24 February, 2012

तुम. मेरे. हो.


तुम्हारे होने से
रेत में खिलती है
बोगनविलिया

तुम्हारे साथ ही
आता है वसंत
और महुआ भी 

तुम्हारी जेब में
मेरी खुशियों की
टाफियां भरी हैं

तुम खोलो मुट्ठी
तुम्हारी लकीरों में
है मेरी मुस्कान 

तुम कहते हो
तुम अच्छी हो
विस्की से भी 

मैं चाहती हूँ
रो दूं अब
काँधे पर. बस 
---

बौराया वसंत मुझे जाने कहाँ कहाँ ढूँढता है...सूखे पत्तों की पीछे झाँकने लगे हैं नए पत्ते...धीमा हो गया है सड़क पर गिरे पत्तों का शोर...हवा तुम्हारा नाम किसी कोटर में भूल आई है...मेरी बाइक में लग गए हैं पंख और मेरा शहर अपने रकीब को सलाम भेजता है...


अब आ भी जाओ कि इस शहर में इससे खूबसूरत मौसम नहीं आता!

12 comments:

  1. मन से निकली ...सुंदर मनुहार ....

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  2. तुम्हारी जेब में
    मेरी खुशियों की
    टाफियां भरी हैं

    इन्हीं टाफियों से बिगड़ती आदतें...

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  3. मैंने कुछ दिन से ही आपको पढऩा शुरू किया है। वाकई गजब का लेखन है आपका। अद्भुत।

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  4. क्या बात है... बहुत खूब...
    हार्दिक बधाई...

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  5. बहुत ही खूबसूरत भावपूर्ण सयोजन बधाई

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  6. प्रेम की सुंदर और सहज अभिव्यक्ति |

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  7. borae basant ka asr sahi samay par ho raha hai....

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  8. तेरा शहर कुछ लफ्ज़ दूर है बस, कुछ लफ्ज़!!!!

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