सुबह का कच्चा सपना। टूटा है और दुखता है।
पटना के उस किराए के मकान में कुल पाँच परिवार रहते थे। तीन तल्ला मकान था और पड़ोसी सब घरों में लगभग हमउम्र लोग थे। शाम को घरों के आगे की ज़मीन पर ख़ाली जगह में हम लोग टहला करते थे। अधिकतर लड़कियाँ ही। पर कभी कभी बाक़ी लोग भी टहल लेते थे। ये टहलते हुए बातें करने का वक़्त, मेरा सबसे पसंदीदा समय हुआ करता था।
नीचे वाले दोनों फ़्लैट के आगे बाड़ों में जंगली गुलाब के फूल लगे हुए थे। उनके खिलने पर उनकी गंध पैदल टहलते हुए भी आती थी। एक ओर रातरानी की झाड़ी थी।
आज सपने में देखा कि मैं लौट कर वही घर गयी हूँ। वैसे ही कुर्सियाँ लगा कर लोग बैठे हैं आगे के धूप वाले हिस्से में। मम्मी के साथ बात करते हुए आंटी घर के अंदर चली गयी है। कुछ खाने पीने का देखने।
मैं उनके बेटे को देखती हूँ वहाँ। वे बहुत आत्मीयता से मुझसे बात करते हैं। जैसे बहुत पुरानी, बहुत गहरी दोस्ती हो। हम वहीं आगे की जगह पर टहल रहे हैं। वे बहुत से क़िस्से सुना रहे हैं मुझे। हम हँस रहे हैं साथ में। जिस मकान में में रहती थी पहले, वहाँ दूसरे किरायेदार आ गए हैं और घर के एक हिस्से की ग्रिल पूरी खुली हुयी है, मेन गेट जैसी। मैं वहाँ अंदर जाती हूँ। वहाँ जो रहती हैं, उनकी एक छोटी सी बेटी है, उससे बात करती हूँ। वो बहुत रो रही है तो उसे चुप कराने की कोशिश करती हूँ। वहाँ की खिड़की पर मेरी विंडचाइम टंगी है जो हम उस घर में भूल गए थे। मैं उन आंटी से कहती हूँ कि ये हमारी विंडचाइम है और मैं इसे खोल के ले जा रही हूँ। और भी कोई एक चीज़ थी उस घर में जो मैं लाती हूँ लेकिन अभी मुझे याद नहीं। उस घर में मेरा कमरा बीच का था। मैं उसी कमरे में खड़ी होकर अजीब महसूस रही हूँ। जैसे वक़्त कई कई साल पीछे जा कर २००५ में ठहर गया है।
मैं बाहर आ के वापस आंटी के घर गयी हूँ। एक आध कढ़ाई की चीज़ों में वो और मम्मी व्यस्त है। कुछ खाने को बन रहा है। उनकी बेटी किचन में है। मैं बाहर आती हूँ तो उनके बेटे बाहर खड़े हैं। मैं बग़ल वाले घर की ओर देखती हूँ। वहाँ छत पर कोई खड़ी है। मैं उनसे पूछती हूँ, ये बग़ल वाले घर में जो भैय्या थे आर्मी में, मैं कई साल उनको खोजना चाहती थी, लेकिन पूरा नाम ही पता नहीं था कभी। मैं बहुत सोच रही हूँ कि जा के उनका पूरा नाम पूछ लूँ क्या। बाद में गूगल कर लूँगी। मैं सपने में ही सोच रही हूँ कि कोई किसी को कैसे बिना जाने इतने साल याद रख सकता है।
हम फिर से टहल रहे हैं और वे हँसते हुए मेरे काँधे पर हाथ धरे मेरे कान में कुछ फुसफुसा के बोल रहे हैं। मुझे लगता है कि कोई तो हमें डाँटेगा। कि उनकी मेरे से इतनी गहरी दोस्ती, इतने साल बाद अलाउड नहीं होगी। मगर वे अपनी कहानी कहते ही रहते हैं। हम हँसते रहते हैं साथ में। वो मुझे अपने बच्चों के बारे में बताते हैं। अपने शहर। अपनी नौकरी। अपनी बाइक। पटना में बाढ़ का पानी भरा हुआ है। पैर में भी पिचपिच लग रहा है। लेकिन मैं सुकून से हूँ। बेहद सुकून से। घर की बाउंड्री पर लगे हुए कनेल के पेड़ों में पीले फूल खिले हैं। सपने में कनेल, गुलाब और पानी की मिलीजुली गंध है। हम बचपन के बिछड़े दोस्तों की तरह बातें कर रहे हैं। उन्होंने काँधे पर हाथ रख कर मुझे पास खींचा हुआ है कि एकदम धीमी आवाज़ में वे बात कर सकें मुझसे। मेरी आँखें पनिया रही हैं। किसी दोस्त के साथ इतना वक़्त बिताए बहुत दिन हो गए हैं। वहाँ रहते हुए ऐसा लग रहा है जैसे ज़िंदगी में सब कुछ ठीक है।
