Showing posts with label love. Show all posts
Showing posts with label love. Show all posts

25 January, 2019

इकरार ए मुहब्बत। इक़बाल ए जुर्म।

टेक्नॉलजी ने अभी तक दो चीज़ों को रेप्लिकेट करना नहीं सीखा है। स्पर्श और ख़ुशबू।

जानां, तुमसे दूर होकर तुम्हारी ख़ुशबू तलाशती रहती हूँ। जाने किस चीज़ में मिले ज़रा सी तुम्हारी देहगंध।

मैं खुली हथेलियाँ लिए जाती हूँ बारिश, कोहरा, मौसम, गुलाब, जंगल, ब्रिज, मिट्टी... सब तक। कि ज़रा महसूस हो सके तुम्हारे हाथों की नर्माहट। 

मैं छूना चाहती हूँ तुम्हें। तुम्हारा हाथ पकड़ कर चलना चाहती हूँ इस बावले शहर में। तुम्हें ले जाना चाहती हूँ अपने फ़ेवरिट कैफ़े। कि देखो, ये कश्मीरी कहवा है और जो लड़की तुम्हारे सामने बैठी है, तुम्हारे प्यार में पागल है। मेरे हाथों को प्यास लगती है। तुम्हारी छुअन की।

उसी प्रेम में दुबारा गिरने पर क्या हाल होता है जिससे पहली बार में भी ठीक ठीक उबर न पाए हों?

तुम ज़रा कम ख़ूबसूरत होते तो भी बात आसान तो नहीं होती, थोड़ी कम मुश्किल होती। बचपन में कुछ नक्काशीदार मंदिर देखे थे। पहली बार संगमरमर पर की बारीक नक़्क़ाशी देखी थी। पुरातत्ववेत्ताओं के नियमानुसार उन्हें छूना मना था। लेकिन मैं उन्हें छूना चाहती थी। देखना चाहती थी कि संगमरमर का तापमान क्या है, वे मूर्तियाँ ठंडी हैं या गर्म। मैं कभी कभी सोचती हूँ तुम्हारी आत्मा के बारे में... फिर तुम्हारी आत्मा के पैरहन के बारे में भी।

तुम जब तक काग़ज़ पर थे, तब तक ठीक था। अब तुम सामने दिखते हो। धूप में, रोशनी में, चाँदनी में... मैं जाने क्या करना चाहती हूँ तुम्हारा। कि मुझे क़ायदे से लिखने में डर लगना चाहिए, लेकिन लगता नहीं, जाने क्यूँ।

तुम्हारी आवाज़ इतनी अपनी लगती है। जैसे मेरे बदन से आ रही हो। जैसे तुमसे फ़ोन पर बात नहीं होती, तुम कहीं मेरे भीतर रहते हो। कि सात तालों वाला तिलिस्म तोड़ दिया है दिल ने और बाग़ी हो गया है। यूँ भी, सरकार, तो हम किसी और को नहीं कहते। तो ज़रा तुम्हारी हुकूमत ही सही। 

कई बार लोगों को कहा है। कि मैं अब लिखना नहीं चाहती कि मुझे ये बातें समझ नहीं आती कि कोई लड़की इस पागल की तरह क्यूँ खोजेगी उस एक शख़्स को... कि जिसके काँधे से जाने कैसी ख़ुशबू आती थी। आँसुओं की, रतजगों की, सिलसिलों की, दूरियों की... प्यास की, आस की...

तुम जब प्यार कहते हो ना जानां, तो लगता है... अबकि बार तुम्हारे काँधे से अलविदा की ख़ुशबू नहीं आती... वहाँ एक उम्मीद का नन्हा बिरवा लहलहाता है। कि वहाँ से अब, 'फिर मिलेंगे' की ख़ुशबू आती है। 

कि हम कई कहानियों में मिलेंगे। कई शहरों में। कई रीऐलिटीज़ में। हम मिलते रहेंगे कि जब तक पूरे पूरे छीज न जाएँ। वक़्त हमारे लिए थोड़ा थोड़ा ठहरेगा। ज़िंदगी होगी ज़रा ज़रा मेहरबान। हम जिएँगे। सिर्फ़ तुम्हारे इंतज़ार में जानां...

कि अब तुम्हारे काँधे से इंतज़ार की ख़ुशबू आती है...

इकरार ए मुहब्बत। इक़बाल ए जुर्म।
लव यू।

01 November, 2017

She rides a Royal Enfield ॰ चाँदनी रात में एनफ़ील्ड रेसिंग

दुनिया में बहुत तरह के सुख होते होंगे। कुछ सुख तो हमने चक्खे भी नहीं हैं अभी। कुछ साल पहले हम क्या ही जानते थे कि क़िस्मत हमारे कॉपी के पन्ने पर क्या नाम लिखने वाली है।

बैंगलोर बहुत उदार शहर है। मैं इससे बहुत कम मुहब्बत करती हूँ लेकिन वो अपनी इकतरफ़ा मुहब्बत में कोई कोताही नहीं करता। मौसम हो कि मिज़ाज। सब ख़ुशनुमा रखता है। इन दिनों यहाँ हल्की सी ठंढ है। दिल्ली जैसी। देर रात कुछ करने का मन नहीं कर रहा था। ना पढ़ने का, ना लिखने का कुछ, ना कोई फ़िल्म में दिल लग रहा था, ना किसी गीत में। रात के एक बजे करें भी तो क्या। घर में रात को अकेले ना भरतनाट्यम् करने में मन लगे ना भांगड़ा...और साल्सा तो हमको सिर्फ़ खाने आता है।

बाइकिंग बूट्स निकाले। न्यू यॉर्क वाले सफ़ेद मोज़े। उन्हें पहनते हुए मुस्कुरायी। जैकेट। हेल्मट। घड़ी। ब्रेसलेट। कमर में बैग कि जिसमें वॉलेट और घर की चाबी। गले में वही काला बिल्लियों वाला स्टोल कि जिसके साथ न्यू यॉर्क की सड़कें चली आती हैं हर बार। मुझे बाक़ी चीज़ों के अलावा, एनफ़ील्ड चलाने के पहले वाली तैयारी बहुत अच्छी लगती है। शृंगार। स्ट्रेच करना कि कहीं मोच वोच ना आ जाए।

गयी तो एनफ़ील्ड इतने दिन से स्टार्ट नहीं की थी। एक बार में स्टार्ट नहीं हुयी। लगा कि आज तो किक मारनी पड़े शायद। लेकिन फिर हो गयी स्टार्ट। तो ठीक था। कुछ देर गाड़ी को आइड्लिंग करने दिए। पुचकारे। कि खामखा नाराज़ मत हुआ कर। इतना तो प्यार करती हूँ तुझसे। नौटंकी हो एकदम तुम भी।

इतनी रात शहर की सड़कें लगभग ख़ाली हैं। कई सारी टैक्सीज़ दौड़ रही थीं हालाँकि। एकदम हल्की फुहार पड़ रही थी। मुझे अपनी एनफ़ील्ड चलने में जो सबसे प्यारी चीज़ लगती है वो तीखे मोड़ों पर बिना ब्रेक मारे हुए गाड़ी के साथ बदन को झुकाना...ऐसा लगता है हम कोई बॉल डान्स का वो स्टेप कर रहे हैं जिसमें लड़का लड़की की कमर में हाथ डाल कर आधा झुका देता है और फिर झटके से वापस बाँहों में खींच कर गोल चक्कर में घुमा देता है।

कोई रूह है मेरी और मेरी एनफ़ील्ड की। रूद्र और मैं soulmates हैं। मैं छेड़ रही थी उसको। देखो, बदमाशी करोगे ना तो अपने दोस्त को दे देंगे चलाने के लिए। वो बोला है बहुत सम्हाल के चलाता है। फिर डीसेंट बने घूमते रहना, सारी आवारगी निकल जाएगी। आज शाम में नील का फ़ोन आया था। वो भी चिढ़ा रहा था, कि अपनी एनफ़ील्ड बेच दे मुझे। मैं उसकी खिंचाई कर रही थी कि एनफ़ील्ड चलाने के लिए पर्सनालिटी चाहिए होती है, शक्ल देखी है अपनी, एनफ़ील्ड चलाएगा। और वो कह रहा था कि मैं तो बड़ी ना एनफ़ील्ड चलाने वाली दिखती हूँ, पाँच फ़ुट की। भर भर गरियाए उसको। हम लोगों के बात का पर्सेंटिज निकाला जाए तो कमसे कम बीस पर्सेंट तो गरियाना ही होगा।

इनर रिंग रोड एकदम ख़ाली। बहुत तेज़ चलाने के लिए लेकिन चश्मे दूसरे वाले पहनने ज़रूरी हैं। इन चश्मों में आँख में पानी आने लगता है। हेल्मट का वाइज़र भी इतना अच्छा नहीं है तो बहुत तेज़ नहीं चलायी। कोई अस्सी पर ही उड़ाती रही बस। इनर रंग रोड से घूम कर कोरमंगला तक गयी और लौट कर इंदिरानगर आयी। एक मन किया कि कहीं ठहर कर चाय पी लूँ लेकिन फिर लगा इतने दिन बाद रात को बाहर निकली हूँ, चाय पियूँगी तो सिगरेट पीने का एकदम मन कर जाएगा। सो, रहने ही दिए। वापसी में धीरे धीरे ही चलाए। लौट कर घर आने का मन किया नहीं। तो फिर मुहल्ले में घूमती रही देर तक। स्लो चलती हुयी। चाँद आज कितना ही ख़ूबसूरत लग रहा था। रूद्र की धड़कन सुनती हुयी। कैसे तो वो लेता है मेरा नाम। धकधक करता है सीने में। जब मैं रेज देती हूँ तो रूद्र ऐसे हुमक के भागता है जैसे हर उदासी से दूर लिए भागेगा मुझे। दुनिया की सबसे अच्छी फ़ीलिंग है, रॉयल एनफ़ील्ड ५०० सीसी को रेज देना। फिर उसकी आवाज़। उफ़! जिनकी भी अपनी एनफ़ील्ड है वो जानते हैं, इस बाइक को पसंद नहीं किया जा सकता, इश्क़ ही किया जा सकता है इससे बस।

