उसके शहर में
बहुत करीने से गिरते थे पत्ते भी
अक्सर सोचता हूँ
दुनिया में कुछ है भी
जो उसकी तरह बिखरा हुआ है
या कि बेतरतीब
सूखे पत्तों पर बाइक उड़ाती लड़की
मुझसे यूँ प्यार न करो
अभी मेरा दिल हरा ही है
अभी इंतज़ार अधूरा बाकी है
तुम तो मौसम की तरह गुज़र जाओगी
पर मैं कतार में कैसे बिखेरूँगा सूखे पत्ते
कि तुम कैसे पहचानोगी वापसी की राह?
तुम्हारी तसवीरें देख कर एक ही बात सोचता हूँ
तुम वाकई करोगी क्या मुझसे प्यार...ताउम्र?
या कि तुम्हें भी झूठे वादे करने
और झूठी कसमें खाने में लुत्फ़ आता है?
(एक लड़की थी...एक नंबर की झूठी...और वैसी ही दिलफरेब...एक शहर था...जिसे उस लड़की से प्यार हो गया था...एक लड़का था जिसे वो शहर दरवाजे पर रोक लेता था...और इश्क था...एक नंबर का बदमाश...ये इन तीनो(चारों?) की कहानी है. हाँ, इस कहानी के सारे पात्र असली हैं...बस उनका पता नहीं मिलता)
बेहद खूबसूरत्।
ReplyDeleteकमाल है इश्क सामने है .. और लोग हैं की पहचानते नहीं और हाँ ऐसे शहरों के नाम नहीं हुआ करते बस किस्से होते हैं जो गूंजते रहते हैं कई बरसों तक .....
ReplyDeleteतुम्हारा लिखा पढने के लिए ही आती हूँ अब तो में नेट पर .. क्या तुमसे कभी मिलना होगा सखी
मेरी पूरी wall तुम्हारी लिखी lines से भरी रहती है .. love ur writings
वाकई आपकी लेखन शैली बहुत ही प्रभावशाली है।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteगहरे भाव।
बड़ी जानी पहचानी सी कहानी है, सबको अपने आप में ढूढ़नी होती है....थोड़ी थोड़ी...धीरे धीरे...
ReplyDeletewoww...awesome...
ReplyDeletekhoobsoorat!
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता दिल को सलीके से छू गयी |
ReplyDeleteAchchhi kavita.
ReplyDeletebitter and beautiful !
ReplyDeletebahut pyari si rachna...
ReplyDeleteहवा ने एक दिन वो पत्ते उड़ा देने कि कोशिश की, वो लड़की दीवार बन खड़ी हो गयी, फिर हवा का बस भी कहाँ चला...और फिर जब वो लड़का शहर की हद तक पहुंचा तो हवा बैठी सुबुक रही थी, लड़की के प्यार से उसकी पहली मुलाकात थी वो !!!!
ReplyDeleteLapata ganj..................live
ReplyDelete.
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aur ha aapka facebook pata, pata
karna chahite hai..............bata digiyega
jara............
बहुत खुबसूरत अंदाज है आपकी अभिव्यक्ति का...
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
हार्दिक बधाई..
कुछ दिन से व्यस्त था इस गली में आना नहीं हुआ ...अब आया हूँ तो धीरे-धीरे तुम्हारी सारी पोस्ट्स इन बूढ़ी आँखों से छूने की कोशिश करूंगा.
ReplyDeleteअसली पात्रों का खोया हुआ पता हर किसी के पास है ...बस कोई बताना नहीं चाहता ...सब अनजान बनने का नाटक करते हैं ......याकि उन्हें यूँ बताना नहीं आता ...शायद गूंगे होंगे .....
खूबसूरत अहसास जगाती कविता।
ReplyDelete...
बसंत में याद आती है
वो बाइक उड़ाती लड़की
जब झरते हैं
दरख्तों से सूखे पत्ते
हाय!
भुला दी जाती है
फागुन की रंगीनियों के साथ
...
pooja tumhe padhne ka lag hi ahsaas hai
ReplyDeleteकल 30/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!