कविता हलक में अटकी है
होठों पर तुम्हारा नाम
***
मैंने अफ़सोस को अपना प्रेमी चुना है
तुम्हारा डिमोशन हो गया है
'पूर्व प्रेमी'
***
शहर, मौसम, सफ़र
मेरे पास बहुत कम मौलिक शब्द हैं
इसलिए मैं हमेशा एक नए प्रेम की तलाश में रहती हूँ
***
तुम्हें छोड़ देना
ख़यालों में ज़्यादा तकलीफ़देह था
असल ज़िंदगी में तो तुम मेरे थे ही नहीं कभी
***
मैंने तुमसे ही अलविदा कहना सीखा
ताकि तुम्हें अलविदा कह सकूँ
***
तुम वो वाली ब्लैक शर्ट पहन कर
अपनी अन्य प्रेमिकाओं से मत मिलो
प्रेम का दोहराव शोभा नहीं देता
***
तुम्हारे हाथों में सिगरेट
क़लम या ख़ंजर से भी ख़तरनाक है
तुम्हारे होठों पर झूलती सिगरेट
क़त्ल का फ़रमान देती है
तुम यूँ बेपरवाही से सिगरेट ना पिया करो, प्लीज़!
***
'तुम्हें समंदर पसंद हैं या पहाड़?'
मुझे तुम पसंद हो, जहाँ भी ले चलो।
***
'तुम्हारी क़लम मिलेगी एक मिनट के लिए?'
'मिलेगी, अपना दिल गिरवी रखते जाओ।'
कि इस बाज़ार में ख़रा सौदा कहीं नहीं।
***
आसमान से मेरा नाम मिटा कर
तसल्ली नहीं मिलेगी तुम्हें
कि दुःख की फाँस हृदय में चुभी है
***
कोई कविता आख़िरी नहीं होती, ना कोई प्रेम
हम आख़िरी साँस तक प्रेम कर सकते हैं
या हो सकते हैं कविता भी
होठों पर तुम्हारा नाम
क़लम को सिर्फ़ कहानियाँ आती हैं।
ज़ुबान को झूठ।
तुम्हें तो तरतीब से मेरा नाम लेना भी नहीं आता।
***
कविता लिखने को ठहराव चाहिए।
जो मुझमें नहीं है।
ज़ुबान को झूठ।
तुम्हें तो तरतीब से मेरा नाम लेना भी नहीं आता।
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कविता लिखने को ठहराव चाहिए।
जो मुझमें नहीं है।
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मैंने अफ़सोस को अपना प्रेमी चुना है
तुम्हारा डिमोशन हो गया है
'पूर्व प्रेमी'
***
शहर, मौसम, सफ़र
मेरे पास बहुत कम मौलिक शब्द हैं
इसलिए मैं हमेशा एक नए प्रेम की तलाश में रहती हूँ
***
तुम्हें छोड़ देना
ख़यालों में ज़्यादा तकलीफ़देह था
असल ज़िंदगी में तो तुम मेरे थे ही नहीं कभी
***
मैंने तुमसे ही अलविदा कहना सीखा
ताकि तुम्हें अलविदा कह सकूँ
***
तुम वो वाली ब्लैक शर्ट पहन कर
अपनी अन्य प्रेमिकाओं से मत मिलो
प्रेम का दोहराव शोभा नहीं देता
***
तुम्हारे हाथों में सिगरेट
क़लम या ख़ंजर से भी ख़तरनाक है
तुम्हारे होठों पर झूलती सिगरेट
क़त्ल का फ़रमान देती है
तुम यूँ बेपरवाही से सिगरेट ना पिया करो, प्लीज़!
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'तुम्हें समंदर पसंद हैं या पहाड़?'
मुझे तुम पसंद हो, जहाँ भी ले चलो।
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'तुम्हारी क़लम मिलेगी एक मिनट के लिए?'
'मिलेगी, अपना दिल गिरवी रखते जाओ।'
कि इस बाज़ार में ख़रा सौदा कहीं नहीं।
***
आसमान से मेरा नाम मिटा कर
तसल्ली नहीं मिलेगी तुम्हें
कि दुःख की फाँस हृदय में चुभी है
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कोई कविता आख़िरी नहीं होती, ना कोई प्रेम
हम आख़िरी साँस तक प्रेम कर सकते हैं
या हो सकते हैं कविता भी
"असल ज़िंदगी में तो तुम मेरे थे ही नहीं कभी"
ReplyDeleteबहुत खूब !!! बहुत ही गहरी लाईन, कह दो तो सारे दर्द से मुक्ति !!!
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31-08-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2713 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद