Have you ever had a longing for a city you never visited?
मुझे समझ नहीं आता कि प्यार कैसे होता है। किसी भी चीज़ से। आख़िर कैसे हो सकता है कोई शहर हूक जैसा?
कन्नौज के बारे में पहली बार कोई पाँच-छह साल पहले अख़बार में पढ़ा था। एक ऐसा शहर जहाँ मिट्टी अत्तर बनता है। इस शहर के बारे में, ख़ुशबुओं के बारे में कहानियाँ मुझ तक पहुँचती रहीं। तीन रोज़ इश्क़ में जो 'ख़ुशबुओं के सौदागर' की कहानी है, वो एक ऐसी तलाश है...कल्पना की ऐसी उड़ान है जो मैं भर नहीं सकती। ये वैसे सपने हैं जो मेरी कहानियों की दुनिया में देखती हूँ मैं।
ख़ुशबुएँ मुझे बहुत आकर्षित करती हैं। बचपन में ख़ुशबू वाले रबर बहुत दुर्लभ होते थे और सहेज के रखे जाते थे। मैं जब टू या थ्री में पढ़ती थी तो मेरे स्कूल के बग़ल के एक मैदान में स्पोर्ट्स डे होता था। वहाँ एक लगभग कटा हुआ पेड़ था। कुछ ऐसे गिरा हुआ कि उसपर बैठा जा सकता था। मैंने उसकी लकड़ी क्यूँ सूंघी मुझे मालूम नहीं। लेकिन उसमें एक ख़ुशबू थी। कुछ कुछ तारपीन के तेल की और कुछ ऐसी जो मुझे समझ नहीं आयी। उस पेड़ की लकड़ी का एक टुकड़ा मेरे पेंसिल बॉक्स में दसवीं तक हुआ करता था। मैं उसे निकाल के सूँघती थी और मुझे ऐसा लगता था कि मेरी पेंसिल और क़लम सब उसके जैसी महकती है।
छह साल पहले टाइटन ने अपने पर्फ़्यूम लौंच किए थे। Titan Skinn। वो प्रोजेक्ट मैंने अपनी पिछली कम्पनी में किया था। लौंच के लिए पहले ख़ूब सी चीज़ें पढ़ी थीं।इत्र के बारे में। शायद, मुझे ठीक से याद नहीं...पर उन्हीं दिनों लैवेंडर के खेतों के बारे में पहली बार पढ़ा था। उस ख़ुशबू के ख़याल से नशा हो आया था।
कि शहर लिख दिया है दुआओं में। कभी तो रिसीव्ड की मुहर लगेगी ही।
अस्तु।
मुझे समझ नहीं आता कि प्यार कैसे होता है। किसी भी चीज़ से। आख़िर कैसे हो सकता है कोई शहर हूक जैसा?
कन्नौज के बारे में पहली बार कोई पाँच-छह साल पहले अख़बार में पढ़ा था। एक ऐसा शहर जहाँ मिट्टी अत्तर बनता है। इस शहर के बारे में, ख़ुशबुओं के बारे में कहानियाँ मुझ तक पहुँचती रहीं। तीन रोज़ इश्क़ में जो 'ख़ुशबुओं के सौदागर' की कहानी है, वो एक ऐसी तलाश है...कल्पना की ऐसी उड़ान है जो मैं भर नहीं सकती। ये वैसे सपने हैं जो मेरी कहानियों की दुनिया में देखती हूँ मैं।
ख़ुशबुएँ मुझे बहुत आकर्षित करती हैं। बचपन में ख़ुशबू वाले रबर बहुत दुर्लभ होते थे और सहेज के रखे जाते थे। मैं जब टू या थ्री में पढ़ती थी तो मेरे स्कूल के बग़ल के एक मैदान में स्पोर्ट्स डे होता था। वहाँ एक लगभग कटा हुआ पेड़ था। कुछ ऐसे गिरा हुआ कि उसपर बैठा जा सकता था। मैंने उसकी लकड़ी क्यूँ सूंघी मुझे मालूम नहीं। लेकिन उसमें एक ख़ुशबू थी। कुछ कुछ तारपीन के तेल की और कुछ ऐसी जो मुझे समझ नहीं आयी। उस पेड़ की लकड़ी का एक टुकड़ा मेरे पेंसिल बॉक्स में दसवीं तक हुआ करता था। मैं उसे निकाल के सूँघती थी और मुझे ऐसा लगता था कि मेरी पेंसिल और क़लम सब उसके जैसी महकती है।
छह साल पहले टाइटन ने अपने पर्फ़्यूम लौंच किए थे। Titan Skinn। वो प्रोजेक्ट मैंने अपनी पिछली कम्पनी में किया था। लौंच के लिए पहले ख़ूब सी चीज़ें पढ़ी थीं।इत्र के बारे में। शायद, मुझे ठीक से याद नहीं...पर उन्हीं दिनों लैवेंडर के खेतों के बारे में पहली बार पढ़ा था। उस ख़ुशबू के ख़याल से नशा हो आया था।
मैं नहीं जानती मेरा उपन्यास कब पूरा होगा। लेकिन उसके पूरे होने के पहले कुछ शहर मेरी क़िस्मत में लिखे हैं। न्यू यॉर्क एक ऐसा शहर था। वहाँ की कुछ झलकियाँ कहानी में बस गयी हैं। अब जो दूसरा शहर चुभ रहा है आज सुबह से, वो कन्नौज है। मैंने उसका नाम इतरां क्यूँ रखा? इत्र से इतरां...जाने क्यूँ लगता है कि उसे समझने के लिए अपने देश में रहते हुए इत्र के इस शहर तक जाना ही होगा।
