जाने किनसे बात करते हुए
खिलखिलाते रहते हो जाने किस बात पर
दिल चाहता है एक वैसा लम्हा चुरा लूँ
जब तुम नींद में मुस्कुराते हो
और जाग कर कुछ याद नहीं रहता
कुछ टूटा टूटा सा बताते हो
सोचती हूँ उस मुस्कराहट को काश
किसी डिब्बी में बंद कर रख सकती
क्रिकेट देखते समय खाना भूल जाते हो
एक एक कौर तुम्हें खिला देने का मन करता है
चुपचाप थाली में पांचवां पराठा दाल देती हूँ
और जब तुम देखते हो गिनती पर झगड़ती हूँ
वो झगड़े प्यार से मीठे होते हैं...
तुम्हारे साथ बाईक पर पीछे बैठे हुए
जाने किन किन भगवानों को याद करती चलती हूँ
तुम कहते हो भरोसा नहीं है
पूछती हूँ कि किसपर? भगवान पर या तुमपर
तुम पर तो है... :)
पर क्या? यही कि तुम गिरा दोगे :)
कुछ खास नहीं...बस कुछ बिखरे हुए शब्द हैं...ऐसे ही, बुलबुलों की तरह एक पल की जिंदगी।
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गाना हम सुन रहे हैं पैर हमारी नैना के थिरक रहे हैं। सच आपके लिखे शब्द पढकर एक अलग ही आनंद आता है।
ReplyDeleteतुम्हारे साथ बाईक पर पीछे बैठे हुए
जाने किन किन भगवानों को याद करती चलती हूँ
तुम कहते हो भरोसा नहीं है
पूछती हूँ कि किसपर? भगवान पर या तुमपर
तुम पर तो है
वाकई बहुत ही उम्दा।
बहुत लाजवाब लिखा आपने.
ReplyDeleteरामराम.
कतरा कतरा मिलती है
ReplyDeleteकतरा कतरा जीने दो
जिंदगी है , बहने दो ...............
कल भी तो कुछ ऐसा ही हुआ था
नीद में फिर तुमने जब छुआ था .....
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
ये पल वाकई कुछ खास है.. और अपने भी ....बस थोडा सा उलटफेर है..
ReplyDeleteलेकिन रूमानियत बरकरार है..
प्रणाम
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता
"सोचती हूँ उस मुस्कराहट को काश
किसी डिब्बी में बंद कर रख सकती"
काश ऐसा हो जाता
हर लम्हा कही कैद हो जाता
जब होते हम उदास तो लेते उन्हें हम बाहर निकाल
एक बार फिर दिल बहल जाता
काश ऐसा हो जाता
"और जब तुम देखते हो गिनती पर झगड़ती हूँ
ReplyDeleteवो झगड़े प्यार से मीठे होते हैं..."
मैं इन पंक्तियों की सहज संप्रेषणीयता पर मुग्ध हूं -
सहज सौंदर्य.
सुन्दर शब्दों में बांधा है रचना को आपने.
ReplyDeleteख्यालों की बेलगाम उड़ान खूबसूरत है
मुस्कराहट को डिब्बी में बंद करने की क्या कोई सोच भी सकता है. अब सोचने में क्या है, कुछ भी सोचा जा सकता है लेकिन इस खूबसूरती से तो कतई नहीं. गीत तो "हमने भी सुन लिया" आभार.
ReplyDeleteआपका वो कंप्यूटर कैसा है बहुत अच्छा लिखा है आपने बधाई हो
ReplyDeleteतुम्हारे साथ बाईक पर पीछे बैठे हुए
ReplyDeleteजाने किन किन भगवानों को याद करती चलती हूँ
तुम कहते हो भरोसा नहीं है
पूछती हूँ कि किसपर? भगवान पर या तुमपर
तुम पर तो है... :)
पर क्या? यही कि तुम गिरा दोगे :)
waah kya baat hai,saral sundar ehsaas,bahut khub
यार...बड़ा रोमांटिक लिखती हो! हर बार की तरह ये भी झकास है!
ReplyDeleteReally nice .wat a nice affection n feeling u wrote.
ReplyDeleteI lost a lot of people whom I loved and still love.......
hope dis quote is also a part of your life as i read your too many articles.
Vikash
news24,delhi.
सच में तुम कमाल का लिखती हो पूजा. सटीक शब्द और सहज एवं सुंदर अभिव्यक्ति. और जो सब से खास बात है वो ये कि विषय रोजमर्रा की और आस-पास की और पात्र भी सारे तुम्हारे अपने . तुमसे रश्क होता है बल्कि यों कहो कि तुम्हारी लेखनी से रश्क होता है.
ReplyDeleteरोज़मर्रा की इन छोटी छोटी चीजों में भी इतनी खूबसूरती कैसे ढूंढ लेती है आप ??
ReplyDeleteवाह पूजा.....बड़े दिनों बाद आज जी चाहा इन बिखरे श्ब्दों को पढ़कर "थोड़ा-सा रूमानी हो जायें"
ReplyDeleteसचमुच बहुत सुंदर लिखा है....मन अभिभूत
पढ़ कर अपनी एक दोस्त को अभी मोबाईल पर सुना रहा हूँ और उधर दूर लगभग १४०० किलोमीटर दूर सेंटी हुई जा रही है....
wahhhhhhhh, heart touching.. kitte pyare se shabdo se kitti pyari si dil ki baat :-) :-)
ReplyDeleteNew Post - I Miss You... Words from My Heart
naturica पर आपके लिए मुशायरा (साइबर) हाज़िर है।
ReplyDeletebahut hi badiya....
ReplyDeleteaankho me aansu la diya aapne.. apne din yaad aa rahe hai... bahut khub
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