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24 November, 2017

ये सातवाँ था ब्रेक-अप और बारवीं मुहब्बत, दिल तोड़ने की तौबा मशीन हो रहे हो

ग़ुस्ताख़ हो रहे हो 
रंगीन हो रहे हो 
सारी हिमायतों की 
तौहीन हो रहे हो 

वो और होते होंगे 
बस हैंडसम से लड़के 
तुम हैंडसम नहीं रे 
हसीन हो रहे हो

होठों पे जो अटकी है 
आधी हँसी तुम्हारी
चक्खेंगे हम भी तुमको 
नमकीन हो रहे हो 

ये सातवाँ था ब्रेक-अप 
और बारवीं मुहब्बत 
दिल तोड़ने की तौबा 
मशीन हो रहे हो 

इतनी अदा कहाँ से 
तुम लाए हो चुरा के 
इतना नशा कहाँ पे   
तुम आए हो लुटाते 
छू लें तो जल ही जाएँ 
उफ़, इतने हॉट हो तुम 
हों दो मिनट में आउट
टकीला शॉट हो तुम 

थोड़ा रहम कहीं से 
अब माँग लो उधारी 
वरना तो मेरे क़ातिल
लो जान तुझपे वारी 
अब जान का मेरी तुम
चाहे अचार डालो 
हम फ़र्श पे गिरे हैं
पहले हमें उठा लो 

इतना ज़रा बता दो
तुम्हें पूरा भूल जाएँ 
या दोस्ती के बॉर्डर 
पर घर कोई बनाएँ 
लेकिन सुनो उदासी 
तुमपर नहीं फबेगी
कल देखना कोई फिर
अच्छी तुम्हें लगेगी 

तुम फिर से रंग चखना 
तुम फिर अदा से हँसना 
दिल तोड़ना कोई फिर 
और ज़ख़्म भर टहकना 
तुम इक नया शहर फिर
होना कभी कहीं पर 
हम फिर कभी मिलेंगे 
आँखों में ख़्वाब भर कर

अफ़सोस की गली की  
कोठी वो बेच कर के 
लाना बुलेट नयी फिर 
घूमेंगे हम रगड़ के
ग़ालिब का शेर बकना 
विस्की में चूर हो के 
कहना दुखा था कितना
यूँ हमसे दूर हो के 

इस बार पर ठहरना 
जैसे कि बस मेरे हो 
मन, रूह या बदन फिर 
कोई जगह रुके हो 
हम फिर कहेंगे तुमसे 
ग़ुस्ताख़ हो गए हो 
तुम चूम के चुप करना 
और कहना तुम मेरे हो 

01 November, 2017

She rides a Royal Enfield ॰ चाँदनी रात में एनफ़ील्ड रेसिंग

दुनिया में बहुत तरह के सुख होते होंगे। कुछ सुख तो हमने चक्खे भी नहीं हैं अभी। कुछ साल पहले हम क्या ही जानते थे कि क़िस्मत हमारे कॉपी के पन्ने पर क्या नाम लिखने वाली है।

बैंगलोर बहुत उदार शहर है। मैं इससे बहुत कम मुहब्बत करती हूँ लेकिन वो अपनी इकतरफ़ा मुहब्बत में कोई कोताही नहीं करता। मौसम हो कि मिज़ाज। सब ख़ुशनुमा रखता है। इन दिनों यहाँ हल्की सी ठंढ है। दिल्ली जैसी। देर रात कुछ करने का मन नहीं कर रहा था। ना पढ़ने का, ना लिखने का कुछ, ना कोई फ़िल्म में दिल लग रहा था, ना किसी गीत में। रात के एक बजे करें भी तो क्या। घर में रात को अकेले ना भरतनाट्यम् करने में मन लगे ना भांगड़ा...और साल्सा तो हमको सिर्फ़ खाने आता है।

बाइकिंग बूट्स निकाले। न्यू यॉर्क वाले सफ़ेद मोज़े। उन्हें पहनते हुए मुस्कुरायी। जैकेट। हेल्मट। घड़ी। ब्रेसलेट। कमर में बैग कि जिसमें वॉलेट और घर की चाबी। गले में वही काला बिल्लियों वाला स्टोल कि जिसके साथ न्यू यॉर्क की सड़कें चली आती हैं हर बार। मुझे बाक़ी चीज़ों के अलावा, एनफ़ील्ड चलाने के पहले वाली तैयारी बहुत अच्छी लगती है। शृंगार। स्ट्रेच करना कि कहीं मोच वोच ना आ जाए।

गयी तो एनफ़ील्ड इतने दिन से स्टार्ट नहीं की थी। एक बार में स्टार्ट नहीं हुयी। लगा कि आज तो किक मारनी पड़े शायद। लेकिन फिर हो गयी स्टार्ट। तो ठीक था। कुछ देर गाड़ी को आइड्लिंग करने दिए। पुचकारे। कि खामखा नाराज़ मत हुआ कर। इतना तो प्यार करती हूँ तुझसे। नौटंकी हो एकदम तुम भी।

इतनी रात शहर की सड़कें लगभग ख़ाली हैं। कई सारी टैक्सीज़ दौड़ रही थीं हालाँकि। एकदम हल्की फुहार पड़ रही थी। मुझे अपनी एनफ़ील्ड चलने में जो सबसे प्यारी चीज़ लगती है वो तीखे मोड़ों पर बिना ब्रेक मारे हुए गाड़ी के साथ बदन को झुकाना...ऐसा लगता है हम कोई बॉल डान्स का वो स्टेप कर रहे हैं जिसमें लड़का लड़की की कमर में हाथ डाल कर आधा झुका देता है और फिर झटके से वापस बाँहों में खींच कर गोल चक्कर में घुमा देता है।