आज थोड़ा सा पढ़ने की कोशिश की है शहर के बारे में। सुबह से कन्नौज के बारे में क्यूँ सोच रही थी पता नहीं। सुबह एक दोस्त से बात करते हुए कहा उसे कि जोधपुर गयी थी, वहाँ मिट्टी अत्तर देखा। क़िले में। मुझे एक बार जाना है वहाँ दुबारा। फिर वो कह रहा था कि कन्नौज में भी बनता है। कि कन्नौज उसके घर के पास है। आप मेरे साथ चलिए। और मैं सोच रही थी। कभी कभी। कि लड़का होती तो कितना आसान होता ना, ऐसे मूड होने पर किसी शहर चले जाना। जिस वीकेंड टिकट सस्ती होती, दिल्ली चल लेते या लखनऊ और फिर कन्नौज। पहली बार मैप्स में देखा कि कन्नौज कहाँ पर है। और सोचा। कि कितने दूर लगते है ये सारे शहर ही बैंगलोर से।
मेरे ख़यालों में उस शहर से उठती मिट्टी अत्तर की गंध उड़ रही है। बारिश में भीगती गंध। मैं पटना वीमेंस कॉलेज में जब पढ़ती थी तो माँ सालों भर मुझे छतरी रख के भेजती थी बैग में। कि ग़लती से भी कहीं बारिश में ना फँस जाऊँ। उस रोज़ मैं उस लड़के से मिली थी, कॉलेज का सेकंड हाफ़ बंक कर के। बचपन का दोस्त और फिर लौंग डिस्टन्स बॉयफ़्रेंड। जिसे मैंने समोसे के पैसे बचा बचा कर PCO से कॉल किए थे ख़ूब। पर मिली थी तीन साल में पहली बार।हम सड़क पर टहल रहे थे। बहुत बहुत देर तक। पहली बार उस दिन छाता लाना भूल गयी थी। मौसम अचानक से बदल गया था। एकदम ही बेमौसम बरसात। मैं बेहद घबरा गयी थी। भीग के जाऊँगी तो माँ डाँटेगी। भीगने से नहीं, डांट के डर से...मैं घबराहट में थरथरा रही थी। बचपन के बेफ़िकर दिनों के बाद मैं कभी बारिश में नहीं भीगी थी। कई कई कई सालों से नहीं। और बारिश ने मौक़ा देख कर धावा बोला था। मैं बड़बड़ कर रही थी। आज तो मम्मी बहुत डाँटेगी। अब क्या करेंगे। मैं सुन ही नहीं रही थी, लड़का कह क्या रहा है। उसने आख़िर मेरे काँधे पकड़े अपने दोनों हाथों से...मुझे हल्के झकझोरा और कहा...'पम्मी, ऊपर देखो'। मैंने चेहरा ऊपर उठाया। वो लगभग छह फ़ुट लम्बा था। उसका चेहरा दिखा। पानी में भीगा हुआ। बेहद ख़ूबसूरत और रूमानी। और फिर मैंने चेहरे पर बारिश महसूस की। पानी की बूँदों का गिरना महसूस किया। मैं भूल गयी थी कि चेहरे पर बारिश कैसी महसूस होती है।
मैं कन्नौज नहीं। उस पहली बारिश को खोज रही हूँ। कि आज भी जब बारिश में भीगने चलती हूँ तो चेहरा बारिश की ओर करते हुए लगता है आँखों को उसकी आँखें थाम लेंगी। भीगी हुयी मुस्कुराती आँखें। काँधे पर उसके हाथों की पकड़। कि वो होगा साथ। मुझे झकज़ोर के महसूस कराता हुआ।
कि बारिश और मुहब्बत में। भीगना चाहिए।
कि किसी गंध के पीछे बावली होकर कोई शहर चल देने का ख़्वाब बुनना भी ठीक है। कि ज़िंदगी कहानियों से ज़्यादा हसीन है।
कि किसी गंध के पीछे बावली होकर कोई शहर चल देने का ख़्वाब बुनना भी ठीक है। कि ज़िंदगी कहानियों से ज़्यादा हसीन है।
कन्नौज। सोचते हुए दिल धड़कता है। कि लगता है इतरां की कहानी का कोई हिस्सा उस शहर में मेरा इंतज़ार कर रहा है। कि जैसे बहुत साल पहले बर्न गयी थी और लगा था कि इस शहर से कोई रिश्ता है, बहुत जन्म पुराना। आज वैसे ही जब अपने दोस्त से बात कर रही थी तो लगा कि शहर जैसे अचानक से materialize कर गया है। कि अब तक यक़ीन नहीं था कि शहर है भी। मगर अब लगता है कि ऐसा शहर है जिसे महसूसा जा सकता है। कलाई पर रगड़ी जा सकती है जिसकी गंध।
कि शहर लिख दिया है दुआओं में। कभी तो रिसीव्ड की मुहर लगेगी ही।
अस्तु।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, गणतंत्र दिवस समारोह का समापन - 'बीटिंग द रिट्रीट'“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteZabardast aap likhti hain.
ReplyDeleteVery nice post.
shaziaiqbal.blogspot.com
Nice line, publish online book with best
ReplyDeleteHindi Book Publisher India
इत्र, बारिश ,खुशबु
ReplyDeleteऐसा लगता है कोई हमारे बारे में बात कर रहा है,हमको बारिश बहुत पसंद है,और आजकल बैंगलोर का मौसम भी बहुत दिलकश है,आपको पढ़ते पढ़ते काफी पी रहे हैं
आपको लहरें publish करवा देनी चाहिए।फिलहाल तो हम send to Kindle use करके किंडल में पढ़ लेते हैं
अच्छा।......