मुहल्ले में गाड़ियाँ रात के डेढ़ बजे एकदम नहीं थीं। बस पुलिस की गाड़ी पट्रोल कर रही थी। मैंने सोचा कि अगर मान लो, वो लोग पूछेंगे कि इतनी रात को मैं क्यूँ पेट्रोल जला रही हूँ तो क्या ही जवाब होगा मेरे पास। मुझे लैम्पपोस्ट की पीली रोशनी हमेशा से बहुत अच्छी लगती है। मैं हल्के हल्के गुनगुना रही थी। ख़ुद के लिए ही। 'ख़्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त, कौन हो तुम बतलाओ'। एनफ़ील्ड की डुगडुग के साथ ग़ज़ब ताल बैठ रहा था गीत का। कि लड़कपन से भी से मुझे कभी साधना या फिर सायरा बानो बनने का चस्का कम लगा। हमको तो देवानंद बनना था। शम्मी कपूर बनना था। अदा चाहिए थी वो लटें झटकाने वालीं। सिगरेट जलाने के लिए वो लाइटर चाहिए था जिसमें से कोई धुन बजे। मद्धम।

सड़क पर एनफ़ील्ड पार्क की और फ़ोन निकाल के फ़ोटोज़ खींचने लगी। ज़िंदगी के कुछ ख़ूबसूरत सुखों में एक है अपनी रॉयल एनफ़ील्ड को नज़र भर प्यार से देखना। पीली रौशनी में भीगते हुए। उसकी परछाईं, उसके पीछे की दीवार। जैसे मुहब्बत में कोई महबूब को देखता है। उस प्यार भरी नज़र से देखना।

सड़क पर एक लड़का लड़की टहल रहे थे। उनके सामने बाइक रोकी। बड़ी प्यारी सी लड़की थी। मासूम सी। टीनएज की दहलीज़ पर। मैंने गुज़ारिश की, एक फ़ोटो खींच देने की। कि मेरी बाइक चलाते हुए फ़ोटो हैं ही नहीं। उसने कहा कि उसे ये देख कर बहुत अच्छा लगा कि मैं एनफ़ील्ड चला रही हूँ। मैंने कहा कि बहुत आसान है, तुम भी चला सकती हो। उसने कहा कि बहुत भारी है। अब एनफ़ील्ड कोई खींचनी थोड़े होती है। मैंने कहा उससे। हर लड़की को गियर वाली बाइक ज़रूर चलानी चाहिए। उसमें भी एनफ़ील्ड तो एकदम ही क्लास अपार्ट है। कहीं भी इसकी आवाज़ सुन लेती हूँ तो दिल में धुकधुकी होने लगती है। मैं हर बार लड़कियों को कहती हूँ, मोटर्सायकल चलाना सीखो। ये एक एकदम ही अलग अनुभव है। इसे चलाने में लड़के लड़की का कोई भेद भाव नहीं है। अगर मैं चला सकती हूँ, तो कोई भी चला सकता है।

पिछले साल एनफ़ील्ड ख़रीदने के पहले मैंने कितने फ़ोरम पढ़े कि कोई पाँच फुट दो इंच की लड़की चला सकती है या नहीं। वहाँ सारे जवाब बन्दों के बारे में था, छह फुट के लोग ज्ञान दे रहे थे कि सब कुछ कॉन्फ़िडेन्स के बारे में है। अगर आपको लगता है कि आप चला सकते हैं तो आप चला लेंगे। मुझे यही सलाह चाहिए थी मगर ऐसी किसी अपने जैसी लड़की से। ये सेकंड हैंड वाला ज्ञान मुझे नहीं चाहिए था।

तो सच्चाई ये है कि एनफ़ील्ड चलाना और इसके वज़न को मैनेज करना प्रैक्टिस से आता है। ज़िंदगी की बाक़ी चीज़ों की तरह। हम जिसमें अच्छे हैं, उसकी चीज़ को बेहतर ढंग से करने का बस एक ही उपाय है। प्रैक्टिस। एक बार वो समझ में आ गया फिर तो क्या है एनफ़ील्ड। फूल से हल्की है। और हवा में उड़ती है। मैंने दो दिन में एनफ़ील्ड चलाना सीख लिया था। ये और बात है कि पापा ने सबसे पहले राजदूत सिखाया था पर पटना में थोड़े ना चला सकते थे। कई सालों से कोई गियर वाली बाइक चलायी नहीं थी।

अभी कुछ साल पहले सपने की सी ही बात लगती थी कि अपनी एनफ़ील्ड होगी। कि चला सकेंगे अपनी मर्ज़ी से ५०० सीसी बाइक। कि कैसा होता होगा इसका ऐक्सेलरेशन। क्या वाक़ई उड़ती है गाड़ी। वो लड़की नाम पूछी मेरा। हाथ मिलायी। मुझे अपने बचपन के दिन याद आ गए जब देवघर में एक दीदी हीरो होंडा उड़ाया करती थी सनसन। हमारे लिए तो वही रॉकस्टार थी। तस्वीर खींचने को जो लड़की थी, उसे बताया मैंने कि एनफ़ील्ड पति ने गिफ़्ट की है पिछले साल, तो वो लड़की बहुत आश्चर्यचकित हो गयी थी।

दुनिया में छोटे छोटे सुख हैं। जिन्हें मुट्ठी में बांधे हुए हम सुख की लम्बी, उदास रात काटते हैं। तुम मेरी मुट्ठी में खुलता, खिलखिलाता ऐसा ही एक लम्हा हो। आना कभी बैंगलोर। घुमाएँगे तुमको अपने एनफ़ील्ड पर। ज़ोर से पकड़ के बैठना, उड़ जाओगे वरना। तुम तो जानते ही हो, तेज़ चलाने की आदत है हमको।

ज़िंदगी अच्छी है। उदार है। मुहब्बत है। अपने नाम पर रॉयल एनफ़ील्ड है।
इतना सारा कुछ होना काफ़ी है सुखी होने के लिए।
सुखी हूँ इन दिनों। ईश्वर ऐसे सुख सबकी क़िस्मत में लिक्खे।

17 October, 2017

सुख और सपने में कितना अंतर होता है?


मैं उन लोगों में से नहीं हूँ जो बेवजह ही क़िस्मत को कोसते और गरियाते रहते हैं। या कि ईश्वर को ही। इन दिनों अच्छा है सब। कोई ख़ास दुःख, तकलीफ़ नहीं है। बड़े बड़े दुःख हैं, जिनके साथ जीना सीख रहे हैं। दोपहर मेरे पढ़ने का समय होता है। आज धनतेरस है। मन भी जाने कहाँ, किस देस, किस शहर, किस टाइम ज़ोन में उलझा हुआ है। टेबल पर ठीक ऊपर के रैक में वो किताबें रखी हैं जो मैं इस बार की अमरीका की ट्रिप से लायी हूँ। इसके सिवा कुछ और किताबें हैं जो मैं दिन दिनों पढ़ती हूँ. अभी ब्रश करना, नहाना, पूजा, नाश्ता...सब कुछ ही बाक़ी है। आज बाज़ार जा के ख़रीददारी भी करनी है। रैक की ओर देखा और सोचा, धुंध से उठती धुन निकालती हूँ और जो पहला पन्ना खुलेगा, उसे यहाँ सहेज दूँगी। अस्तु।

***

28 सितम्बर, 1987
आज शाम पार्टी है। रामू अमेरिका जा रहे हैं - एक साल के लिए। वह दिल्ली में उन कम, बहुत कम मित्रों में से हैं, जिनसे खुल कर वार्तालाप होता था। उनके ना होने से ख़ाली शामों का सिलसिला शुरू होगा।
यह ठीक है। मैं यही चाहता हूँ। सर्दियाँ शुरू हो रही हैं। रिकार्ड है, अनपढ़ी, अधपढ़ी किताबें हैं और सबसे अधिक, अधलिखा अधूरा उपन्यास...
कहानी चल रही है। मैं इतनी अधूरी चीज़ों के बीच हूँ, कि यह सोच कर घबराहट होती है, कि उनका अंत कहाँ और कैसा होगा, मुझे कहाँ ले जाकर छोड़ेगा।
श्रीकांत की अंतिम किताब पढ़ते हुए बहुत बेचैनी होती है। वह कितने ऊँचे-नीचे स्तरों पर चढ़ते-उतरते रहते थे। कोई हिसाब है? न्यूयार्क के अस्पताल में लेटे हुए, नालियों से जुड़े हुए, सूइयों से बींधे हुए, पट्टियों से बँधे हुए...मैंने उनका नाम लिया, तो कहीं दूर-सुदूर से आए और आँखें खोल दीं। मैंने उनका हाथ दबाया, वह देखते रहे...उन्होंने मृत्यु को थका डाला, मृत्यु ने उन्हें...आख़िर दोनों ने हथियार डाल दिए - उनकी मृत्यु एक तरह का शांति समझौता था...सीज फ़ायर के अदृश्य काग़ज़ पर दोनों के हस्ताक्षर थे!
बोर्खेस की कविताएँ, एक ऋषि अंधेरे में ताकते हुए, उन सब छायाओं के समकालीन, जो इस धरती पर रेंग रही थीं, एक दृष्टिहीन द्रष्टा! एक असाधारण कवि...

