16 February, 2009

बंगलोर एयर शो


ये मेरा एयर शो देखने का पहला मौका था...घर से लगभग साढ़े बारह बजे निकले...जानकारी यही थी कि शो सुबह दस बजे शुरू हुआ है और शाम के पाँच बजे तक चलेगा।


हमारे टैक्सी वाले ने पार्किंग में गाड़ी मोड़ दी...उसे बोला कि गेट पर छोड़ दो फ़िर यहाँ पार्क कर देना पर माना ही नहीं, इधर साउथ में जब लोग जान बूझ कर नहीं समझने का अभिनय करते हैं तो गुस्से के मरे बुरा हाल हो जाता है। खैर हम पैदल चले...पुलिस वाले ने बताया कि डेढ़ किलोमीटर दूर है।


धूप इतनी कड़ी थी कि चलने में हालत ख़राब, उसपर टिकेट में लिखा था कि खाना या पानी कुछ भी लाना मन है तो हम पानी के बिना चले गए थे...उस कडकडाती धूप में चलने में जो हालत ख़राब हुयी कि पूछिए मत...एक जगह नारियल पानी मिला तो कुछ राहत हुयी...रास्ते भर जी भर के गरियाये उस ड्राईवर को...कि गाड़ी से आने का फायदा क्या हुआ जब इतनी दूर पैदल चलना पड़ रहा है।


गुस्सा इसलिए भी आया कि सोचा नहीं था कि पैदल भी चलना होगा, उसपर रास्ते भर न कोई पेड़ न झाडी...तो बिल्कुल सर पे धूप लग रही थी और हमने छाता टोपी वगैरह कुछ भी नहीं ली थी...तो सच में लग रहा था कि पूरा खून गर्म हो गया है...थोडी देर में चक्कर से आने लगे...उसपर हमारा ड्राईवर इतना बदमाश कि जब उसको बोले कि तुम आ जाओ...और हमको पहले गेट पर पहुँचा दो तो आने को ही तैयार नहीं।


लंबा रास्ता तय कर कर मुख्य्स्थल पर पहुंचे...वहां पानी मिला तो पी कर कुछ राहत हुयी, वरना तो लग रहा था कि अब बेहोश हुए कि तब...


सुरक्षा जांच कुछ भी नहीं थी, न किसी तरह का बैग चेक किया गया न कोई मेटल डिटेक्टर...ऐसे में अगर कहीं कुछ होता तो फ़िर हल्ला उठता। एक जगह शामियाना लगा हुआ था और दरी बिछी हुयी थी काफ़ी सारे लोग बैठे हुए थे वहां पर...बाकी लोग मैदान में रनवे के पास खड़े थे...एक तो इतनी गर्मी और धूप में चल कर आए थे...उसपर कहीं कुछ देखने को नहीं मिला...प्रबंधन बहुत ही ख़राब था...कहीं भी कोई जानकारी नहीं। कम से कम बुलेटिंग बोर्ड पर कार्यक्रम तो लिखा जा सकता था...लगभग एक घंटे इंतज़ार करने के बाद हमने सोचा कि वापस चलते हैं...कुछ होने वाला नहीं है, शायद शो सिर्फ़ सुबह होता है।


न तो लाऊडस्पीकर पर कोई अन्नौंसमेंटकी गई...वहां इंतज़ार करना इतना बुरा लग रहा था क्योंकि मालूम ही नहीं था कि कब कुछ होगा, या होगा भी कि नहीं। खैर, हमने सोचा कि वापस चलते हैं, अब ड्राईवर को फ़ोन किया तो फ़िर लगा नौटंकी करने कि आप पार्किंग एरिया में आ जाओ...गुस्सा तो इतनी जोर का आया कि क्या कहिएं...फ़िर हमने टैक्सी ओव्नेर को फ़ोन किया...कि ये नाटक चल रहा है यहाँ पर...दो किलोमीटर धूप में चल कर आए हैं, और अब वापस दो किलोमीटर चल कर जाएंगे तो टैक्सी लेने का फायदा क्या हुआ...हम एक पैसा नहीं देंगे अगर उसने गेट से आकर हमें पिक नहीं किया। फ़िर ड्राईवर ने बोला कि वो आ रहा है।


अब हमने देखा कि विमान भी उड़ने लगे हैं....सुखोई जब हवा में उड़ा तो हमारा सारा इंतज़ार सफल हो गया। सीधा ऊँचा उठता गया और ऊंचाई पर जा कर बिल्कुल रुक गया...बीच आसमान में..वो इतना रोमांचक था...भीड़ में सारे लोग तालियाँ बजाने लगे। सुखोई के करतब कमाल के थे...nosedive करते हुए बिल्कुल जमीन की तरफ़ ऐसे आ रहा था की मुझे लगा सीधे मुझपर गिर जायेगा...और फ़िर बिल्कुल नजदीक आकर फ़िर से ऊपर उठ जाना. मुझे बहुत अच्छा लगा वह प्रदर्शन.


सबसे खूबसूरत रहा सूर्यकिरण का प्रदर्शन...रनवे पर से तीन तीन कर के छः एयरक्राफ्ट उडे...एक तो उनका टेकऑफ़ इतना रोमांचक था...कभी भी रनवे पर एक साथ तीन जहाज उड़ते नहीं देखे थे हमने. और फ़िर आसमान में जो करतब दिखाए की भीड़ तो जैसे खुशी से पागल ही हो गई...जोरदार तालियाँ और सीटियाँ बज रही थी. तीन रंग का धुआं...केसरिया , सफ़ेद और हरा छोड़ते हुए...तिरंगे की तरह ...कई कलाबाजियां दिखाई उन्होंने. मैं तो ऐसे खो कर रह गई थी की तस्वीर लेना भी भूल गई, फ़िर अचानक याद आया तो निकाला और फोटो खींचे.