कोई रूह है मेरी और मेरी एनफ़ील्ड की। रूद्र और मैं soulmates हैं। मैं छेड़ रही थी उसको। देखो, बदमाशी करोगे ना तो अपने दोस्त को दे देंगे चलाने के लिए। वो बोला है बहुत सम्हाल के चलाता है। फिर डीसेंट बने घूमते रहना, सारी आवारगी निकल जाएगी। आज शाम में नील का फ़ोन आया था। वो भी चिढ़ा रहा था, कि अपनी एनफ़ील्ड बेच दे मुझे। मैं उसकी खिंचाई कर रही थी कि एनफ़ील्ड चलाने के लिए पर्सनालिटी चाहिए होती है, शक्ल देखी है अपनी, एनफ़ील्ड चलाएगा। और वो कह रहा था कि मैं तो बड़ी ना एनफ़ील्ड चलाने वाली दिखती हूँ, पाँच फ़ुट की। भर भर गरियाए उसको। हम लोगों के बात का पर्सेंटिज निकाला जाए तो कमसे कम बीस पर्सेंट तो गरियाना ही होगा।

इनर रिंग रोड एकदम ख़ाली। बहुत तेज़ चलाने के लिए लेकिन चश्मे दूसरे वाले पहनने ज़रूरी हैं। इन चश्मों में आँख में पानी आने लगता है। हेल्मट का वाइज़र भी इतना अच्छा नहीं है तो बहुत तेज़ नहीं चलायी। कोई अस्सी पर ही उड़ाती रही बस। इनर रंग रोड से घूम कर कोरमंगला तक गयी और लौट कर इंदिरानगर आयी। एक मन किया कि कहीं ठहर कर चाय पी लूँ लेकिन फिर लगा इतने दिन बाद रात को बाहर निकली हूँ, चाय पियूँगी तो सिगरेट पीने का एकदम मन कर जाएगा। सो, रहने ही दिए। वापसी में धीरे धीरे ही चलाए। लौट कर घर आने का मन किया नहीं। तो फिर मुहल्ले में घूमती रही देर तक। स्लो चलती हुयी। चाँद आज कितना ही ख़ूबसूरत लग रहा था। रूद्र की धड़कन सुनती हुयी। कैसे तो वो लेता है मेरा नाम। धकधक करता है सीने में। जब मैं रेज देती हूँ तो रूद्र ऐसे हुमक के भागता है जैसे हर उदासी से दूर लिए भागेगा मुझे। दुनिया की सबसे अच्छी फ़ीलिंग है, रॉयल एनफ़ील्ड ५०० सीसी को रेज देना। फिर उसकी आवाज़। उफ़! जिनकी भी अपनी एनफ़ील्ड है वो जानते हैं, इस बाइक को पसंद नहीं किया जा सकता, इश्क़ ही किया जा सकता है इससे बस।

मुहल्ले में गाड़ियाँ रात के डेढ़ बजे एकदम नहीं थीं। बस पुलिस की गाड़ी पट्रोल कर रही थी। मैंने सोचा कि अगर मान लो, वो लोग पूछेंगे कि इतनी रात को मैं क्यूँ पेट्रोल जला रही हूँ तो क्या ही जवाब होगा मेरे पास। मुझे लैम्पपोस्ट की पीली रोशनी हमेशा से बहुत अच्छी लगती है। मैं हल्के हल्के गुनगुना रही थी। ख़ुद के लिए ही। 'ख़्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त, कौन हो तुम बतलाओ'। एनफ़ील्ड की डुगडुग के साथ ग़ज़ब ताल बैठ रहा था गीत का। कि लड़कपन से भी से मुझे कभी साधना या फिर सायरा बानो बनने का चस्का कम लगा। हमको तो देवानंद बनना था। शम्मी कपूर बनना था। अदा चाहिए थी वो लटें झटकाने वालीं। सिगरेट जलाने के लिए वो लाइटर चाहिए था जिसमें से कोई धुन बजे। मद्धम।

सड़क पर एनफ़ील्ड पार्क की और फ़ोन निकाल के फ़ोटोज़ खींचने लगी। ज़िंदगी के कुछ ख़ूबसूरत सुखों में एक है अपनी रॉयल एनफ़ील्ड को नज़र भर प्यार से देखना। पीली रौशनी में भीगते हुए। उसकी परछाईं, उसके पीछे की दीवार। जैसे मुहब्बत में कोई महबूब को देखता है। उस प्यार भरी नज़र से देखना।

सड़क पर एक लड़का लड़की टहल रहे थे। उनके सामने बाइक रोकी। बड़ी प्यारी सी लड़की थी। मासूम सी। टीनएज की दहलीज़ पर। मैंने गुज़ारिश की, एक फ़ोटो खींच देने की। कि मेरी बाइक चलाते हुए फ़ोटो हैं ही नहीं। उसने कहा कि उसे ये देख कर बहुत अच्छा लगा कि मैं एनफ़ील्ड चला रही हूँ। मैंने कहा कि बहुत आसान है, तुम भी चला सकती हो। उसने कहा कि बहुत भारी है। अब एनफ़ील्ड कोई खींचनी थोड़े होती है। मैंने कहा उससे। हर लड़की को गियर वाली बाइक ज़रूर चलानी चाहिए। उसमें भी एनफ़ील्ड तो एकदम ही क्लास अपार्ट है। कहीं भी इसकी आवाज़ सुन लेती हूँ तो दिल में धुकधुकी होने लगती है। मैं हर बार लड़कियों को कहती हूँ, मोटर्सायकल चलाना सीखो। ये एक एकदम ही अलग अनुभव है। इसे चलाने में लड़के लड़की का कोई भेद भाव नहीं है। अगर मैं चला सकती हूँ, तो कोई भी चला सकता है।

