उदासियाँ बहुत गहरी हो जायें
तो अपने अन्दर लौटो
वो तुम ही हो
जिसके अन्दर है
रौशनी का अजस्र श्रोत
वहीं से निकलती है
मुस्कुराहटों की बारामासी नदी
तुम्हारे पैरों की थिरकन
हाँ वहीं,
ठहरी हुयी है
असंख्य दिलों की धड़कन
एक गोल चक्कर काटो
देखो न,
दुनिया घूम रही है न
तुम्हारे ही चारों तरफ?
देखो अपनी आँखें
इनमें कितना प्यार है न?
तुम्हारे खुद के लिए भी
सच्ची में री!
वो जो फूल खिला है
गमले में
उसका गहरा लाल रंग
तुम्हारी जिजीविषा सा है
अरे सूरज का सुनहरा पीलापन
तुम्हारी लौंग से छिटकता है
चाँद की सारी चांदनी
तुम्हारी गोरी बाँहों से उगती है
तुम्हारी अंजुरी से सिंचती है
खुशियों की सारी फसलें
गुनगुनाती हुयी बहा करो
मुस्कुराती हुयी रहा करो
ये कायनात तुमसे खूबसूरत नहीं
थोड़ा इतरा लो
खुदा नहीं बक्श्ता
सबको इतनी खूबसूरती
न इतना कोई होता है
इश्क से इतना लबरेज़
और पता है
मैं सबसे ज्यादा तुमसे प्यार करती हूँ!
loving yourself...
ReplyDeletebest way to fall in love <3
बहुत सुंदर ....
ReplyDeleteमुस्कुराहटों की बारामासी नदी
ReplyDeleteजय हो...
:)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव्।
ReplyDeletequoting your words itself with my best wishes entwined in them...
ReplyDeleteयूँ ही....
"गुनगुनाती हुयी बहा करो
मुस्कुराती हुयी रहा करो"
:)
भावो का समंदर कहूँ , कि कहूँ गंगोत्री. अब तक भावों की गंगा का ग्लेशियर पिघला होगा कितना
ReplyDeleteसुन्दर भाव..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
वाह...
ReplyDeleteबेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,
ReplyDeleteवो तुम ही हो
ReplyDeleteजिसके अन्दर है
रौशनी का अजस्र श्रोत
दर्शन और श्रृंगार से भरपूर रचना ......जैसे विदेह राज जनक की आत्मा ही पूजा में आ बसी हो इन क्षणों में .....
उफ्फ़!!
ReplyDeleteअपना होने और उससे प्यार व् स्वीकार का भाव..!
ReplyDeleteसुन्दर.
ReplyDeleteexcellent.......
ReplyDeleteI feel like learning it by heart......!!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
ReplyDeleteसंवरते है वो देखकर आईने को ,
ReplyDeleteजब संवर जाए तो, आईना देखता है |
बहुत ही बढ़िया है जी !!!!
ReplyDeletevery nyc..
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteसुन्दर कविता !सरगार्वित ! बधाई !
ReplyDeleteन इतना कोई होता है
ReplyDeleteइश्क से इतना लबरेज़
और पता है
मैं सबसे ज्यादा तुमसे प्यार करती हूँ!
बहुत सुन्दर रचना .रचना संसार की बुनावट और भी ज्यादा हसीन सपनों सी ,कलकल बहती नदी सी .
वाह ...बेहद सुन्दर रचना है ...
ReplyDeleteकाबिल-ए-तारीफ..
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