तुम्हारे होने से
रेत में खिलती है
बोगनविलिया
तुम्हारे साथ ही
आता है वसंत
और महुआ भी
तुम्हारी जेब में
मेरी खुशियों की
टाफियां भरी हैं
तुम खोलो मुट्ठी
तुम्हारी लकीरों में
है मेरी मुस्कान
तुम कहते हो
तुम अच्छी हो
विस्की से भी
मैं चाहती हूँ
रो दूं अब
काँधे पर. बस
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बौराया वसंत मुझे जाने कहाँ कहाँ ढूँढता है...सूखे पत्तों की पीछे झाँकने लगे हैं नए पत्ते...धीमा हो गया है सड़क पर गिरे पत्तों का शोर...हवा तुम्हारा नाम किसी कोटर में भूल आई है...मेरी बाइक में लग गए हैं पंख और मेरा शहर अपने रकीब को सलाम भेजता है...
अब आ भी जाओ कि इस शहर में इससे खूबसूरत मौसम नहीं आता!
मन से निकली ...सुंदर मनुहार ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव
ReplyDeleteतुम्हारी जेब में
ReplyDeleteमेरी खुशियों की
टाफियां भरी हैं
इन्हीं टाफियों से बिगड़ती आदतें...
बेहतरीन भाव।
ReplyDeleteमैंने कुछ दिन से ही आपको पढऩा शुरू किया है। वाकई गजब का लेखन है आपका। अद्भुत।
ReplyDeleteawesome....
ReplyDeletebahut pyari si kavita
ReplyDeleteक्या बात है... बहुत खूब...
ReplyDeleteहार्दिक बधाई...
बहुत ही खूबसूरत भावपूर्ण सयोजन बधाई
ReplyDeleteप्रेम की सुंदर और सहज अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteborae basant ka asr sahi samay par ho raha hai....
ReplyDeleteतेरा शहर कुछ लफ्ज़ दूर है बस, कुछ लफ्ज़!!!!
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