पिछले साल एनफ़ील्ड ख़रीदने के पहले मैंने कितने फ़ोरम पढ़े कि कोई पाँच फुट दो इंच की लड़की चला सकती है या नहीं। वहाँ सारे जवाब बन्दों के बारे में था, छह फुट के लोग ज्ञान दे रहे थे कि सब कुछ कॉन्फ़िडेन्स के बारे में है। अगर आपको लगता है कि आप चला सकते हैं तो आप चला लेंगे। मुझे यही सलाह चाहिए थी मगर ऐसी किसी अपने जैसी लड़की से। ये सेकंड हैंड वाला ज्ञान मुझे नहीं चाहिए था।

तो सच्चाई ये है कि एनफ़ील्ड चलाना और इसके वज़न को मैनेज करना प्रैक्टिस से आता है। ज़िंदगी की बाक़ी चीज़ों की तरह। हम जिसमें अच्छे हैं, उसकी चीज़ को बेहतर ढंग से करने का बस एक ही उपाय है। प्रैक्टिस। एक बार वो समझ में आ गया फिर तो क्या है एनफ़ील्ड। फूल से हल्की है। और हवा में उड़ती है। मैंने दो दिन में एनफ़ील्ड चलाना सीख लिया था। ये और बात है कि पापा ने सबसे पहले राजदूत सिखाया था पर पटना में थोड़े ना चला सकते थे। कई सालों से कोई गियर वाली बाइक चलायी नहीं थी।

अभी कुछ साल पहले सपने की सी ही बात लगती थी कि अपनी एनफ़ील्ड होगी। कि चला सकेंगे अपनी मर्ज़ी से ५०० सीसी बाइक। कि कैसा होता होगा इसका ऐक्सेलरेशन। क्या वाक़ई उड़ती है गाड़ी। वो लड़की नाम पूछी मेरा। हाथ मिलायी। मुझे अपने बचपन के दिन याद आ गए जब देवघर में एक दीदी हीरो होंडा उड़ाया करती थी सनसन। हमारे लिए तो वही रॉकस्टार थी। तस्वीर खींचने को जो लड़की थी, उसे बताया मैंने कि एनफ़ील्ड पति ने गिफ़्ट की है पिछले साल, तो वो लड़की बहुत आश्चर्यचकित हो गयी थी।

दुनिया में छोटे छोटे सुख हैं। जिन्हें मुट्ठी में बांधे हुए हम सुख की लम्बी, उदास रात काटते हैं। तुम मेरी मुट्ठी में खुलता, खिलखिलाता ऐसा ही एक लम्हा हो। आना कभी बैंगलोर। घुमाएँगे तुमको अपने एनफ़ील्ड पर। ज़ोर से पकड़ के बैठना, उड़ जाओगे वरना। तुम तो जानते ही हो, तेज़ चलाने की आदत है हमको।

ज़िंदगी अच्छी है। उदार है। मुहब्बत है। अपने नाम पर रॉयल एनफ़ील्ड है।
इतना सारा कुछ होना काफ़ी है सुखी होने के लिए।
सुखी हूँ इन दिनों। ईश्वर ऐसे सुख सबकी क़िस्मत में लिक्खे।

22 November, 2016

मेरी रॉयल एनफ़ील्ड - आजकल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे

मुझे बाइक्स का शौक़ तो बचपन से ही रहा लेकिन रॉयल एनफ़ील्ड का शौक़ कब से आया ये ठीक ठीक याद नहीं है। जैसा कि किसी के भी साथ हो सकता है, राजदूत चलाने के बाद पहली बार जब हीरो होंडा स्पलेंडर चलायी थी तो लगा था इससे अच्छी कोई बाइक हो ही नहीं सकती है। ऐकसिलेरेटर लेते साथ जो बाइक उड़ती थी कि बस! १२वीं तक मुझे हीरो होंडा सीबीजी बहुत अच्छी लगती थी। जान पहचान में उस समय हम सारे बच्चे अपने अपने पापा की गाड़ियों पर हाथ साफ़ कर रहे थे। कुछ के पास स्कूटर हुआ करता था तो कुछ के पास हीरो होंडा स्पलेंडर। जान पहचान में किसी के पास बुलेट हो, ऐसा था ही नहीं। उन दिनों पटना या देवघर में बुलेट बहुत कम चलती भी थी। आर्मी वालों के पास भले कभी कभार दिख जाती थी। हमें समझ नहीं आता कि किस पर मर मिटें। वर्दी पर। वर्दी वाले पर। या कि उसकी बुलेट पर। ख़ैर!
२००४ में कॉलेज के फ़ाइनल ईयर में इंटर्नशिप करने दिल्ली आयी। मेरे बॉस, अनुपम के पास उन दिनों अवेंजर हुआ करती थी। जाड़े का मौसम था। वो काली लेदर जैकेट पहने गली के मोड़ से जब एंट्री मारा करता था तो मैं अक्सर बालकनी में कॉफ़ी पी रही होती थी। क्रूज बाइक जैसा कुछ होता है, पहली बार पता चला था। मैं घर से ऑफ़िस बस से आती जाती थी। टीम में साथ में मार्केटिंग में एक लड़का था, नितिन, उसके पास बुलेट थी। मेरी जान पहचान में पहली बार कोई था जिसके पास अपनी बुलेट थी। नितिन ने एक दिन कहा कि वो घर छोड़ देगा मुझे। हमारे घर सरोजिनी नगर में सिर्फ़ एक ब्लॉक छोड़ के हुआ करते थे। पहली बार बुलेट पे बैठी तो शायद वहीं प्यार हो गया था। बुलेट से। इस बात का बहुत अफ़सोस हुआ था कि हाइट इतनी कम है मेरी कि चलाने का सोच भी नहीं सकती।

