05 February, 2009

गीत का वसंत


सिर्फ़ शाम के होने भर से कैसे सब कुछ बदला बदला सा लगने लगता है...ठंढी हवा गालों को दुलराने लगती है...और उसी हलकी सी हवा में पेड़ों पर पत्ते झूमने लगते हैं...पगडण्डी जैसे बाहें पसार देती है, गिरते हुए पत्तों को आलिंगन में लेने के लिए।

सूखे पत्तों का कालीन बिछ जाता है, जैसे वापस धरती के गोद में जाने के सुकून से...चाँद कालीन पर रेशमी डोरियों से कशीदाकारी करता है...छन कर आती चांदनी थिरकती रहती है हवा के झोंके के साथ ताल में।

ऐसी किसी रात को जब सड़क पर थोडी चांदनी हो, और थोडी स्ट्रीट लाईट की पीली रौशनी...टीले के नीचे किसी सीढ़ी पर बैठ ईंट के टुकड़े से तुम्हारा नाम लिखने का मन करता है। इत्मीनान से किसी पुरानी याद को जीने का मन करता है...पूरी बारीकियों के साथ, कपडों के रंग से लेकर घड़ी की सुइयां तक देखना चाहती हूँ फ़िर से। चाँद की वो कौन सी रात थी...शायद चौदहवी...पूर्णिमा नहीं थी वो मुझे याद है।


और ऐसी एक रात में एक गीत जन्म लेता है...जो शायद कहीं रूह से निकलता है, ये गीत होठों पर नहीं होता...जैसे मैं एक पूरा का पूरा गीत बन जाती हूँ। धड़कनें थिरकने लगती हैं, पैर ताल देने लगते हैं उसपर...कुछ पल, जैसे जिंदगी से चुरा लेती हूँ मैं और बांस के झुरमुट में झूमने लगती हूँ, बरगद में झूला डाल देती हूँ


ऐसी ही एक लड़की लोकगीतों में गायी जाती है...जाने क्या है उन बोलों में कि सुनकर लगता है...वसंत आ गया है.

13 comments:

  1. एक झगडा रोजाना...
    meN ek comment chhorh diya hai..
    apne blog par se word verification bhi hata diya hai.
    aapki TIPPNI mujhe achchhi lagi thi.
    Dobaara bhi to aayie.

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  2. ऐसी किसी रात को जब सड़क पर थोडी चांदनी हो, और थोडी स्ट्रीट लाईट की पीली रौशनी...टीले के नीचे किसी सीढ़ी पर बैठ ईंट के टुकड़े से तुम्हारा नाम लिखने का मन करता है। wowwwwww... itti sundar batein aap lati kaha se hai? kaha hai woh khazana hume bhi bataiye na muddat se garib hai..

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  3. ऐसी ही एक लड़की लोकगीतों में गायी जाती है...जाने क्या है उन बोलों में कि सुनकर लगता है...वसंत आ गया है.

    लोक गीतों की यही तो खासियत होती है. और आपने बहुत सुन्दर अल्फ़ाज दिये हैं इसको अभिव्य्क्त करने में

    रामराम.

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  4. ये भी खूब रही ...सचमुच ईट के टुकड़े से किसी का नाम लिखने में भी अपना ही मजा है ....रूमानियत भरा ....

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  5. टीले के नीचे किसी सीढ़ी पर बैठ ईंट के टुकड़े से तुम्हारा नाम लिखने का मन करता है। इत्मीनान से किसी पुरानी याद को जीने का मन करता है...


    वर्णन बहुत ही सुंदर बन पड़ा है।

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  6. क्या सुंदर वर्णन है. आदिवासी बालाएं संध्या समय में हर घर के सामने नाच नाच कर गाया करती थीं. शायद उनका भी मतलब यही सब रहा होगा. क्या आप पेंटिंग भी करती हैं? नहीं जानना छठा था कि यदि हाँ तो कूची में शब्द बोलने लगेंगे.

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  7. basant utsav aur ullas ka parva hai utsit hoyiye

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  8. दिल पे मौसम का जादू काबिज हो जायेगा
    गर उस मोड़ पे वो चेहरा दिख जायेगा

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  9. Hi...first of all congrats to u n to me too....coz we shared d same column,same praise n same importance....n....ur feelngs(evrythng)r too beautiful.... jst lik u...

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  10. बहुत सुन्दर रचना है, उत्कृष्ट!

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  11. हद है यार, ब्लौगवाणी का पसंद वाला विजेट कब लगाओगी? ढूंढ ढूंढ कर अपनी पसंद जतानी पर रही है.. :(

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  12. सुंदर,हमेशा की तरह्।

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  13. itminan se purani kisi yaad ko jeene ka man karta hai.....
    ...jaisa main ek poora geet ban jaati hoon.......... yeh chand alfaaz kuch zinda kar dete hain apne bheetar. Behad khoobsoorati se bayan kiya man par mausam ke asar ko..

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