3 अक्टूबर, 1987
दुःख: अंतहीन डूबने का ऐंद्रिक बोध, साँस ना ले पाने की असमर्थता, जबकि हवा चारों तरफ़ है, जीने की कोशिश में तुम्हारी मदद करती हुयी...तुम ख़तरे की निशानी के परे जा चुके हो, और अब वापसी नहीं है...
पेज संख्या - 91

***
23 अक्टूबर, 1987
ऐसे दिनों में लगता है, जीना, सिर्फ़ जीना, सिर्फ़ साँस लेना, धरती पर होना, चलना, सिर्फ़ देखना - यह कितनी बड़ी ब्लैसिंग  है : अपनी तकलीफ़ों, दुखों, अधूरे गड़बड़ कामों के बावजूद...और तब हमें उन लोगों की याद आती है, जो इतने बड़े थे और जिन्हें इतनी छोटी-सी नियामत भी प्राप्त नहीं है, जो धरती पर रेंगती हुयी च्यूँटी को उपलब्ध है! हम जीने के इतने आदी हो गए हैं, कि 'जीवन' का चमत्कार नहीं जानते। शायद इसी शोक में प्रूस्त ने कहा था, "अगर आदत जैसी कोई चीज़ नहीं होती, तब ज़िंदगी उन सबको अनिवार्यत: सुंदर जान पड़ती, जिन्हें मृत्यु कभी भी घेर सकती है - यानी उन सबको, जिन्हें हम 'मानवजाति' कहते हैं"।
पेज संख्या - 93 
~  यह मौसम नहीं आएगा फिर ॰ धुंध से उठती धुन ॰ निर्मल वर्मा 
***

धुंध से उठती धुन को पढ़ने के पहले निर्मल के लिखे कितने सारे उपन्यासों से गुज़रना होगा। कितनी कहानियों को कहानी मान कर चलना होगा सिर्फ़ इसलिए कि हम जब इस डायरी में देखें उनके लिखे हुए नोट्स तो पहचान लें कि ज़िंदगी और कहानी अलग नहीं होती।

ख़ुद को माफ़ कर सकें उन किरदारों के लिए जिनका ज़रा सा जीवन हमने चुरा कर कहानी कर दिया। कि कौन होता है इतना काइंड, इतना उदार कि दे सके पूरा हक़, कि हाँ, लिख लो मुझे। जितने रंगों में लिखना चाहो तुम। कौन हो इतना निर्भीक कि कह सके, तुम्हारे शब्दों से मुझे डर नहीं लगता। कि तुम्हारी कहानी में मेरे साथ कभी बुरा नहीं होगा, इतना यक़ीन है मुझे। या कि अगर तुम क़त्ल भी कर दो किरदार का, तो इसलिए कि असल ज़िंदगी का कोई दुःख किरदार के नाम लिख कर मिटा सको मेरी ज़िंदगी की टाइम्लायन से ही। कि निर्मल जब कहते हैं 'वे दिन' में भी तो, सिर्फ़ साँस लेना कितनी बड़ी ब्लेसिंग है। कि तुम भी तो। कितनी बड़ी ब्लेसिंग हो।

कला हमें अपने मन के भावों की सही सही शिनाख्त करना सिखाती है। हम जब अंधेरे में छू पाते हैं किसी रात का कोई दुखता लम्हा तो जानते हैं कि इससे रंगा जा सकता है antagonist का सियाह दिल। कला हमें रहमदिल होना सिखाती है। संगीत का कोई टुकड़ा मिलता है तो हम साझा करते हैं किसी के साथ और देखते हैं कि सुख का एक लम्हा हमारे बीच किसी मौसम की तरह खिला है।

दुःख गाढ़ा होता है, रह जाता है दिल पर, बैठ जाता है किसी भार की तरह काँधे पर। जैसे कई योजन चलना पड़े दिल भारी लिए हुए। आँख भरे भरे समंदर लिए हुए।

सुख हल्का होता है। फूल की तरह। तितली की तरह। क्षण भर बैठता है हथेली पर और अपने रंग का कोई भी अंश छोड़े बिना अगले ही लम्हे आँखों से ओझल हो जाता है। तितली उड़ती है तो हम भी उसकी तरह ही भारहीन महसूस करते हैं ख़ुद को। पंखों के रंगों से सजे हुए भी। सुख हमें हमेशा हल्का करता है। मन, आँख, आत्मा। सब पुराने गुनाह बहा आते हैं किसी प्राचीन नदी में और हो जाते हैं नए। अबोध। किलकते हुए।

कभी अचानक से होता है। कोई एक दिन। कोई एक शहर। कोई एक शख़्स। सुख, किसी अपरिचित की तरह मिलता है। किसी पुराने प्रेमी की तरह जिसे पहचानने में एक लम्हा लगता है और फिर बस, मन में धूप ही धूप उगती है। हम एकदम से ही शिनाख्त नहीं कर सकते सुख की...ख़ास तौर से तब, जब वो किसी दूर के शहर से लम्बा सफ़र कर के आ रहा हो। हमें वक़्त लगता है। उसे धो पोंछ कर देखते हैं हम ठीक से। छू कर। पानी का एक घूँट बाँट कर चखते हैं उसकी मिठास। सुख के होने का ऐतबार नहीं होता हमें इसलिए सड़क पार करते हुए हम चाहते हैं कि पकड़ लें एक कोना उसकी सफ़ेद शर्ट की स्लीव का। सुख को लेकिन याद होते हैं हम। वो साथ चलते हुए हाथ सहेज कर पॉकेट में नहीं रखता। सुख हमारा ख़याल रखता है। सुख हमें जीने का स्पेस देता है। सुख हमारे लिए आसमान रचता है और ज़मीन भी। सुख हमारे लिए एक शहर होता है।

सुख हमें नयी परिभाषाएँ रचने का स्पेस देता है। कि कभी कभी किसी दूसरे शहर के समय में ठहरी हुयी घड़ी होती है सुख। कभी लिली की सफ़ेद गंध। कभी मन की बर्फ़ीली झील पर स्केटिंग करने और गिर कर हँसने की कोई भविष्य की याद होता है सुख। इक छोटे से काँच के गोले में नाचते हैं नन्हें सफ़ेद कण कि जिन्हें देखकर मन सीखता है यायावरी फिर से। कौन जाने कैसी गिरती है किसी और शहर में बर्फ़। कोई किताब होती है उसके हाथों की छुअन बचाए ज़रा सी अपनी मार्जिन पर।

बहुत दूर के दो शहरों में लोग एक साथ थरथराते हैं ठंढ और अपनी बेवक़ूफ़ी के कारण। कि कोई सेंकता है महोगनी वाले कैंडिल की लौ पर अपने हाथ और भेजता है एक गर्माहट भरा सुख का लम्हा फ़ोन से कई समंदर पार। बताती है लड़की उसे कि सफ़ेद लिली सूंघ कर देखना किसी फ़्लोरिस्ट की दुकान पर। बहुत दिन बाद एक मफ़लर बुनने भर को चाह लेना है सुख। एक पीला, लेमन येलो कलर का मफ़लर। ऊन के गोले लिए रॉकिंग चेयर पर बैठी रहे और जलती रहे फ़ायरप्लेस में महोगनी की गंध लिए लकड़ियाँ।

सुख और सपने में कितना अंतर होता है?

सिल्क की गहरी नीली साड़ी में मुस्कुराना उसे देख कर और उसकी हँसी को नज़र ना लगे इसलिए ज़रा सा कंगुरिया ऊँगली से पोंछ लेना आँख की कोर का काजल और लगा देना उसके कान के पीछे। इतना सा टोटका कर के हँसना उसके साथ। कि दुनिया कितनी सुंदर। कितनी उजली और रौशन है। कि प्रेम कितना भोला, कितना सुंदर और कितना उदार है। 

06 April, 2012

रात के अँधेरे में एक दूज का चाँद खिल जाता उसकी उँगलियों के बीच.


एक छोटी सी लड़की है...दिन में उसकी काली आँखों में जुगनू चमकते हैं...पर उसे मालूम नहीं था...एक शाम उसकी आँखों से एक जुगनू बाहर आ गया...नन्ही लड़की ने बड़े कौतुहल से जुगनू को देखा और अपनी छोटी छोटी हथेलियों से कमल के फूल की पंखुड़ियों सा उसे बंद कर लिया. देर रात हो गयी तो जुगनू की ठंढी हलकी हरी चमक मद्धम पड़ने लगी...लड़की को यकीन नहीं होता की उसकी हथेलियों से जुगनू गायब नहीं हो गया है...उँगलियों के बीच हलकी फांक करके देखती...रात के अँधेरे में एक दूज का चाँद खिल जाता उसकी उँगलियों के बीच. 