IIMC के ग्रुप में भी कहीं कोई बुलेट वुलेट नहीं चलाता था। लेकिन उन दिनों ब्रैंड्ज़ के बारे में बहुत पढ़ चुके थे। कुछ चीज़ों की ब्रांडिंग ख़ास तौर से ध्यान रही। पर्फ़्यूम्ज़ की। दारू की। और मोटरसाइकल्ज़ की। हार्ले डेविडसन और एनफ़ील्ड ख़ास तौर से ध्यान में आयीं। इनके बारे में ख़ूब पढ़ा। इनके पुराने एड्ज़ देखे। पर अब बुलेट चलाने जैसा सपना देखना बंद कर दिया था। हमने जब नौकरी पकड़ी तो दोस्तों में सबसे पहले V ने एनफ़ील्ड ख़रीदी। उन दिनों थंडरबर्ड का ज़ोर शोर से प्रचार हो रहा था। उसकी लाल रंग की एनफ़ील्ड और उसके घुमक्कड़ी के किससे साथ में सुनने मिलते थे।
 इन दिनों ऑफ़िस के आगे का हाल 

शादी के बाद बैंगलोर आ गयी। कुणाल या उसके दोस्तों की सर्किल में कोई भी बाइकर टाइप नहीं था। कुछ साल बाद कुणाल की टीम में आया साक़िब खान। एनफ़ील्ड के बारे में क्रेज़ी। उन दिनों बैंगलोर में एनफ़ील्ड पर छः महीने की वेटिंग थी। साक़िब ने एनफ़ील्ड बुक क्या की, जैसे अपने ही घर आ रही हो बाइक। साक़िब को हम दोनों बहुत मानते भी थे। घर में किसी फ़ैमिली मेंबर की तरह रहा था हमारे साथ। साक़िब की थंडरबर्ड की डिलिवरी लेने वो, कुंदन और मैं गए थे। कुणाल ने अपनी कम्पनी शुरू की तो टीम में साथ में रमन आया। पिछले साल रमन ने भी डेज़र्ट स्टॉर्म ख़रीदी। टीम में योगी के पास भी पहले से एनफ़ील्ड थी। ऑफ़िस में सब लोग बाइक बाइक की गप्पें मारते थे अब। कुणाल भी कभी कभार चला लेता था। इन्हीं दिनों उसके दोस्त से बात हुयी जो बाइक्स मॉडिफ़ाई करता है और कुणाल ने मेरे लिए रॉयल एनफ़ील्ड स्क्वाड्रन ब्लू ख़रीद दी।

मेरी हाइट पाँच फ़ीट २ इंच है और एनफ़ील्ड की सीट हाइट ८०० सेंटिमेटर है। बाइक ख़रीदने के पहले कुणाल से उससे डिटेल में बात की कि कितना ख़र्चा आता है, क्या प्रॉसेस है वग़ैरह। तो बात ये हुयी थी कि एनफ़ील्ड के क्लासिक मॉडल में सीट के नीचे स्प्रिंग लगी होती हैं। स्प्रिंग निकाल के फ़ोम सीट लगा दी जाएगी तो हाइट कम हो जाएगी। ख़र्चा क़रीबन ३ हज़ार के आसपास आएगा। हम आराम से बाइक ख़रीद के ले आए। बाइक पर बैठने के बाद मुश्किल से मेरे पैर का अँगूठा ज़मीन को छू भर पाता था, बस। वो भी तब जब कि स्पोर्ट्स शूज पहने हों जिसमें हील ज़्यादा है। बिना जूतों के तो पैर हवा में ही रह रहे थे। निशान्त ने कहा, अब तो सच में गाना गा सकती हो, 'आजकल पाँव ज़मीं पर, नहीं पड़ते मेरे'।

