बालों को दुपट्टे में लपेट कर बाँधा
और दिन भर की पूरे घर की साफ़ सफाई
पंखों पर के जाले हटाये
डांट के भगाई किताबों पर की सारी धूल
पोछा लगाया सारे कोनों में
तह कर के रखे अलमारियों में कपड़े
फेंकने को थीं
बासी कविताएं
पुरानी कलमें, सूखी दवातें
मुरझाये फूल, चोकलेट रैपर, बुकमार्क
उसकी ब्लैक एंड वाईट तस्वीर
बहुत सारी कॉफी शॉप की बिल्स
पेपर नैपकिंस पर लिखी आधी अधूरी पंक्तियाँ
इधर उधर पड़ी डायरियों में उसका सिग्नेचर
कमोबेश हर चादर में अटकी हुयी मिलती थी
उसकी कोई छूटी हुयी अंगडाई
रूमाल में उसकी उँगलियों के निशान
वाशिंग पावडर से तेज थी
उसके आफ्टरशेव की खुशबू
शू रैक में रह गयीं थी
उसकी फेवरिट रेड चप्पलें
बाथरूम में तौलिया, टूथब्रश
भाप उठते आईने में उसका अक्स
भीगे बालों को झटकता हुआ
शाम होते वो बेहद थक गयी
कॉफी के कप पर ठहरे थे
वोही संगदिल बोसे
संगमरमर के चमकीले फर्श पर
और भी साफ़ दिखने लगी थीं
काफ़िर आँखें
तनहा और उदास लड़की ने
आखिर जला ही ली
उसकी छूटी हुयी आखिरी सिगरेट
धुएं के टूटे छल्लों में
बनता रहा एक ही सवाल
इतने गुस्से में गया है
जाने कब वापस आएगा!
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हालांकि इतना वक़्त काटने के बजाये जान दी जा सकती थी...और इंतज़ार का पासा उसकी तरफ फेंका जा सकता था...रेतघड़ी को उलट कर 'योर टर्न' कहा जा सकता था. 'आई हेट यू' जैसा कोई मेसेज किया जा सकता था...चुप रहने की कसम को निभाया जा सकता था...मगर क्या है न कि वो अपने सीने से लगा कर माथे पर थपकियाँ देते हुए 'शश्शश्श्श....' जैसा कुछ नहीं कह सकता...और लड़की इतनी बुद्धू है कि उसे बस इतना चाहिए पर वो सारे झगड़ों के बाद भी उसे बताती नहीं...हाँ आजकल उसने एक नया शिगूफा पाला है...
बेआवाज़ रोने का...
काम कर लेने से क्रोध और पीड़ा दोनों ही कम हो जाती है, नींद तो कभी धोखा नहीं देती, अगला सूरज उगने तक सब सम्हाल लेती है।
ReplyDeleteहाँ आजकल उसने एक नया शिगूफा पाला है...
ReplyDeleteबेआवाज़ रोने का... kamal ki andaajon-bayaan hai aapki...
बहुत वक्त से पढ़ रही हूँ..तुम्हें.गज़ब का लिखती हूँ.तुम्हारी शुरू से लेकर आखिर तक की हरेक पोस्ट मेरी आँखों से गुजरी है...
ReplyDeleteसच,मज़ा आ जाता है...तुम्हारा लिखा पढ़ कर.कितनी ही बार लगा कि यही तो मेरे साथ हुआ है..ऐसा ही तो मुझे महसूस होता है...यही तो मुझे भी कहना था .................तुम सब लफ़्ज़ों में बाँध देती हो.
इंतज़ार का पासा........क्या बात है जी .
बिलकुल नए कन्टेन्ट के साथ लिखी उम्दा कविता |
ReplyDeleteपूजा जी, आपका अंदाजे बयां सचमुच हटके है।
ReplyDeleteदिस इस योर टाइप, ओनली।
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..की-बोर्ड वाली औरतें।
मूस जी मुस्टंडा...
संगमरमर के चमकीले फर्श पर
ReplyDeleteऔर भी साफ़ दिखने लगी थीं
काफ़िर आँखें
saaf hriday se nikale shabd ....nishabd kar rahe hain ....
marmsparshi lekhan ...
उफ़ क्या बहाव है भावो का.....
ReplyDeleteखुबसूरत!
भावनाओ के बंजर में भी फूल खिलते है
एक सहरा तो अपना बना के देखो!
kunwar ji,
लेकिन उस जिद्दी लड़की के बाल अब भी खुले हुए है..
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