रात लड़की खाना खाने के मूड में नहीं थी...खाने के लिए हथेलियाँ खोलनी पड़तीं और जुगनू उड़ जाता...वो एकदम छोटी थी इसलिए उसे मालूम नहीं था कि जुगनू उसकी आँखों की चमक से ही आता है और अगली शाम फिर से आ जाएगा...नया जुगनू...रात को आसमान की औंधी कटोरी पर तारे बीनने का काम था उसकी मम्मी का...जब किसी तारे में कोई खोट होता तो उसकी मम्मी उस तारे को आसमान से उठा कर फ़ेंक देती...वो टूटता तारा लोग देखते और मन में दुआ मांग लेते...तारे बीनने का काम बहुत एकाग्रता का होता था...तो छोटी लड़की की मम्मी उसे मुंह में कौर कौर करके खाना नहीं खिला सकती थी. 

जब बहुत देर तक चाँद की फांक से लुका छिपी खेलती रही तो फिर लड़की को यकीन हो गया कि जुगनू सच में है...और मुट्ठी खोलते ही गायब नहीं हो जायेगा...उसने हौले से अपनी मुट्ठी खोली...जुगनू कुछ देर तो उसकी नर्म हथेली पर बैठा रहा...सहमा हुआ, कुछ वैसा जैसे पिंजरे का दरवाज़ा खोलो तो कुछ देर तोता बैठा रहता है...उसे यकीन ही नहीं होता कि वो वाकई जा सकता है...उड़ सकता है...और फिर जुगनू ने सारी दुनिया एक बच्चे की आँखों के अन्दर से देखी थी...ये दुनिया उसे डराती भी थी...चौंकाती भी थी और पास भी खींचती थी. 

जुगनू ऊपर आसमान की ओर उड़ गया...जहाँ उसे तारों को बीनने में लड़की की मम्मी की हेल्प करनी थी. 
---
१२ साल बाद का पहला दिन...

आज पहली बार किसी लड़के ने उसका हाथ पकड़ा था...उसने अपनी हथेली में उसके लम्स को वैसे ही कैद कर लिया था जैसे उस पहली शाम जुगनू को मुट्ठी में बाँधा था...उसे देर रात लगने लगा था कि हथेली खोल के देखेगी तो दूज के चाँद की फांक सी उस लड़के की मुस्कराहट नज़र आएगी. 

---
तीस के होने के पहले का कोई साल...

We could have danced away to the dawn...

तुम्हारे आफ्टर शेव की हलकी खुशबू मेरी आँखों में अटकी है...आज भी शाम आँखों से जुगनू आते हैं...मुझे देख कर मुस्कुराते हैं और ऊपर आसमान की ओर उड़ जाते हैं, मैं अब उन्हें रोकती नहीं...मम्मी रिटायर हो गयी है...और ऊपर कहीं तारा बन गयी है...

मैं बस जरा देर को तुम्हें मुट्ठी में बंद कर देखना चाहती हूँ कि तुम वाकई हो कि नहीं...जिस लम्हे यकीन हो जायेगा तुम्हारे होने का मुट्ठी खोल कर तुम्हें जाने दूँगी...पर सोचने लगी हूँ बहुत...तो लगता है तुम्हारा दम घुटने न लगे...इसलिए कभी तुम्हें ठहरने को नहीं कहती. लेकिन सुनो न...आज रात नींद नहीं आ रही...आज की इस लम्बी सी रात काटने के लिए मेरी आँखों में जुगनू बन के ठहर जाओ न!

06 March, 2012

Wordpress audio player on blog/ ब्लॉग पर वर्डप्रेस ऑडियो प्लेयर

आज की इस पोस्ट में हम सीखेंगे कि वर्डप्रेस ऑडियो प्लेयर को ब्लॉग में कैसे इन्टीग्रेट करते हैं. पोस्ट थोड़ी टेक्नीकल है तो हम पहले आगाह किये देते हैं कि आप इसे पढ़ कर वक़्त बर्बाद न करें :)

हमें पिछले कुछ दिनों से पोडकास्टिंग का कीड़ा काट रहा है...तो गाहे बगाहे हम कुछ न कुछ पोडकास्ट करते रहते हैं. पोडकास्ट होस्ट करने के लिए डिवशेयर का इस्तेमाल करते हैं पर डिवशेयर का प्लेयर मुझे खास पसंद नहीं आता...थोड़ा क्लटर ज्यादा है उसमें...वैसे तो जितने ऑनलाइन प्लेयर दिखे हैं मुझे...सबसे नीट यही है फिर भी उतना अच्छा नहीं लगा. वर्डप्रेस का ऑडियोप्लेयर का लेआउट  एकदम क्लीन है...इसे आप अपने ख़ास गाने भी ब्लॉग पर पोस्ट करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.

कल सुबह मूड हुआ कि इसे ब्लॉग पर चिपकाया जाए...सोचा नहीं था कि इतना मुश्किल होगा. सुबह कुणाल ऑफिस गया तब बैठे लैपटॉप लेकर कि एक आधे घंटे में निपटा के खाना वाना खा लेंगे. मगर आधा एक घंटा बढ़ते बढ़ते शाम के पांच बज गए...न खाया था कुछ पिया था...जिद्दी हूँ एक नंबर की...जब तक करुँगी नहीं कुछ और काम में मन ही न लगे. कुछ दोस्तों से पूछा भी पर जावास्क्रिप्ट नहीं आता था उन्हें.

मैं किसी टोपिक के पीछे पड़ती हूँ तो फिर कुछ बाकी नहीं छोड़ती...कल जावा स्क्रिप्ट पढ़ भी ली...पूरा का पूरा कोड पढ़ के देखा...सिंटेक्स एरर इतने सालों बाद स्क्रीन पर दिखा पर डिबग नहीं हो पाया मुझसे. फिर मुझे लग रहा था कि कितना सिंपल तो है...पूरा कोड दिख रहा है तो हो क्यूँ नहीं रहा. शाम होते चक्कर आने लगे...मूवी देखने का मूड था 'द आर्टिस्ट' शाम के छः बजे का शो था...वो भी मिस कर दिया. जब कुछ नहीं काम हो रहा था तो सोचा कि नहा लेते हैं...शैम्पू करने के बाद अक्सर मेरा मूड बदल जाता है. तो शैम्पू किया...फिर एक बहुत अजीज दोस्त से बात की...उससे बात करके मूड अच्छा हुआ...फिर बाइक उठा के घूमने निकल गयी. रात को छोटे भाई को मेल लिखी कि दिक्कत हो रही है...थोड़ा देख दो.

और सुबह देखती हूँ जिमी का मेल आया हुआ है...प्यारा सा मेल और उसके टेस्ट ब्लॉग का लिंक जहाँ साउंड फ़ाइल प्ले हो रही थी...मारे ख़ुशी के आँखों में आंसू आ गए...गर्व से सर तन गया कि वाह...मेरा छोटा सा भाई इतना होशियार हो गया :) बहुत अच्छा लगा बहुत बहुत.

ये तो हुआ फिल्म का सेंटी हिस्सा...अब मुद्दे पर आते हैं :)

2. create a new page
1. आपको एक फ़ाइल होस्टिंग साईट की जरूरत पड़ेगी...चूँकि आप ब्लोगर इस्तेमाल करते हैं तो सबसे आसान होगा गूगल साइट्स पर अपनी वेबसाईट बनाना. इसलिए लिए यहाँ जाएँ-  https://sites.google.com/
2. जब आपकी वेबसाईट बन जाए तो इसमें एक नया पेज बनाएं...जैसे कि मैंने बनाया है ऑडियो...पेज के राईट साइड के ऊपर कोर्नर में ये जो पेज में प्लस का बटन दिख रहा है उसको दबाने से नया पेज बन जाता है. मैंने इसे नाम दिया है audio.
आपको जरूरत पड़ेगी तीन फाइलों की. एक जावास्क्रिप्ट (.js)की फ़ाइल है, एक फ्लैश प्लेयर(.swf) है और एक mp3 जो कि आपका म्यूजिक है जिसे प्ले करने के लिए हम इतना ड्रामा कर रहे हैं. आपका पेज कुछ ऐसा दिखेगा... https://sites.google.com/site/pujaupadhyaykislay/audio इसकी हमें आगे जरूरत पड़ेगी. 

3. जावास्क्रिप्ट की फ़ाइल और फ्लैश प्लेयर मैंने अपनी साईट पर अपलोड कर दिया है...आप वहां से डाउनलोड कर लीजिये. यहाँ https://sites.google.com/site/pujaupadhyaykislay/audio

दूसरा तरीका है इन्हें वर्डप्रेस के साईट से डाउनलोड करना http://wpaudioplayer.com/download/ यहाँ से Standalone पर क्लिक कीजिये...जिप फ़ाइल को अनलोक कीजिए. फोल्डर में पहली और आखिरी फाइल की जरूरत है आपको. 'audio-player' and 'player'.
3. download/upload files

4. अपने वेबपेज पर ऐड फाइल्स पर क्लिक कीजिये और audio-player.swf और player.js अपलोड कर दीजिये. ये कुछ ऐसा दिखेगा. अब अपनी mp3 फ़ाइल भी यहाँ अपलोड कर लीजिये.

५. अब हमें जरूरत है ब्लॉग के html में एक छोटा सा कोड डालने की...इसलिए लिए ब्लॉग डैशबोर्ड में जायें और टेम्पलेट सेलेक्ट करें. पहले अपने ब्लॉग टेम्पलेट का बैकप ले लीजिये...इसके लिए टॉप राईट कोर्नर में जो backup/restore button है उसे क्लिक करें. फिर एडिट html पर क्लिक करें.

