उसका सारा बदन बना है शीशे का
काँच के होठ, काँच बाँहें
उससे बेहद सम्हल के मिलती हूँ
फिर भी चुभ ही जाता है
माथे पर कोई आवारा बोसा
कभी काँधे पे टूट जाती हैं
उसकी नश्तर निगाहें
और उंगलियों में फँसी रह जाती हैं
उसकी काँच उंगलियाँ
फिर कितने दिन नहीं लिख पाती कोई भी कविता
उसके कमरे में सब कुछ है काँच का
वो उगाता है काँच के फूल
जिन्हें बालों में गूँथती हूँ
तो ख्वाब किरिच किरिच हो जाते हैं
ये जानते हुये कि एक दिन
मुझसे टूट जायेगा उसका काँच दिल
मैं करती हूँ उससे टूट कर प्यार
धीरे धीरे होने लगा है
मेरा दिल भी काँच का।
शायद हम दोनों के नसीब में
साथ टूटना लिखा हो।
काँच के होठ, काँच बाँहें
उससे बेहद सम्हल के मिलती हूँ
फिर भी चुभ ही जाता है
माथे पर कोई आवारा बोसा
कभी काँधे पे टूट जाती हैं
उसकी नश्तर निगाहें
और उंगलियों में फँसी रह जाती हैं
उसकी काँच उंगलियाँ
फिर कितने दिन नहीं लिख पाती कोई भी कविता
उसके कमरे में सब कुछ है काँच का
वो उगाता है काँच के फूल
जिन्हें बालों में गूँथती हूँ
तो ख्वाब किरिच किरिच हो जाते हैं
ये जानते हुये कि एक दिन
मुझसे टूट जायेगा उसका काँच दिल
मैं करती हूँ उससे टूट कर प्यार
धीरे धीरे होने लगा है
मेरा दिल भी काँच का।
शायद हम दोनों के नसीब में
साथ टूटना लिखा हो।
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