
इन दिनों काग़ज़ की बहुत ज़रूरत लगती है। काग़ज़ अजीब क़िस्म से ज़िंदा होता है। ख़तों में ख़ास तौर से।  A country without post-office, आगा शाहिद अली की कविताओं की छोटी सी किताब है जो इसी नाम की कविता पर रखी गयी है। इस कविता की आख़िरी पंक्ति है। “It rains as I write this. Mad heart, be brave.”। बहुत साल पहले एक लड़की ने इसका ट्रैन्स्लेशन करने को कहा था मुझसे। सिर्फ़ आख़िर के चार शब्द। मेरे पास कोई कॉंटेक्स्ट नहीं था। अब जब है, कहानी का, कविता का, लड़की का भी…मेरे पास शब्द नहीं हैं। कि टीस शायद हर भाषा में एक सी महसूस होती है। वे सारे लोग जो हमारे हिस्से के थे लेकिन हमें कभी नहीं मिले। जो मिले भी तो किसी दोराहे पर बिछड़ गए। 
मेरी नोट्बुक में तुम्हारे लिखे कुछ शब्द हैं। उन्हें पढ़ते हुए रोना आ जाता है इसलिए उन शब्दों को आँख चूमने नहीं दे सकती। मैं सिर्फ़ कहानी लिख सकती हूँ जिसमें एक कैफ़े होता है और एक दरबान, कैफ़े में आगे नोटिस लगा होता है, यहाँ उदास आँखों वाली लड़कियों का बैठना मना है। तुम जानते हो, वो कैफ़े मेरा दिल है। और वो दरबान  वक़्त है। कमज़र्फ़। जो कि चूम कर मेरी आँखें कहता है हर बार, इन आँखों का एक ही मिज़ाज है। उदासी। 
तुम्हें तो मीठा पसंद है न मेरी जान। तुम भला क्यूँ चूमोगे मेरी खारी आँखें। 
 
बहुत सुंदर
ReplyDeleteMad heart, be brave
ReplyDeleteसंभवतः उस अव्यक्त को इन शब्दों के अतिरिक्त व्यक्त भी तो नहीं किया जा सकता है। यादों की डबडबाती डुबकी।
उम्दा
ReplyDeleteअच्छा लगा देख के, कि यहाँ भी लिख रही हो बीच बीच में । इधर पढ़ना ज़्यादा अच्छा लगता है ।
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