6.  cntrl+f से head ढूँढिये...उसके ठीक पहले ये एक लाइन का कोड चिपकाना है.

<script language='JavaScript' src='https://sites.google.com/site/pujaupadhyaykislay/audio/audio-player.js'/>

इस कोड में जो हिस्सा ब्लू में है...उसकी जगह आप अपनी साईट का url डालिए. (go to no. 2). Replace only the part highlighted in blue...ऑडियो के बाद का हिस्सा /audio-player.js'/> को वैसा ही रहने दीजिये. 

अब टेम्पलेट सेव कर लीजिये. 

7. html का दूसरा कोड...इसमें आपको तीन लिंक बदलने हैं...

<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<object data="https://sites.google.com/site/pujaupadhyaykislay/audio/player.swf" height="24" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="290">
<param name="movie" value="https://sites.google.com/site/pujaupadhyaykislay/audio/player.swf">
<param name="FlashVars" value="playerID=audioplayer1&soundFile=https://sites.google.com/site/pujaupadhyaykislay/audio/Enya-OnlyTime.mp3">
<param name="quality" value="high">
<param name="menu" value="false">
<param name="wmode" value="transparent">
</object> 

सिर्फ वो हिस्सा रिप्लेस कीजिये जो नीले रंग में बोल्ड है...बाकी एक्सटेंशन वैसे ही रहने दीजिये. /player.swf

mp3 की लिंक की जगह आपके गाने का जो नाम  है वो लिखिए...कृपया ध्यान से नोट कीजिये ये वही होना चाहिए जो आपकी फ़ाइल का नाम है. जैसे मेरे गाने का नाम था 'Enya-OnlyTime'
लिंक: https://sites.google.com/site/pujaupadhyaykislay/audio/Enya-OnlyTime.mp3 

मान लीजिये आपके गाने का नाम है 'piya basanti' तो जब आप फाइल अपलोड कर रहे हैं उसके पहले ही फाइल के नाम से स्पेस डिलीट कर दीजिये...'piyabasanti' वैसे तो दिक्कत नहीं आ रही है...पर कभी कभी स्पेस के कारण फ़ाइल नहीं दिखा रहा है. 
link: https://sites.google.com/site/yoursitename/audio/piyabasanti.mp3

8. अब नयी पोस्ट लिखिए...जो भी आप लिखते हो, अच्छा बुरा, प्यारा जो भी...लिख लीजिये...अब कंपोज के बगल में जो लिंक है...html उसको क्लिक कीजिये...कीड़े मकोड़े जैसी बहुत सी लाइंस आ जायेंगी :) इसमें सबसे नीचे स्क्रोल कीजिये और वहां ये ऊपर वाला कोड चिपका दीजिये. इससे प्लेयर पोस्ट के नीचे आएगा. अगर प्लेयर कहीं और प्लेस करना है तो कर्सर को वहां पर रखिये जहाँ प्लेयर चाहिए और html पर क्लिक कीजिये...और उधर ही कोड चिपका दीजिये. 

9. अब कहिये...पूजा तुम सबसे अच्छी हो. :) :) मुस्कुराइए. 

10. Publish :)



15 February, 2012

पतझड़ का शहर

उसके शहर में
बहुत करीने से गिरते थे पत्ते भी

अक्सर सोचता हूँ 
दुनिया में कुछ है भी
जो उसकी तरह बिखरा हुआ है
या कि बेतरतीब 

सूखे पत्तों पर बाइक उड़ाती लड़की
मुझसे यूँ प्यार न करो
अभी मेरा दिल हरा ही है
अभी इंतज़ार अधूरा बाकी है 

तुम तो मौसम की तरह गुज़र जाओगी
पर मैं कतार में कैसे बिखेरूँगा सूखे पत्ते 

कि तुम कैसे पहचानोगी वापसी की राह?
तुम्हारी तसवीरें देख कर एक ही बात सोचता हूँ
तुम वाकई करोगी क्या मुझसे प्यार...ताउम्र?

या कि तुम्हें भी झूठे वादे करने
और झूठी कसमें खाने में लुत्फ़ आता है?

(एक लड़की थी...एक नंबर की झूठी...और वैसी ही दिलफरेब...एक शहर था...जिसे उस लड़की से प्यार हो गया था...एक लड़का था जिसे वो शहर दरवाजे पर रोक लेता था...और इश्क था...एक नंबर का बदमाश...ये इन तीनो(चारों?) की कहानी है. हाँ, इस कहानी के सारे पात्र असली हैं...बस उनका पता नहीं मिलता)

06 February, 2012

तुम बहुत खूबसूरत हो लड़की!

उदासियाँ बहुत गहरी हो जायें 
तो अपने अन्दर लौटो

वो तुम ही हो 
जिसके अन्दर है
रौशनी का अजस्र श्रोत
वहीं से निकलती है 
मुस्कुराहटों की बारामासी नदी

तुम्हारे पैरों की थिरकन
हाँ वहीं,
ठहरी हुयी है 
असंख्य दिलों की धड़कन

एक गोल चक्कर काटो
देखो न,
दुनिया घूम रही है न 
तुम्हारे ही चारों तरफ?

देखो अपनी आँखें
इनमें कितना प्यार है न?
तुम्हारे खुद के लिए भी
सच्ची में री!

वो जो फूल खिला है
गमले में
उसका गहरा लाल रंग
तुम्हारी जिजीविषा सा है 

अरे सूरज का सुनहरा पीलापन
तुम्हारी लौंग से छिटकता है
चाँद की सारी चांदनी
तुम्हारी गोरी बाँहों से उगती है 

तुम्हारी अंजुरी से सिंचती है
खुशियों की सारी फसलें 
गुनगुनाती हुयी बहा करो
मुस्कुराती हुयी रहा करो 

ये कायनात तुमसे खूबसूरत नहीं
थोड़ा इतरा लो
खुदा नहीं बक्श्ता 
सबको इतनी खूबसूरती

न इतना कोई होता है
इश्क से इतना लबरेज़ 
और पता है
मैं सबसे ज्यादा तुमसे प्यार करती हूँ!

28 January, 2012

जिंदगी से लबरेज़...मुस्कुराहटों सी खनकती हुयी...नदी सी बहती...बेपरवाह...


दुनियादारी की अदालत लगी है...मेरे घर के लोग, जान-पहचान वाले, कुछ अपने लोग, कुछ पक्के वाले दुश्मन, कुछ पुराने किस्से, कुछ टूटी कवितायें, गज़लों के कुछ बेतुके मिसरे...सब इकट्ठा हैं...वकील पूरे ताव में है...जोशो-खरोश में मुझसे सवाल कर रहा है...आपने क्या किया है अपनी जिंदगी के साथ? कोई बड़ा तीर मारा है...न सही कुछ महान लिखा है, क्या पढ़ा है, दोस्तों के नाम पर आपके पास कितने लोग हैं? कहते हैं कि भगवान ने आपको बड़ी बड़ी खूबियों से नवाजा है...आपने उनका क्या किया है। दुनियादारी के टर्म में समझाओ कि आज तक के तुम्हारी जिंदगी का हासिल क्या है? आखिर इतनी बड़ी जिंदगी बेमतलब गुजरने की सज़ा जरूरी है मिलोर्ड वरना लोग ऐसे ही खाली-पीली टाइम खोटी करते रहेंगे...मोहतरमा को जिंदगी बर्बाद करने के लिए सख्त से सख्त सज़ा मिलनी चाहिए...आप खुद ही इनसे पूछिये, देखिये जैसे चुपचाप खड़ी हैं...ऐसे लोगों को चैन से जीने दिया गया तो सबका जीना मुहाल हो जाएगा...आप इनसे पूछिये कि ये रेस का हिस्सा क्यूँ नहीं हैं...जब सबको कहीं न कहीं पहुँचने की हड़बड़ी है, इनके पास जिंदगी का कोई रूटमैप क्यूँ नहीं है। यायावर की जिंदगी का उदाहरण पेश कर रही हैं ये और उसपर बेशरम हो के हँसती हैं...इनसे पूछा जाए कि इनहोने अपनी पूरी जिंदगी क्या किया है?

जज साहब मेरी ओर सवालिया निगाहों से देखते हैं...और दोहराते हैं...मोहतरमा...आपने अपनी जिंदगी भर क्या किया है?

मेरी आँखों में कोई गीत उन्मुक्त हो नाच उठता है...मैं मुसकुराती हूँ और पूरी जनता को देखती हूँ...वकील को और आखिर में जज साहब को। 

और जितनी जिंदगी उस एक शब्द में आ सकती है समेट कर जवाब देती हूँ...एक शब्द में...
इश्क!