एनफ़ील्ड आयी लेकिन जब तक कोई पीछे ना बैठा हो, हम चला नहीं सकते थे, और ज़ाहिर तौर से, कोई मेरे पीछे बैठने को तैयार ना हो। कुणाल बैठे तो उसको इतना डर लगे कि अपने हिसाब से बाइक बैलेंस करना चाहे। इस चक्कर में बाइक को आए दस दिन हो गए। १८ तारीख़ को राखी थी। हमारे यहाँ राखी के बाद भादो का महीना शुरू हो जाता है जिसमें कुछ भी शुभ काम नहीं करते हैं। हमने बाइक की पूजा अभी तक नहीं करायी थी कि आकाश को छुट्टी नहीं मिल रही थी बाइक घर पहुँचाने की। ये वो महीना था जिसमें पूरे वक़्त सारी छुट्टियाँ कैंसिल थीं। सब लोग वीकेंड्ज़ पर भी पूरा काम कर रहे थे। राखी के एक दिन पहले पापा से बात हो रही थी, पापा ख़ूब डाँटे। 'एनफ़ील्ड जैसा भारी गाड़ी ले लिए हैं, रोड पर चलाते है और ज़रा सा पूजा कराने का आप लोग को फ़ुर्सत नहीं, कल किसी भी हाल में पूजा कर लीजिए नै तो भादो घुस जाएगा, बस' (पापा ग़ुस्सा होते हैं तो 'आप' बोलके बात करते हैं)। अब राखी के दिन आकाश को आते आते दोपहर बारह बज गया और मंदिर बंद। ख़ैर, दोनों भाई राखी बाँध के ऑफ़िस निकला, आकाश बोल के गया कि शाम को आ के पूजा करवा देगा। शाम का ५ बजा, ६ बजा, ७ बजा। मेरा हालत ख़राब। फ़ोन किए तो बोला अटक गया है, आ नहीं सकेगा। अब कमबख़्त एनफ़ील्ड ऐसी चीज़ है कि बहुत लोग चलाने में डरते हैं। मैंने अपने आसपास थोड़ी कोशिश की, कि चलाना तो छोड़ो, कोई पीछे बैठने को भी तैयार हो जाए तो मंदिर तो बस घर से ५०० मीटर है, आराम से ले जाएँगे। कोई भी नहीं मिला। साढ़े सात बजे हम ख़ुद से एनफ़ील्ड स्टार्ट किए और मुहल्ले में चक्कर लगा के आए। ठीक ठाक चल गयी थी लेकिन डर बहुत लग रहा था। कहीं भी रोकने पर मैं गाड़ी को एकदम बैलेंस नहीं कर सकती थी।

तब तक बाइक का रेजिस्ट्रेशन नम्बर आ गया था। मैं थिपसंद्रा निकली कि स्टिकर बनवा लेंगे। साथ में मंदिर में पूछती आयी कि मंदिर कब तक खुला है। पुजारी बोला, साढ़े नौ तक। हम राहत का साँस लिए कि ट्रैफ़िक थोड़ा कम हो जाएगा। नम्बर प्लेट पर नम्बर चिपकाए। स्कूटी से निकले कि रास्ता देख लें, इस नज़रिए से कि कहाँ गड्ढा है, कहाँ स्पीड ब्रेकर है। इस हिसाब से कौन से रास्ते से जाना सबसे सही होगा। एनफ़ील्ड निकालते हुए क़सम से बहुत डर लग रहा था। एक तो कहीं भी बंद हो जाती थी गाड़ी। क्लच छोड़ने में देर हो जाए और बस। फिर घबराहट के मारे जल्दी स्टार्ट भी ना हो। ख़ैर। किसी तरह भगवान भगवान करते मंदिर पहुँचे तो देखते हैं कि मंदिर का गेट बंद है और बस एक पुजारी गेट से लटका हुआ बाहर झाँक रहा है। हम गए पूछने की भाई मंदिर तो साढ़े नौ बजे बंद होना था, ये क्या है। पुजारी बोला मंदिर बंद हो गया है। हमारा डर के मारे हालत ख़राब। उसको हिंदी में समझा रहे हैं। देखो, भैय्या, कल से हमारा दिन अशुभ शुरू हो जाएगा। आज पूजा होना ज़रूरी है। आप कुछ भी कर दो। एक फूल रख दो, एक अगरबत्ती दिखा दो। कुछ भी। बस। वो ना ना किए जा रहा था लेकिन फिर शायद मेरा दुःख देख कर उसका कलेजा पसीजा, तो पूछा, कौन सा गाड़ी है। मैं उसके सामने से हटी, ताकि वो देख सके, मेरी रॉयल एनफ़ील्ड स्क्वाड्रन ब्लू। उसके चेहरे पर एक्सप्रेसन कमाल से देखने लायक था। 'ये तुम चला के लाया?!?!?!' हम बोले, हाँ। अब तो पुजारी ऐसा टेन्शन में आया कि बोला, इसका तो पूरा ठीक से पूजा करना होगा। फिर वो मंदिर में अंदर गया, पूरा पूजा का सामग्री वग़ैरह लेकर आया और ख़ूब अच्छा से पूजा किया। आख़िर में बोला संकल्प करने को जूते उतारो। हम जूता, मोज़ा उतार के संकल्प किए। फिर वो बाइक के दोनों पहियों के नीचे निम्बू रखा और बोला, अब बाइक स्टार्ट करो और थोड़ा सा आगे करो। हम भारी टेन्शन में। पुजारी जी, बिना जूता के स्टार्ट नहीं कर सकते। पैर नहीं पहुँचता। वो अपनी ही धुन में कुछ सुना नहीं। स्टार्ट करो स्टार्ट करो बोलता गया। हम सोचे, हनुमान मंदिर के सामने हैं। पूजा कराने आए हैं। आज यहाँ बाइक हमसे स्टार्ट नहीं हुआ और गिर गया तो आगे तो क्या ही चलाएँगे। उस वक़्त वहाँ आसपास जितने लोग थे, फूल वाली औरतें, पान की दुकान पर खड़े लड़के, जूस की दुकान और सड़क पर चलते लोग। सबका ध्यान बस हमारी ही तरफ़ था। कि लड़की अब गिरी ना तब गिरी। हम लेकिन हम थे। बाइक स्टार्ट किए। एक नम्बर गियर में डाले, आगे बढ़ाए और निम्बू का कचूमर निकाल दिए। वालेट में झाँके तो बस ५०० के नोट थे जो भाई से भोर में ही रक्षाबंधन पर मिले थे। तो बस, ५०० रुपए का दक्षिणा पा के पुजारी एकदम ख़ुश। ठीक से जाना अम्माँ(यहाँ साउथ इंडिया में सारी औरतों को लोग अम्माँ ही बोलते हैं, उम्र कोई भी हो)। घर किधर है तुम्हारा।