***
सपने का स्पर्श मेरे होश से क्यूँ नहीं बिसरता? मैं उठी हूँ तो पैरों को वो मिट्टी और वो काँधे पर हाथ धरे हुए चलना याद है। उनसे बात हुए कई साल हुए। आज सोच रही हूँ, उन्हें तलाश कर एक बार उनसे बात करनी चाहिए क्या। जिन बिना लॉजिक के चीज़ों को मैं मानती हूँ, उनमें से एक ये है कि किसी को सपने में देखा यानी उसने याद किया होगा। मैंने याद किया नहीं, उसने याद किया होगा। अब सोच ये रही हूँ कि जो लोग अपनी ख़ुद की मर्ज़ी से ज़िंदगी से उठ कर चले गए हैं, उन्हें फिर से तलाश कर के क्या ही हासिल होगा।
और ये सपने इतने सच जैसे क्यूँ होते हैं। मम्मी की याद इतनी दुखती थी कि उसके साथ के सारे सारे वक़्त को याद से एकमुश्त मिटाना पड़ा है। ना मुझे बचपन का कुछ याद है, ना कॉलेज ना बाद का कुछ भी। मगर कभी कभी सपना आता है तो सब कितना साफ़ दिखता है। कनेल का पीला रंग भी।
और वो जो हँसी सपने से जाग के होठों तक आ के ठहर गयी है, उसका क्या? पूछ ही लूँ उस डिम्पल वाले लड़के को तलाश कर। तुमने याद किया था क्या...कितना याद किया था?
पटना के उस किराए के मकान में कुल पाँच परिवार रहते थे। तीन तल्ला मकान था और पड़ोसी सब घरों में लगभग हमउम्र लोग थे। शाम को घरों के आगे की ज़मीन पर ख़ाली जगह में हम लोग टहला करते थे। अधिकतर लड़कियाँ ही। पर कभी कभी बाक़ी लोग भी टहल लेते थे। ये टहलते हुए बातें करने का वक़्त, मेरा सबसे पसंदीदा समय हुआ करता था।
नीचे वाले दोनों फ़्लैट के आगे बाड़ों में जंगली गुलाब के फूल लगे हुए थे। उनके खिलने पर उनकी गंध पैदल टहलते हुए भी आती थी। एक ओर रातरानी की झाड़ी थी।
आज सपने में देखा कि मैं लौट कर वही घर गयी हूँ। वैसे ही कुर्सियाँ लगा कर लोग बैठे हैं आगे के धूप वाले हिस्से में। मम्मी के साथ बात करते हुए आंटी घर के अंदर चली गयी है। कुछ खाने पीने का देखने।
मैं उनके बेटे को देखती हूँ वहाँ। वे बहुत आत्मीयता से मुझसे बात करते हैं। जैसे बहुत पुरानी, बहुत गहरी दोस्ती हो। हम वहीं आगे की जगह पर टहल रहे हैं। वे बहुत से क़िस्से सुना रहे हैं मुझे। हम हँस रहे हैं साथ में। जिस मकान में में रहती थी पहले, वहाँ दूसरे किरायेदार आ गए हैं और घर के एक हिस्से की ग्रिल पूरी खुली हुयी है, मेन गेट जैसी। मैं वहाँ अंदर जाती हूँ। वहाँ जो रहती हैं, उनकी एक छोटी सी बेटी है, उससे बात करती हूँ। वो बहुत रो रही है तो उसे चुप कराने की कोशिश करती हूँ। वहाँ की खिड़की पर मेरी विंडचाइम टंगी है जो हम उस घर में भूल गए थे। मैं उन आंटी से कहती हूँ कि ये हमारी विंडचाइम है और मैं इसे खोल के ले जा रही हूँ। और भी कोई एक चीज़ थी उस घर में जो मैं लाती हूँ लेकिन अभी मुझे याद नहीं। उस घर में मेरा कमरा बीच का था। मैं उसी कमरे में खड़ी होकर अजीब महसूस रही हूँ। जैसे वक़्त कई कई साल पीछे जा कर २००५ में ठहर गया है।