18 January, 2012

जान तुम्हारी सारी बातें, सुनती है वो चाँद की नानी

जान तुम्हारी सारी बातें
सुनती है वो चाँद की नानी
रात में मुझको चिट्ठी लिखना
सांझ ढले तक बातें कहना

जरा जरा सा हाथ पकड़ कर
इस पतले से पुल पर चलना
मैं थामूं तुम मुझे पकड़ना
इन्द्रधनुष का झूला बुनना 

रात इकहरी, उड़ी टिटहरी
फुग्गा, पानी, धान के खेत
बगरो बुड़बक, कुईयाँ रानी 
अनगढ़ बातें तुमसे कहना 

कितने तुम अच्छे लगते हो
कहते कहते माथा धुनना 
प्यार में फिर हो पागल जैसे
तुमसे कहना, तुमसे सुनना 

लड़की ने गहरा गुलाबी कुरता डाल रखा था और उसपर एकदम नर्म पीले रंग की शॉल...शाम चार बजे की धूप में उसके बाल लगभग सूख गए थे...कंधे तक बेतरतीबी से अनसुलझे बाल...धूप में चमकता गोरा रंग...चेहरे पर हल्की धूप पड़ रही थी और वो सूरज की ओर आधा चेहरा किए खून के गरम होने को महसूस कर रही थी...लग रहा था महबूब की हथेली को एक हाथ से थामे गालिब को पढ़ रही है। 

शाम के रंग एक एक कर के हाज़िरी देने लगे थे...गुलाबी तो उसे कुर्ते को छोड़ कर ही जाने वाला था की उसने मिन्नतें करके रोका की सफ़ेद कुर्ते पर इश्क़ रंग चढ़ गया तो रात की सारी नींदें उससे झगड़ा कर बैठेंगी। लोहे की सीढ़ियों पर थोड़ी ही जगह थी जहां लड़की थोड़ा सा दीवार से टिक के बैठी थी और लड़का कॉपी पर झुका हुआ कुछ लिख रहा था। आप गौर से देखोगे तो पाओगे की पूरी कॉपी में बस एक नाम लिखा हुआ था और कोरे कागज़ पर तस्वीरें थीं...उनमें एक बड़ा दिलफ़रेब सा कच्चापन था...आम के बौर जैसा। सरस्वती पूजा आने में ज्यादा वक़्त रह भी नहीं गया था...बेर के पेड़ों से फल गिरने लगे थे। कहते हैं कि विद्यार्थियों को वसंत पंचमी के पहले बेर नहीं खाने चाहिए...वो पूजा में चढ़ने के बाद ही प्रसाद के रूप में खाने चाहिए। 

लड़का ये सब नहीं सोच रहा था...लड़की के बालों से ऐसी खुशबू आ रही थी कि उसका कुछ लिखने को दिल नहीं  कर रहा था...दोपहर का बचा हुआ ये जरा सा टुकड़ा वो अपने जींस की जेब में भर कर वहाँ से चले जाना चाहता था...पर लड़की की जिद थी कि जब तक बाल नहीं सूखेंगे वो छत से उतरेगी नहीं। उसने थक कर अपनी कॉपी बंद कर दी...लड़की ने भी गालिब को बंद किया और उसकी कॉपी उठा कर देखने लगी। उसका दिल तो किया कि कुछ शेर जो बहुत पसंद आए हैं वो लिख दे...पर ये बहुत परफेक्ट हो जाता। उसे परफेक्शन पसंद नहीं था...प्यार की सारी खूबसूरती उसके कच्चेपन, उसकी मासूमियत, उसके अनगढ़पन में आती थी उसे। बाल धोने के बाद की टेढ़ी-मेढ़ी मांग जैसी। 

इसलिए उसने कॉपी पर ये कविता लिख दी...ये एकदम अच्छी कविता नहीं है...इसमें कुछ भी सही नहीं है...पर इसमें खुशबू है...जिस एक दोपहर के टुकड़े दोनों एक दूसरे के साथ थे, उस दोपहर की।  इसमें वो तीन शब्द नहीं लिखे हुये हैं...पर मुझे दिखते हैं...तुम्हें दिखते हैं मेरी जान?

07 January, 2012

जबकि लड़की को रूठना नहीं आता और लड़के को मनाना...

असित ने बड़े इत्मीनान से कॉफ़ी में दो चम्मच चीनी डाली और हल्का सा सिप लिया...चश्मे के शीशे पर भाप आ गयी  तो उसे उतार कर कुरते के कोने से पोंछा और फिर कुछ देर सामने की दीवार पर लगी पेंटिंग पर नज़रें टिकायीं. छवि थोड़ी उदास थी आज...वरना तो जिस लम्हे वो उसका नाम लेता था मुस्कुराने और चहकने लगती थी. सामने उसका पसंदीदा आयरिश कॉफ़ी का कप रखा था जो अब ठंढा होने चला था. दोनों चुप. यूँ असित और छवि मिलते थे तो असित अधिकतर चुप ही रहता था...सारे किस्से तो छवि के नाम होते थे.

'अब ये मेरी बारी है पूछने की कि तुम नाराज़ हो?' असित ने हथियार डाले थे. 
'डिपेंड्स'...छोटा सा जवाब.
'किस पर?'
'इस बात पर कि तुम्हें मनाना आता है कि नहीं!' 

इस छोटी सी बात से मुस्कुराहटें उगी और कैफे की ठहरी हुयी हवा में गीत के कुछ कतरे गूंजने लगे. दोनों खुले स्पेस में बैठे थे...कैफे की सामने की बालकनी में शाम के इस वक़्त कुछ लड़के बैंड प्रैक्टिस के लिए जुटते थे. असित को उनका म्यूजिक बहुत पसंद आता था. एक बार कॉलेज मैगजीन की लिए आर्टिकल लिखते हुए छवि ने इन्हें कवर भी किया था...जिस कैफे में दोनों बैठे थे ये कैफे भी उन्ही इत्तिफकों का एक उदाहरण था कि जिनसे जिंदगी जीने लायक होने लगती है. बैंड के लोग अपना एक पोर्टफोलियो बनाना चाहते थे और छवि का काम उन्हें पसंद था. उनकी एक प्रोफाइल शूट के सिलसिले में उसका असित से मिलना हुआ था...तब से वो इस कैफे में अक्सर मिलने लगे थे.

असित फ्रीलांस करता था...उसका चित्त बहुत चंचल था...ओगिल्वी, मुद्रा, JWT जैसी सारी अच्छी ऐड एजेंसीज में काफी साल काम करके उसका दिल भर गया था तो उसने फ्रीलान्सिंग शुरू कर दी थी. अब वो सिर्फ ऐसे प्रोजेक्ट उठाता जिसमें उसे कुछ थ्रिल मिलता...कुछ नया करने को, कुछ अलग. उसे शब्दों के साथ जादू करना आता था...वो उन्हें कठपुतलियों की तरह नचाता...उसके हाथ में जा कर साधारण शब्द भी चमक उठते थे जैसे की फिल लाईट मारी हो किसी ने चेहरे की परछाइयाँ छुपाने के लिए. लोग उसकी बहुत इज्ज़त करते थे...उसने हर क्षेत्र में लोगों को कई नए नामों से अवगत कराया था.

थोड़ा चुप्पा सा रहना, खुद में खोये रहना उसका स्वाभाव था पर उसके बेहतरीन काम और काम के प्रति दीवानगी ने धीरे धीरे  उसे बहुत ख्याति दिला दी थी फिर अचानक उसका कम बातें करना भी  उसके मिस्टीरियस 'औरा' का ही एक हिस्सा बन गया था. लोग उससे बातें करने में दस बार सोचते थे...जूनियर उसके सामने अनचाहे हकलाने लगते थे. इस औरा के कारण उसकी जिंदगी के लोग भी सिमटते जा रहे थे. ऐसे ही अचानक एक दिन छवि से मिलना हुआ था उसका...पल संजीदा, पल खुराफाती अजीब पहेली सी लड़की थी. फोटो शूट पर उसे देर तक ओबजर्व किया उसने...और घर लौट कर काफी सालों बाद कैनवास पर एक वृत्त बनाया था...छवि की बायीं गाल का डिम्पल.

छवि काम करती थी तो उसे खाने पीने कि सुध बुध नहीं रहती, घंटों फोटोशूट चलता रहता...ऐसे में असित ही उसे खींच कर कैफे लाता कि कुछ खा पी लो. कई बार उसके लिए मैगी या चोकलेट भी लेते आता...ये रोल रिवर्सल असित की समझ से बाहर था कि वो छवि का इतना ध्यान क्यूँ रखता है. शायद पहली बार उसे कोई अपने जैसा दिखा था...और छवि थी ही ऐसी...हर हमेशा गले में कैमरा लटका हुआ...जिंदगी को फ्रेम दर फ्रेम अनंत तक बांधे रखने की अमिट चाहना सी.

'पता है असित, मैं अपनी दोस्तों को कहती हूँ कि एक बार किसी फोटोग्राफर लड़के से जरूर प्यार करना चाहिए...एक तो लड़का इश्क में पागल, उसपर अच्छा फोटोग्राफर...तुम्हें मालूम भी न होगा कि तुम कितनी सुन्दर हो...तो एक बार इश्क की आँखों से खुद को देख लो...इसके अलावा कोई और तरीका नहीं है जानने का कि प्यार में लोग कितने खूबसूरत हो जाते हैं'

'और तुम छवि, तुमसे किसी लड़के को प्यार हुआ कि नहीं?'

'पता नहीं, पर तुम्हें देख कर दिल जरूर कर रहा है कि एक बार अपने कैमरे की नज़र से तुम्हें देखूं, फिर डर भी लगता है कि नज़र न लग जाए तुम्हें मेरी ही...मुझे अक्सर अपने सब्जेक्ट्स से प्यार होता रहता है. तुमसे हुआ तो मर ही जाउंगी...अब तक जीता, जागता इतना खूबसूरत सब्जेक्ट नहीं मिला है मुझे'

'अब इसपर क्या कहा जा सकता है...'

'कुछ नहीं, अपना एक दिन दोगे मुझे...एक पूरा चौबीस घंटों का...मैं तुम्हें बिना परेशान  किये...बिना तुम्हारी रिदम को बदले तुम्हें सहेजना चाहती हूँ...तुममें एक लय है...बेहद खूबसूरत सी, जैसे तुम्हारी कलम चलती है कागज़ पर, जैसे तुम उँगलियों में सिगरेट फंसाए टहलते रहते हो...सब कुछ...इतनी खूबसूरती खोनी नहीं चाहिए.'

