नहीं. आज मैं चीखूंगी. 'आई लव यू पापा'. मगर यहाँ क्यूंकि फोन पर कितना भी मन होने पर हिम्मत नहीं हो पायी. जबान अटक गयी. पापा से ऐसा नहीं कह सकती. इन फैक्ट हमारे बिहार में अपनों से आई लव यू कभी कहने का कल्चर ही नहीं रहा. भाई को भी कभी नहीं कहा. मम्मी को नहीं. बेस्ट फ्रेंड को नहीं. पर आज मन कर रहा था. फिर फाइनली भाई को फोन किया और किस्सा सुनाया...कि चिल्ला कर पापा को कहने का मन था. कह नहीं पाए.
*इस कहानी का एक भी पात्र काल्पनिक नहीं है सिवाए मंटो के. वो पूरा का पूरा मेरे सोच का पुर्जा है...मेरी कहानी का हाशिया है...मेरे आइडियल जिंदगी का बिगड़ा किरदार है...मेरे खुदा के डिपार्टमेंट में फर्जी फ़ाइल लिखने वाला अर्दली है. मंटो से थर थर कांपती है मेरी कलम कि उसका नाम लेने में भी डर लगता है. मगर फिर मंटो का नाम ही लेकर उसके ही बारे में इतना बकवास करने का कूवत है. कुछ तो बात है न मंटो में. वैसे कुछ बात तो हममें भी है ना? चलिये मूड में हैं तो एक बात आपको बता ही दें. इतना दिन से आप हमको पढ़ रहे हैं, कसम से कुछ बात तो आपमें भी है. चलिये, इसी बात पर, चियर्स.
बात छोटी सी है लेकिन आज यहाँ दर्ज करनी जरूरी है. एक अख़बार में वीकली कौलम लिखने की बात आई. अब बात आई है तो साथ हज़ारों सवाल भी लाती है. क्या लिखें, कैसे लिखें...संपादक की अपनी सोच होगी, मेरी अपनी. अपने विचारों को लेकर हम ऐसे ही परेशान रहते हैं कि काफी क्रन्तिकारी और बागी तेवर रहे हैं लड़कपन में. अभी खुद को समझा कर सभ्य करके और बाँध के रखते हैं. ऐसे किसी प्लेटफार्म का मिलना सॉलिड थ्रिल है. क्लिफ डाइविंग जैसा.
पापा से बात हो रही थी. दुनिया जहान, घर परिवार की सारी बातें ख़त्म होने के बाद हमको ये बात कहनी थी पापा से. पूछना था एक तरह से कि सेल्फ-सेंसरशिप तो हम जाने नहीं कभी. कि पापा एक अख़बार से ऐसा मेल आया है...वीकली फीचर है...क्या करें...लिखेंगे तो लोग फूल भी फेंकेंगे और पत्थर भी...जाहिर तौर से फूल से ज्यादा पत्थर फेंकेंगे. पापा कहते हैं, 'बेटा मंटो अगर पत्थर का चिंता करता तो कभी लिख पाता' हमारा दिल मंटो के नाम पर ही धक् से रह गया. एकदम धक् से. जैसे कि एब्सोल्यूट फ्रीडम नाम की कोई चीज़ होती है. कि अब हम आग लगा सकते हैं दुनिया में. और फिर पापा कहते हैं 'आप कब से चिंता करने लगे कि दुनिया क्या कहती है'. तब मेरा चीख चीख के कहने का मन किया फ़ोन पर...कि आई लव यू पापा...और मैं एकदम पूरी की पूरी आपके जैसी हूँ. जैसी हूँ. एकदम आपकी बेटी. आखिर कारण है कि १५ साल की लड़की को राजदूत चलाने सिखा देते हैं आप...आज और किसी का भी उदहारण देते तो बात नहीं होती मगर मंटो...उफ़ मंटो मेरी जान...जैसे जिंदगी एकदम खुशरंग लगने लगी है. जैसे आवाजें कितनी साफ़ हो गयी हैं. जैसे मुझे अब किसी से डर नहीं लगता. किसी का डर नहीं लगता. जैसे कि मैं वही लड़की हूँ...चार नंबर गियर में अस्सी की स्पीड पर मोटरसाइकिल उड़ाने वाली कि जब गिरेंगे तब देखेंगे...जब चोट लगेगी तब डिटौल लगायेंगे...फिलहाल इस लम्हे मैं उड़ सकती हूँ. ये पूरा आसमान...देख रहे हो ये पूरा आसमान मेरा है.
पहला काम किये कि दोस्त को फ़ोन किये...चीख रहे थे...मंटो मंटो मंटो...बता रहे थे उसको कि बताना है कि मंटो को हिचकियाँ आ रही होंगी. कि हम इतनी शिद्दत से याद कर रहे हैं. उसको बताये कि पापा से बात कर रहे थे. कि पापा मंटो बोले...जानते हो मेरी जान...पापा मंटो का नाम लिए. हम सीना ठोक के कहते है कि हम अपने बाप की बेटी हैं. वो हँसे जा रहा था हम पर. पापा पर इतना प्यार उमड़े, उसपर मंटो पर इतना प्यार उमड़े तो कसम से दुनिया पर प्यार उमड़ जाता है. और इस कदर प्यार उमड़ जाता है कि लगता है साला पेट्रोल छिड़क कर अभी इस दुनिया में आग लगा दें. कि चीखें...कि अगर हमको दुनिया में सिर्फ तीन लोग से प्यार हुआ है तो वो हैं पापा, मंटो और तुम...बोले कि हम छापने जा रहे हैं इसको. वो चोट्टा बोला कि तुम्हारे 'तुम' में तुम्हारा सारा बोय्फ्रेंड्स खुद को खोज लेगा. हम बोले कि भाड़ में जाए दुनिया और साला चूल्हे में गया इश्क...हम आज से सिर्फ और सिर्फ मंटो के नाम का कलमा पढ़ेंगे.
हाँ, हम हैं जरा से पागल. जरा से सनकी. हाँ नहीं लगता है डर हमको. हाँ हम गिरते रहते हैं इश्क में. तो? हैं. बोलो. किसी के बाप का कर्जा खाए हैं जो डरेंगे. आओ मैदान में. लगाओ सियाही. सेट करो अखबार. हम आ रहे हैं दुनिया में आग लगाने. हाँ हमको गुस्सा आता है तो हम गाली देते हैं. हाँ हम बहुत रैश चलाते हैं गाड़ी...तो? हाँ...बहुत खतरा है हमसे इश्क करने में. हमसे परमिशन मंगोंगे तो हम बोलेंगे दूर रहो...इधर खतरा है कि जिंदगी कभी कभी भी बोरिंग नहीं होगी...हमेशा कोई न कोई खुराफात मचा रहेगा. या तो बहुत सुख होगा या तो बहुत दुःख. सुकून कभी नहीं होगा. चैन कभी नहीं होगा. दोस्त शायद होंगे एक आध...लेकिन जो होंगे वो ऐसे कमीने और लॉयल होंगे कि साथ में मर्डर की प्लानिंग कर लेंगे. डर लगता है न हमसे? लगना भी चाहिए कि पूरे होशो हवास में लिख रहे हैं. ऐसा हाल लोगों का दारू और गांजा कॉम्बिनेशन में पी के होता है जो मेरा नौर्मली हुआ रहता है. आई एम ऑलवेज ऑन अ हाई. आर यू रेडी फॉर द राइड? डर लगता है क्या? चलो चलो...आगे बढ़ो...लाइन क्लियर करो...पीछे वाला मारेगा तो हम बचाने नहीं आयेंगे.
आपकी लिखी रचना बुधवार 14 जनवरी 2015 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया !
ReplyDeleteसमय निकालकर मेरे ब्लॉग http://puraneebastee.blogspot.in/p/kavita-hindi-poem.html पर भी आना
sahi!
ReplyDeleteसच्ची ......कुछ बात तो है हम में भी जो लौंग और दालचीनी की कड़क चाय इत्ते दिन से पिये जा रहे हैं । पापा से इज़ाज़त मिल गयी है लिखने की ......... तो अब पूजा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं है ।
ReplyDeleteमंटो हमारे भी प्रिय लेखक रहे हैं । मंटो का मतलब है पाखण्ड से दूर मैले-कुचैले कपड़े पहने एक फूहड़ सा आदमी जिसका दिल बर्फ़ के अभी-अभी पिघले पानी जैसा साफ़ है । बेशक ! यह बात मंटो की आलोचना करने वाले भी मान लेंगे । वह शख़्स इस मायने में बेहतर था कि उसके अन्दर और बाहर के बीच कोई दीवार नहीं थी ....जैसी कि कई नामचीन हस्तियों में रहती है । हमें उम्मीद है कि पूजा ने मंटो को छूकर देख लिया है इसलिये पूजा की कलम से अब बहुत कुछ पढ़ने को मिलेगा ......मंटो जैसा । और हाँ ....पूजा की लेखनी पर भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है .....पूजा के सारे पाठक जानते हैं कि वह एक ऐसी लहर है जो हहराती हुयी आती है और फिर तट पर अपने आँचल का सब कुछ बिखेर देती है ......फिर वापस लौट जाती है ... अपना खाली आँचल लिये .... फिर कुछ नया समेट लाने के लिये .... सागर की अतल गहराइयों से ।
जिस भी पत्रिका के लिये लिखना है लिखो ....लेकिन वह सब यहाँ भी होना चाहिये .....। तुम्हें पता है पूजा कि तुम्हारे पाठक लहरों का इंतज़ार करते रहते हैं .....यहाँ किनारे पर बैठकर !
बहुत ही बढ़िया !
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना , बधाई
ReplyDeleteBaap re, Bomb fatane wala he!
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