वाकई इनको चलाने वाले पायलट अद्भुत साहसी होते होंगे...आसमान में बिल्कुल वर्टिकली उड़ना और फ़िर पल्टी खाना और वो भी टीम के साथ, कमाल का सामंजस्य था। मुझे सबसे अच्छा लगता था जब आर्क बनाकर सारे प्लेन्स उड़ते थे.


ये देखने के बाद लगा की अब वापस होना चाहिए...साढ़े चार बज चुके थे, थोडी देर में ट्रैफिक में फंस जाते...तो हम वहां से चल दिए...हमने पैराजम्पिंग मिस किया...पर खैर कुछ अगली बार के लिए भी सही.
ड्राईवर अभी भी नहीं आया था...और आख़िर में वो गाड़ी लेकर नहीं ही आया...हमें फ़िर से लगभग आधा किलोमीटर पैदल चल कर पार्किंग में जाना पड़ा. और फ़िर हम वापस आ गए...सबसे ज्यादा गुस्सा तो तब आया जब हमने देखा कि कुल दूरी ७४ किलोमीटर है...इंदिरानगर से येल्लाहंका कि दूरी बीस किलोमीटर है...ये किसी भी तरह से ७४ किलोमीटर नहीं हो सकता था आना जाना. हमें पूरा यकीं था कि जब हम वहां उतर गए थे, वो किसी और सवारी को लेकर गया होगा इसलिए बार बार बुलाने पर भी आने को तैयार नहीं था. पर हम कर भी क्या सकते थे...हमने शुरुआत में तो मीटर देखा था पर वहां पहुँच कर नहीं देखा था...हमने सोचा ही नहीं कि कोई ऐसा भी कर सकता है...लगभग १००० रुपये देने पड़े...अब से उस टैक्सी वाले से कभी नहीं लेंगे यही सोचकर वापस घर आये.


एक दिन के लिए काफ़ी अड्वेंचर हो गया था...कुर्सी में बैठ कर गरम पानी में पैर डाले...और अगले वीकएंड के लिए हिम्मत जुटाने कि सोचने लगे...हम अगले हफ्ते ट्रेक्किंग करने के लिए स्कंद्गिरी जा रहे हैं.

14 comments:

  1. इसी लिए हमें गुस्सा आता है.

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  2. बहुत ही रोमांचक रहा यह एक दिवसिय वृतांत. सुखोई को जिसने करतब करते देखा है बस वो ही उसका मुरीद बन जाता है. युं लगता है कि बाज पक्षी आकाश मे गोते लगा कर शिकार पकड रहा है. बहुत अच्छा किया जो तकलीफ़ ऊठा कर भी ये यादगार क्षण देखे.

    और टेक्सी वाले तो किसी का भी दिन खराब कर सकते हैं.:)

    रामराम.

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  3. वाह! यहां तो फुल डिस्क्रिप्सन है.. मैं नहीं गया तो भी उसका अफ़सोस नहीं है.. जिवंत विवरण पढ़ने को तो मिल ही गया ना.. :)
    मेरा एक मित्र का कालेज येल्लाहंका के ही कहीं आस-पास था, वो बताता था की वह आराम से अपने होस्टल के बगीचे में बैठ जाता था और पूरा एयर शो मुफ़्त में ही देखता था.. 2004 में तो मुझे भी बुलाया था, मगर मैं उस समय दिल्ली में था..
    और रही बात टैक्सी की तो उसका अनुभव भी आगे ही काम आयेगा.. अगली बार जब कभी कहीं जाना होगा तो मीटर हमेशा चेक करके ही चलोगी.. ;)

    वैसे एक बात बताओ, तुम अपनी स्कूटी या कुनाल के बाईक से भी तो जा सकती थी.. टैक्सी करने की क्या जरूरत आन पड़ी?

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  4. licence yaar...kunal ka bhi licence kho gaya hai...aur janaab abhi tak banwaye nahin hai. aur raasta abhi kuch pata nahin hai bangalore ka...fir time thoda kam tha, kunal ko kaam karna tha to jaldi wapas aane ke liye taxi kar liye.

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  5. बहुत रोचक और सुन्दर विवरण दिया.

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  6. झकास विवरण दिया है तुमने ....एक दम लाइव ..सनस्क्रीन लगाया करो यार ...

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  7. aap kaphi achha likhti hai.i am a civil service aspirant and i have no more time but i read your article defenately. i feel you change my hobby.

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  8. कुल मिलाकर मिला जुला अनुभव......

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  9. आपने तो इस आलेख के जरिये सब को मुफ़्त में ये एयर-शो दिखलवा दिया...
    कभी पैराजंप अलग से देखना हो तो फरमाना

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  10. शायद उसका न समझने का अभिनय इसी लिए थे कि कैसे चीट कर सके आप लोगों को. वैसे हमारा साउथ का अनुभव भी कुछ अच्छा नही ही रहा है . हम तो होते तो अड़ जाते कि जहाँ गाड़ी पहुँच सकती है वहाँ तक नही पहुँची तो फ़िर टैक्सी वाले जाने

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  11. ये तो बढ़िया विवरण दे दिया ड्राईवर से गुस्से के बावजूद! ट्रैकिंग के विवरण का इंतजार रहेगा।

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  12. खट्टी -मीठी यादो के साथ एक बहुत रोचक और सुन्दर विवरण.

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  13. बहुत जीवंत वर्णन.. पढ़ लर मजा आया.. सुरक्षा वाली बात काफी चौकाने वाली है.. कितने लापरवाह है हम..

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