'इतनी खूबसूरत तारीफें करोगी तो कोई ना कैसे कहता होगा तुम्हें'

फिर वो चौबीस घंटे साए की तरह छवि असित के साथ हो ली...उसे महसूस भी नहीं होता कि किस कोने से, किस एंगल से छवि उसे कैमरे में बंद कर रही है. सुबह की चाय...दोपहर जाड़े की धूप में बैठ कर लान में अपनी पसंद का कुछ लिखते हुए...कॉफ़ी बनाते हुए...असित को अब डर लग रहा था कि ये आँखें जब न होंगी तो ये दिन कितना याद आएगा. सुबह से शाम...सोसाईटी की कृत्रिम झील के किनारे मूंगफलियाँ खाना...सब कुछ रीता जा रहा था. सारे वक़्त असित इसी उहापोह में था कि ये वक़्त जो उसने सिर्फ मुझे कैमरा में बंद करने को माँगा है...काश ये ये वक़्त वो छवि से उसके साथ बिताने को मांग पाता.

रात गुजरी, भोर हुयी...आज रात सोते हुए उस छोटे से फ़्लैट में पहली बार असित को डर लग रहा था कि कहीं नींद में छवि का नाम न ले आज...कुछ अजीब न कह जाए. सुबह हुयी और कॉफ़ी पीने के साथ ही छवि के चौबीस घंटे पूरे हुए...असित ने हाथ बढ़ा कर कैमरा माँगा...कि देखूं क्या तसवीरें खींची है तो छवि ने एकदम गंभीर चेहरा बना कर कहा कि वो रील डालना भूल गयी थी कैमरा में. असित एक मिनट तो इतना गुस्सा हो गया कि कुर्सी से उठ गया...

'यानि कल पूरे वक़्त तुमने एक भी तस्वीर नहीं खींची...मेरा पूरा दिन बर्बाद किया तुमने...ये क्या मज़ाक है छवि?' उसे गुस्सा आ रहा था और गुस्से में उसका चेहरा गुलाबी होने लगा था...

छवि मुस्कुरा रही थी...'मुझे तुम्हारी तसवीरें कभी खींचनी ही नहीं थी...मुझे प्यार हुआ था तुमसे, तुम्हारी जिंदगी का एक दिन चाहिए था मुझे...और कैसे भी तो तुम देते नहीं'.

असित को समझ नहीं आ रहा था कि उसे हो क्या रहा था...एक सेकण्ड के लिए जैसे सब धुंधला गया और नर्म धूप में हंसती छवि का बाया डिम्पल नज़र आने लगा...उसने अचानक से छवि को अपनी बाहों में भर के उठाया और उसके होठों को चूम लिया. छवि को चक्कर सा आ गया और वो गिर ही जाती कि असित ने उसे अपनी बांहों में थामा...एक क्षण भर को जैसे बादल आये थे...अचानक से सब वापस साफ़ दिखने लगा. छवि का चहरा दहक उठा था...वो पैर पटकती घर से बाहर निकल गयी.

इसके ठीक एक हफ्ते बाद मिले थे दोनों...और छवि को टेस्ट करना था कि असित को मनाना भी आता है कि नहीं...


'अब ये मेरी बारी है पूछने की कि तुम नाराज़ हो?' असित ने हथियार डाले थे. 
'डिपेंड्स'...छोटा सा जवाब.
'किस पर?'
'इस बात पर कि तुम्हें मनाना आता है कि नहीं!'
'आई विल ट्राय माय बेस्ट...तुम भी रूठो तो सही...मुझे तुम्हारे सारे 'वीक स्पोट्स' पता हैं...
'अच्छा जी, चीटर, पहले से पता कुछ यूज करना अलाउड  नहीं है'
'और नहीं क्या...एक बड़ी सी डेरी मिल्क, एक गरमा गरम मैगी...और ज्यादा हुआ तो एक आधी बार बाईक पर घुमाना...तुम एकदम प्रेडिक्टेबल हो...हाउ बोरिंग!'
असित चिढ़ाने के मूड में आ गया था.
छवि ने जीभ निकल कर मुंह चिढ़ाया था.
'तुम्हें तो रूठना भी नहीं आता छवि...एकदम होपलेस हो...इत्ती जल्दी मान गयी...मैं तो कविता लिख के लाया था तुम्हारे लिए'
छवि ने हाथ बढ़ा कर झपटा था...डेढ़ बाई दो फीट के कागज़ में ब्रश के स्ट्रोक्स उसके चेहरे को और भी खूबसूरत बना रहे थे...कागज़ के नीचे, दायीं तरफ लिखा हुआ था...Marry me, will you?
'तुम भी न असित, ठीक से प्रोपोज करना भी नहीं आता...विल यू मैरी मी कहते हैं हैं न...'
'तुम्हें कौन सा ठीक से एक्सेप्ट करना आता है...तुम्हें बस एक शब्द कहना होता है 'यस' और तुम इतना भाषण दे रही हो'
'हे भगवान! कौन करेगा तुमसे शादी!'
'इस जनम में तो तुम करोगी...चलो हाथ बढ़ाओ...'और असित एक घुटने पर नीचे बैठ चुका था...क्लास्सिक प्रपोजल स्टाइल में.
-----------
दोनों की शादी को पच्चीस साल हो गए...अब भी झगड़ा करते हैं दोनों जबकि लड़की को रूठना नहीं आता और लड़के को मनाना...बच्चे दोनों में सुलह करवाते हैं...
-----------


जिंदगी में बहुत सी उलझनें हैं...कुछ तो खुद की हैं...कुछ हम बना लेते हैं...पर प्यार जैसी चीज़ में सीधे सिंपल सादगी से कहने से अच्छा कुछ नहीं होता. आज बस इतनी सी कहानी...कि आप यकीन करो सको कि इस बड़ी बेरहम सी दुनिया में लव की हैप्पी एंडिंग भी होती है.



Now that you know I believe in happy endings...will you confess that you love me?

30 December, 2011

बात बस इतनी है जानां...


बड़ी ठहरी हुयी सी दोपहर थी...और ऐसी दोपहर मेरी जिंदगी में सदियों बाद आई थी...ये किन्ही दो लम्हों के बीच का पल नहीं थी...यहाँ कहीं से भाग के शरणार्थियों की तरह नहीं आए थे, यहाँ से किसी रेस की आखिरी लकीर तक जल्दी पहुँचने के लिए दौड़ना नहीं था। ये एक दोपहर आइसोलेशन में थी...इसमें आगे की जिंदगी का कुछ नहीं था...इसमें पीछे की जिंदगी का छूटा हुआ कुछ नहीं था। बस एक दोपहर थी...ठहरी हुयी...बहुत दिन बाद बेचैनियों को आराम आया था।

जाड़ों का इतना खूबसूरत दिन बहुत दिन बाद किस्मत को अलोट हुआ था...धूप की ओर पीठ करके बैठी थी और चेहरे पर थोड़ी धूप आ रही थी...सर पर शॉल था जिससे रोशनी थोड़ी तिरछी होकर आँखों पर पड़ रही थी...घर के आँगन में दादी सूप में लेकर चूड़ा फटक रही थी...सूप फटकने में एक लय है जो सालों साल नहीं बदली है...ये लय मुझे हमेशा से बहुत मोहित करती है। दादी के चेहरे पर बहुत सी झुर्रियां हैं, पर इन सारी झुर्रियों में उसका चेहरा फूल की तरह खिला और खूबसूरत दिखता है। कहते हैं कि बुढ़ापे में आपका चेहरा आपकी जिंदगी का आईना होता है...उसके चेहरे से पता चलता है कि उसने एक निश्छल और सुखी जीवन जिया है। आँखों के पास की झुर्रियां उसकी हंसी को और कोमल कर देती हैं...दादी चूड़ा फटकते हुये मुझे एक पुराने गीत का मतलब भी समझाते जा रही है...एक गाँव में ननद भौजाई एक दूसरे को उलाहना देती हैं कि बैना पूरे गाँव को बांटा री ननदिया खाली मेरे घर नहीं भेजा...लेकिन भाभी जानती है कि ननद के मन में कोई खोट नहीं है इसलिए हंस हंस के ताने मार रही है। दोनों के प्रेम में पगा ये गीत दादी गाती भी जाती है बहुत फीके सुरों में और आगे समझाती भी जाती है।

यूं मेरे दिन अक्सर ये सोचते कटते है कि परदेसी तुम जो अभी मेरे पास होते तो क्या होता...मगर आज मैं पहली बार वाकई निश्चिंत हूँ कि अच्छा है जो तुम मेरे पास नहीं हो अभी...इस वक़्त...मम्मी ने उन के गोले बनाने के लिए लच्छी दी है...जैसे ये लच्छी है वैसे ही पृथ्वी की धुरी और बनता हुआ गोला हुआ धरती...पहले तीन उँगलियों में फंसा कर गोले के बीच का हिस्सा बनाती हूँ...फिर उसे घुमा घुमा कर बाकी लच्छी लपेटती हूँ। गोला हर बार घूमने में बड़ा होता जाता है। ऐसे ही मेरे ख्याल तुम्हारे आसपास घूमते रहते हैं और हर बार जब मैं तुम्हें सोचती हूँ...आँख से आँसू का एक कतरा उतरता है और दिल पर एक परत तुम्हारे याद की चढ़ती है। गोला बड़े अहतियात से बनाना होता है...न ज्यादा सख्त न ज्यादा नर्म...गोया तुम्हें सोचना ही हो। जो पूरी डूब गयी तो बहुत मुमकिन है कि सांस लेना भूल जाऊँ...तुमसे प्यार करते रहने के लिए जिंदा रहना भी तो जरूरी है। याद बहुत करीने से कर रही हूँ...बहुत सलीके से।