हम कभी कभी ऐसे कारनामे कर गुज़रते हैं जिससे हम में इस चीज़ का हौसला आता है कि हम कुछ भी कर सकते हैं। एक कोई लगभग पाँच फ़ुट की लड़की २०० किलो, ५०० सीसी के इस बाइक को इस मुहब्बत से चलाती है कि सारी चीज़ें ही आसान लगती हैं। घर आते हुए मैं गुनगुना रही थी, 'आजकल पाँव ज़मीं पर, नहीं पड़ते मेरे, बोलो देखा है कभी तुमने मुझे, उड़ते हुए, बोलो?'

17 November, 2016

मेरी रॉयल एनफ़ील्ड स्क्वाड्रन ब्लू

आज मैं अपनी दो मुहब्बतों के बारे में लिख रही हूँ। मेरी आदत है जिससे इश्क़ होता है उसके प्रति बहुत ज़्यादा पजेसिव हो जाती हूँ। कुछ इस क़दर कि कभी अपनी आँखों में भी इश्क़ लरजे तो पलकें बंद कर लेती हूँ कि ख़ुद की ही नज़र लग जाएगी। मेरी रॉयल एनफ़ील्ड स्क्वाड्रन ब्लू, और मेरा हमसफ़र।

बचपन से बॉलीवुड फ़िल्में देख कर लगता था कि बस प्यार एक ही बार होता है। उसमें भी दिल तो पागल है टाइप फ़िल्में देख कर तो सोलमेट वग़ैरह जैसे चीज़ें देखीं और लगा कि ऐसा कुछ होता होगा। लड़कपन की पहली आहट के साथ ज़िंदगी में प्यार भी दबे पाँव दाख़िल हुआ। मगर ये वो उम्र थी जहाँ प्यार आपसे ज़्यादा आपकी सहेलियों को पता होता है। उसकी हर बात पसंद होती है। उसके डिम्पल, उसकी हैंडराइटिंग, उसका डान्स, सब कुछ। उस उम्र ये भी लगता है कि उसे कभी भूल नहीं पायेंगे और कि प्यार दोबारा कभी नहीं होगा। मगर पहली बार दिल टूटता है तो लगता है कि इस प्यार से तो बिना प्यार के भले। मगर इसके बाद कई कई बार प्यार होता है और हर बार ये विश्वास ज़रा सा टूटता है कि उम्र भर का प्यार होता है। 

इसी दिल टूटने, जुड़ने, टूटने के दर्मयान लड़कपन गुज़र जाता है, घर पीछे छूट जाता है और दिल्ली को आँखों में बसाए हुए IIMC आ जाती हूँ। नौकरी। आत्मनिर्भरता। और एक नया आत्मविश्वास आता है। पुराने स्कूल के दोस्तों से बात होनी शुरू होती है। इश्क़ की पेचीदगी थोड़ी बहुत समझ आती है। चीज़ें उतनी सिम्पल नहीं लगती हैं जितनी बचपन की गुलाबी दुनिया में दिखती थीं। ऑफ़िस। लेट नाइट। नए प्राजेक्ट्स। ख़ुद की पहचान तलाशने का दौर था वो। जब मुझे पहली बार मिला तो जो पहली चीज़ महसूस की थी वो थी आश्वस्ति। कि मैं उसपर भरोसा कर सकती हूँ। इसमें बचपन का रोल था कि हमारे स्कूल का हेड प्रीफ़ेक्ट था वो। उसके साथ होते हुए कभी किसी चीज़ से डर नहीं लगता था। उसके साथ ज़िंदगी एक थ्रिल लगती थी। उन्हीं दिनों पहली बार ये भी महसूस किया था कि वो मेरा हमेशा के लिए है। बिना कहे भी। हमारे बीच हर चीज़ से गहरी जो चीज़ थी वो थी दोस्ती। 

शादी के ९ साल हो गए हैं अब साथ। हमारे बहुत झगड़े होते हैं। इतने कि लगता है कि आज तो बस जान दे ही दें। कूद वूद जाएँ छत पे चढ़ कर। लेकिन वो जानता है मुझे। वो जानता है मुझे हैंडिल करना। डेटिंग के शुरू में जो बातें हम करते थे, तुम मेरी पूरी दुनिया हो टाइप। वो अब भी सच हैं। मैं इस पूरी दुनिया में सिर्फ़ एक उसको ही प्यार करती हूँ। एक सिर्फ़ उसको। किसी रोज़ कुछ अच्छा पहन लिया, चाहे एक झुमका ही क्यूँ ना हो, पहली तारीफ़ उससे ही चाहिए होती है। मेरे यायावर मन को उसके होने से ठहार मिलता है। घर मिलता है। 

