लेमन येलो। उसका सबसे पसंदीदा रंग था और हल्के हरे किनार की साड़ी तो उसपर इतनी फबती थी कि बस। लिनेन थोड़ा गर्म होता था, जाड़ों के लिए एकदम सही। उसके झुमकों में छोटे छोटे घुँघरू थे जो उसकी हँसी के साथ झूलते खिलखिला उठते थे। दाएँ हाथ में ब्रेसलेट और बाएँ में घड़ी। धुले बालों में शैम्पू की गंध अभी भी थी और कलाइयों पर इत्र।
यूँ तो सपनों के शहर में वो कई लोगों को जानती थी, लेकिन दोस्त कहने में हिचकती थी। कुछ ऐसे लोग थे, जिन पर वो आँख बंद करके भरोसा कर सकती थी। इनके साथ उसका कभी कोई अफ़ेयर नहीं रहा, उनके बीच कभी प्रेम भरी बातें नहीं हुयीं। क़समें वादे नहीं हुए। ना दिल जुड़ा ना टूटने की कोई जुगत थी।
उस लड़के से पहली बार वो जयपुर में मिली थी। उसने कहा था, मेरे लिए दो पैकेट क्लासिक माइल्ड लेते आना प्लीज़। लड़की ने दो पैकेट सिगरेट ही नहीं, माचिस भी ख़रीद दी थी। वो जानती थी माचिसें खो जाती हैं। वो पहली बार में ही बहुत प्यारा लगा था। कोई बहुत अपना।
उनके बीच दो भाषाओं के शब्द रहते थे। अंग्रेज़ी और हिंदी। और एक खिड़की खुली रहती थी स्काइप विडीओ कॉल की। वे दो दूर के शहरों में होते थे लेकिन एक दूसरे के दिन में टहलते बतियाते रहते थे। लड़की कभी कुछ पढ़ रही होती, कभी गुनगुना रही होती, कभी धूप में कोई ग़ज़ल सुन रही होती। लड़का कई किताबों के बीच होता और अक्सर ही कुछ पढ़ रहा होता। लड़की उसके कपड़े कम और उसकी किताबों के जिल्द ज़्यादा पहचानती थी। लड़का दो भाषाओं के बीच कभी पुल बना होता कभी नदी। लड़की बस कुछ आवारा शब्दों भर होती। कभी काग़ज़ की नाव होती तो कभी धाराओं का गीत।
वे दूसरी बार इक लाइब्रेरी में मिले थे। ये उस लड़के की पसंदीदा जगह थी। लड़की इतनी ख़ुश थी किताबों के बीच कि जैसे जाड़े का मौसम बैंगलोर चला आया हो। उसने कुछ कविताएँ पढ़ी और इक नए कवि को डिस्कवर किया। लड़के ने उसे दो किताबें इशु करवा दीं, अपने लाइब्रेरी कार्ड पर।
इस बार वो लड़के के घर गयी थी। थक गयी थी बहुत। रात को नींद ठीक से नहीं आ रही थी इन दिनों। उसने लड़के का ख़ूब सुंदर घर देखा। छत पर सूखता धूप का टुकड़ा। कमरे में रखी किताबें। लिखने का टेबल। फ़िल्मों के कवर। लड़के ने सिगरेट पीनी बंद कर दी थी। लड़की उसके घर में सिगरेट पीना चाहती थी लेकिन वहाँ कोई ऐश ट्रे नहीं था, इसलिए पी नहीं सकती थी। बालकनी में सिगरेट पीती तो पड़ोसियों को लगता उसके घर में बुरी लड़कियाँ आती हैं। पर लड़का तो अच्छा था, इसलिए उसने सिगरेट नहीं पी। लड़के को तैय्यार होना बाक़ी था। उसने पानी गर्म करने को इमर्शन रॉड लगा दिया था। लड़की थकी थी बहुत। बेड पर बाएँ करवट लेकर थोड़ी देर को आँखें बंद कर लीं। जाड़े के दिन थे। बेड पर खुला हुआ ही कम्बल था। लड़का उधर से गुज़रा, उसने पूछा, ‘मैं ये कम्बल तुम्हें ओढ़ा दूँ’। उसके पूछने में बहुत कोमलता थी। अपनत्व था। दुलार था। ठहराव था। लड़की ने सर हिला कर मना किया। उन्हूँ, ठंड नहीं लग रही इतनी। लेकिन ठंड थी पर लड़की ने कम्बल इसलिए नहीं ओढ़ा था कि कम्बल में उसकी ख़ुशबू न रह जाए और लड़के को परेशान न करे। ये लड़का उसके लिए बहुत प्रेशियस था, बेशक़ीमत। उसे खोना नहीं चाहती थी।