हाँ, तो मैं कह रही थी कि अच्छा हुआ जो तुम मेरे पास नहीं हो अभी। आज शाम कुछ बरतुहार आने वाले हैं भैया के लिए...घर की पहली शादी है इसलिए सब उल्लासित और उत्साहित हैं...दादी खुद से खेत का उगा खुशबू वाला चूड़ा फटक रही है, उसको मेरी बाकी चाचियों पर भरोसा नहीं है। दादी दोपहर होते ही शुरू हो गयी है...उसकी लयबद्ध उँगलियों की थाप मुझे लोरी सी लग रही है। तुलसी चौरा की पुताई भी कल ही हुयी है...गेरुआ रंग एकदम टहक रहा है अभी की धूप में। तुलसी जी भी मुसकुराती सी लग रही हैं। हनुमान जी ध्वजा के ऊपर ड्यूटी पर हैं...बरतुहार आते ही इत्तला देंगे जल्दी से।

दोपहर का सूरज पश्चिम की ओर ढलक गया है अब...शॉल भी एक कंधे पर हल्की सी पड़ी हुयी है...जैसे तुम सड़क पर साथ चलते चलते बेखयाली में मेरे कंधे पर हल्के से हाथ रख देते थे...ऊन का गोला पूरा हो गया है। मम्मी ने दबा कर देखा है...हल्का नर्म, हल्का ठोस...वो खुश है कि मैंने अच्छे से गोला बनाया है, उसे अब स्वेटर बुनने में कोई दिक्कत नहीं होगी। फिरोजी रंग की ऊन है...मेरी पसंदीदा। उसे हमेशा इस बात की चिंता रहती थी कि मुझे कोई भी काम सलीके से करना नहीं आएगा तो मेरे ससुराल वाले हमेशा ताने मारेंगे कि मायके में कुछ सीख के नहीं आई है, वो अब भी मेरी छोटी छोटी चीजों से सलीके से करने पर खुश हो जाती है।

आँगन में बच्चे गुड़िया से खेल रहे हैं...दीदी ने खुद बनाई है...मेरी दोनों बेटियों को ये गुड़िया उनकी बार्बी से ज्यादा अच्छी लगी है...वो जिद में लगी हैं कि इनको शादी करके शहर में बसना जरूरी है इसलिए वो उन्हें अपने साथ ले जाएँगे और स्कूल में कुछ जरूरी चीज़ें भी सीखा देंगी। उन्हें देखते हुये मैं एक पल को भूल जाती हूँ कि तुम मेरी याद की देहरी पर खड़े अंदर आने की इजाजत मांग रहे हो। उनपर बहुत लाड़ आता है और मैं उन्हें भींच कर बाँहों में भर लेती हूँ...वो चीख कर भागती हैं और आँगन में तुलसी चौरा के इर्द गिर्द गोल चक्कर काटने लगती हैं।

हवा में तिल कूटने की गंध है और फीकी सी गुड़हल और कनेल की भी...हालांकि चीरामीरा के फूलों में खुशबू नहीं होती पर उनका होना हवा में गंध सा ही तिरता है...मैं जानती हूँ कि घर के तरफ की पगडंडी में गहरे गुलाबी चीरामीरा लगे हुये हैं और गुहाल में बहुत से कनेल इसलिए मुझे हवा में उनकी मिलीजुली गंध आती है। दोपहर के इस वक़्त कहीं कोई शोर नहीं होता...जैसे टीवी पर प्रोग्राम खत्म होने पर एक चुप्पी पसरती है...लोग अनमने से ऊंघ रहे हैं...गाय अपनी पूँछ से मक्खी उड़ा रही है...कुएँ में बाल्टी जाने का खड़खड़ शोर है...और सारी आवाज़ों में बहुत सी चूड़ियों के खनकने की आवाज़ है...जैसे ये पहर खास गाँव की औरतों का है...हँसती, बोलती, गातीं...आँचल को दाँत के कोने में दबाये हुये दुनिया में सब सुंदर और सरल करने की उम्मीद जगाती मेरे गाँव की खुशमिजाज़ औरतें। साँवली, हँसती आँखों वाली...जिनका सारा जीवन इस गाँव में ही कटेगा और जिनकी पूरी दुनिया बस ये कुछ लोग हैं। पर ये छोटी सी दुनिया इनके होने से कितनी कितनी ज्यादा खूबसूरत है।


मैं अपने घर, दफ्तर, बच्चों, लिखने में थोड़ी थोड़ी बंटी हुयी सोचती हूँ जिंदगी इतनी आसान होती तो कितना बेहतर था...
---------------
पर तुम भी जानते हो कि ये सारी बातें झूठ हैं...दादी को गए कितने साल बीत गए, माँ भी अब बहुत दिन से मेरे साथ नहीं है...तुम भी शायद कभी नहीं मिलोगे मुझसे...बच्चे मेरे हैं नहीं...और गाँव की ऐसी कोई सच तस्वीर नहीं बन सकती...तो बात है क्या?
----------------
बात बस इतनी है जानां...कि आज पूरी पूरी दोपहर जाड़ों में धूप तापते हुये सिर्फ तुम्हें याद किया...दोपहर बेहद बेहद खूबसूरत गुजरी...पर तुम ही बताओ जो एक लाइन में बस इतना कहती तो तुम सुनते भी?

19 December, 2011

जैसे तुमसे प्यार करना...

हम अनंत के पीछे क्यूँ भागते हैं...भूत और भविष्य की कितनी अनिश्चितताएं हैं उसमें. बीते हुए कालखंड में से कौन सा लम्हा हमारे पीछे अभिमंत्रित सा हर अनुष्ठान में मौजूद रहेगा मालूम नहीं. वर्त्तमान जीते हुए हम कहाँ जान पाते हैं कि इसमें से कौन सा लम्हा यादों के लिए सहेजा जाएगा और कौन भूलने की अंतहीन गलियों में विलुप्त हो जाएगा. वर्तमान को जीते हुए भी हम कहाँ जानते हैं कि हमारा अतीत कैसा होने वाला है...फिर हम यादों को इतने करीने से लगाने के लिए इतने जतन क्यूँ करते हैं. आप कितना भी अच्छा कैटालोग कर लो, ये जानना नामुमकिन ही है कि जब बीते ज़ख्म उधेड़े जायेंगे तो दर्द कहाँ से उभरेगा.

याद की शक्ल कभी पहचानी नहीं होती...किस लम्हे में किसकी याद आये इसका भी कोई गणितीय फ़ॉर्मूला नहीं है...तो फिर क्यूँ मैं तुमसे जुड़ी रहना चाहती हों...हिचकियों से, शाम के रंग से, हर्फों से या कि एकदम ही सच कहूँ तो मन से...मेरा मन तुमसे इतने लम्बे अंतराल का बंधन क्यूँ मांगता है.
----
तुम उन दरवाजों को क्यूँ खटखटाती हो जिसमें बाहर से ताला लगा हो...तुम्हें दिख रहा है कि वहां कोई नहीं है, वहां कभी कोई नहीं आएगा...वहाँ से वो जा चुका है फिर भी नहीं मानती...प्यार की मासूमियत के दिन ढल चुके हैं री लड़की पर तुमसे कौन प्यार करेगा कि तुम्हें तो खेलना भी नहीं आता...कितना भी तुम्हें इस खेल के नियम बता दूं तुम हमेशा भूल जाती हो और गलत इंसान से प्यार कर बैठती हो. मगर ओ काली आँखों वाली लड़की सच बताओ क्या तुमने खामोश रातों में बैठ कर वाकई कभी नहीं सोचा है कि शायद तुम ही गलत लड़की हो. तुम वो हो ही नहीं जिससे किसी को भी प्यार हो!

तुझे किसी ने बताया नहीं कि देवताओं के प्रेम निवेदन हमेशा अस्वीकृत कर देने चाहिए? तुझे क्यूँ लगता है कि किसी को तुझसे प्यार होगा...रूप की क्या कमी है स्वर्ग में...रम्भा, मेनका, उर्वशी...एक से एक अप्सराएं हैं...उन्हें नृत्य भी आता है और संगीत विधा भी. स्त्री के सारे गुण उनमें हैं...न वे कभी बूढी होयेंगी, न कभी उनका आकर्षण कम होगा...जो देवता ऐसी अप्सराओं के साथ रहते हैं उन्हें धरती की एक क्षणभंगुर नारी से क्यूँकर प्रेम होगा! ये आकर्षण है...जो उनके पास नहीं है उसका क्षणिक आकर्षण मात्र...तू इसमें अजर, अमर प्रेम की तलाश क्यूँ कर रही है.
-----
रात रात जागना...दिन दिन परेशां रहना...ये तो होना ही था...तुम्हें क्या लगता था इश्क बड़ी खूबसूरत चीज़ है...अब देखो...अब जियो...की सांस अटकी हुयी है न...अच्छा लगा अब? और किसी से कहोगी की टूट कर प्यार करो...

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...