23 January, 2019

उदासियों का इतना ख़ूबसूरत घर कहीं भी और नहीं।


महबूब की आवाज़
कपूर की ख़ुशबू थी।
मन को पूजाघर कर देती। 
लड़की ने चाहा 
कि काट दे दो रिंग के बाद फ़ोन
लेकिन उसके पास ज़ब्त बहुत कम था
और प्यार बहुत ज़्यादा।
जब न हो सकी बात, उसने जाना
प्रेम इतना भी ज़रूरी नहीं। 
किसी भी चीज़ से
भरा जा सकता है ख़ालीपन,
उदासी से भी।
***
ख़ानाबदोश उदासियों ने डेरा डाल दिया
लड़की के दिल की ख़ाली ज़मीन पर
और वादा किया कि जिस दिन महबूब आ जाएगा
वे किसी और ठिकाने चली जाएँगी। 
इंतज़ार में ख़ाली बैठी वे क्या करतीं
उदासियों ने पक्के मकान डालने शुरू किए। 
कई कई साल महबूब नहीं आया। 
नक्काशीदार मेहराब वाली हवेलियाँ
लकड़ी के चौखट, चाँदी के दरवाज़े
लोकगीतों में दर्ज है कि
उदासियों का इतना ख़ूबसूरत घर कहीं भी और नहीं।
***



लड़की ने अपनी डेस्क पर 
आँसुओं भर नमी का प्यासा
नन्हा सा हवा का पौधा रखा था।

मिट्टी नहीं माँगता, जड़ें नहीं उगाता
रेत में पड़ा रहता बेपरवाह
मुस्कुराता कभी कभी। 
लड़की उसे नाम नहीं देती
पौधा उसे नाम देता
जानां।

1 comment:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.01.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3226 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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