिस्की की चुस्की लेते हुए और अपनी होने वाली बीवी को यह बताते हुए कि एक लड़की है, तिलिस्म रचती है, कभी पढना, अच्छा लगेगा, मेल कर रहा हूँ उसका ब्लॉग एड्रेस, यह भूलते हुए कि उसे प्रोजेक्ट की किताबों के अलावा सिर्फ मुझे पढना आता है।
-बधाई!
-नीरज
शुक्रिया नीरज. इस खूबसूरत जवाबी ख़त के लिए.
Deleteएक लाइन लिखने में चार बार मिटाना पड़ता है. ब्लॉग शायद ही कभी कमेन्ट कर रिप्लाय कर पाती हूँ. समझ नहीं आता क्या कहूं.
बस लिखते रहिये…… उ का कहल बा कि कुछ चीज़ कहल न जा लᴤ.... :)
Delete"कड़ी" को "खड़ी " पढ़िए, कमबख्त टाइपो मिस्टेक्स!
ReplyDelete"ये वो तकलीफें थीं जो दूसरे रजिस्टरों से उसके रजिस्टर में ट्रांसफर की गयीं थीं"
ReplyDeleteआज तुम्हें पढ़ते हुए खूब बरसीं आँखें...
कोई कोई दिन ऐसा होता है कि बस लहरों के पास बैठ कर भीगना ही जीवन का हासिल लगता है....
ऐसा न कहो अनुपमा. वहां परदेस में आँखें बरसेंगी तो यहाँ सूखा पड़ने लगेगा.
ReplyDeleteसब तुम्हारा ही तो है. पूरा पूरा समंदर. सारी की सारी लहरें. कभी समझ नहीं आता इतने स्नेह का प्रतिदान कुछ हो भी तो कैसे हो.
बहुत सारा प्यार और शुक्रिया.
"सब तुम्हारा ही तो है. पूरा पूरा समंदर. सारी की सारी लहरें...."
ReplyDeleteSo sweet of you...
Thanks!!!