पानी गर्म होने में वक़्त लगता। लड़का सामने फ़र्श पर बिछी दरी पर बैठा और उसने कविताओं की एक किताब खोली। वो कविता पढ़ रहा था। लड़की हल्की नींद में थी। लड़के की आवाज़ नींद के बीच कहीं थी। कविता बहुत सुंदर थी, किसी सपने जैसी। लड़की को लगा, इसे घर कहते हैं।
उसका चाय पीने को दिल किया। कमरे के बाहर लड़के के चप्पल थे। लड़की उन्हें पहन कर किचन में चली गयी। चाय, चीनी, निम्बू, सस्पेन, छन्ना… सब मिल गया उसे। वहाँ सुंदर चाय के कप भी थे लेकिन लड़की ने एक काँच का ग्लास लिया और नाप के उसके हिसाब से ही चाय बनायी। निम्बू की चाय, सुनहली। ठीक तब तक लड़का भी नहा के, तैयार होकर आ गया था। ब्लैक सूट और काली ही शर्ट। बहुत ही ख़ूबसूरत फ़िटिंग। उसे किचन में एक ग्लास चाय छाँकते देखा तो उलाहना देते हुए बोला, ‘कैसी लड़की हो जी, अकेले अकेले एक चाय कौन बना के पीता है!’। लड़की मुस्कुराई बस, ’एक ही ग्लास में बनाए हैं दोनों के लिए। नहीं तो इतना चाय है, दो कप में छान देने में क्या था।’ एक छोटा सा गलियारा था जिसमें आइना टंगा था। लकड़ी के बॉर्डर वाला हाफ़ ग्लास। वे दोनों उधर आए और लड़के ने ख़ुद को आइने में देखा। लड़की ने ज़रा सा उसका कॉलर ठीक किया, सूट के कॉलर में मुड़ा हुआ। काँधे पर ज़रा सा हाथ से सलवट ठीक की। इतना सा थोड़े से स्लो मोशन में हुआ कि लड़की को एकदम ठीक ठीक २४ फ़्रेम में बँट के याद रह गया सब कुछ ही। वे एक मिनट उस आइने में ठहर गए।
चाय बहुत अच्छी बनी थी। बाँट के पीने में मीठी लगी थोड़ी ज़्यादा। उसने ऐसा कभी नहीं किया था कि किसी के घर गयी और बिना इजाज़त किचन में जा कर चाय बना ली हो। कभी कभी हक़ माँगना नहीं पड़ता है। महसूस होता है। वे साथ में बहुत ख़ुश थे। ये ख़ुशी दोनों के चेहरे पर रेफ़्लेक्ट हो रही थी। कि उन्हें इतना ही चाहिए था। एक दूसरे के साथ वक़्त। इतना सा ही क़रीब होना। इतना सा दूर होना भी।
***
वो नहीं जानती कि इसके बहुत दिन बाद उसे जाने क्यूँ याद आया। कि। शादी के बाद जब लड़की विदा होती है तो पीले रंग के कपड़े पहनती है। अपने घर आने के लिए।
कहानी मन के किसी कोने में जगह तलाशती है, बैठ जाने के लिए। और फिर हल्के हल्के गुदगुदाती है।
ReplyDeleteकहानी पढ़ कर कुछ अपना सा लगा,जइसे मेरी ड्रीम लिखा गई हो।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मजदूरों की आवाज़ को सादर नमन : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteदिल को छूती कहानी।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.01.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3233 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत दिन बाद उसे जाने क्यूँ याद आया। कि। शादी के बाद जब लड़की विदा होती है तो पीले रंग के कपड़े पहनती है। अपने घर आने के लिए।
ReplyDeleteबहुत-बहुत सुन्दर । बेहतरीन कहानी । शुभकामनाएं आदरणीय पूजा जी।
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ReplyDeleteकहानी तो बहुत अच्छी है लेकिन कुछ अधूरापन लगा इसमें, खैर वेबसाइट बहुत अच्छी है , बहुत सी रचनाये इसपर है जो काफी अच्छी अच्छी है , hindi भाषा में यह बहुत अच्छी ब्लॉग है |
ReplyDeleteधन्यवाद
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दिल को छूती
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