19 January, 2018

हमारे अलविदा को ना लगे, किसी दिलदुखे आशिक़ की काली नज़र


विस्मृति की धूप से फीके हो जाएँगे सारे रंग
एक उजाड़ पौधे पर सूख गए आख़िरी फूल दिखेंगे
धूल धुँधला कर देगी खिड़की से बाहर के दृश्य
हमारे नहीं होने के कई साल बाद भी

मैं तलाशती रहूँगी हमारे ना होने की वजहें
अपने मन के अंधारघर में
मैं रहूँगी, इकलौती खिड़की पर
अंतहीन इंतज़ार में।

***

मैं नहीं रोऊँगी इस बार
कि आँख में बचा रहे काजल
और हमारे अलविदा को ना लगे
किसी दिलदुखे आशिक़ की काली नज़र

याद के बेरंग कमरे को
रंग दूँगी तुम्हारे साँवले रंग में।
स्टडी टेबल के ठीक ऊपर
टाँग दूँगी तुम्हारी हँसी की कंदीलें।

अलविदा के पहर कम दुखें, इसलिए ही
जलाऊँगी दालचीनी की गंध वाली मोमबत्ती।

हिज्र उदास कविताओं का श्रिंगार है
कहो अलविदा,
कि स्याही के अनेक रंग और कुछ सफ़ेद पन्ने
इंतज़ार में हैं।

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