मैं बाहर आ के वापस आंटी के घर गयी हूँ। एक आध कढ़ाई की चीज़ों में वो और मम्मी व्यस्त है। कुछ खाने को बन रहा है। उनकी बेटी किचन में है। मैं बाहर आती हूँ तो उनके बेटे बाहर खड़े हैं। मैं बग़ल वाले घर की ओर देखती हूँ। वहाँ छत पर कोई खड़ी है। मैं उनसे पूछती हूँ, ये बग़ल वाले घर में जो भैय्या थे आर्मी में, मैं कई साल उनको खोजना चाहती थी, लेकिन पूरा नाम ही पता नहीं था कभी। मैं बहुत सोच रही हूँ कि जा के उनका पूरा नाम पूछ लूँ क्या। बाद में गूगल कर लूँगी। मैं सपने में ही सोच रही हूँ कि कोई किसी को कैसे बिना जाने इतने साल याद रख सकता है।
हम फिर से टहल रहे हैं और वे हँसते हुए मेरे काँधे पर हाथ धरे मेरे कान में कुछ फुसफुसा के बोल रहे हैं। मुझे लगता है कि कोई तो हमें डाँटेगा। कि उनकी मेरे से इतनी गहरी दोस्ती, इतने साल बाद अलाउड नहीं होगी। मगर वे अपनी कहानी कहते ही रहते हैं। हम हँसते रहते हैं साथ में। वो मुझे अपने बच्चों के बारे में बताते हैं। अपने शहर। अपनी नौकरी। अपनी बाइक। पटना में बाढ़ का पानी भरा हुआ है। पैर में भी पिचपिच लग रहा है। लेकिन मैं सुकून से हूँ। बेहद सुकून से। घर की बाउंड्री पर लगे हुए कनेल के पेड़ों में पीले फूल खिले हैं। सपने में कनेल, गुलाब और पानी की मिलीजुली गंध है। हम बचपन के बिछड़े दोस्तों की तरह बातें कर रहे हैं। उन्होंने काँधे पर हाथ रख कर मुझे पास खींचा हुआ है कि एकदम धीमी आवाज़ में वे बात कर सकें मुझसे। मेरी आँखें पनिया रही हैं। किसी दोस्त के साथ इतना वक़्त बिताए बहुत दिन हो गए हैं। वहाँ रहते हुए ऐसा लग रहा है जैसे ज़िंदगी में सब कुछ ठीक है।
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सपने का स्पर्श मेरे होश से क्यूँ नहीं बिसरता? मैं उठी हूँ तो पैरों को वो मिट्टी और वो काँधे पर हाथ धरे हुए चलना याद है। उनसे बात हुए कई साल हुए। आज सोच रही हूँ, उन्हें तलाश कर एक बार उनसे बात करनी चाहिए क्या। जिन बिना लॉजिक के चीज़ों को मैं मानती हूँ, उनमें से एक ये है कि किसी को सपने में देखा यानी उसने याद किया होगा। मैंने याद किया नहीं, उसने याद किया होगा। अब सोच ये रही हूँ कि जो लोग अपनी ख़ुद की मर्ज़ी से ज़िंदगी से उठ कर चले गए हैं, उन्हें फिर से तलाश कर के क्या ही हासिल होगा।
और ये सपने इतने सच जैसे क्यूँ होते हैं। मम्मी की याद इतनी दुखती थी कि उसके साथ के सारे सारे वक़्त को याद से एकमुश्त मिटाना पड़ा है। ना मुझे बचपन का कुछ याद है, ना कॉलेज ना बाद का कुछ भी। मगर कभी कभी सपना आता है तो सब कितना साफ़ दिखता है। कनेल का पीला रंग भी।
और वो जो हँसी सपने से जाग के होठों तक आ के ठहर गयी है, उसका क्या? पूछ ही लूँ उस डिम्पल वाले लड़के को तलाश कर। तुमने याद किया था क्या...कितना याद किया था?
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’रसीदी टिकट सी ज़िन्दगी और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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