उसे मोटरसाइकिल का शौक़ कभी नहीं रहा। इन फ़ैक्ट उसके दोस्तों में भी किसी को नहीं। कॉलेज में फिर भी कभी चलाया होगा लेकिन नौकरी पकड़ते ही उसने कार ख़रीदी। अभी भी उसे नयी कार, उसके माडल्ज़, इंटिरीअर्ज़ वग़ैरह सब बहुत मालूम रहती हैं। उसके क़रीबी दोस्त कि जो सारे IIT बॉम्बे से ही हैं, उनमें भी किसी के पास बाइक नहीं है। सब कार वाले लोग हैं। हाँ, उसके ऑफ़िस में, उसकी पूरी टीम में सबके पास रॉयल एनफ़ील्ड है। सबके ही पास। पहले साक़िब ने थंडरबर्ड ख़रीदी तो उसने एक आधी बार चलायी। लेकिन ज़्यादा नहीं।  लेकिन जब रमन ने डेज़र्ट स्टॉर्म ख़रीदी तो उसको पहली बार थोड़ा रॉयल एनफ़ील्ड का शौक़ लगा। उन्ही दिनों कुणाल के एक दोस्त से बात होते हुए उसने कहा कि उसका एक दोस्त है जो रॉयल एनफ़ील्ड कस्टमाइज करता है। हमने बात की इस बारे में कि वो हाइट में कम लोगों के लिए बाइक छोटी कर देता है। हम दोनों बहुत दिन तक इसपर हँसते रहे कि बाइक का jpeg ड्रैग करके छोटा कर देता है। मगर बहुत दिन बाद आँखों में चमक आयी थी। कोई सोया सपना जागा था। कि शायद मैं सच में कभी ज़िंदगी में एनफ़ील्ड चला पाऊँगी। मगर ये सब मज़ाक़ लगता था। 

मेरा बर्थ्डे पास आ रहा था और मैं हमेशा की तरह उसको चिढ़ा रही थी कि क्या दोगे हमको। ऐसी ही नोर्मल सी शाम हम वॉक पर निकले थे तो कुणाल हमको एनफ़ील्ड के शोरूम ले गया और बोला, आज तुमको एनफ़ील्ड बुक कर देते हैं। हमको यक़ीन नहीं हो रहा था। लगा मज़ाक़ कर रहा है। लेकिन वो बोला कि सीरियस है। उसने पूरा पूछ वूछ लिया है। मेरे हिसाब से ऐडजस्ट हो जाएगी। 'एक ही ज़िंदगी है है हमारे पास। एनफ़ील्ड चलाना तुम्हारा सपना था ना? मेरे रहते तुम्हारा कोई सपना अधूरा रह जाए, ये मैं होने दूँगा? बताओ?'। हम सोच के गए थे कि डेज़र्ट स्टॉर्म ख़रीदेंगे लेकिन शोरूम गए तो क्लासिक ५०० का नया रंग देखा। स्क्वाड्रन ब्लू। हम दोनों उसपर फ़िदा हो गए। उसी को बुक कर दिया। 

अब मैंने सोचा कि मोटरसाइकल और रॉयल एनफ़ील्ड में अंतर होता है। तो एक बार चलाना सीख लेते हैं। अपनी नयी बाइक पर हाथ साफ़ तो नहीं करूँगी। गूगल किया तो एक ग्रूप पाया, हॉप ऑन गर्ल्स  का, यहाँ लड़कियाँ ही लड़कियों को बुलेट सिखाती थीं। ये बात थोड़ी आश्वस्त करने वाली थी। मेरी ट्रेनर बिंदु थी। कोई पाँच फ़ुट पाँच इंच की छोटी सी दुबली पतली सी लड़की। मगर उसे रॉयल एनफ़ील्ड चलाते हुए देख कर कॉन्फ़िडेन्स आया कि हो जाएगा। दो दिन की चार चार घंटे की ट्रेनिंग। पहले दिन जो लौटी तो क़सम से लगा हथेलियाँ टूट जाएँगी। इतना दर्द था। लेकिन ज़िद्दी तो ज़िद्दी हूँ मैं। गयी अगले दिन भी। खुली सड़क पर पहली बार जब एनफ़ील्ड को रेज किया और वो हवा से बातें करने लगी तो लगा कि नशा इसे कहते हैं। 

अगस्त, फ़्रेंडशिप डे के अगले दिन बाइक की डिलेवरी थी। ऑफ़िस में इतना काम था कि कुणाल नहीं जा सका। उसके सिवा ऑफ़िस के अधिकतर लोग गए। मैं कार चलाते हुए सोच रही थी। मुहब्बत सिर्फ़ हमेशा साथ रहना ही नहीं होता है। जो दिन मेरे लिए बहुत ज़रूरी था, वहाँ कुणाल को ऑफ़िस में रहना था क्यूँकि एक ज़रूरी कॉल थी। उसका काम ज़रूरी है ताकि मैं अपने ऐसे शौक़ पूरे कर सकूँ। बाद में मैंने सोचा कि मैं अगले दिन तक इंतज़ार भी कर सकती थी। ये मेरी ग़लती थी। बाइक आने पर मैं इतनी ख़ुशी से पागल हो गयी थी कि इंतज़ार नहीं कर पायी। एक दिन रूकती तो हम दोनों साथ जा कर ले आते। 

ख़ैर। एनफ़ील्ड आयी तो घर आयी ही नहीं। आकाश ने वहीं से टपा ली। मेरे पैर नहीं पहुँचते थे ज़मीन तक। उसपर आकाश मेरा लाड़ला देवर है। तो बोला कुछ दिन हम चला लेते हैं भाभी। तो रहने दिए। इधर कुणाल बोल दिया था लेकिन उसको डर लगता था कि हमसे वाक़ई चलेगी या नहीं। आकाश को तो और भी डर लगता था। पहली बार कुणाल जब बैठा बाइक पर पीछे तो महसूस हुआ कि बाइक थोड़ा सा दबी और मेरे पैर थोड़े से पहुँचे। मगर बहुत कम चलाने को मिला। फिर सच ये है कि एनफ़ील्ड का वज़न २०० किलो है। इस भार को सम्हालने के लिए थोड़ी आदत लगनी ज़रूरी है। यहाँ गाड़ी हमको मिले ही ना। दोनों भाई लोग लेके फ़रार। इन फ़ैक्ट इसका नीला रंग एकदम नया आया था तो ऑफ़िस में भी सबको बहुत पसंद थी। नतीजा ये कि दोपहर की वॉक पर सब लोग एनफ़ील्ड से निकलने लगे। कुणाल ने भी महसूस किया कि अपनी एनफ़ील्ड की बात और होती है। मैं देख रही थी कि उसको भी पहली बार ज़रा ज़रा मोटरसाइकल का चस्का लग रहा था। बेसिकली रॉयल एनफ़ील्ड और बाक़ी मोटरसैक़िलस में बहुत अंतर होता है। पहली तो चीज़ होती है इसकी आवाज़। इसका वायब्रेशन। फिर डिज़ाइन भी क्लासिक है। और अगर इतने में भी दिल ना फिसला, तो फिर है इसकी पावर। ५०० सीसी की बाइक है। एक बार रेज दो तो ऐसे उड़ती है कि बस। 

एनफ़ील्ड का नाम रखना था अब। लड़के अपने एनफ़ील्ड का नाम अक्सर किसी लड़की के नाम पर रखते हैं। उसे अपनी गर्लफ़्रेंड या बीवी की तरह ट्रीट करते हैं। मगर यहाँ ये मेरी एनफ़ील्ड थी। तो इसका नाम कुछ ऐसा होना था कि जिससे मेरी धड़कनों को रफ़्तार मिले। फिर इन्हीं दिनों जब इतरां की कहानी लिखनी शुरू की थी तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन मेरे पास मेरी अपनी रॉयल एनफ़ील्ड होगी। इसका नीला रंग। तो बस। नाम एक ही होना था। रूद्र। 

किसी भी तरह का टू वहीलर चलाना एक तरह का नशा होता है। चेहरे पर जब हवा लगती है तो वाक़ई ऐसा लगता है कि उड़ रहे हैं। बाइकिंग एक तरह की कंडिशनिंग होती है। मैंने अपने पापा से सीखी। बाइक के प्रति प्यार भी उनमें ही देखा। हमारी राजदूत मेरे जन्म के साल ख़रीदी थी पापा ने। हम ख़ुद को 'born biker' कहते हैं। मेरे परिवार में सबके पास टू वहीलर है। भाइयों के पास, कजिंस के पास। पापा, नानाजी, मामा, उधर चाचा के बच्चों के पास। मगर कुणाल के घर में सबको टू वहीलर से डर लगता है। घर में किसी भाई को परमिशन नहीं मिली। सबको ऐक्सिडेंट होने का डर भी लगता है। हालाँकि पहले घर में यामाहा rx १०० थी और सब लोग उसपर बहुत हाथ साफ़ किया है। आजकल भी एक मोटरसाइकल है। मगर वहाँ मोटरसाइकल को लेकर कोई जुनून नहीं है। फिर कुणाल के दोस्तों को भी शौक़ नहीं है। कुणाल के लिए मेरे बाइक चलाने से ज़्यादा डरावनी बात नहीं हो सकती। उसको हज़ार चीज़ों से डर लगता है। एनफ़ील्ड से गिरी तो कुछ ना कुछ टूटेगा ही। किसी को ठोक दिया तो उसको भी भारी नुक़सान होगा। उसपर मैं इत्ति सी जान और २०० किलो की मशीन। उसपे ५०० सीसी का इंजन। उसपर मेरा पागल दिमाग़ कि जो स्कूटी को ९० किमी प्रति घंटा पर उड़ाने को थ्रिल समझता था। ये सब जानते हुए। डरते हुए। फिर भी वो समझता है कि मेरे लिए एनफ़ील्ड क्यूँ ज़रूरी है। या मेरा सपना क्यूँ है। और इस सपने को उसने हक़ीक़त किया। मेरे लिए यही प्यार है। यही हमारी गहरी दोस्ती है। जहाँ आप दूसरे की कमज़ोरी नहीं, ताक़त बनते हैं। 
उसने जब पहली बार मुझे एनफ़ील्ड पर देखा तब भी उसे यक़ीन नहीं हो रहा था कि मैं सच में चला लूँगी। उसे लगता था कि मैं ऐसे ही हवा में बात करती हूँ जब कहती हूँ की पापा ने मुझे राजदूत सिखायी थी। मगर धीरे धीरे मेरा भी कॉन्फ़िडेन्स बढ़ा और कुणाल का भी। 

हर बार जब पार्किंग से निकालती हूँ तो एनफ़ील्ड में पेट्रोल दौड़ता है और मेरी रगों में इश्क़। हर बार मुझे लगता है कि सपने देखने चाहिए। हर बार थोड़ा सा और प्यार हो जाता है उस लड़के से जिसके साथ २४ की उम्र में फेरे लिए थे मैंने। सात जनम तक, ५०० सीसी तक और जाने कितने किलोमीटर तक। जब तक मेरा दिल धड़के इसमें बस एक उसी का नाम है। 

उसके लिए लिखी मेरी सबसे पसंदीदा लाइन। 'Of all the things I am, my love, what I love most, I am yours'.

चश्मेबद्दूर। 

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